शब्दों का अद्भुत चितेरा और जयपुर का बेजोड़ नगीना थे पियूष पांडे

Piyush Pandey was a wonderful painter of words and a unique gem of Jaipur

गोपेन्द्र नाथ भट्ट

भारत के विज्ञापन जगत में शब्दों का अद्भुत चितेरा माने जाने वाले और जयपुर के बेजोड़ नगीनों में से एक पियूष पांडे अब इस दुनिया में नहीं रहें ।वे स्वयं पंचतत्व में विलीन होकर दिवँगत पाण्डे उपनाम से ईश्वर के स्लॉगन बन गए । पियूष पांडे की बहन विख्यात गायिका ईला अरुण के अनुसार वे साँस से जुड़ी बीमारी से पीड़ित थे ।पद्मश्री अलंकरण से सम्मानित दिवंगत पाण्डे ने सात दशकों की अपनी जीवन यात्रा में दिल को छूने वाले कई अनूठे प्रिण्ट और श्रव्य दृश्य विज्ञापन और स्लॉगन बनाये ।उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव में “अबकी बार मोदी सरकार” चुनावी स्लॉगन भी बनाया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनके निधन पर गहरा दुःख व्यक्त करते हुए अपने सोशल मीडिया अकाउंट एक्स पर लिखा कि वर्षों तक हमारें बीच हुई बातचीत को मैं हमेशा सहेज कर रखूँगा ।

“जानें क्या दिख जाए “ के लॉंचिंग के दौरान मेरी उनसें नई दिल्ली के बीकानेर हाऊस में पहलीं बार मुलाक़ात हुई थी। उनकी एक बहन रमा पांडे चाणक्यपुरी, नई दिल्ली में हमारी पड़ौसी थी। इस सन्दर्भ से उनसे हुए परिचय के दौरान मैंने उनकी रचनात्मक दृष्टि पर खुल कर बातचीत की थी ।तब उन्होंने बहुत ही आत्मीयता से कहा था कि ईश्वर ने हम सभी को अपनी-अपनी भूमिका निभाने के लिए धरती पर भेजा है और एक दिन ईश्वर में ही विलीन हो कर हम भी एक स्लॉगन बन जाएँगे। उनके ये शब्द आज मैरे कानों

में गूँज कर मुझें भावुक कर रहें है।

“जानें क्या दिख जाए “ राजस्थान पर्यटन का प्रसिद्ध विज्ञापन स्लोगन था, जिसे पियूष पांडे ने वसुंधरा राजे के मुख्यमंत्री कार्यकाल (2004–2008 )के दौरान तैयार किया था।यह स्लोगन सिर्फ एक पर्यटन नारा नहीं था बल्कि पियूष पाण्डे की राजस्थान की आत्मा और अनदेखे सौंदर्य को दर्शाने वाली एक रचनात्मक दृष्टि थी। उस समय राज्य सरकार ने प्रदेश के पर्यटन को नई पहचान देने के लिए एक व्यापक प्रचार अभियान शुरू किया था ।इसके लिए जिस विज्ञापन एजेंसी ओगिल्वी एंड माथर (Ogilvy & Mather) को विज्ञापन बनाने की जिम्मेदारी दी थी। उसके क्रिएटिव हेड पियूष पांडे ही थे। इस अभियान को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया और उन्हें “इंडियन आइकॉन ऑफ एडवरटाइजिंग” जैसे कई पुरस्कार भी मिले ।

राजस्थान की राजधानी गुलाबी नगर जयपुर में जन्में और नौ भाई बहनों के मध्य पले और बड़े हुए पूर्व रणजी क्रिकेटर पियूष पांडे कहते थे कि “राजस्थान इतना विविधताओं से भरपूर है कि यहाँ हर बार कुछ नया देखने को मिलता है। इसलिए जानें क्या दिख जाए ! स्लॉगन बनाते समय हमने सोचा कि क्यों न लोगों को यह सोचने पर मजबूर किया जाए कि राजस्थान यात्रा के दौरान वहाँ न जानें क्या दिख जाए!” उनका मानना था कि विज्ञापन सिर्फ प्रचार नहीं, बल्कि अनुभव की प्रेरणा होना चाहिए।इसलिए उन्होंने राजस्थान को “देखने की जगह नहीं, महसूस करने की जगह” के रूप में प्रस्तुत किया तथा कहा कि “जानें क्या दिख जाए” केवल एक स्लोगन नहीं बल्कि यह राजस्थान की आत्मा का गीत और आईना है, जिसे मैंने शब्दों में पिरोया है ।उनकी यह रचना आज भी भारतीय पर्यटन अभियानों का एक क्लासिक उदाहरण मानी जाती है जहाँ विज्ञापन कला बन गया और शब्द भावना। भारत में पोलियो-अभियान के सघन प्रचार के लिए “दो बूंद ज़िंदगी के” जैसे स्लॉगन बनाने में उनका योगदान आज भी याद किया जाता है। भारत सरकार के अतुल्य भारत (Incredible India) अभियान से लेकर राजस्थान के “जानें क्या दिख जाए” तक पियूष पांडे ने भारत की सांस्कृतिक आत्मा को अंतरराष्ट्रीय मंच पर स्थापित कर उसे एक नई पहचान दी ।

