सच्चाई छिपाये रखने की कोशिश है ‘द केरल स्टोरी’ का विरोध

सुशील दीक्षित विचित्र

‘द केरल स्टोरी’ वैसे ही चर्चा में है जैसे कभी कश्मीर फाइल्स चर्चा में थी। द केरल फाइल्स भी उसी कारण जेरे बहस का मुद्दा है, जिन कारणों से कश्मीर फाइल्स पर भारी विवाद हुआ था। विवाद भी वही लोग वही खेमें , वही संस्थाएं कर रही हैं जो कश्मीर फाइल्स के खिलाफ खड़ी हुई थीं। विवाद का कारण धर्मपरिवर्तन और ब्रेनवाश करके केरल की लड़कियों को जेहादी या जेहादियों की रखैल बनाकर उनका जीवन नर्क कर देने के कई सालों से चल रहे खौफनाक मगर गुप्त सिलसिले पर से द केरल स्टोरी के माध्यम से पर्दे पर लाकर बेपर्दा कर दिया गया। विरोध करने वाले वे ही हैं जो कल तक बीबीसी की डाक्यूमेंट्री पर न केवल उछल रहे थे, बल्कि भारत सरकार द्वारा वैन कर देने के बाद भी उसे विभिन्न स्थानों पर देखा।

तब बताया गया था कि यह अभिव्यक्ति की आजादी है और अब केरल फाइल्स पर तमाम आरोप मढ़कर उसे बैन करने की मांग सड़क से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक की जा रही है। जबकि बीबीसी की डाक्यूमेंट्री पर वैन हटाने की भी ऐसे ही मांग की जा रही थी। बीबीसी इसलिए उन्हें प्रिय थी कि उसमें गुजरात दंगों के लिए मोदी को दोषी ठहराया गया था। भारत में उसे बैन करने का कारण यह था कि डाक्यूमेंट्री की रिपोर्ट भारत की न्यायिक प्रणाली को बदनाम करने वाली थी। सुप्रीम कोर्ट तक गए गुजरात के दंगों के दो दशक तक चले मुकदमो के अंत में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ़-साफ़ कहा कि यह नरेंद्र मोदी और गुजरात को बदनाम करने का षड्यंत्र है जिसमें मुकदमों के पैरोकार शामिल हैं। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दे कर मामला बंद कर दिया। इसके बाबजूद बीबीसी उन्हें दोषी ठहराने का प्रयास करती है और वे लोग अभी भी उसका समर्थन करते हैं। इस समूचे समुदाय को न्यायालय पर कोई भरोसा कभी नहीं रहा। इनके मन मुताबिक फैसला आये तो ठीक वरना इन्हेंअदालत बिक गयी या भाजपा से मिल गयी या दबाब में आ गयी, जैसे आरोप लगाते देर नहीं लगती। जब सरकार ने इसको प्रतिबंधित किया गया तो इसे अभिव्यक्ति की आजादी की हत्या बताया जाने लगा। यह समूह अपने को यह तय करने का अधिकारी मानता है कि अभिव्यक्ति की कब हत्या होती है और कब वह जीवित हो उठता है। केरल स्टोरी पर बैन की मांग को वे अभिव्यक्ति की आजादी के खिलाफ नहीं मानते, लेकिन बीबीसी डाक्यूमेंट्री पर बैन को उस आजादी के खिलाफ मानते हैं। लव जिहाद का मामला केरल के लिए कोई नया मामला नहीं है। यह शब्द किसी हिन्दू संगठन का भी दिया गया नहीं है। इसे केरल के उच्च न्यायालय ने दिया था। कम्युनिस्ट और धर्मनिरपेक्षता का नकाब लगाए लोग जब-तब उसे छिपाने के लिए तरह तरह के कुतर्क देते हैं।

