बेलगाम पशुओं के हमलों से मरते लोग, सरकार मूकदर्शक

निर्मल रानी

कुत्ते,गाय व सांड तो पहले भी हमारे देश की ‘सड़कों की शोभा’ बढ़ाते रहते थे। परन्तु विगत दस वर्षों में इनकी संख्या में कई गुना इज़ाफ़ा हो गया है।जहां ‘पेट लवर्स ‘ नाम का एक वर्ग जो चाहे ख़ुद अपने घरों में कुत्ते पाले या न पाले परन्तु वह गलियों,सड़कों व स्टेशन के आवारा कुत्तों की तरफ़दारी करता या कभी कभी इन्हें रस्क,रोटी, बिस्कुट आदि खिलाता ज़रूर दिखाई देता है। परन्तु जो पेट लवर होने के बजाय मानवीय संवेदनाओं को अधिक तरजीह देता है और इंसान के दुख सुख को समझता है वह इन आवारा कुत्तों से भयभीत रहता है। शायद ही देश का कोई शहर ऐसा हो जहां आवारा कुत्ते द्वारा रोज़ाना किसी न किसी को काटे जाने व घायल करने की घटनायें न होती हों। इसी तरह सड़कों पर बेलगाम टहलने वाले गाय,बछड़े व सांडों की संख्या भी पहले से कई गुनी हो चुकी है। शहरों से लेकर गांव तक, सड़कों गलियों,चौराहों, राजमार्ग,एक्सप्रेसवे कहीं भी चले जायेंगे सांड व बछड़ों की भरमार देखने को मिल जाएगी। कुत्तों से ज़्यादा ख़तरा इन सांडों व गायों से पैदा हो गया है। यह आये दिन होने वाले सड़क हादसों का कारण बन रहे हैं। अक्सर इनके सड़कों पर बैठे रहने या सांड युद्ध होने की वजक से सड़कों पर जाम भी लगा रहता है। यह रास्ता चलते लोगों को सींग मार देते हैं। कभी कभी तो यह इतना आक्रामक हो जाते हैं कि इंसान की जान तक ले लेते हैं। सड़कों गलियों में जगह जगह गाय सांड के गोबर पेशाब फैले रहते हैं।

चतुर राजनीतिज्ञों ने धार्मिक महत्व का पशु होने के नाते गाय व सांड के मुद्दे को लेकर समाज को भी दो हिस्सों में विभाजित कर दिया है। एक वह वर्ग है जो अपने दरवाज़ों पर बुलाकर गाय व सांड को रोटी आदि खिलाता है। या किसी निर्धारित स्थान पर चारा आदि डाल देता है। तो दूसरा वर्ग वह है जो इन जानवरों से होने वाले किसी नुक़सान को लेकर सजग रहता है। परन्तु दरअसल ‘पुण्यार्थियों’ द्वारा इन्हें खिलाने की वजह से ही यह बार बार उसी द्वार या स्थान पर जाते हैं जहाँ से इन्हें कुछ मिलता है। कभी कभी ऐसा भी होता है कि यदि किसी कारणवश दैनिक गऊ ग्रास डालने वाले किसी गऊ भक्त ने एक दिन इन्हें रोटी नहीं डाली या उस घर पर उस दिन कोई मौजूद नहीं है तो यह सींग से उसका गेट हिलाती रहती हैं। कई बार तो खिलाने वाले पर ही हमलावर भी हो जाते हैं। इन गौ ग्रास डालने वाले पुण्यार्थियों की इसी दैनिक प्रवृत्ति का लाभ तमाम चतुर व शातिर गोपालक भी उठाते हैं। वे सुबह सवेरे गाय का दूध निकाल कर अपने पशुओं को घर से बाहर निकाल देते हैं। और बेचारी गौ माता दिन भर दर दर की ठोकरें खाती रहती है और दरवाज़े दरवाज़े जाकर एक एक रोटी के लिये तरसती रहती है। परन्तु वही गाय शाम को फिर अपने घर वापस पहुंचकर उसी ‘निर्दयी ‘ पशुपालक को दूध देती है। गऊ का दूध दोहन करने के बाद पेट भरने के लिये गाय को दर दर भटकाने वाले लोग भी तो आख़िर गाय को माता ही मानते हैं? ऐसे लोग क्या कभी अपनी मां को भी दर दर जाकर भीख मांग कर खाने के लिये घर से बाहर निकाल सकते हैं ? साफ़ है कि या तो ऐसे लोगों का गाय को माता कहना ढोंग और पाखण्ड है या फिर इनकी नज़रों में मां का सम्मान ही यही है ?

