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विशेष प्रतिनिधि
दिल्ली के बाद अब बिहार में भी पीएम मोदी की धमक सुनाई देने लगी है। भारतीय जनता पार्टी की वार मशीनरी अब एक और नई लड़ाई के लिए तैयार हो रही है। उसे अब देश के दो पूर्वी राज्यों बिहार और बंगाल में अपनी ताकत का प्रदर्शन करना है।
इसकी तैयारियां होने लगी हैं। इसी क्रम में पीएम मोदी ने बिहार में शंखनाद किया। 24 फरवरी को उन्होंने वहां एक बडी रैली की। तसर निर्माता शहर भागलपुर में उनकी बड़ी रैली हुई जिसमें उन्होंने लालू यादव पर कठोर हमला किया। लालू यादव ने पिछले दिनों महाकुंभ को फालतू बताया था और अपने समर्थकों से इससे दूर रहने को कहा था। इसी का जवाब पीएम मोदी ने बिहार जाकर दिया। उन्होंने कहा कि ये जो जंगलराज वाले हैं, इन्हें हमारी धरोहर से, हमारी आस्था से नफरत है. इस समय प्रयागराज में एकता का महाकुंभ चल रहा है। ये भारत की आस्था का, भारत की एकता और समरसता का सबसे बड़ा महोत्सव है। पूरे यूरोप की जितनी जनसंख्या है, उससे भी अधिक लोग इस एकता के महाकुंभ में स्नान कर चुके हैं, लेकिन ये जंगलराज वाले महाकुंभ को गाली दे रहे हैं। राम मंदिर से चिढ़ने वाले लोग महाकुंभ को भी कोसने का काई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। लालू यादव के अतीत की याद दिलाकर पीएम मोदी ने उन पर करारा प्रहार किया। नई पीढ़ी को बिहार के उस जंगल राज का ज्ञान नहीं है जो 1990 से 2005 तक रहा जिसमें हजारों लोग हिंसा और अपराध की भेंट चढ़ गये थे। हत्यारे, लुटेरे और रंगदार लोगों को लूट रहे थे और रक्त की नदियां बह रही थीं। पूरा बिहार उजड़ गया और लाखों नहीं बल्कि करोड़ों लोग बिहार छोड़कर चले गये। इतनी बड़ी संख्या में पलायन भारत के किसी भी राज्य में न देखा गया था और न सुना गया। वहां का सारा व्यापार-कारोबार डूब गया था और रोजगार खत्म हो गया था। ऐसी स्थिति को जंगल राज कहा गया। तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने तो वहां जाकर अपनी एक सभा में भी इसका जिक्र किया था। लेकिन लालू यादव थे कि उन्हें इस तरह की टीका-टिप्पणी से फर्क नहीं पड़ता था। बाद में जब बिहार की तमाम जातियों ने उनसे किनारा कर लिया तो जाकर उन्हें पराजय मिली और सत्ता भी छिन गई जो वह अपनी पत्नी राबड़ी देवी की आड़ में चला रहे थे। पीएम मोदी ने जानबूझकर जनता को लालू यादव के चारा घोटाले की फिर याद दिलाई।
दिल्ली में भाजपा की जीत से विपक्षी दलों की उड़ी नींद
देश की राजधानी दिल्ली के विधान सभा चुनाव परिणामों ने विपक्षी दलों की नींद तो उड़ा ही दी है, उन्हें अपनी रणनीति बदलने पर विचर करने को मजबूर कर दिया है। सबसे बड़ी समस्या क्षेत्रीय दलों के सामने हैं क्योंकि अपने बूते भारतीय जनता पार्टी का मुकाबला करने में उन्हें कठिनाइयां हो रही है। दक्षिण में डीएमके और पूर्व में तृणमूल कांग्रेस ही काफी हद तक उसे टक्कर देने की स्थिति में है। लेकिन अन्य दल लाचार दिख रहे हैं। ओडिशा में बीजू जनता दल को पटखनी देने के बाद पार्टी ने दिल्ली में बड़बोले अरविंद केजरीवाल की पार्टी को हल्दी-चूना बुलवा दिया। इसके पहले उत्तर प्रदेश में यादवी दल सपा को भी चारों खाने चित्त कर उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने अपनी विजय पताका लहराई थी। यह सब कहने का मतलब यह है कि पार्टी सफलता के घोड़े पर सवार होकर आगे बढ़ी जा रही है। बेशक बीच में झारखंड आ गया जहां उचित रणनीति तथा समर्थ कार्यकर्ताओं के अभाव में पार्टी जीत नहीं पाई। लेकिन अब वह हुंकार भर रही है जो बिहार में साफ सुनाई दे रहा है। वैसे तो बिहार में एनडीए का शासन है और पार्टी अच्छी स्थिति में है। नीतीश बाबू