राजेन्द्र कुमार सिंह
जब शासन-प्रशासन होगा वीक तो मामला कैसे रहेगा ठीक।जहां बागडोर की कड़ी पड़ी कमजोर टूट गई गोपनीयता की डोर।चारों तरफ मच गया हाहाकार,बदल गया व्यवहार।
इस मामले में दो तरह के लोग होते हैं एक समर्थन में और एक विरोध में।समर्थन में वैसे लोग होते हैं जो धन के अहं में चुर होकर दहाड़ मारते हैं।और अपनी इमारत इसकी आड़ में खड़ा करते हैं।
पेपर लीक आज के दौर में एक तरह का रोजगार बन गया है।क्योंकि इस व्यापार में माल तो है लेकिन रिस्क है।यदि लीक का मामला कुछ लोगों के घेरे में या दायरे में रह गया तो न्यारा-व्यारा कर देगा।यदि ऐसा घृणित कार्य करते हुए पकड़ा गया तो नकारा कहकर रेल देगा या यूं कहें जेल में ठेल देगा।क्योंकि लीक का मामला उन लोगो के लिए बेहतर होता है।पैसे के बल पर छल से नौकरी पाकर मजा मारते हैं और जो हर तरह से फिट होकर जब सफलता के राह के प्रथम सोपान पर जाता है तो पेपर लीक की बातें सुन उसकी तमाम संभावनाएं धूल-धूसरित नीलाम हो जाती है।आंखों से नींद गायब,हराम हो जाती है।उसका डिग्री बस बेमानी होकर बस किसी के लिए मिमिक्री बन जाती है।
आज पेपर को लीक कर एक वर्ग लीक-लीक खेल समझकर खेल रहा है।इसमें एक वर्ग घालमेल से भरा हो तो दूसरे पहलू से तालमेल बैठा पाना संभव नहीं।क्योंकि यह देशहित में कतई परफेक्ट नहीं मुट्ठी भर लोगों को छोड़कर एक भारी जनसमूह देश के माथे पर घुन समझ रिजेक्ट कर रहा है।
आज जो संपन्न है।वह पैसे के बल पर लीक कराकर अपना पप्पू फिट कर समाज में हिट हो जाता है।और जो तेज-तर्रार हर तरह से होनहार होकर भी अनफिट होकर रह जाता है।उसका तेज होने का ठप्पा लगा है उसकेअस्तित्व पर ग्रहण लगकर सदा के लिए मिट जाती है।
पेपर लीक का मामला देश सहित,समाज हित के लिए ठीक नहीं है।पेपर लीक मामला शासन प्रशासन को वीक बताती है।
क्या इस तरह के करतूत को प्रस्तूत कर देश का भविष्य क्या कहता है।आप समझदार हैं तो बारीकी से कीजिए गौर आगे बढ न पाए ठौर।