गोविन्द ठाकुर
पटना की महा बैठक में एजेंडा के बिपरीत केजरीवाल का कांग्रेस पर सवाल उठाना, सझा प्रेसवार्ता में भाग नहीं लेना, आगे की बैठक में कांग्रेस के साथ नहीं बैठना, क्या इशारा कर रहा है….जबकि इस बैठक का ऐजेंडा पहले से तय था कि बात सिर्फ गठबंधन, बीजेपी के खिलाफ साथ चुनाव लड़ना, और गठबंधन की रुपरेखा को तय करना था..इधर केजरीवाल बैठक से निकले उधर बीजेपी ने मौका लपका…..क्या ममता बनर्जी अखिलेश यादव और नीतिश कुमार केजरीवाल के बिना ही साथ चलने को तैयार हो रहे हैं…, क्योंकि अब कांग्रेस केजरीवाल के मुददे पर तो झुकने से रही….
बिहार के राजधानी पटना में बीजेपी विरोधी दलों की बैठक कुछ ना नुकर के बाद एक सफल बैठक कह सकते हैं । हां, इसमें कुछ नेताओं के बीच नोंक झौंक जरुर हुए ममता बनर्जी ने कांग्रेस पर सवाल दागा तो केजरीबाल ने कांग्रेस पर समर्थन ना देने को लेकर सवाल उठाया। मगर बैठक हुई और इसमें सर्वसम्मति से पास किया गया कि वे साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे। अब सवाल है कि एक दुसरे को फुटी आंख नहीं देखने वाले आखिर एक मंच पर आ कैसे गए। सारे क्षेत्रीय दल जो कांग्रेस को बीजेपी से अधिक अपना दुश्मन मानती रही है वह कैसे साथ मिलकर चुनाव लड़ने की बात कर कहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण जो दिख रहा है वह है बीजेपी का विस्तारवादी नीति जो किसी भी कीमत पर सत्ता को हस्तांतरित करना और विपक्षी दलों को कानूनी पचड़ों में डालकर उन्हें कमजोर करना। दुसरा कारण है कांग्रेस का दो राज्यों कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में बीजेपी से सत्ता छीन लेना। ये दो कारण सभी विपक्षी दलों को यह सोचने पर विवश कर दिया कि अगर कांग्रेस के साथ 2024 में एकजूट होते हैं तो बीजेपी को हरा सकते हैं वर्ना सभी का असत्तित्व खतरे आ जायेगा।
सभी विपक्षी दलों की अगली बैठक 12 जुलाई को फिलहाल तय कर दी गई है। मगर भीतरखाने की सुने तो शिमला बैठक में केजरीवाल का शामिल होना संदिग्ध माना जा रहा है। पटना की बैठक में ही केजरीवाल ने कांग्रेस से अध्यादेश पर समर्थन की गारंटी मांग रहे थे जबकि इस बैठक का मतलब सिर्फ बीजेपी के खिलाफ मोर्चाबंदी पर सहमती के लिए बुलाई गई थी जिसमें तय करना था कि वे एक सहमति के साथ बीजेपी के खिलाफ लड़ाई लड़ेगे। मगर केजरीवाल ने इसे दरकिनार करते हुए कांग्रेस को कटघरे में खड़ा कर दिया और समय से पहले बैठक खत्म होने से पहले चले गये। जिससे बीजेपी को तंज कसने का मौका मिल गया और उसने पूरी बैठक को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया। आप ने वयान भी दे दिया कि जहां कांग्रेस रहेगी वह वहां नहीं जायेगा मतलब, जो लोंगो की आशंका ती केजरीवाल को लेकर वही हुआ लोग अंदरखाने कह रहे थे कि केजरीवाल बीजेपी के ऐजेंडे पर काम कर रहे हैं जिसका काम है विपक्षी एकता को तितर बितर करना। केजरीवाल के इस रवैये को लेकर नेशनल कांफ्रेंस नेता उमर अबदुल्लाह ने केजरीवाल को कड़े शब्दों में पूछ भी डाला कि 370 धारा को खत्म करने पर वे क्यों चुप रहकर बीजेपी को समर्थन दिया था।
इसी तरह ममता बनर्जी ने भी बंगाल में अपने रवैये बदलने की बात कही ममता ने कांग्रेस से टीएमसी के खिलाफ पार्टी के रवैये को सुधारने की बात कही। मगर ममता की बातों से बैठक का माहौल खराब नहीं हुआ और मान मनौवल में बदल गया। मगर केजरीबाल के गतिबिधि ने बैठक की सारी रणनीति को ही पलीता लगाता दिखा । जिसका नतीजा रहा कि बाद में बीजेपी ने केजरीवाल के अधूरे काम को आगे बढाकर विपक्षी बैठक को चायपार्टी करार दे दिया।
सवाल है कि जब कांग्रेस ने करीब करीब ऐलान ही कर दिया है कि जब दिल्ली अध्यादेश आयेगा तो वह संसद में विरोध ही करेगी। मगर कांग्रेस ने खुलकर ना ही केजरीवाल को समर्थन दिया है और ना ही राहुल और खड़गे से मिलने का समय ही दिया। इसका सबसे बड़ा कारण केजरीवाल का कांग्रेस विरोधी रबैयै रहा है। ममता बनर्जी भी कांग्रेस का विरोध करती है मगर वह बंगाल में ही सीमित है लेकिन आप (केजरीवाल) ने कांग्रेस को उस सभी जगहों पर घेरा है जहां कांग्रेस बीजेपी से सत्ता छीन सकती है। केजरीवाल के इस रबैये का करीब करीब सभी विपक्षी दलों ने खेद प्रकट किया है।
क्या केजरीवाल बीजेपी का सुपारी कीलर है… यह बात भी सही है कि शुरु से ही कांग्रेस ने केजरीवाल को लेकर आशंकाऐं प्रकट की थी। मगर ममता बनर्जी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने केजरीवाल को पटना बुला लिया। हॉलांकि कांग्रेस अंदरखाने इसकी शिकायत की थी कि केजरीवाल का ऐजेंडा अलग है मगर प्रकट में वे चुप रहे। सवाल उठता है कि केजरीवाल को सुपारी कीलर क्यों ना कहा जाए…जब कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने कह दिया कि वे अध्यादेश के खिलाफ हैं मगर इसपर फैसला संसद के समय करेंगे फिर केजरीवाल ने भरी बैठक में कांग्रेस पर क्यों सवाल उठाया। जबकि उस बैठक का पहले ही ऐजेंडा तय था कि इस बैठक में सिर्फ गठबंधन की रुपरेखा को लेकर ही बात होगी। फिर केजरीवाल का सवाल उठाना खुद सवाल कर रहा है कि आप किस ओर बात कर रहे हैं। मीटींग खत्म होते ही दिल्ली के लिए रवाना हो जाना, दिल्ली पहुंने से पहले ही पार्टी का वयान आ जाना कि वह कांग्रेस की उपस्थिति में किसी भी बैठक का हिस्सा नहीं होंगे । सबको मालूम है कि कांग्रेस के बिना किसी गठबंधन की कल्पना नहीं की जा सकती फिर ऐसा वयान यही इशारा कर रहा है कि केजरीवाल विपक्षी गठबंघन नहीं होने देने की चाहत रखते हैं। शायद अपनी कुछ मजबूरी होगी या फिर राज्यों में कांग्रेस को वोट बैंक पर नजर होगी। अभी आगे कई राज्यों के चुनाव होने हैं और कई मामलों में कानून के हथ्थे पर भी हैं।