यह अलग बात है कि ऐसे कुतर्कों से सच्चाई को अधिक देर तक छुपाया नहीं जा सकता। केरल स्टोरी उसी सच्चाई की सामने लाती है। जैसा पहले कहा गया है कि केरल स्टोरी की कथावस्तु ऐसी नहीं है जो अज्ञात रही हो। केरल उच्च न्यायालय के तत्कालीन न्यायमूर्ति के.टी शंकरन ने 9 दिसंबर, 2009 को टिप्पणी में कहा था कि राज्य में ‘प्रेम’ की आड़ में जबरन धर्मांतरण के संकेत मिले हैं और सरकार को इस तरह के निषेध के लिए एक कानून बनाने पर विचार करना चाहिए। अदालत ने यह भी कहा कि प्यार के बहाने कोई भ्रामक, बाध्यकारी धर्मांतरण नहीं हो सकता है। अदालत ने यह भी कहा कि पुलिस रिपोर्टों से यह स्पष्ट था कि कुछ धार्मिक संगठनों के आशीर्वाद से एक विशेष धर्म की लड़कियों को दूसरे धर्म में परिवर्तित करने के ठोस प्रयास किए गए थे। न्यायमूर्ति शंकरन ने यह भी कहा कि यह 1996 के बाद से एक योजना थी और इसके पीछे कुछ मुस्लिम संगठनों का हाथ था। इससे भी खतरनाक बात यह है कि केरल स्टोरी का विरोध कर रहे कम्युनिस्ट नेताओं ने केरल का इस्लामीकरण करने की वाकायदा मुहिम चलाई। इन दिनों एक वीडियो भी चर्चा में है जिसमें केरल के तत्कालीन कम्युनिस्ट मुख्यमंत्री वी एस अच्युतानंद 24 जुलाई 2010 को दिल्ली में आयोजित एक प्रेस कांफ्रेंस में कहते सुनाई पड़ रहे हैं कि उनकी योजना अगले बीस बर्षों में केरल को मुस्लिम राज्य बनाने की है। इसके लिए वे युवाओं को झांसा दे रहे हैं। उन्हें पैसे ऑफर कर रहे हैं। वे युवा हिन्दू लड़कियों से शादी करते है और मुस्लिम आबादी बढ़ाने में सहयोग करते हैं। केरल के पूर्व मुख्यमंत्री कांग्रेसी नेता ओमान चंडी ने विधानसभा में बताया था कि 2009 से 12 तक जितने लोग कन्वर्ट हुए उनमें 2667 महिलायें थीं। इनमें 2195 हिन्दू और 492 ईसाई युवतियां थीं। द केरल स्टोरी के विरोध में अब से आगे खड़े रहने की कोशिश कर रहे कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कुछ वर्ष पहले खुद ट्यूट किया है कि कुछ युवतियों को उनके पति गुमराह करके अफगानिस्तान ले गए और वे वहां फंस गयीं।

द केरल स्टोरी फिल्म में दावा किया गया है कि 2009 से 32 हजार लड़कियों का जबरन धर्मांतरण करके आतंकवाद की आग में झोंक दिया गया या सेक्स स्लेब बना दिया गया। फिल्म में कुछ लड़कियों की आपबीती भी दिखाई जाती है। फिल्म उस सारे षड्यंत्र की पोल खोलती है जो कम्युनिस्ट पार्टियों ने केरल को हिन्दूविहीन करने के लिए फैलाये। हालांकि केरल में सत्तारूढ़ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) इसे प्रोपेगंडा बता रही है। मुख्यमंत्री पिनराई विजयन का कहना है कि फिल्मं को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और नफरत फैलाने के उद्देश्यह से बनाया गया है। विजयन ने कहा, फिल्मै के माध्यखम से आरएसएस केरल में नफरत के बीज बोना चाहती है। कम्युनिस्टों का यह तकिया कलाम है कि संघ और भाजपा नफरत फैलाते हैं जबकि इतिहास उठाकर देखें तो जितनी नफरत कम्युनिस्ट पार्टियों ने फैलाई और जिस तरह धर्म के आधार पर आटंक्यों और देशद्रोहियों का समर्थन किया वह अपने में स्वयं ही उदाहरण है। पूर्वोत्तर को भारत के अलग करने के प्रयास में लगे माओवादी और नक्सली संगठन कम्युनिस्ट पार्टियों की ही देन माने जाते हैं।