पार्टी के साथ अपनी पार्टी लेकर खड़े हैं। कोई विवाद नहीं है और न ही अभी कोई महत्वाकांक्षा नहीं है, सिवा इसके कि वे अगले सत्र में भी बिहार के मुख्य मंत्री बने रहें। भारतीय जनता पार्टी फिलहाल उन्हें छेड़ने के मूड में नहीं है और न ही पार्टी की ऐसी कोई रणनीति है। भारतीय जनता पार्टी की इस जीत ने बिहार में आरजेडी के सामने कई चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। तेजस्वी यादव की खासियत यह है कि वह लालू प्रसाद यादव के पुत्र हैं सो बिहार के यदावों के स्वाभाविक नेता हैं। बिहार के ज्यदातर यादव उन्हें अपना नेता मानते हैं। यह तेजस्वी यादव की खूबी है और वह इसका आनंद ले रहे हैं। इसके अलावा उनके पिता लालू यादव ने बिहार में मुलायम सिंह यादव की तर्ज पर एमवाई समीकरण बनाया जो बहुत सटीक रहा तथा पार्टी को सत्ता में पहुंचाने में मदद करता रहा। लेकिन बाद में अन्य जातियां आरजेडी से दूर हो गईं और पार्टी के पास अपने बूते सरकार बनाने की क्षमता नहीं रही। यह तो भला हो नीतीश बाबू का जो एक समय नरेन्द्र मोदी से नाराज होकर उनसे अलग हो गये और महागठबंधन में शामिल हो गये। इससे लालू यादव पने बेटे को बिहार का उपमुख्य मंत्री बनवाने में सफल हुए। उस समय नीतीश बाबू के मन में एक चिढ़ थी और इसलिए वह एनडीए से न केवल अलग हो गये बल्कि अपनी पार्टी को भी आरजेडी में विलय करने को तैयार होते दिखे। यह तो उन्हें अचानक सद्बुद्धि आ गई और उनकी पार्टी का सर्वनाश होने से बच गया नहीं तो लालू यादव की योजना के तहत उनकी पार्टी को आरजेडी अजगर की तरह निगल जाती। वह फिर उस जाल से निकल कर एनडीए में शामिल हो गये। आरजेडी की समस्या यह है कि वह बहुत संकीर्ण विचारधारा की पार्टी है। बिहार के विका के लिए उसके पास कोई फॉर्मूला नहीं है। इसके अलावा लालू यादव शारीरिक और मानसिक रूप से उतने सक्षम नहीं रहे कि वह नई-नई रणनीति बनायें। उनके पुत्र तेजस्वी यादव के पास तो खैर कोई राजनीतिक समझ नहीं है। वह बयानबाजी भर कर सकते हैं। वह न तो कोई राजनीतिक चाल चल सकते हैं और न ही उनकी कोई राजनीतिक इमेज है। इन दिनों वह अपने सजायाफ्ता पिता को भारत रत्न दिलवाने की मांग करते फिर रहे हैं। इससे न तो वोटर आयेंगे और न ही लोग जुड़ेंगे।
बिहार चुनाव के लिए जबर्दस्त तैयारियां
बहरहाल भारतीय जनता पार्टी बिहार के लिए तैयारियां कर रही है। पार्टी अध्यक्ष नड्डा ने काफी समय बिहार में बिताया है और वह वहां की राजनीति से अच्छी तरह वाकिफ हैं। उनके पास प्लान ए और प्लान बी भी है। इसके अलावा भाजपा के पास अकूत संसाधन भी हैं। उसके पास नेताओं, स्टार प्रचारकों के अलावा कार्यकर्ताओं की एक पूरी फौज है। कुल मिलाकर यह पार्टी इस समय एक पूरी तरह से प्रशिक्षित और युद्ध के लिए तैयार फौज की तरह तैयार है जिससे टक्कर लेने के लिए बहुत शक्ति चाहिए। पार्टी ने झारखंड में अपनी गलतियों से काफी कुछ सीखा है और वह यह मौका गंवाना नहीं चाहेगी।
दूसरी ओर तेजस्वी यादव के पास न तो कोई आयडिया है और न पर्याप्त अस्त्र-शस्त्र। उनके पिता अब चुक गये हैं और बैठे-बैठे अपने उद्गार व्यक्त करते रहते हैं। अयोध्या की पराजय का योगी के नेतृत्त्व में भाजपा ने मिल्कीपुर में जबर्दस्त बदला लिया। अखिलेश यादव आरोप लगाते रहे और बगले झांकते रहे। तो अब मामला संगीन है और दिल्ली के झटके पटना में महसूस हो रहे हैं। आने वाले समय में ये झटके और तेज होंगे। दिल थामकर बैठिये, काफी कुछ होने वाला है।
बहरहाल पीएम मोदी ने पूर्वी बिहार के भागलपुर शहर में जाकर लालू यादव पर हमला करके तथा कुछ घोषणाएं करके यह जता दिया कि वह किसी भी तरह की राजनीतिक लड़ाई में पीछे नहीं हटेंगे। उनके इरादे स्पष्ट हैं और तैयारी पूरी है।