24 मई स्व.कांता बहन त्यागी जन्मदिवस पर विशेष’
नरेंद्र तिवारी
गांधी के विचारों से प्रभावित निमाड़ श्रेत्र की ख्यातनाम समाज सेविका स्वर्गीय कांता बहन त्यागी का जन्मदिवस 24 मई है। निमाड़ श्रेत्र के दूरस्थ आदिवासी अंचल निवाली वर्तमान जिला बड़वानी तात्कालीन जिला खरगोन में 27 मार्च 1953 को कस्तूरबा वनवासी कन्या आश्रम की स्थापना के बाद निमाड़ ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण प्रदेश में आदिवासी बालिका शिक्षा के श्रेत्र में अग्रदूत के रूप में अपनी उल्लेखनीय भूमिका निभाने वाली पदम श्री कांता बहन त्यागी का जीवन वनवासियों के उत्थान, प्रगति एवं कल्याण के महान उदेश्यों को विभिन्न प्रयासों के माध्यम से चरितार्थ करने की जीवंत कहानी है। आजादी के बाद महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित 23 वर्षीय कांता बहन समाज सेवा की निर्मल भावनाओं को मन मे लेकर स्वर्गीय ठक्कर बप्पा एवं स्वर्गीय कृष्णदास जाजू की प्रेरणा से विभिन्न क्षेत्रों में सेवा गतिविधियों में अपना योगदान देते हुए मध्यप्रदेश पहुचीं। जहां उन्होंने दूरस्थ आदिवासी अंचल निवाली में 27 मार्च 1953 को कस्तूरबा वनवासी कन्या आश्रम की नींव रखी। उसके बाद जीवन भर इस नीवं को शिक्षित, संस्कारित ओर गरिमामयी भव्य इमारत का स्वरूप देने में जुटी रहीं। देश के किसी भी आदिवासी अंचल में कन्या शिक्षा को लेकर इस प्रकार के महान प्रयासों के कम ही दर्शन होतें है। जीवन को आदिवासी कन्याओं की शिक्षा के महान लक्ष्य की प्राप्ति में समर्पित कर इस महान उद्देश्य की प्राप्ति में कांता दीदी ने पवित्र साधनों का प्रयोग किया। आजादी के बाद जब शहरों में हीं शिक्षा प्राप्ति कठिन मॉनी जाती थी। ऐसी अवस्था में वनवासी अंचल में बालिकाओं को शिक्षा के लिए प्रेरित करना दिन के उजाले में सपने देखना था। ऐसी अवस्था मे जब आदिवासियों में बालिकाओं का अल्पायु में ही विवाह कर दिए जाने की प्रथा प्रचलित थी। बेटियों के शिक्षा का विचार ही बेहद कठिन और मुश्किल जान पड़ता था। इसी मुश्किल ओर कठिन दिखने वाले कार्य को आज से 70 साल पहले करने का विचार ही आपकी दृढ़ता ओर संकल्पशक्ति का अनूठा प्रमाण है। संकल्पवान शख्सियतें मुश्किलों से घबराती नहीं उनका सामना करतीं है और इन विकट परिस्थियों से ही तो वनवासी कल्याण और बालिका शिक्षा का रास्ता निकल पाया। दीदी घर-घर जाती आदिवासियों में बालिका शिक्षा के महत्व को बताती थी। शुरुवाती दौर में तो वनवासी उन पर विश्वास नहीं करतें फिर उन्होंने निवाली के समीप स्थित ग्राम कुंजरी के आदिवासी गारदी भाई नामक व्यक्ति को अपना सहयोगी बनाया, स्थानीय बोली बोलना सीखीं, स्थानीय खान-पान ओर व्यवहार को अपनाया आदिवासी जीवन शैली में स्वयं को ढाला और आदिवासी समाज मे बेटी पढाओं अभियान का अलख जगाया। बरसों पहले बालिका शिक्षा का यह प्रयास समय के साथ एक विशाल संस्था में परिणित हो गया। वर्तमान में निवाली स्थित कस्तूरबा वनवासी कन्या आश्रम 1100 से भी अधिक बालिकाओं के आश्रम को संचालित कर रहा है। इस आश्रम में रहकर हजारों बच्चियों