प्रदीप शर्मा
कांग्रेस वर्किंग कमिटी की सोमवार को हुई बैठक पहले से तय थी, फिर भी
पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की तारीखें घोषित होने से इसकी अहमियत
थोड़ी और बढ़ गई। वैसे बैठक का अजेंडा भी पहले से तय था। यह निश्चित था
कि इसमें कास्ट सर्वे का मसला छाया रहेगा। असल में, बिहार कास्ट सर्वे के
नतीजे सार्वजनिक होने के बाद से यह मुद्दा सबकी प्राथमिकता में आ गया है।
विपक्ष जहां कास्ट सर्वे से अधिक राजनीतिक फायदा लेना चाहता है, वहीं BJP
इस मुद्दे की वजह से OBC वोटरों पर अपनी पकड़ कमजोर नहीं होने देना
चाहती।
कांग्रेस कास्ट सर्वे के पक्ष में खुलकर बोल रही है। लेकिन प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी ने जब से इसे हिंदू समाज को बांटने की कोशिश बताया है,
कांग्रेस के भी एक हिस्से में इस पर सतर्कता से आगे बढ़ने की जरूरत बताई
जाने लगी। जाहिर है, कोई भी पार्टी इस तरह के बड़े मुद्दे पर बंटे हुए मन
से चुनाव में नहीं उतरना चाहेगी। इसलिए कांग्रेस की वर्किंग कमिटी की
बैठक में इस मसले पर सोमवार को विचार हुआ। कांग्रेस ही क्यों, विपक्षी
गठबंधन I.N.D.I.A भी इसके पक्ष में है। इन दलों को लग रहा है कि इसके
जरिए वे 2024 लोकसभा चुनाव में बीजेपी को पराजित कर देंगे। लेकिन हैरानी
की बात यह भी है कि कांग्रेस सरकार ने ही कर्नाटक में 2015 में ऐसा एक
सर्वे कराया था, जिसकी रिपोर्ट उसे 2018 में मिल गई थी।
इस रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया गया है और अभी भी कर्नाटक की कांग्रेस
सरकार में इसे सामने लाने पर दो राय है। एक वर्ग मानता है कि रिपोर्ट
सामने लाई जाए, तो दूसरा लोकसभा चुनाव तक यथास्थिति बनाए रखने की बात कह
रहा है। उसे डर है कि रिपोर्ट सार्वजनिक करने पर कहीं लोकसभा चुनाव में
नुकसान न हो जाए। असल में, बिहार में पिछड़े और अति पिछड़े तबकों की
संख्या राज्य की कुल आबादी का 63 फीसदी दर्ज हुई, उसे देखते हुए अन्य
राज्यों में भी कास्ट सर्वे कराने का सीधा मतलब है आरक्षण पर 50 फीसदी की
अधिकतम सीमा वाली रोक हटाने के पक्ष में माहौल बनाना। जैसे-जैसे यह
मुद्दा गरमाएगा, BJP को हासिल OBC तबकों का समर्थन उससे छिटकने लगेगा।
मगर क्या यह गणित इतना आसान है? जाहिर है, BJP ऐसा नहीं मानती। उसकी दलील
है कि केंद्र सरकार द्वारा चलाई गई LPG कनेक्शन, आवास और मुफ्त राशन जैसी
कल्याणकारी योजनाओं ने OBC वोटरों के बड़े हिस्से में पार्टी की पैठ काफी
मजबूत कर दी है। ध्यान रहे, जहां 2014 के लोकसभा चुनावों में पार्टी को
34 फीसदी OBC वोटरों का समर्थन हासिल था, वहीं 2019 में यह बढ़कर 44
फीसदी पर पहुंच गया। बहरहाल, इस मामले में विपक्ष और BJP का पहला इम्तहान
नवंबर में पांच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनाव होंगे।
जातीय जनगणना एक उपयोगी और जरूरी चीज है इसमें कोई शक नहीं, लेकिन यह कोई
रामबाण नहीं है- जैसा बताया जा रहा है। इसमें उन मतदाताओं को वापस लुभाने
का आकर्षण नहीं है, जिन्हें जाति आधारित पार्टियां भाजपा के हाथों गंवा
चुकी हैं।