विश्व में सबसे अनुठा व अनोखा है हमारा संविधान

Our constitution is the most unique and unique in the world

विनोद कुमार सिंह

विश्व में ऐसा विधान,जो अपने नागरिकों का बिना किसी धर्म, जाति,लिंक ऊँच-नीच,अमीर -गरीब के आधार पर किसी भेद
भाव करता है कल्याण, वह है भारत का संविधान। वैश्विक राजनीतिक पटल पर भारत ने फिर से सभी का ध्यान खासकर राजनीतिक चिन्तकों को आकर्षित किया है। जिसकी चर्चा व चिन्तन इन दिनों चारों दिशाओं में हो रही है।

जैसा कि सर्वविदित है कि विगत दिनों 26 नवंबर 2024 को भारत ने अपना 75वां संविधान दिवस मनाया है। परिणाम स्वरूप संविधान के प्रति जागरूकता व जिज्ञासा आम आदमी से खास तक बढ़ी है। हालांकि हम अपने जीवन की तमाम व्यवस्तताओं के कारण हम भारत के महान संविधान को हर रोज याद नहीं रख पाते हैं, लेकिन संविधान दिवस हमें संविधान की याद दिलाता है तथा संविधान की मूल भावना की कदर करना भी सिखता है।

अपने संविधान के इतिहास, विशेषताओं तथा संविधान के निर्माताओं के विषय में जानना चाहिए है। आज इसी को ध्यान में रखते हुए अपने इस आलेख में आपको बता रहे हैं कि भारत के संविधान की आत्मा यानि कि उसका मूल स्वरूप कैसे तैयार हुआ? साथ ही आम बोलचाल की भाषा में संविधान का पूरा इतिहास और महत्व के बारे में संक्षेप में बताने की प्रयास किया हैं।
आजकल संविधान को लेकर जगह जगह चर्चा व चिन्तन का दौर सा चल गया है। चाहे वह सता पक्ष हो या विपक्ष हो। विगत लोक सभा के चुनाव में विपक्ष के नेता राहुल गांधी भारतीय संविधान को जनता के बीच गए थे। उनकी गठबन्धन के द्वारा संविधान खतरे की बात कही जा रही थी, जिसका लाभ उन्हे लोक सभा चुनाव में भी कुछ तक मिला। ऐसे में सत्ता पक्ष कहाँ पीछे रहने वाला था।

संविधान के निर्माण के लिए डा. भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता में गठित की गई थी, जिसे संविधान मसौदा समिति का नाम दिया गया। इस समिति में कुल सात सदस्य थे। संविधान मसौदा समिति के सात सदस्य इस प्रकार थे- डॉ. भीमराव अंबेडकर (अध्यक्ष), अल्लादि कृष्णा स्वामी अय्यर, के. एम. मुंशी, एन. गोपालस्वामी आयंगर, मौहम्मद साहुल्ला, देबी प्रसाद खेतान तथा एन माधव राव समिति के सदस्य थे। जिन्होंने भारतीय संविधान के अंदर आत्मा विकसित की थी।

यहां संविधान मसौदा समिति के सदस्यों का संक्षिप्त परिचय भी अवश्य जान लेते हैं। भारतीय संविधान की मसौदा समिति के सदस्यों का परिचय इस प्रकार है।

डॉ. बी. आर. अंबेडकर (सभापति) मुख्य रचनाकार। डॉ. अंबेडकर विद्वान, समाज सुधारक और स्वतंत्र भारत के पहले कानून मंत्री थे। सामाजिक न्याय के कट्टर समर्थक के तौर पर उन्होंने सुनिश्चित किया कि संविधान में समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व के सिद्धांतों को बरकरार रखा जाए और दबे-कुचले समुदायों के अधिकारों की रक्षा हो सके।

