ललित गर्ग
पाकिस्तान और चीन दुनिया के दो ऐसे विध्वंसक देश है, जिन्होंने आतंकवाद, युद्ध एवं पडोसी देशों में अशांति फैलाने की राहों को चुनते हुए अपनी बर्बादी की कहानी खुद लिखी है। पाकिस्तानी नेतृत्व ने ही भारत में आतंकवाद फैला कर लिखी अपनी बर्बादी की दास्तां, जिसे अब अब जनता झेल रही है। रोटी, सब्जी, घी, तेल, दूध की महंगाई, बिजली, पानी, पेट्रोल, यातायात के आसमान छूते दामों ने पाकिस्तानियों के मुंह से निवाला ही नहीं छीना है, बल्कि उन्हें देश छोड़ने पर विवश कर दिया है। पाकिस्तान की हुकूमत दिवालिया होने से बचने के लिए अपनी अधिकतम कोशिशें करते हुए दुनिया के लगभग सभी के आगे हाथ फैला चुकी है, अब आगे रास्ता नजर नहीं आता। संभवतः पाकिस्तान के हालात सुधरने के बजाय दिनोंदिन बिगड़ते ही जा रहे हैं, कहीं से कोई आशा की उम्मीद दिखायी नहीं देती है। भारत ने कई बार दोहराया है कि आतंकवाद को बढ़ावा देने की नीति पाकिस्तान के लिए आत्मघाती एवं बर्बादा का कारण बनेगी। कई और देश भी उसे आतंकवाद पर लगाम कसने की नसीहत दे चुके हैं। पर पाकिस्तान ने कभी खुलकर कबूल नहीं किया कि आतंकी संगठनों को पनाह देना उसकी सबसे बड़ी गलती है। ऐसे संगठनों के प्रति हमदर्दी रखने की उसे भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। उसकी शह पाकर खड़े हुए आतंकवादी संगठन उसी के लिए भस्मासुर साबित हो रहे हैं। जो जैसा बोते हैं, वैसा ही काटते हैं।
भारत शांतिप्रिय देश है, वह खुद शांति चाहता है और दुनिया में शांति की स्थापना के लिये निरन्तर प्रयत्नशील रहा है। शांति, अहिंसा , अयुद्ध एवं अमनचैन की भारत की नीतियों को देर से ही सही दुनिया ने स्वीकारा है। भारत की ऐसी ही मानवतावादी एवं सहजीवन की भावना को बल देने के कारण ही दुनिया एक गुरु के रूप में भारत को सम्मान देने लगी है। भारत आतंकवाद, हिंसा-युद्धयुक्त संसार और विस्तारवाद की भूख के खिलाफ जो सवाल उठाता रहा है, उसे अनेक देशों में न सिर्फ विचार के लिए जरूरी समझा जाने लगा है, बल्कि अब उन पर स्पष्ट रुख भी अख्तियार किया जा रहा है। चीन और पाकिस्तान को लेकर भारत के रुख को समर्थन मिल रहा है तो इसे वैश्विक स्तर पर सच की स्वीकार्यता की तरह देखा जा सकता है। गौरतलब है कि अमेरिकी सीनेट में एक द्विदलीय प्रस्ताव पेश किया गया है, जिसमें भारत की वास्तविक नियंत्रण रेखा पर यथास्थिति को बदलने की चीन की आक्रामकता का विरोध किया गया है। साथ ही अरुणाचल प्रदेश पर चीन के हर दावे को खारिज करते हुए इसे भारत के अभिन्न अंग के रूप में मान्यता देने की स्पष्ट वकालत की गई है। हालांकि इस तरह के मुद्दों पर वैश्विक स्तर पर लंबे समय तक उदासीनता छाई रही, जिसका खामियाजा यह हुआ कि आतंकवादी संगठनों एवं चीन का हौसला बढ़ा। लेकिन अब पाकिस्तान एवं चीन जैसे हिंसक, युद्ध एवं आतंकवादी राष्ट्रों के खिलाफ दुनिया एक होने लगी है, संगठित स्वरों में उनके मनसूबों को नेस्तनाबूदक करने को तत्पर है। भारत शांति का उजाला करने, अभय का वातावरण बनाने, शुभ की कामना और मंगल का फैलाव करने के लिये लगातार शांति प्रयास किये हैं। मनुष्य के भयभीत मन को युद्ध एवं आतंकवाद की विभीषिका से मुक्ति दिलाना आवश्यक है।
पाकिस्तान की आतंकवादी एवं हिंसक मानसिकता सम्पूर्ण बर्बादी तक पहुंच कर भी बदलने का नाम नहीं ले रही है। पाकिस्तानी फौज की सख्ती के कारण कुछ साल तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) पर अंकुश रहा, पर 2021 में अफगानिस्तान में तालिबान की हुकूमत की वापसी के बाद यह लगातार पाकिस्तान में आतंकी हमलों को अंजाम दे रहा है। जिसे पाकिस्तानी तालिबान के नाम से भी जाना जाता है। यह संगठन 2007 से पाकिस्तान के लिए सिरदर्द बना हुआ है। ज्यादातर हमलों में उसने सुरक्षाकर्मियों को निशाना बनाया। कराची में पुलिस मुख्यालय पर हमले से पहले 30 जनवरी को इसने पेशावर की एक मस्जिद पर आत्मघाती हमला किया था। इसमें मारे गए सौ से ज्यादा लोगों में 97 पुलिसकर्मी थे। हैरानी की बात है कि पाकिस्तान के कई चर्च व स्कूलों, मस्जिद, पुलिस मुख्यालय पर हमले करने वाले आतंकी संगठन को सख्ती से कुचलने के बदले पाकिस्तान सरकार ने उसे बार-बार बातचीत की मेज पर लाने की कोशिश ही की है, अपनी जमीन पर फल-फूल रहे आतंकी संगठनों को लेकर अब तक कोई कड़ा संकेत नहीं दिया है।