ने शिक्षा ग्रहण की ओर यह क्रम अनवरत जारी हैं। यहां से शिक्षित और संस्कारित बालिकाओं ने निमाड़ ही नहीं अपितु मध्यप्रदेश ओर सम्पूर्ण भारत में निवाली का नाम रोशन किया हैं। आदिवासी बालिका शिक्षा के श्रेत्र में कार्यरत कस्तूरबा आश्रम की जनपद सेंधवा के वरला एवं ग्राम धनोरा (चारदड) में भी शाखा कार्यरत है। कांता बहन त्यागी शिक्षा के साथ मानवीय संवेदनाओं के दूसरे पहलुओं से भी वाकिफ थी। उन्होंने निवाली के पास ग्राम झाकर में श्री कांता विकलांग सेवा ट्रस्ट की 1978 में स्थापना की इस आश्रम को शासकीय मान्यता भी मिली और यंहा दिव्यागों की शिक्षा, स्वास्थ्य ओर बेहतरी के कार्यो का सिलसिला शुरू हो गया जो अब भी जारी है। 24 मई 1924 को उत्तरप्रदेश के हापुड़ जिले के ग्राम सबली में जन्मी कांता बहन त्यागी ने निमाड़ के निवाली को अपनी कर्मस्थली बनाया। मानवीय पीड़ाओं से व्यथित हो जाने वाली दीदी ने तात्कालीन समय मे आदिवासियों पर हो रहें जुल्म, अत्याचार ओर साहूकारों की ज्यादतियों से आदिवासी समाज को बचाने की लड़ाई लड़ीं। आदिवासी समाज की आवाज बनकर दिल्ली और भोपाल के सत्ता गलियारों में वनवासी समाज के उत्थान की योजनाओं को निमाड़ की धरती पर उतारने के अनथक प्रयास किये। कांता दीदी अपने जीवन काल मे अक्सर यह कहा करती थी ‘मॉनव समाज के पारंपरिक रूप का प्रतिनिधित्व वनवासी संस्कृति करती हैं, किंतु परिवर्तन के इस दौर में उनकी सामाजिक संरचना दोयम दर्जे की हो गयी हैं। उनकी संस्कृति पर आधारित शिक्षा के द्वारा उन्हें समाज के समकक्ष लाकर अपनी स्वावलम्बी सामाजिक संरचना में विश्वास पैदा किया जा सकता हैं। उनके मध्य शिक्षा एवं जागृति का अभी अभाव हैं, यदि इन्हें पूर्ण अवसर दिया जाए तो वें अपने ही संसाधनों का उपयोग स्वावलम्बी व्यवस्था के निर्माण में कर सकतें हैं।’ गांधीवादी विचारक कांता बहन त्यागी के उक्त विचार धरातल पर उतरे भी, बेटी पढ़ाओ अभियान के अग्रदूत के रूप में 70 साल पूर्व शुरू किए उनके प्रयासों ने आदिवासी समाज मे शिक्षा के प्रति जागरण पैदा किया। बेटी शिक्षित होगी तो परिवार भी शिक्षित और संस्कारित होगा। शिक्षा और सामाजिक श्रेत्र में उनके उल्लेखनीय कार्यो को सराहना भी मिली और सम्मान भी 12 अप्रेल 1998 को भारत सरकार द्वारा सामाजिक क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य हेतु पदम श्री सम्मान से नवाजा गया। 1987 में भारत सरकार मॉनव संसाधन मंत्रालय नई दिल्ली द्वारा महिला एवं बाल कल्याण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य हेतु सम्मानित किया गया। मप्र शासन द्वारा भी बिरसा मुंडा, इंदिरा गांधी राज्य स्तरीय पुरुस्कार से सम्मानित किया गया। सामाजिक संस्था दीपालीबेन मेहता अवार्ड मुम्बई, जानकी देवी बजाज पुरुस्कार मुम्बई सहित अनेकों सम्मान उन्हें प्राप्त हुए। बदलाव का जो सपना पदम् श्री कांता दीदी ने देखा उसे विपरीत परिस्थिति में भी पूरा किया। उनका निधन 23 मई 2005 में हुआ। अवसान के बाद भी कांता बहन त्यागी बेटी पढ़ाओ अभियान की अग्रदूत के रूप में हमारे मध्य जीवित है।