
प्रमोद भार्गव
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बहु-प्रतिक्षित मणिपुर यात्रा, वहां के समुदायों के बीच स्थाई शांति स्थापित करेगी यह उम्मीद अब अपेक्षित है। मणिपुर में मैतेई, कुकी और नगा समुदायों की जातीय हिंसा से जुड़ी समस्या अत्यंत जटिल है। इसलिए इसके समाधान के उपाय विकास के साथ, स्थानीय युवाओं को रोजगार से जोड़ने से ही संभव हैं। इस दिशा में मोदी पूर्वोत्तर भारत की अनेक यात्राएं कर चुके हैं। 13 सितंबर 2025 की प्रधानमंत्री की मणिपुर यात्रा, वहां 2023 से चल रही जातीय हिंसा के बाद पहली बार हुई है। इस दौरान उन्होंने चूड़चंदपुर और इंफाल के राहत शिविरों में पहुंचकर सीधे पीड़ितों के दर्द को समझने की कोशिश की। इन शिविरों में विस्थापित पीड़ितों से मुलाकात करते हुए कहा कि ‘अब साफ दिख रहा है कि नई सुबह उम्मीद और भरोसे की है। मणिपुर शांति और समृद्धि का प्रतीक बनेगा। केंद्र सरकार यहां 7300 करोड़ रुपए की नई परियोजनाओं पर काम करने जा रही है।’ याद रहे खराब मौसम के कारण प्रधानमंत्री का हेलिकॉप्टर उड़ान नहीं भर सका था। इस कारण वे सात किमी की सड़क यात्रा करके चूड़चंदपुर पहुंचे थे। इस पूरे मार्ग में उनका राष्ट्रिय झंडा लिए लोगों ने स्वागत किया और फिर उन्होंने शिविर में युवाओं से बात करके उन्हें उज्जवल भविष्य की दिलासा दी। मणिपुर हिंसा के जिस लंबे दौर से गुजरा है, उसमें शांति के लिए विकास औरभविष्य की उम्मीदें ही स्थायित्व लाने वाली होती हैं। इस दृश्टि से लगता है कि अब मणिपुर सही दिशा में आगे बढ़ेगा।
मोदी ने अपने 11 वर्षीय कार्यकाल में सीमांत प्रदेशों में सर्वाधिक रुचि ली है। फिर वह चाहे कश्मीर-लद्दाख, उत्तराखंड हों या फिर पूर्वोत्तर भारत की सात बहनें कहे जाने वाले राज्य असम, अरुणाचल, सिक्किम, मिजोरम, मणिपुर, अगरतला और मेघालय हों। इन सभी प्रांतों की वास्तव में पूर्ववर्ती सरकारों ने अनदेखी की है। इसलिए इनकी आर्थिक संभावनाओं और प्राकृतिक दोहन को उपयुक्त रूप से उपयोगी नहीं माना गया। किंतु मोदी जबसे प्रधानमंत्री बने हैं, तभी से उनकी निगाहें पूर्वोत्तर के सातों राज्यों के भौतिक विकास के साथ सांस्कृतिक उत्थान पर टिकी हैं। यह विकास एकतरफा न होकर चहुंमुखी है। शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, रेल, उड्डयन, पेयजल शहरी, ग्रामीण आवास, सूचना-प्रौद्योगिकी और विद्युत परियोजनाओं से जुड़ा है। यही नहीं साहित्य कला और संस्कृति को समृद्धशाली बनाए जाने पर पर्याप्त ध्यान दिया जा रहा है। दरअसल यही वे विषय हैं, जो पूर्वोत्तर में आधुनिक विकास के साथ यहां के मूल निवासियों को प्राचीन भारत के महामानवों से जोड़कर समरसता का इतिहास रच रहे हैं। वरना पिछले दो सौ साल में अंग्रेजों ने इस पूरे क्षेत्र में ईसाईकरण की बुनियाद रखी और बांग्लादेश व म्यांमार से घुसे मुसलमानों ने इस्लामीकरण को बढ़ावा देने के साथ जनसंख्यात्मक घनत्व बिगाड़ने का काम किया। नतीजतन नस्लीय भेद बढ़ा और सांप्रदायिक दंगे बीते 79 साल से न खत्म होने वाली कड़ी बने रहे।
मोदी ने पूर्व में मणिपुर में 4800 करोड़ की परियोजनाओं की आधारशिला रखी थीं। अगरताला की राजधानी त्रिपुरा में त्रिपुरा ग्राम समृद्धि योजना और विद्याज्योति शाला परियोजना मिशन-100 की शुरूआत की थी। दरअसल आवागमन की सुविधाओं का अभाव पूर्वोत्तर की सबसे बड़ी समस्या रही है, इससे सामान की ढुलाई में दिक्कत आती है और पर्यटन भी प्रभावित होता है। केंद्र सरकार की 4800 करोड़ रुपए लागत की 22 परियोजनाओं में इन पहलुओं पर विकास को केंद्रित किया गया है। देश के बड़े नगरों से इस क्षेत्र में उड़ानों की संख्या बढ़ाने के साथ हवाई-अड्डों को बेहतर बनाया गया। इनके नवीनीकरण पर 13 हवाई-अड्डों पर 3000 करोड़ खर्च किए गए हैं। रेल सुविधाओं के विस्तार के साथ पटरियों का दोहरीकरण एवं विद्युतीकरण किया गया है। इसी का परिणाम रहा कि 13 सितंबर को प्रधानमंत्री ने बैराबी-सैरांग रेल लाइन का उद्घाटन किया। इस 51 किमी लंबी लाइन पर 8070 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं, इसके साथ ही मिजोरम पहली बार नई दिल्ली के साथ रेल नेटवर्क से जुड़ गया। मोदी ने मणिपुर के लोगों को भरोसा दिया है कि रेलवे का विस्तार करके जल्दी ही राजधानी इंफाल को रेल नेटवर्क से जोड़ दिया जाएगा। इस लक्ष्यपूर्ति के लिए 700 करोड़ की रेल परियोजना का उद्घाटन भी किया।
