पीओके को लेकर पाकिस्तान केवल स्थानीय नहीं भारत व अफगानिस्तान से भी हो रहा परेशान

Pakistan is facing trouble not only from locals but also from India and Afghanistan regarding PoK

अशोक भाटिया

अफगानिस्तान के विदेश मंत्री अमिर खान मुत्तकी के भारत दौरे से पाकिस्तान इतना बौखलाया कि उसने युद्ध ही शुरू कर दिया है। जवाबी कार्रवाई में तालिबान शासन की ओर से भी मुंहतोड़ बदला लिया जा रहा है। अफगानिस्तान-पाकिस्तान दोनों ही ओर से भारी तबाही के दावे हो रहे हैं। लेकिन, इस दौरान भारत की धरती से पाकिस्तान को जो कुछ संदेश दिया गया है, उससे वह पूरी तरह से हिला हुआ नजर आ रह है। पाकिस्तान को कहीं न कहीं डर सताने लगा है कि अबकी बार गैर-कानूनी कब्जे वाला कश्मीर (पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर-पीओके) उसके हाथों से निकल सकता है। क्योंकि, पहले भारत ही उसे चेतावनी दे रहा था, लेकिन अब अफगान तालिबान की ओर से भी इशारों में उसे एक तरह से अल्टीमेटम दे दिया गया है।

पीओके पर पाकिस्तान को अफगान तालिबान ने झटका ये दिया है कि उसने भारत की धरती से जम्मू और कश्मीर पर भारत की संप्रभुता का पूर्ण समर्थन कर दिया है। यह सब तब हुआ है, जब अफगानिस्तान और पाकिस्तान पूर्ण युद्ध के मुहाने पर खड़े हैं। भारत के साथ संयुक्त बयान में अफगानिस्तान के इस स्टैंड पर पाकिस्तान बहुत तिलमिलाया हुआ है। पाकिस्तान ने अफगानिस्तान से इस बात का औपरचारिक विरोध भी जताया है और इसे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के कथित प्रस्ताव का उल्लंघन बताया है।

भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने मुत्तकी के साथ द्विपक्षीय मुलाकात में पहले ही पीओके पर भारत की स्थिति यह कहकर साफ कर चुके हैं कि हमारे बीच 106 किलोमीटर लंबी सीमा वाखान कॉरिडोर: यह क्षेत्र अभी पाकिस्तान के गैर-कानूनी कब्जे में है और इस वजह से अफगानिस्तान, भारत का निकटवर्ती पड़ोसी है और हम अफगान के लोगों के शुभचिंतक हैं। अफगानिस्तान के विकास और प्रगति में भारत की गहरी दिलचस्पी है। इन बातों से पाकिस्तान इतना घबराया हुआ है कि इसने इस्लामाबाद में अफगानिस्तानी राजदूत को बुलाकर दोनों देशों के साझा बयान को बहुत ही ज्यादा असंवेदनशील बताने की कोशिश की है।

इसके पहले पीओके में प्रदर्शनकारियों और सुरक्षा बलों के बीच हिंसक झड़पों में तीन पुलिस अधिकारियों सहित दस लोगों की मौत हो गई और दर्जनों घायल हो गए। संघीय सरकार ने स्थिति को नियंत्रित करने के लिए एक वार्ता समिति भेजी थी। यह हाल ही में व्यापारियों और नागरिक समाज समूहों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक प्रमुख संगठन पीओजेके ज्वाइंट अवामी एक्शन कमेटी (जेएसी) के साथ महत्वपूर्ण वार्ता के लिए मुजफ्फराबाद पहुंचा था। सामाजिक कार्यकर्ता शौकत नवाज मीर के नेतृत्व में जेएएसी द्वारा आयोजित बंद 29 सितंबर को शुरू हुआ था और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के कई जिलों को पूरी तरह से रोक दिया गया था।

सरकार ने 28 सितंबर से पूरी तरह से संचार ब्लैकआउट लगा दिया है, जिससे निवासियों के लिए मोबाइल दूरसंचार और इंटरनेट कनेक्शन बंद हो गए हैं। मुजफ्फराबाद में गुलजार बाजार बंद हैं, जबकि कोई स्ट्रीट वेंडर नहीं है। सार्वजनिक परिवहन ठप है। अराजकता ने क्षेत्र के लगभग 40 लाख निवासियों को अनिश्चितता की स्थिति में डाल दिया है। सरकार ने एक बयान में कहा, उन्होंने कहा कि अधिकारी व्यवस्था बहाल करने के लिए काम कर रहे हैं और लोगों से अपील की कि वे एक विशिष्ट एजेंडे के साथ सोशल मीडिया पर फैलाई जा रही दुष्प्रचार और फर्जी खबरों से प्रभावित न हों। पिछले दो वर्षों में इस क्षेत्र में यह तीसरा बड़ा आंदोलन है और समिति की 38 सूत्री मांगों को स्वीकार करने से सरकार के इनकार के कारण शुरू हुआ था।

