विनोद कुमार विक्की
बचपन से ही मुझे एडवेंचर ट्रिप पर जाने का शौक रहा है।जान हथेली पर रखकर स्टंट द्वारा लाइफ के साथ लाइफ से खेलने अथवा आनंद लेने की इच्छाएं मेरे रक्त, हृदय, गुर्दा, फेफड़ा आदि में उफ़न मारा करती थी।किंतु कमजोर दिल और कमजोर अर्थव्यवस्था के कारण अपने इस शौक को डिस्कवरी चैनल, एक्शन हालीवुड मूवी अथवा रोहित शेट्टी की फिल्में देखकर पूरी कर लिया करता था।
कहते हैं जिस चीज की तमन्ना शिद्दत से की जाय तो सारी कायनात उसे मिलाने की साज़िश करने लगती है। कुछ इसी तरह की घटना मेरे साथ भी हुई। ईश्वर ने मेरी सुन ली और मुझे भी कम खर्च में नेचुरल एडवेंचर जर्नी का सौभाग्य प्राप्त हो गया।
पहली बार बिहार की राजधानी पटना जाने का सुयोग बना। फिर क्या, साधारण टिकट लेकर रेलवे के साधारण डिब्बे में सेंध लगाकर घुस गया।सेंध लगाना मजबूरी थी क्योंकि 103 सीट वाली अनारक्षित प्रत्येक बोगी में लगभग तीन-साढ़े तीन सौ पैसेंजर भेड़-बकरियों की तरह सीट, लगेज सीट, फर्श, टॉयलेट और गेट पर बैठे-खड़े,लटके आदि अवस्था में किसी तरह टिके हुए थे। मैं भी इमरजेंसी विंडो के सहारे किसी तरह डब्बे में घुसकर अपने आयतन के अनुसार खड़ा रहने हेतु जगह को छेक लिया। स्टेशनों पर चढ़ने-उतरने वाले यात्रियों के धक्का-मुक्की तथा अवैध वेंडरों के ठेलमठेल के बीच खुद को बैलेंस करते हुए 6 घंटे की रोमांचक यात्रा के पश्चात आखिर कार पटना जंक्शन पहुंचा।जंक्शन से पटना सिटी के लिए ऑटो की तलाश में बाहर निकला।
सिटी के लिए बड़ी आसानी से ऑटो मिल गई। ड्राइवर ने टेम्पो के पीछे वाली चौड़ी सीट पर तीन लोगों को बैठाया जबकि आगे की ड्राइवर सीट वाली कम जगह पर अपने अलावा तीन अन्य पैसेंजर को बड़ी ही कुशलता से एडजस्ट कर लिया। कमोबेश सभी ऑटो रिक्शा चालक तीनों पैसेंजर के साथ खुद को समायोजित कर दो अवस्थाओं में अपनी टेम्पो टेक ऑफ की स्थिति में नजर आ रहे थे।कुछ चालक ड्राइविंग सीट पर बीच में बैठ कर तो कुछ साइड में शिफ्ट हो कर।साइड अवस्था में ये एक तरफ लटक कर या हाफ तशरीफ के सहारे आटो के संपर्क से तथा दूसरी स्थिति में तशरीफ और सीट के स्पर्श मात्र से स्वयं को टिका कर हैंडल पकड़ अथवा 45 डिग्री कोण में खड़ा हो टेम्पो हुड़हुड़ाने को तैयार थे। ड्राइवर सहित कुल चार सीट वाले ऑटो में सात लोगों को सफर करने का हुनर देख हमें समझते देर ना लगी कि पटनिया ऑटो ड्राइवर कुशल प्रबंधक होते हैं।मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि इस प्रकार का समायोजित रोमांचक दृश्य अखिल भारतीय स्तर पर सिर्फ और सिर्फ पटना की सड़कों पर ही देखा जा सकता है।पटना की सड़कों पर दुपहिया और चारपहिया के बीच तिपहिया की धूम के आगे रितिक रौशन और उदय चोपड़ा की धूम फेल है।
पटनिया ऑटो ड्राइवर समयनिष्ठ अर्थात पंक्चुअल होता है।बस स्टैंड से पैसेंजर को बैठाने के चक्कर में चालक ने भले ही जितना विलंब किया हो किंतु पैसेंजर सीट फुल होने के बाद यह बाएं-दाएं, राइट साइड, रांग साइड, ऑटो की अधिकतम गति और अधिकतम शोर के साथ रॉकेट की गति से गंतव्य की ओर कूच कर दिया।भले ही इनके कारण सड़क पर जाम लग जाए किंतु लाइन में रहकर समय बर्बाद करने मे ये विश्वास नहीं रखते और अमिताभ बच्चन की तरह अपनी लाइन खुद तैयार कर लेते हैं।