अल्लादि कृष्णस्वामी अय्यर : प्रख्यात न्यायविद और अधिवक्ता, जिन्होंने कानूनी-सांविधानिक ढांचे को तैयार करने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने संघवाद को एकात्मक ढांचे के साथ संतुलित करने और न्यायिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
के. एम. मुंशी : लेखक, वकील और राजनेता, मसौदे में एक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य रखा। राज्यनीति के निर्देशक सिद्धांतों और भाषाई व सांस्कृतिक अधिकारों से संबंधित प्रावधानों को शामिल करने का समर्थन किया।

एन. गोपालस्वामी अयंगर : जम्मू-कश्मीर के पूर्व प्रधानमंत्री, प्रशासनिक पहलुओं को आकार देने वाले प्रमुख व्यक्ति थे। जम्मू-कश्मीर के लिए संसदीय ढांचे और विशेष प्रावधानों को तैयार करने में उनकी अंतर्दृष्टि महत्वपूर्ण रही। जम्मू-कश्मीर के लिए अनुच्छेद 370 का मसौदा अयंगर ने तैयार किया।

मोहम्मद सादुल्ला असम के रहने वाले बकील और राजनेता, अल्पसंख्यक अधिकारों और संघवाद पर चर्चा में योगदान दिया। पूर्वोत्तर क्षेत्र को अहमियत के साथ शासन ढांचे में समावेश सुनिश्चित किया।

देवी प्रसाद खेतान : बंगाल के प्रतिष्ठित वकील और विधायक, शुरूआती चरणों में अहम योगदान दिया। 1948 में असामयिक निधन ने एक शून्य उत्पन्न कर दिया, लेकिन उनके काम ने कई प्रगतिशील प्रावधानों की नींव रखी।

एन.माधव राव : बतौर प्रशासक अपनी विशेषज्ञता का लाभ पहुंचाया। प्रशासनिक सुधारों और संस्थागत ढांचे से संबंधित प्रावधानों को आकार देने में भूमिका निभाई। इसके लिए संविधान सभा का गठन दिसंबर 1946 में कैबिनेट मिशन योजना के तहत हुआ। जिसमें 389 सदस्य शामिल थे, जो विभाजन के बाद घटकर 299 हो गए। संविधान सभा की पहली बैठक डॉ. राजेंद्र प्रसाद की अध्यक्षता 9 दिसंबर 1946 को हुई तथा डॉ. भीमराव अंबेडकर के नेतृत्व में ड्राफ्टिंग कमिटी ने संविधान का मसौदा तैयार किया। संविधान के निर्माण में 2 साल,11 महीने और 18 दिनों तक 11 सत्रों में विचार-विमर्श किया गया। अंतत: 26 नवंबर 1949 को संविधान को अपनाया गया, जिसे 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। भारतीय संविधान दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान है। प्रारंभ में इसमें 395 अनुच्छेद और 8 अनुसूचियां थीं (जो बाद में संशोधित हुईं)। यह संविधान कठोरता और लचीलापन का अनोखा मिश्रण है, जो विभिन्न वैश्विक संविधानों से प्रेरणा लेकर तैयार किया गया है।