वर्ष 1982 में, 27 वर्ष की आयु में, पियूष पांडे ने भारतीय विज्ञापन कंपनी ओगिल्वी एंड माथर इंडिया (Ogilvy & Mather India) में क्लाइंट-सर्विसिंग एक्जीक्यूटिव के रूप में नौकरी प्रारंभ की। विज्ञापन-उद्योग में कदम रखने से पहले उन्होंने कोलकाता में चाय चखने (tea taster) जैसी नौकरियाँ भी की थीं, जहाँ उन्हें जीवन की विविध अनुभव प्राप्त हुए। विज्ञापन-उद्योग की शुरुआत में यहाँ उनकी उम्मीदें बहुत कम थीं लेकिन उन्होंने हार न मानी और अपनी मेहनत से आगे बढ़े। उनका पहला प्रयास सनलाइट डिटर्जेंट के लिए एक प्रिंट विज्ञापन था, जिसे लिखकर उन्होंने विज्ञापन-क्षेत्र में कदम रखा। पियूष पांडे ने अपनी क्रिएटिव विचार-शैली और अद्वितीय दृष्टिकोण से भारतीय विज्ञापन-उद्योग में एक नया आयाम स्थापित किया। उन्होंने अनेक प्रतिष्ठित ब्रांड्स के लिए यादगार ऑडियो विजुअल विज्ञापन अभियान तैयार किए । भीमसेन जोशी द्वारा गाये गए कालजयी गीत “फिर मिले सुर मेरा तुम्हारा” के बोल भी पियूष पाण्डे ने ही लिखें थे ।उनके अन्य विज्ञापन अभियान जैसे फ़ेविकोल के लिए“तोड़ो नही, जोड़ो” टैगलाइन विशिष्ट दृश्य-कला से भरें थे। उन्होंने केडबरी डेयरी मिल्क के लिए “कुछ खास है” जैसे मिठास भरें लोकप्रिय स्लोगन बनाए। इसी प्रकार एशियन पेंट्स के लिए “हर घर कुछ कहता है” जैसा सांस्कृतिक कैम्पेन तैयार किया । “जानें क्या दिख जाए” स्लोगन के चार शब्दों वाले वाक्य ने राजस्थान की अनंत संभावनाओं, रहस्य, संस्कृति, कला, और प्राकृतिक सौंदर्य को एक पंक्ति में बाँध दिया। यह वाक्य हर किसी के मन में एक जिज्ञासा जगाता था और रहस्य पैदा करता था। साथ ही पर्यटकों के भीतर राजस्थान यात्रा की इच्छा जगाता था।यह स्लोगन कहता था “राजस्थान आइए, यहाँ हर कदम पर एक नया चमत्कार है।” यह सैलानियों के मन में राजस्थान को “रहस्यमय और आकर्षक भूमि” दोनों रूपों में उभार देने वाली एक अनूठी अनुभूति थी । “जानें क्या दिख जाए” की खूबसूरती इसकी अनिश्चितता में छिपी थी ।

यह बताता है कि यात्रा केवल मंज़िल तक पहुँचना नहीं, बल्कि रास्ते में मिलने वाले अनुभवों का आनंद है।इस टेग लाइन के साथ चलाए गए टीवी विज्ञापनों और प्रिंट अभियानों में थार का मरुस्थल,ऊँट की सवारी,लोकगीत और नृत्य,किले-महल और राजस्थान के गांवों की सादगी को दिखाया गया था।इस अभियान ने राजस्थान पर्यटन को नई ऊँचाई दी। साथ ही इससे देशी विदेशी पर्यटकों की संख्या में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई।साथ ही राजस्थान की ब्रांड-इमेज सिर्फ रेगिस्तान तक सीमित नहीं रही, बल्कि उसे “संस्कृति, रंग और रोमांच के प्रदेश” के रूप में स्थापित किया गया।यह भारत के सबसे सफल राज्य-स्तरीय पर्यटन अभियानों में से एक माना गया।इस अभियान को अंतरराष्ट्रीय पर्यटन अवार्ड्स में भी सराहना मिली और पियूष पांडे की रचनात्मकता को “इंडियन आइकॉन ऑफ एडवरटाइजिंग” के रूप में स्थापित किया।पियूष पाण्डे की विज्ञापन-कला ने भारतीय उपभोक्ता-संस्कृति से गहरा संबंध बनाया तथा विज्ञापन को सिर्फ उत्पाद बेचने की कला से ऊपर उठकर कहानियों, भाषा-संवेदनाओं एवं स्थानीय भावनाओं से जोड़ा । उनकी इस शैली ने भारत के देशी विज्ञापन और दृश्य को वैश्विक मानचित्र पर प्रतिष्ठित किया।

भारतीय विज्ञापन जगत के इस महान क्रिएटिव जीनियस के जाने से भारतीय विज्ञापन-उद्योग ने एक दूरदर्शी क्रिएटर तथा संस्कृति-निर्माता खो दिया है । पियूष पांडे की जीवन यात्रा बताती है कि कैसे एक सामान्य पृष्ठभूमि से निकलकर, दृढ़ संकल्प, क्रिएटिव सोच और भारतीय संस्कृति के प्रति सच्चे निष्ठा से- विज्ञापन जगत में वैश्विक प्रभाव डाला जा सकता है। उनकी कहानियाँ- विज्ञापन सिर्फ बिक्री का माध्यम नहीं, बल्कि संवाद की कला थी ।