- इण्डिया हैबिटाट सेण्टर में “सिनेमा पैराडाइसो” की विशेष स्क्रीनिंग हुई
गोपेन्द्र नाथ भट्ट
नई दिल्ली : दिल्ली वासियों को फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन और इटालियन कल्चर इस्टिटूट के सौजन्य से सोमवार रात इण्डिया हैबिटाट सेण्टर नई दिल्ली के स्टीन ऑडिटोरियम में विश्व सिनेमा की सबसे खूबसूरत कलात्मक और लोकप्रिय फिल्मों में से एक पाँच बार की ऑस्कर विजेता ‘सिनेमा पैराडाइसो’ के पुनर्स्थापित संस्करण को बड़े पर्दे पर देखने का अवसर मिला। इसके पहले मुम्बई में भी रेस्टोरेशन के बाद इस फिल्म का एक विशेष शो हुआ था। इस अवसर पर दो प्रोजेक्टिविस्टों को आजीवन पुरस्कार दिए गए
इस मौके पर ऑस्कर विजेता फिल्म निर्माता ग्यूसेप टॉर्नेटोर और फिल्म हेरिटेज फ़ाउण्डेशन (एफएचएफ) के निदेशक शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर के साथ विशेष रुप से नई दिल्ली में आए और उन्होंने इण्डिया हैबिटाट सेण्टर में अपनी प्रिय क्लासिक “सिनेमा पैराडाइसो” की विशेष स्क्रीनिंग से पूर्व इस फिल्म के निर्माण और इसके ऑस्कर तक के सफर की कहानी की विस्तार से जानकारी दी।
उन्होंने विश्व फिल्म उद्योग में भारतीय फिल्म जगत एवं उद्योग की भूमिका और अपनी मौलिकता खोने के कगार पर पहुँच चुकी तथा जीर्ण शीर्ण हालत में पहुँच चुकी कई कालजयी फ़िल्मों को पुनर्जीवित करने के लिए फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन के संस्थापक निदेशक शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर तथा उनकी टीम द्वारा किए जा रहे चुनौती पूर्ण कार्यों तथा उनके योगदान की मुक्त कंठ से सराहना की।
इस अवसर पर शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर ने कहा कि ऑस्कर विजेता महान फिल्म निर्माता ग्यूसेप टॉर्नेटोर का भारत आना सचमुच सभी के लिए गौरवान्वित होने का विषय है। उन्होंने बताया कि उनकी संस्था एफएचएफ मृत प्रायः या आईसीयू जैसी स्थिति में पड़ी फिल्मों को पुनर्जीवित करने का कठिन काम करने में पिछले दस सालों से जुटी हुई है और उन्हें ख़ुशी है कि पिछलें लगातार तीन वर्षों से उनकी संस्था द्वारा पुनर्जीवित भारतीय फ़िल्मों को कांस फ़िल्म फेस्टिवल की रेड कारपेट स्क्रीनिंग हुई हैं।
खसाखस भरे ऑडिटोरियम में दर्शकों ने ।ऑस्कर विजेता फिल्म निर्माता ग्यूसेप टॉर्नेटोर और फिल्म हेरिटेज फ़ाउण्डेशन (एफएचएफ) के निदेशक शिवेंद्र सिंह डूंगरपुर तथा इस्टीटूटो इटालियनो डि कल्चरा नई दिल्ली के निदेशक एंड्रिया अनास्तासियो का करतल ध्वनि से स्वागत किया। “सिनेमा पैराडाइसो” के प्रति दर्शकों का ज़बर्दस्त क्रेज इस बात से देखा गया कि इसे देखने भीड़ उमड़ पड़ी और जितने लोग ऑडिटोरियम के अंदर बैठे थे उससे भी अधिक लोग बाहर खड़े हुए थे ।