कैसी विडंबना है कि हाथरस कांड में विपक्षी दलों ने सरकार के विरोध के सारे रिकार्ड तोड़ डाले थे लेकिन 32 हजार लड़कियों के साथ हुयी बर्बरता पर या तो चुप हैं या सच की हत्या करने पर आमादा हैं। एक और बात महत्वपूर्ण है जो विपक्ष की संवेदनहीनता को दिखाती है। उन्हें मुख्य आपत्ति इस पर है कि फिल्म में लड़कियों की संख्या को बढ़ा चढ़ाकर दिखाया गया है। सवाल है कि एक भी बहन बेटी के साथ अन्याय क्यों हुआ? शशि थरूर ने कुछ दिन पहले कहा था कि पठान फिल्म का इसलिए विरोध हुआ क्योंकि शाहरुख खान मुसलमान है तो क्या थरूर इसलिए फिल्म का विरोध कर रहे हैं क्योंकि यह हिन्दुओं से जुड़ा मामला है और हिन्दुओं की उपेक्षा कांग्रेस का पुराना एजेंडा है। केरल को लव जिहाद का एक केंद्र माना जाता है। ऐसे सैकड़ों उदाहरण है जब चिकित्सा, इंजीनियरिंग और प्रबंधन पाठ्यक्रम करने वाले अच्छे परिवारों की कई लड़कियां कथित तौर पर लव जिहाद के जाल में फंस गईं और आईएस आतंकवादियों से शादी कर लीं,फिर अफगानिस्तान पहुंच गईं और आखिरकार वहां आईएस के कैंप के कैम्प में पहुंच गईं। इनके पतियों की अब मृत्यु हो चुकी है, ये महिलाएं अफगान जेलों में हैं और इन लड़कियों के परिवारों ने केंद्र से उन्हें देश वापस लाने की अपील की है। इतने खौफनाक सिलसिले पर भी जैसी राजनीति विपक्ष कर रहा है वह जेहादी तत्वों का मनोबल बढ़ाने वाली है।

कुछ देर को मान लेते हैं कि द केरल स्टोरी प्रोपेगेंडा है, लेकिन केरल के विभिन्न थानों में दर्ज लड़कियों की गुमशुदगी की सैकड़ों रिपोर्ट तो झूठ नहीं हैं और न ही वे परिजन कोई प्रोपेगंडा कर रहे हैं जिनकी बहन-बेटियों को गुमराह करके अफगानिस्तान ले जाया गया जहां से वे आतंकवादी कैम्प में सप्लाई कर दी गयीं। ‘द केरल स्टोरी’ का विरोध करने वाले विपक्षी दलों और ओवैसी जैसे समाज के ठेकेदारों ने अब तक क्या किया ?

इसलिए इन तर्कों से सहमत नहीं हुआ जा सकता। इसलिए और भी असहमति है कि यह अत्याचार और उत्पीड़न को जाति धर्म के चश्मे से देखते हैं। द केरल स्टोरी का विरोध करके भी वे इसी धारणा को पुष्ट कर रहे हैं । गुजरात के दंगों पर उनका नजरिया और होता है , गोधरा कांड और कश्मीर में नरसंहार पर और नजरिया। आतंकवादियों की मौत पर आंसू बहाने वाले नेता की पार्टी सैकड़ों लड़कियों को धार्मिक कट्टरता के कारण यातना देकर मार डाला गया, लेकिन आंसू आने तो दूर उनके जिक्र से ही परहेज है ।