संभवतः आगे सड़क जाम था अथवा पेपर चेकिंग अभियान चल रहा था पता नहीं, किंतु इस बात का इन्हें जैसे ही आभास हुआ फिर क्या इन्होंने हमें पटना की ऐसी टेढ़ी-मेढ़ी गलियों में गोल-गोल घूमाया, जिन गलियों को ढूंढ पाना कोलंबस के वंशज के वश से बाहर हो!हमें समझते देर ना लगी कि यहां के ऑटो ड्राइवर आविष्कारक अथवा खोजी प्रवृत्ति के होते है।
हम राकेट की गति से सफर का आनंद ले ही रहे थे कि फ्लाई ओवर पर पीछे से हुड़हुडाता हुआ एक ऑटो काफी तेजी से हमारे आगे निकल गया। संभवतः यात्रियों से ज्यादा गंतव्य तक पहुंचने की जल्दी ड्राइवर को थी। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए तीखे मोड़ पर टर्न लेने के दौरान द्रुत गति से बिना ब्रेक लिए पलटी मार दृश्य का लाइव प्रसारण कर बैठा।खुद की टेम्पो का अनियंत्रित स्पीड और रेस में आगे निकल रहे ऑटो का हश्र देख मेरे कलेजा के अंदर डीजे बजने लगा।हमें समझते देर ना लगी कि पटनिया सड़कों पर ड्राइवर के रूप में यमराज के दूत भी विद्यमान है जो अपनी हवा-हवाई स्पीड और रेस से यात्रियों को परिवार या परिचित तक पहुंचाने के साथ-साथ अस्पताल गमन से अल्लाह दर्शन तक करवाने में भी दक्ष होते हैं।
ऐसा नहीं है कि बिना सेंसर बोर्ड वाले अश्लील भोजपुरी गीत इंडस्ट्री की तरह पटनिया परिवहन बिना ट्रैफिक कंट्रोल व्यवस्था वाली है। सौ से सवा सौ मीटर पर यातायात पुलिस मौजूद रहते हैं।ये पटनिया ऑटो ड्राइवर के क्षमता से ज्यादा यात्री ढोने और जिगजैग ड्राइविंग जैसी साहसिक कारनामा के दौरान धृतराष्ट्र मोड में जबकि हेलमेट, सीट बेल्ट, कागजात आदि चेक करने के दौरान संजय मोड में अपने दायित्व का निर्वहन करते नजर आते हैं।
बातों-बातों में एक बात बताना भूल ही गया कि यहां के ऑटो ड्राइवर किराया का निर्धारण मीटर अथवा दूरी की बजाएं पैसेंजर की मजबूरी के अनुसार तय कर लेते हैं। वेरिएबल पेट्रोल के कीमत की तरह समय, स्टैंड पर ऑटो के संख्या की उपस्थिति अथवा अनुपस्थिति तथा यात्रियों के गंतव्य तक पहुंचने की आवश्यकतानुसार ड्राइवर को किराया निर्धारित करते देख एवं यात्रा के दौरान ब्लूटूथ स्पीकर के माध्यम यात्रियों को द्विअर्थी भोजपुरी गीत का श्रवण कराने की इनकी प्रवृत्ति से हमें समझते देर ना लगी कि यहां के ऑटो ड्राइवर कुशल अर्थशास्त्री और संगीत प्रेमी भी हैं।
यदि आप भी रोहित शेट्टी के प्रोग्राम खतरों के खिलाड़ी में नहीं जा सकें हो तथा महंगाई के आलम में जान हथेली पर वाला एडवेंचर ट्रिप के शौक को पूरा करने से वंचित रह गए हैं तो महज दस से बीस रुपए में पटनिया टेम्पू ट्रैवल एडवेंचर ट्रिप का आनंद किसी भी सीजन में ले सकते हैं।हमारी गारंटी है कि इस शानदार ट्रिप में आपको हर पल रोमांच का अविस्मरणीय अनुभव प्राप्त होगा!