पहलगाम पुलवामा बिना पैसे और आतंकवादियों के समर्थकों के बीच फंडों के बगैर नहीं हो सकते-FATF

Pahalgam Pulwama cannot happen without money and funds between supporters of terrorists: FATF

प्रदीप शर्मा

आखिरकार भारत की चिर-प्रतीक्षित मांग कि पाकिस्तान को आतंकवाद के पोषण के लिये कटघरे में खड़ा किया जाए, हकीकत बनती नजर आ रही है। भारत ने पहलगाम आतंकी हमले के बाद विश्व जनमत को पाकिस्तान की हकीकत बताने के जो सार्थक प्रयास किए थे, वे फलीभूत होते नजर आ रहे हैं। अब वैश्विक वित्तीय कार्रवाई कार्य बल यानी एफएटीएफ, जो मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद के वित्तपोषण गतिविधियों के लिए वैश्विक निगरानी संस्था है, ने अंततः 22 अप्रैल को पहलगाम आतंकवादी हमले की निंदा की है। एफएटीएफ ने भारत की तार्किक दलील पर ही मोहर लगायी है। एफएटीएफ ने दो टूक शब्दों में कह दिया है कि ‘ऐसे घटनाक्रम बिना पैसे और आतंकवादियों के समर्थकों के बीच फंडों के स्थानांतरित करने के बगैर नहीं हो सकते।’ आतंकवाद के लिए फंडिग के रिकॉर्ड की निगरानी करने वाली इस संस्था ने फरवरी 2019 में पुलवामा आत्मघाती हमले की भी निंदा करते हुए ऐसे ही शब्दों का उपयोग किया था।

लेकिन इस बार का अंतर यह है कि एफएटीएफ ने घोषणा की है कि ‘राज्य प्रायोजित आतंकवाद’ इसकी आगामी रिपोर्ट में आतंकवाद के वित्तपोषण मामलों की जांच का हिस्सा होगा। दरअसल, पहलगाम नरसंहार के बाद भारत लगातार पाकिस्तान को फिर से एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में डालने की मांग करता रहा है। जो पाकिस्तान की अंतर्राष्ट्रीय ऋणों तक पहुंच को गंभीर रूप से सीमित कर देगा। उल्लेखनीय है कि पाक को वर्ष 2022 में इस सूची से हटा दिया गया था। दरअसल, पाकिस्तान गढ़े हुए तर्कों के आधार पर इस निगरानी संगठन को मनाने में सफल रहा था कि वह धन शोधन और आतंकवाद वित्तपोषण से निपटने के लिये अपने सिस्टम में सुधार कर रहा है। उल्लेखनीय है कि भारत के प्रबल विरोध के बावजूद इस्लामाबाद ने अंतर्राष्ट्रीय मद्रा कोष यानी आईएमएफ से एक अरब डॉलर का बेलआउट पैकेज हासिल करने में कामयाबी हासिल कर ली थी। हालांकि, इस बेलआउट पैकेज के साथ कई कड़ी शर्तों का सामना भी पाकिस्तान को करना पड़ेगा।

यह विडंबना ही कि पश्चिमी देश अपने स्वार्थों के लिये आतंकवाद पोषण की परिभाषा ही बदल देते हैं। उन्हें मानवता के प्रति अपराध करने वाले देश अपने निहित स्वार्थों के चलते पाक-साफ नजर आने लगते हैं। भारत समेत अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी तब हैरान हुई जब आईएमएफ ने दावा किया कि पाकिस्तान ने अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिये संतोषजनक प्रगति की है। लेकिन ऑपरेशन सिंदूर ने पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी के सामने बेनकाब किया। भारत ने दुनिया को बताया कि कैसे पाकिस्तान आतंकवाद की पाठशालाओं को स्वास्थ्य केंद्रों या स्कूलों के रूप में छिपा रहा था। पाकिस्तान का मकसद था कि इससे दुनिया को आतंकवाद के प्रशिक्षण केंद्रों का पता नहीं चलेगा और वह वैश्विक संगठनों की सजा से बच जाएगा। दरअसल, पाकिस्तानी हुकमरान हमेशा से खुद को आतंकवाद से पीड़ित बताकर अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी से मदद हासिल करने की फिराक में रहते हैं।

भारत ने इस खतरे का हवाला देते हुए विश्व जनमत को हकीकत से अवगत कराने का प्रयास किया है। अब यह एफएटीएफ के कर्ता-धर्ताओं के विवेक पर निर्भर करता है कि वे पाक के खतरनाक मंसूबों को कितनी जल्दी भांपने में कामयाब हो सकते हैं। एक ओर पाकिस्तान आर्थिक बदहाली का हवाला देकर अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं से मदद की गुहार लगा रहा है, तो दूसरी ओर उसने अपनी रक्षा मद पर बीस प्रतिशत व्यय बढ़ा दिया है। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि पाकिस्तान इस रक्षा बजट वृद्धि का सारा पैसा राष्ट्रीय सुरक्षा पर खर्च नहीं करेगा। धन के किसी भी दुरुपयोग का पता लगाने के लिये उसके नियमित खर्च की निगरानी अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी को करनी चाहिए। भारत को निगरानी करने वाली वैश्विक संस्था को प्रोत्साहित करना चाहिए कि वह आतंकवादी हमलों को बढ़ावा देने वाले नेटवर्क को खत्म करने के पाकिस्तान के दावे की हकीकत पता लगाए। अब वित्तीय कार्रवाई कार्य बल यानी एफएटीएफ को इस बात पर जोर देना चाहिए कि पाकिस्तान की कार्रवाई में पारदर्शिता सुनिश्चित हो ताकि पाकिस्तान एक बार फिर से अपने खतरनाक मंसूबों को अंजाम न दे सके।