पिछले दिनों तो उत्तर प्रदेश विधान सभा में सांड गाय व अन्य पशुओं से होने वाले नुक़्सान को लेकर सत्ता और विपक्ष के मध्य बहस छिड़ी। समाजवादी पार्टी अध्यक्ष व उत्तर प्रदेश विधान सभा में नेता विपक्ष अखिलेश यादव ने विधानसभा में सड़कों व खेतों में बेलगाम फिरने वाले आवारा पशुओं का मुद्दा उठाते हुये योगी सरकार पर निशाना साधा। अखिलेश ने केवल गाय व सांड ही नहीं बल्कि गुलदार और टाइगर द्वारा की जाने वाली जनहानि का मुद्दा भी उठाया। उन्होंने कहा कि किसान खेतों में काम नहीं कर पा रहा है,डर के कारण खेतों में नहीं जा पा रहे हैं। उन्होंने बताया कि पीलीभीत टाइगर रिज़र्व में 40 लोगों की जान चली गई। इसी तरह उन्होंने सदन में दावा किया कि ऐसा कोई ज़िला नहीं बचा जहां पर सांड से किसी की जान न गई होगी।

स्वयं मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के कार्यालय के एक अधिकारी की कार आवारा पशु से टकराई जिसमें अधिकारी की मौत हो गयी थी। अखिलेश ने बताया कि उन्होंने इनके हमले से मरने वालों की सूची सरकार को सौंपी थी लेकिन उनकी कोई मदद नहीं की गई है। उन्होंने कहा कि सरकार इस पर काम करे ताकि लोगों की जान बच सके। ऐसे उपाय करें कि सड़कों पर सांड खुले आम न घूमें ताकि लोग न मरें और कोई दुर्घटना भी न घटे। नेता विपक्ष ने तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से यह भी पूछा कि क्या सड़कों पर सांड घुमते हुये उत्तर प्रदेश से ही 1 ट्रिलयन डॉलर की इकोनॉमी का सपना पूरा होगा ?उन्होंने यहाँ तक कहा की अगर मुख्यमंत्री से कुछ नहीं हो सकता है तो कम से कम गोरखपुर में ‘सांड सफ़ारी’ ही बना लें। परन्तु इन आवारा पशुओं से किसानों और राहगीरों को राहत देने के नाम पर मुख्यमंत्री ने किसी योजना या रोडमैप का ज़िक्र करने के बजाय इसका पूरी तरह से राजनैतिक उत्तर दिया जो उनका वोट बैंक सुनना चाहता है। योगी ने कहा कि जिस सांड की आप (अखिलेश ) बात कर रहे हैं वह खेती बाड़ी (पशुधन) का हिस्सा होता है। आपके ज़माने में ये बूचड़ख़ाने के हवाले होते थे, हमारे समय में ऐसा नहीं है।

छुट्टा जानवरों से दुखी किसानों का रोष पिछले दिनों उत्तर प्रदेश के पशुपालन व पशुधन मंत्री धरम पाल सिंह पर उस समय उतरा जब वे बरेली ज़िले के अपने गृह क्षेत्र सिरौली में जा रहे थे। उनके साथ अपर मुख्य सचिव डा रजनीश दुबे भी थे। ग्रामीणों ने उस समय सैकड़ों छुट्टा गोवंश बीच मार्ग पर खड़ा कर मंत्री व अधिकारीयों का क़ाफ़िला रोक लिया।उन्होंने क़रीब 40 मिनट तक मंत्री के क़ाफ़िले को रोके रखा और नारेबाज़ी करते रहे। ग्रामीण किसानों व महिलाओं ने मंत्री को ख़ूब खरी खोटी सुनाई। इस दौरान अधिकारीयों व किसानों के बीच नोक झोंक भी हुई। बाद में स्वयं मंत्री को गाड़ी से नीचे उतरना पड़ा और छुट्टा जानवरों से निजात दिलाने का वादा करने पर ही किसानों ने उन्हें आगे जाने दिया। दरअसल वर्तमान सरकार को ऐसे आवारा पशुओं से किसानों की फ़सलों को होने वाले नुक़सान की फ़िक्र नहीं। न ही सड़कों पर इनके कारण होने वाले हादसों में मरने वालों से कोई वास्ता। कई वीडियो तो ऐसे दर्दनाक देखने को मिले जिनमें स्कूल जाते बच्चों पर गायों व सांडों ने जानलेवा हमला कर दिया। बुज़ुर्गों व औरतों को मार डाला। कभी कभी तो बीच बाज़ार में यह अचानक ही भड़क उठते हैं और सरपट जिधर चाहें उधर भागने लगते हैं। नतीजतन तमाम लोग ज़ख़्मी हो जाते हैं। परन्तु सरकार जनता की उस बेबसी व मजबूरी पर चिंतित नहीं बल्कि वह गर्व इस बात पर करती है कि वह गऊ माता और नंदी महाराज का संरक्षण कर रही है। शायद इसी लिये बेलगाम पशुओं के हमलों से लोग मर रहे हैं और लोगों की मौत पर भी सरकार मूक दर्शक बनी बैठी है।