पेशावर की मस्जिद में हमले के बाद पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने सारा दोष पिछली सरकार की नीतियों पर डालते हुए कहा था, ‘हमने तो मुजाहिदीन (धार्मिक योद्धा) बनाए थे, लेकिन वे आतंकी बन गए।’ पाकिस्तान से पोषित एवं पल्लवित आतंकवाद ने दुनिया में भय, क्रूरता, हिंसा एवं अशांति को तो पनपाया ही है, लेकिन पाकिस्तान को भी नहीं बख्शा। वहां से पनपे हिंसक, क्रूर, उन्मादी एवं आतंकी लोगों ने शांति का उजाला छीनकर अशांति का अंधेरा फैलाया है। अब स्वयं पाकिस्तानी जनता हर दिन ऐसे ही आतंकी हमलों का तो शिकार हो ही रही है, पाकिस्तानी शासकों की कुचेष्ठाओं एवं अनीतियों के कारण घबराये लोग देश छोड़ भाग रहे हैं। पाकिस्तान का मीडिया कह रहा है कि अब पाकिस्तान जिन्दाबाद कहने का वक्त नहीं, पाकिस्तान से जिंदा भागने का नारा बुलंद हो रहा है। इसी बीच पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने कबूल कर लिया है कि पाकिस्तान दिवालिया हो चुका है और आतंकवाद हमारा मुकद्दर बन गया है। पाकिस्तान में त्राहि-त्राहि कर रही जनता शांति एवं जीवन-निर्वाह की समुचित व्यवस्था चाहती है, लेकिन यह कैसे संभव हो?
चीन के खिलाफ प्रस्ताव को अमेरिका में भारत के पक्ष को लेकर बन रही राय और स्पष्टता के तौर पर देखा जा सकता है, मगर यह भी सच है कि विश्व के प्रभावशाली देशों में अब हो रही ऐसी पहलकदमी के लिए भारत को लंबे समय तक दुनिया को आईना दिखाना पड़ा है। जब तक चीन के अहंकार एवं विस्तारवादी सोच का विसर्जन नहीं होता तब तक युद्ध की संभावनाएं मैदानों में, समुद्रों में, आकाश में तैरती रहेगी, इसलिये आवश्यकता इस बात की भी है कि जंग अब विश्व में नहीं, हथियारों में लगे। मंगल कामना है कि अब मनुष्य यंत्र के बल पर नहीं, भावना, विकास और प्रेम के बल पर जीए और जीते। चीन को लेकर अमेरिकी सीनेट में जो पहलकदमी हुई है, उसकी अहमियत को भी इस दृष्टिकोण से देखा जा सकता है कि एक ओर जहां भारत को कूटनीतिक मोर्चे पर दुनिया को अपने पक्ष को सही साबित करने में कामयाबी मिल रही है, वहीं खुद कुछ देशों को यह हकीकत समझ में आने लगी है कि चीन और पाकिस्तान की ओर से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किस तरह दुनिया में अशांति एवं अस्थिरता फैलाने के लिये नाहक दखलअंदाजी की जाती रही है। यह किसी से छिपा नहीं है कि पाकिस्तान स्थित ठिकानों से अपनी आतंकी गतिविधियां संचालित करने वाले आतंकी संगठनों को लेकर भारत ने तथ्यों के साथ संयुक्त राष्ट्र सहित तमाम अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी बात रखी। लेकिन तकनीकी जटिलताओं का हवाला देकर इस मामले में ज्यादातर देश कोई स्पष्ट रुख अख्तियार करने से बचते रहे। लेकिन एक महीने पहले संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की एक समिति ने पाकिस्तान स्थित आतंकवादी और लश्कर-ए-तैयबा में अनेक भूमिकाएं निभाने वाले अब्दुल रहमान मक्की को वैश्विक आतंकवादी घोषित कर दिया। इसकी मांग भारत काफी अरसे से कर रहा था।
आतंकवाद को अपनी राष्ट्रीय नीति बनाने का खामियाजा पाकिस्तान को भुगतना पड़ रहा है। अगर पाकिस्तान को सम्भलना है, पाकिस्तानी जनता को निष्कंटक जीवन देना है, तो आतंकवाद से दूरी बनानी होगी, कश्मीर का राग अलापना बंद करना होगा और भारत तथा अन्य पड़ोसी देशों से आर्थिक सहयोग पर ध्यान फोकस करना होगा। पाकिस्तान अब भी नहीं सम्भला तो आत्मविस्फोट हो जाएगा। परमाणु हथियार रखने वाले देश के लिए यह स्थिति अच्छी नहीं। भारत से दुश्मनी भी उसके लिये आत्मघाती होगी, क्योंकि भारत में सशक्त एवं मजबूत शासन व्यवस्था है। यह तो भारत की शांति एवं अहिंसा की नीतियों का असर है, वर्ना भारत चाहे तो आज पाकिस्तान पर हमला करके अपनी हथियायी भूमि को आसानी से प्राप्त कर सकता है।