कश्मीर घाटी एक सुंदर लेकिन विवादित हिमालयी क्षेत्र है। 1947 में स्वतंत्रता के बाद से पाकिस्तान और भारत ने कई युद्ध लड़े हैं। चीन इस क्षेत्र के उत्तरी दो हिस्सों को भी नियंत्रित करता है। भारत ने बार-बार पीओके को वापस लेने की भाषा का इस्तेमाल किया है। चीन पाकिस्तान का दोस्त है, लेकिन पाकिस्तान चीन के कब्जे वाले क्षेत्रों को छोड़कर पूरे कश्मीर पर दावा करता है। 2017 की जनगणना के अनुसार, पीओके की आबादी 40 लाख से अधिक है। कश्मीर में प्रधानमंत्री और विधानसभा के लिए अर्ध-स्वायत्तता है। वर्तमान अशांति की उत्पत्ति मई 2023 में हुई है। आसमान छूते बिजली बिलों के विरोध में क्षेत्र के नागरिक पहली बार सड़कों पर उतरे थे। आटे की भारी तस्करी और रियायती गेहूं की आपूर्ति की भारी कमी की शिकायतें मिली थीं। अगस्त 2023 तक, ये अलग-अलग शिकायतें संगठित विरोध प्रदर्शनों में बदल गई थीं। उस साल सितंबर में, सैकड़ों कार्यकर्ता मुज़फ़्फराबाद में एकत्र हुए और औपचारिक रूप से जेएसी का गठन किया। इसमें क्षेत्र के सभी जिलों के प्रतिनिधि शामिल थे।

विरोध प्रदर्शनों की पहली बड़ी तीव्रता मई 2024 में आई जब प्रदर्शनकारियों ने मुजफ्फराबाद के लिए एक लंबा मार्च शुरू किया, जिसमें एक पुलिस अधिकारी सहित कम से कम पांच लोग मारे गए, और हिंसक विरोध प्रदर्शन तभी रुका जब पाकिस्तान के प्रधान मंत्री शाहबाज शरीफ आटे की कीमतों और बिजली दरों में कमी जैसी प्रमुख मांगों पर सहमत हो गए। सरकार ने अनुदान के रूप में अरबों रुपये आवंटित किए, लेकिन चुप्पी लंबे समय तक नहीं रही। उसी वर्ष अगस्त में, JAAC ने एक और लॉकडाउन की घोषणा की। जेएएसी द्वारा प्रस्तुत मांगों में 38 विशिष्ट मुद्दे शामिल हैं। इन मांगों में मुफ्त शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करना, प्रमुख बुनियादी ढांचा परियोजनाएं शुरू करना और प्रांतीय विधानसभाओं की संरचना को बदलना शामिल है। सूची में सबसे ऊपर शासक वर्ग के विशेषाधिकारों को समाप्त करने की मांग है, जिसे पिछली शिकायतों में भी उजागर किया गया था। जेएएसी ने कहा कि मई 2024 के विरोध प्रदर्शनों के बाद, सरकार ने वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों को दिए गए विशेषाधिकारों की समीक्षा के लिए एक न्यायिक आयोग की स्थापना को मंजूरी दी।

हालाँकि, नवीनतम अशांति के बाद, स्थानीय प्रशासन ने संचार काट दिया है और शैक्षणिक संस्थानों को अनिश्चितकाल के लिए बंद करने का आदेश दिया है। इससे भी अधिक विवादास्पद रूप से, उन्होंने अर्धसैनिक बलों सहित शेष पाकिस्तान से अतिरिक्त पुलिस इकाइयों को बुलाया है। लेकिन वरिष्ठ स्थानीय सरकारी अधिकारियों ने मरने वालों की संख्या 15 बताई है। जेएसी ने अर्धसैनिक बलों की तैनाती पर आपत्ति जताई है। जेएएसी नेता मीर ने इस सप्ताह की शुरुआत में संवाददाताओं से कहा था कि मुख्य भूमि पाकिस्तान से अर्धसैनिक बलों को बुलाने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि स्थानीय पुलिस पहले से ही मौजूद थी। पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के वित्त मंत्री अब्दुल मजीद खान ने स्वीकार किया कि हालांकि पहले दौर की वार्ता पहले ही हो चुकी है, लेकिन एक नई समिति मुजफ्फराबाद में आई है और उसे प्रदर्शनकारियों की शिकायतों को हल करने का काम सौंपा गया है। ” जब उन्होंने पिछले साल विरोध करना शुरू किया, तो यह सब बिजली और आटे की कीमतों के बारे में था और हम उस पर सहमत हुए; लेकिन उन्हें यह भी समझने की जरूरत है कि चीजें रातोंरात नहीं बदल सकती हैं और इसमें समय लगता है। सरकार जेएएसी के 38 बिंदुओं में से अधिकांश पर सहमत हो गई है; लेकिन शरणार्थियों के लिए आरक्षित बारह सीटों को समाप्त करने और ‘शासक वर्ग के विशेषाधिकारों’ को समाप्त करने के मुद्दों पर बातचीत विफल हो गई है। मंत्री ने उपमहाद्वीप के विभाजन के दौरान हुई असुविधा की ओर इशारा करते हुए शरणार्थियों के लिए आरक्षित सीटों को समाप्त करने के पीछे के तर्क को चुनौती दी। ये वे लोग थे जिनके परिवार भारत से आए थे जहां वे जमींदार और व्यापारी थे; लेकिन वे अपनी संपत्ति पीछे छोड़ गए और अत्यधिक गरीबी में पाकिस्तान भाग गए।

