पितृ-पक्ष- पितरों का पर्व

Pitru Paksha – Festival of ancestors

ओम प्रकाश उनियाल

इस भौतिक संसार में जीवन-मरण के चक्र से हरेक को गुजरना पड़ता है। यह चक्र इतना रहस्यमयी है कि इसका भेद कोई नहीं जान पाया। यहां जो आया है वह जाएगा भी, यह निश्चित है। संसार से विदा होने के बाद केवल स्मृतियां ही रह जाती है। अपने पूर्वजों की स्मृतियों को अलग-अलग धर्मों के लोग अपने धर्म के हिसाब से स्मरण करते हैं। हिन्दू धर्म में पूर्वजों को पितर के रूप में पूजा जाता है। जिस प्रकार से अन्य देवी-देवताओं के पर्व मनाए जाते हैं उसी प्रकार से पितृ-पक्ष भी एक पर्व ही है। जो कि पन्द्रह दिन तक चलता है। जिसे श्राद्ध-पक्ष भी कहा जाता है। जिसमें मृत्यु तिथि अनुसार अपने पितरों का श्राद्ध किया जाता है। साधारण शब्दों में श्राद्ध का आशय श्रद्धा से है। अर्थात् दिवंगतों की आत्मा की शांति व मोक्ष के निमित्त जो अनुष्ठान किया जाता है उसे श्रद्धा-भाव से करना ही श्राद्ध है। माना जाता है कि पितृ-पक्ष में नियमानुसार एवं अपनी सामर्थ्यानुसार श्राद्ध करने अर्थात् पिंडदान, तर्पण करने, ब्राह्मणों को जिमाने व गाय, कुत्ते व कौए को भोजन का ग्रास देने से पित्तर प्रसन्न व तृप्त होते हैं तथा अपना आशीर्वाद देते हैं। पितृ-पक्ष भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शुरु होता है।