हमारे खिलाडिय़ों को हॉकी विश्व कप में अंतिम सीटी बजने तक पूरी शिद्दत से खेलना होगा: सरदार

  • मेरी भारतीय टीम को सलाह बराबर बेहतर करने को बेताब रहे
  • खुशकिस्मत हूं कि मैंने भारत के लिए पहला हॉकी विश्व कप भारत में ही खेला
  • अतिरिक्त प्रयास, एकाग्रता रणनीति का अमली जामा पहनाने की कुंजी

सत्येन्द्र पाल सिंह

नई दिल्ली : भारत के पूर्व कप्तान अपने जमाने के बेहतरीन सेंटर हाफ रहे पूर्व ओलंपियन सरदार सिंह 2014 में एशियाई खेलों में स्वर्ण और 2014 की चैंपियंस ट्रॉफी में रजत पदक जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के कप्तान रहे। सरदार सिंह 2010 में नई दिल्ली और 2014 में हेग (नीदरलैंड) में एफआईएच पुरुष हॉकी विश्व कप में शिरकत करने वाली भारतीय टीम के अहम सदस्य थे। सरदार सिंह 2010 में नई दिल्ली में पहली बार भारत के लिए सीनियर पुरुष हॉकी विश्व कप खेले। भारत अब भुवनेश्वर और राउरकेला में 13 जनवरी, 2023 से पुरुष हॉकी विश्व कप की मेजबानी करेगा।

सरदार सिंह भारत की मौजूदा पुरुष हॉकी टीम के कई खिलाडिय़ों के साथ खेल चुके हैं। सरदार का मानना है, ‘हमारी मौजूदा टीम खासी प्रतिभासम्पन्न है। हमारी मौजूदा पुरुष हॉकी टीम ने हाल ही वर्षों में खासा बढिय़ा प्रदर्शन कर अपनी प्रतिभा की बानगी दिखाई है। भारतीय हॉकी का स्ट्रक्चर बढिय़ा है। मेरी भारतीय टीम को 2023 में होने वाले पुरुष हॉकी विश्व कप कप के लिए बस यही सलाह है कि जब वे इसमें खेलने उतरे तो यह बात जेहन में रखनी होगी कि उसने पहले जो कुछ भी किया उसके अब कोई मायने नहीं है। हमारे खिलाडिय़ों को विश्व कप में मैदान पर खेल शुरू होने की सीटी बजने से इसके खत्म होने की अंतिम सीटी तक पूरी शिद्दत से खेलना होगा। अतिरिक्त प्रयास, एकाग्रता बढिय़ा प्रदर्शन और रणनीति का अमली जामा पहनाने की कुंजी होगी। और यदि भारतीय खिलाड़ी ऐसा करने में सफल रहे तो फिर अच्छे नतीजे खुद ब खुद मिलेंगे।मेरी भारतीय हाकी टीम को मेरी बस यही सलाह है कि वे कभी संतुष्टï न होकर हमेशा बराबर बेहतर करने को बेताब रहें।’

वह कहते हैं, ‘लगभग हर हॉकी खिलाड़ी के लिए विश्व कप में अपने देश की नुमाइंदगी करना बेहद रोमांचक क्षण होता है। मैं खुशकिस्मत हूं कि मैंने भारत के लिए अपना पहला हॉकी विश्व कप भारत में ही खेला। अपने ही प्रशंसकों के सामने अच्छी हॉकी खेलना एक शानदार अहसास है। हमने नई दिल्ली में हॉकी विश्व कप में अपना पहला मैच चिर प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान के खिलाफ दर्शकों से खचाखच भरे मेजर ध्यान चंद नैशनल स्टेडियम में खेला। जैसे ही हम मैच खेलने के लिए स्टेडियम में जुटे तो दर्शकों के जोश ने हमें आत्मविश्वास से सराबोर कर दिया। अपने ही प्रशंसकों के सामने अपने घर में खेलने का अहसास ऐसा होता है, जिसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता।’

सरदार सिंह ने 2014 में हेग(नीदरलैंड) में हुए पुरुष हॉकी विश्व कप में भारत की नुमाइंदगी की। सरदार कहते हैं, ‘हमारी टीम 2014 में एशियाई खेलों में स्वर्ण औैर राष्टï्रमंडल खेलों में रजत पदक जीत कर हेग में हॉकी विश्व कप में शिरकत करने पहुंची थी। तब हमारी टीम में गजब का एका था और एक ईकाई में रूप में वह बराबर बढिय़ा प्रदर्शन कर रही थी। जीत की आदत डालने के लिए टीम को लंबे समय तक मिलकर खेलना और पसीना बहाना पड़ता है। आप दुनिया भर की बड़ी टीमों पर निगाह डालेंगे तो पाएंगेे उनके खिलाड़ी अब काफी समय से साथ साथ खेल रहे हैं। टीम के पदक जीतने के लिए जरूरी है कि हर छोटी-छोटी सी जानकारी पर तवज्जो दी दाए और टीम में सभी मिलकर सभी बराबर एक दूसरे की मदद करें। जब इन सभी चीजों का संगम होता है तो तभी टीम बढिय़ा प्रदर्शन कर पदक जीतने में कामयाब होती है।

सरदार कहते हैं, ‘जहां तक बड़े टूर्नामेंट भारत की कप्तानी की बात है तो मैंने इसकी बाबत बहुत कुछ सोचता था। मैं मानता था कि भारतीय टीम का सीनियर खिलाड़ी होने के नाते कुछ चीजें जरूर करनी पड़ती थी और टीम को भी देखना पड़ता था खासतौर टीम के नौजवान खिलाडिय़ों पर ध्यान देना पड़ता था। जब मैं कप्तान था तो टीम मे हर खिलाड़ी कप्तान के रूप में ही गिना जाता था। मेरी सोच एकदम साफ थी कि टीम में हर खिलाड़ी अपने साथी खिलाड़ी से संवाद करे।जीतने पर जब राष्टï्रगान बजता है तो यह वाकई बेशकीमती अहसास होता है।’