जेएएसी को लगता है कि उन्हें सीटों का कोटा देना अनुचित है । मंत्री स्वयं इस क्षेत्र के अनुमानित 2.7 मिलियन लोगों में से हैं, जिनके परिवार भारत के कश्मीर से चले गए हैं।ऐसा प्रश्न उठाया गया था। सरकार के प्रतिनिधियों और जेएएसी सदस्यों के बीच बातचीत बिना किसी समाधान के समाप्त हो गई। यह तो समय ही बताएगा कि इस क्षेत्र में नाराजगी और बेचैनी कितनी जल्दी खत्म होगी।

दरअसल जेकेजेएएसी पीओक की जिन 12 आरक्षित सीटों को खत्म करने की मांग कर रहे हैं। ये सीटें भारतीय जम्मू-कश्मीर से आए शरणार्थियों के लिए आरक्षित हैं। ये लोग 1947, 1965, 1971 के युद्ध या उसके बाद पीओके पहुंचे हैं। इस आरक्षण की वजह से स्थानीय आबादी का प्रतिनिधित्व कम हो जाता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि उनकी समस्याओं और जरूरतों को विधानसभा में उठाने के लिए और विधायक चाहिए। उनका यह भी कहना है कि रिजर्व सीटों का फायदा केवल कुछ ही परिवारों को मिल रहा है। ये सीटें 2019 में आए हाई कोर्ट के एक फैसले के बाद आरक्षित की गई हैं।

पाकिस्तान की सरकार इस प्रदर्शन से बहुत अधिक डरी हुई है। आंदोलन से निपटने के लिए इलाके में पत्रकारों के जाने पर पाबंदी लगा दी है। इसके साथ ही पोओके में इंटरनेट सेवाएं ठप कर गई है। इस प्रदर्शन को देखते हुए सरकार को डर इस बात का डर सता रहा है कि प्रदर्शनकारी कहीं आजादी की मांग न मांगने लगें।

साल 2017 में हुई जनगणना के मुताबिक पीओके की आबादी करीब 40 लाख है। वहां चल रहे आंदोलन की जड़े मई 2023 में हैं, जब वहां के लोग आसमान छूती बिजली की कीमतों के विरोध में सड़क पर उतर आए थे। इस दौरान आटे की तस्करी और सब्सिडी वाले गेहूं की आपूर्ति में भारी कमी आने की खबरें भी आई थीं। अगस्त 2023 आते-आते इन प्रदर्शनों ने संगठित रूप लेना शुरू कर दिया। उस साल सितंबर में कार्यकर्ता मुजफ्फराबाद में जमा हुए और सभी जिलों के प्रतिनिधियों ने मिलकर जेकेजेएएसी का गठन किया।

इस आंदोलन ने मई 2024 में उग्र हो गया। दरअसल पीओके के लोगों ने मुजफ्फराबाद की ओर कूच किया। इसके बाद उनकी सुरक्षा बलों के साथ हिंसक झड़पें हुईं। इनमें एक पुलिस अधिकारी समेत करीब पांच लोगों की मौत हो गई।यह प्रदर्शन तब स्थगित हुआ, जब प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने आटे और बिजली दरों में कटौती लाने जैसी मांगें मान लीं। पाकिस्तान की सरकार ने इसके लिए 23 अरब रुपये की सब्सिडी दी। लेकिन यह शांति बुहत टिक नहीं पाई। इस साल अगस्त में, जेकेएएसी ने फिर से आंदोलन की घोषणा कर दी।