अनु जैन रोहतगी
जब से मोदी सरकार को हराने के लिए विपक्षी गठबंधन बना है तभी से , राजनीति गलियारों के साथ-साथ राजनीति में रूचि रखने वाले लोगों के बीच यह हमेशा ही चर्चा का विषय रहा कि गठबंधन बन तो गया पर चलेगा कितने दिन। क्योंकि राजनीति के इतिहास में बहुत से ऐसे गठबंधन बने हैं और बिखर गए, और बिखराव का सबसे बड़ा कारण रहा, हर दल की अपनी महत्वाकांक्षा, गठबंधन को लीड करने की चाहत । पर हाल ही में बने 28 दलों के गठबंधन में इतनी जल्दी तल्खियां आने लगेंगी, फूट पड़ने लगेगी किसी ने सोचा नहीं था। गठबंधन बनते ही शुरूआत में ही आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच तो टसल शुरू हो गई थी। खासतौर पर पंजाब में तो आम आदमी पार्टा और कांग्रेस से बीच जुबानी जंग लगातार चल रही है और ये जंग और बढ़ गई जब कांग्रेस के विधायक को नशे के व्यापार सबंधी एक आरोप में गिरफ्तार किया गया, इसके बाद तो पंजाब काग्रेस के वरिष्ठ नेता खुलकर बोलने लगे हैं कि आम आदमी पार्टा से सारे रिश्ते खत्म होने चाहिए, इशारा नेशनल स्तर पर बने गठबंधन की ओर था।
लेकिन जैसा कि अंदाजा लगया जा रहा था कि विपक्षी गठबंधन की असली परीक्षा तो चुनाव के समय ही होगी जब राज्य स्तर पर अलग अलग दलों में टिकट बांटने को लेकर तालमेल बिठाना होगा । फिलहाल देश में पांच राज्यों में चुनाव हैं और इस दौरान राज्य स्तर पर सीटों के बंटवारे को लेकर आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी दोनों ही कांग्रेस से जबरदस्त नाराज चल रही हैं और नाराजगी इतनी ज्यादा है कि बाकायदा प्रेस के सामने खुलकर ये दोनों दल कांग्रेस पर आरोप लगा रहे हैं।
सबसे पहले समाजवादी पार्टी के अघ्यक्ष अखिलेश यादव की ही बात करते हैं। मध्यप्रदेश में जिस तरह से कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों को आश्वासन देने के बाद भी टिकट नहीं दिया उससे जिस तरह से अखिलेश भड़के उसको सबने ही देख लिया होगा। अखिलेश ने तो साफ कह दिया कि उतरप्रदेश में चुनाव के समय हम भी कांग्रेस को देख लेंगे। उन्होनें ये भी कह दिया की लोकसभा चुनावों में सीट बंटवारा उसी समय ही देखा जाएगा। अखिलेश के गु्स्से पर आग में घी डालने का काम किया कांग्रेस के कुछ नेताओं ने जिन्होंने कह दिया कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस का तो कोई जनाधार ही नहीं हैं।
वैसे कांग्रेस समाजवादी को कम आंक रही है और अगर कांग्रेस 2018 ने चुनाव नतीजों पर नजर डालती तो उसे समाजवादी पार्टी की अहमनियत का पता चलता। पिछले चुनाव में वैसे तो समाजवादी पार्टी को एक ही सीट मिली थी लेकिन उसके कईं उम्मीदवारों ने तीन-चार सीटों पर कांग्रेस का समीकरण बिगाड़ दिया था और उसे तीसरे -चौथे नंबर पर खिसका दिया था। मसलन मैहर की सीट कांग्रेस 2984 वोटों से हार गई थी और समाजवादी पार्टी को यहां 11,202 वोट मिले थे , मतलब साफ है कि यहां पर कांग्रेस के बहुत से वोटों पर समाजवादी पार्टी ने कब्जा कर लिया। इसी तरह गूढ, पारसवाड़ा और बालाघाट सीट पर समाजवादी पार्टी दूसरे और कांग्रेस तीसरे स्थान पर खिसक गई थी। ऐसे हालात में यह कहना कोई बड़ी बात नहीं होगी कि समाजवादी पार्टी जितनी सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करेगी, वो कहीं ना कहीं बीजेपी की बजाय कांग्रेस के ही वोट काटेंगे।
अब बात करते हैं आम आदमी पार्टी की जो पहले से ही कांग्रेस से नाराज चल रही थी रही सही कसर मध्यप्रदेश राजस्थान , छतीसगढ़ और मिजोरम में कांग्रेस की ओर से आम आदमी पार्टी को पूरी तरह से साइड लाइन करके अपने उम्मीदवारों की लगातार घोषणा ने कर दी है। इससे आम आदमी में काफी गु्स्सा है। वैसे तीनों राज्यों में आम आदमी पार्टी ने अपने कईं उम्मीदवार उतार दिए हैं, मिजोरम को लेकर वो सोच रही थी कि शायद कांग्रेस से समझौता हो जाए, लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं , कांग्रेस की ओर से यहां 40 में से 39 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े कर दिए गए हैं। मतलब कांग्रेस ने यहां सिर्फ एक सीट छोडी है। इससे आप भड़की हुई लगती है और आम आदमी पार्टी ने यहां अपने चार उम्मीदवार खड़े कर दिए हैं इनमें वो सीटें भी शामिल हैं जहां कांग्रेस ने मिजोरम के कांग्रेस अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को मैदान में उतारा है, लग रहा है आम यहां पूरी तरह से कांग्रेस को टक्कर देने के मूड़ में है।
सभी जानते हैं कि पांच राज्यों में से तीन में लड़ाई सीधे तौर पर कांग्रेस और बीजेपी के बीच है और ऐसे में विपक्षी दल चाह रहे होंगे कि कांग्रेस उनके लिए कुछ ही सीटे छोड़ दे, पर कांग्रेस ने ऐसा कुछ नहीं किया। अखिलेश ने तो साफ कह दिया कि मध्यप्रदेश में तो हमने 6 ही सीटें मांगी थी वो भी हमें नहीं दी गई।
खैर पावर की लड़ाई ऐसी ही होती है, विपक्षी दलों में फूट पड़ने का जो डर था वहीं हो रहा है। सोचिए ये तो सिर्फ पांच राज्यों के चुनाव थे जिसमें विपक्षी दल आपस में ही लड़ रहे हैं। 2024 में जब लोकसभा चुनाव होंगे तो सीटों के बंटवारे के साथ बड़ा सवाल यही होगा कि गठबंधन को कौन लीड करेगा। गठबंधन में इस समय राहुल गांघी, ममता बनर्जी, शरद पवार, नीतिश कुमार जैसे कईं नाम हैं जिनका नाम प्रधानमंत्री पद के लिए पहले से ही उछलना शुरू हो गया , आगे आगे देखते हैं क्या होता है। पर एक बात तो साफ दिखाई दे रही है जिस तरह से कांग्रेस आगे बढ़ रही है और आने वाले समय में यदि पांच राज्यों में चुनावों में उसका प्रदर्शन अच्छा होगा तो वो गठबंधन का नेतृत्व करने और उसका नेता बनने के लिए किसी भी प्रकार का समझौता नहीं करेगी और ऐसी सूरत में देखना होगा कि ममता बनर्जी, नीतिश कुमार, शरद पवार जैसे दिग्गज कांग्रेस को यह अधिकार देने को तैयार होते हैं या नहीं।