इस दुर्गम भू-क्षेत्र में सैकड़ों किमी लंबी नई सड़कों का निर्माण हो रहा है और बंगाल के बंदरगाहों को नदियों के माध्यम से आंतरिक जलमार्गों से जोड़ा जा रहा है। समूचे इलाके की ऊर्जा जरूरतों की आपूर्ति तय करने के लिए ‘इंद्रधनुश गैस ग्रिड’ के तहत सभी राज्यों को पाइपलाइन से जोड़ा जा रहा है। यहां के पर्यटन स्थलों की पहचान करके उन्हें देशव्यापी पर्यटन स्थलों में शामिल किया जा रहा है। इन सब विकास कार्यों को गति देने के लिए 2021-22 के बजट में 56 हजार करोड़ रुपए का प्रावधान कर दिया गया है।
मोदी ने पूर्वोत्तर से चुनकर आए सांसदों को मंत्रिमंडल में शामिल करके इस क्षेत्र को महत्व दिया है। देश की आजादी के बाद एक साथ कई चेहरों को भारत सरकार का हिस्सा बनाकर नरेंद्र मोदी की विलक्षण पहल की हुई है। ये लोग भी सांस्कृतिक समरसता विस्तारित करने की दृष्टि से उल्लेखनीय काम कर रहे हैं, इसलिए आज मणिपुर, अगरतला, असम और अरुणाचल नई कार्य संस्कृति के प्रतीक बन गए हैं। इन मंत्रियों के प्रयासों का ही प्रतिफल है कि उत्तर-पूर्व के इन राज्यों में 168 बांध निर्माणाधीन हैं। 2018 में असम के डिब्रूगढ़ को अरुणाचल-प्रदेश के पासीघाट से जोड़ने के लिए ब्रह्मपुत्र नदी पर देश के सबसे लंबे सड़क और रेलपुल बोगीबील पुल का उद्घाटन मोदी ने किया था। सड़क परिवहन को मजबूत करने के लिए उत्तर-पूर्व सड़क विकास योजना एवं प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के अंतर्गत अनेक सड़कों का जाल बिछाया जा रहा है। ये सड़क और पुल सेना को सीमा पर जल्द पहुंचने में भी बेहद उपयोगी साबित हो रहे हैं। 2021 में टोक्यो में खेले गए ओलेपिक खेलों में मिजोरम की लालरेम्सियामी और मणिपुर की सुशीला चानू महिला खिलाड़ियों ने कांस्य पदक जीतकर भारत की गरिमा को चार चांद लगाने का काम कर दिया था। मैरीकॉम भी अपना नाम मुक्केबाजी में रोशन कर चुकी हैं।
मणिपुर उच्च न्यायालय ने 27 मार्च 2023 को मैतेई समुदाय को अनुसूचित जाति (एससी) सूची में शामिल करने का निर्देश राज्य सरकार को दिया था। इसे लेकर 3 मई 2023 को कुकी-मैतेई के बीच जातीय हिंसा की शुरुआत हुई। इस हिंसा में अब तक 260 लोग मारे गए हैं और कई हजार लोग राहत शिविरों में रह रहे हैं। इसीलिए कुकी-जो के दस विधायकों ने प्रधानमंत्री को एक ज्ञापन देकर कुकी समुदाय के लिए अलग केंद्र शासित प्रदेश की मांग की हुई है। इस ज्ञापन पर सात भाजपा विधायकों के भी हस्ताक्षर हैं। ज्ञापन में कहा है कि कुकी समुदायों को घाटी से बेदखल कर दिया गया है। अतएव दोनों समुदाय एक पड़ोसी की तरह तो शांतिपूर्वक रह सकते हैं, किंतु एक छत के नीचे नहीं रह सकते। यही उपाय यहां स्थाई शांति का हल हो सकता है। हालांकि प्रधानमंत्री ने उनकी बात को गंभीरता से सुना जरूर लेकिन कोई भरोसा नहीं दिया। अलबत्ता यह अवश्य कहा जा सकता है कि सभी पक्षों के पीड़ितों से मिलकर शायद प्रधानमंत्री ने यह समझ लिया हो कि यहां स्थाई शांति कैसे कायम हो सकती है? इसके परिणाम हमें कुछ समय में देखने को मिल सकते हैं। बावजूद स्थाई शांति के लिए म्यांमार से होने वाली रोहिंग्या मुस्लिमों की घुसपैठ पर लगाम लगाने के साथ मादक पदार्थों के तस्करों पर भी जब तक लगाम नहीं लगाई जाएगी, स्थाई शांति लाने में कठिनाई होगी। क्योंकि ये दोनों वर्ग मूल मणिपुरियों में वैमनस्य के बीज बोने का काम करते हैं।