आप को बता दे कि मूल में हमारा संविधान में 22 भाग थे जो वर्तमान में, भारतीय संविधान में 25 भाग हैं। जिसमे में 395 अनुच्छेद थे जो वर्तमान में 448 अनुच्छेद हैं। जो संवैधानिक प्रावधानों से संबंधित कुछ अतिरिक्त जानकारी या दिशानिर्देशों का विवरण प्रदान करती है। मूल रूप से भारत के संविधान में 8 अनुसूचियाँ थीं। वर्तमान में, जो वर्तमान में 12 अनुसूची है।
भारतीय संविधान का निर्माण 1946 में गठित एक संविधान सभा द्वारा किया गया था। संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद थे। 29 अगस्त 1947 को संविधान सभा में भारत के स्थायी संविधान का मसौदा तैयार करने के लिए एक प्रारुप समिति के गठन का प्रस्ताव रखा गया था। डॉ. बी.आर. आंबेडकर की अध्यक्षता में प्रारुप (मसौदा समिति) समिति गठित की गई थी। हमारे संविधान को तैयार करने में मसौदा समिति को 2 वर्ष, 11 महीने और 18 दिनों का कुल समय लगा। तदोपरान्त गहन विचार-विमर्श और कुछ संशोधनों के बाद, संविधान के प्रारुप को संविधान सभा द्वारा 26 नवंबर 1949 को पारित घोषित किया गया था। इसे भारत के संविधान की ‘अंगीकृत तिथि’ के रूप में जाना जाता है, लेकिन संविधान के कुछ प्रावधान 26 नवंबर 1949 को लागू हो गए थे। हालाँकि, संविधान का अधिकांश भाग 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ, जिससे भारत एक संप्रभु गणराज्य बन गया। इस तिथि को भारत के संविधान के ‘अधिनियमन तिथि’ के रूप में जाना जाता है। मूल रूप से इसमें 14 भाषाएँ थीं जो वर्तमान में 22 भाषाएँ हैं जैसे असमिया, बंगाली, बोडो, गुजराती, हिंदी आदि। भारतीय संविधान अपने मूल्यों को बनाए रखने, विविधता के बीच एकता को बढ़ावा देने और प्रत्येक नागरिक के अधिकारों और स्वतंत्रताओं की रक्षा करने के लिए महत्त्वपूर्ण है, इस प्रकार यह आने वाली पीढ़ियों के लिए एक उज्जवल भविष्य सुनिश्चित करता है।

भारत का संविधान देश का सर्वोच्च कानून है, जो इसके शासन ढांचे, अधिकारों और कर्तव्यों को रेखांकित करता है। यह भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में स्थापित करता है, जो अपने नागरिकों के लिए न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व सुनिश्चित करता है।

भारतीय संविधान के अधिकाँश प्रावधान 1935 के भारत शासन अधिनियम के साथ- साथ विभिन्न अन्य देशों के संविधानों के प्रमुख प्रावधानों संशोधित करके भारतीय परिस्थितियों के अनुरुप अपनाया गया है।

हमारा संविधान न तो कठोर है और न ही लचीला, बल्कि दोनों व्यवस्थाओं का एक अनोखा समिश्रण है। भारतीय संविधान ने ब्रिटिश संसदीय शासन प्रणाली को अपनाया है। संसदीय प्रणाली विधायी और कार्यकारी अंगों के मध्य सहयोग और समन्वय के सिद्धांत पर आधारित है। किसी विशेष धर्म के पक्ष में या उसके विरुद्ध भेदभाव करने से परहेज करना चाहिए। प्रत्येक नागरिक जो 18 वर्ष से कम आयु का नहीं है,उसे जाति, नस्ल, धर्म, लिंग, साक्षरता, धन आदि के आधार पर किसी भी भेदभाव के बिना वोट देने का अधिकार है। सभी नागरिकों को, चाहे वे किसी भी राज्य में पैदा हुए हों या रहते हों, पूरे देश में नागरिकता के समान राजनीतिक और नागरिक अधिकार प्राप्त हैं, और उनके बीच कोई भेदभाव नहीं किया जाता है। नागरिकों को मौलिक अधिकारों की गारंटी देता है, जैसे विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता,धर्म की स्वतंत्रता आदि की रक्षा करता है,साथ ही साथ इन अधिकारों के उल्लंघन होने पर कानूनी निवारण के लिए तंत्र भी प्रदान करता है।

हमारा संविधान सरकार की संरचना को चित्रित करता है, तथा सरकार के कार्यकारी, विधायी और न्यायिक शक्तियों और सीमाओं को परिभाषित करता है। तभी तो विश्व में सबसे अनुठा व अनोखा है, हमारा संविधान।

आज के संविधान को लेकर राजनीतिक दल अपने स्वार्थ सिद्धि में लगे हुए है चाहे वह सता पक्ष हो या विपक्ष। जनता जनार्दन को गुमराह कर वोट की राजनीति कर में गुरेज नही कर रहें है।