कविताएं

सीता राम शर्मा ” चेतन “

अंधेरे से युद्ध

कल सारी रात करता रहा मैं
अंधेरे से युद्ध
पर उजाला अपने समय पर आया
मैं हार गया
और अंधेरा जीत गया !
कल रात का संघर्ष
जब घर के भीतर और बाहर
जला दिए थे सैकड़ो दीप
फैला दिया था विद्युती तीव्र प्रकाश
तब भी देखा था मैंने
दूर तक अंधेरा फैला हुआ
फिर जलाई थी कई बड़ी टार्च
फैलाई थी रौशनी
पर असफल रहा था
अंधेरे को उजाले में बदलने से
असफल रहा था
अंधकार से बाहर निकलने में !
हुई जब सुबह
बुझा दिए सारे दीप और उपकरण
बावजूद इसके भीतर से बाहर तक
फैला था तीव्र प्रकाश
साफ दीख रहा था पूरा आकाश !
मैं अभिभूत था
उजाले का जश्न मनाने में
डूबा हुआ था पूरा
उत्सव का परचम लहराने में
कि धीरे-धीरे फिर छा गया अंधकार
टूट गया प्रकाश का अंहकार
और फिर महसूस हुआ मुझे
खिलौने हैं हम प्रकृति के
अंधकार और प्रकाश
सब उसके वश में है
हमारे लिए तो अच्छा है यही
कि हम अपने हिस्से का अंधकार मिटाएं
हो जब भी अंधेरा
थोड़ा प्रकाश बाहर भी फैलांए !
अंधेरे से युद्ध
अब समाप्त हो चुका था
अपने हिस्से का प्रकाश
मैं समझ चुका था
अब बस यही सोचता रहा
कि यही अच्छा है मेरे लिए
गहन अंधेरे में डूबने से पहले
अपने हिस्से के उजाले को जी सकूं
है जितना प्रकाश पास
बाहर भी फैला सकूं
क्योंकि अंधकार और प्रकाश पर
अधिकार है जिस सत्ता का
उसकी पूरी व्यवस्था हमारे वश में नहीं
हमारा यथार्थ तो इतना है
कि एक लौ हैं हम उस सत्ता की
अच्छा होगा
वह लौ ही बने रहें
अपने धर्म-कर्म के प्रति जगे रहें !

 

अपने और सपने !

कुछ अपने
सपने हो जाते हैं
कुछ पराये
अपने हो जाते हैं
सब समय-समय की बात है
सब समय के हाथ है ।
कुछ लोग कहते हैं
वे गलत हैं
कुछ कहते हैं
तुम गलत हो
धर्म और ज्ञान कहता है
सिर्फ मेरी सुनो
वही करो
जो धर्म सम्मत है ।
फिर आता है कानून
आंखें बंद किए
कहता है यहां सिर्फ मेरी सुनो
क्या करना है
मुझमें से चुनों ।
विचलन के बढ़ते ही
चिंतन अश्व पर चढ़ते ही
आत्मा खींचती है लगाम
देती है अपना पैगाम
मथती है सारा अतीत
खंगालती है वर्तमान
सोचती है भविष्य
सुनाती है धर्म न्याय का सार
जिससे भविष्य हो सुनहरा
करो वही उपचार ।
मैं होकर अपनों का भी
फिर नहीं होता अपना
बन जाता हूँ
परायों का ही सपना
फिर अंतिम सुधार करता हूँ
खुद पर बड़ा उपकार करता हूँ
बूंद था जिस सागर का
मिलकर उसमें फिर से
अपनी गागर भरता हूँ
मिट जाता है तब
अपने पराये का भेद
दिखता एक ही रंग आत्मा का
दिव्य प्रकाश चमकीला सफेद !
सब अपने हैं
सब सपने हैं
धर्म और न्याय ही जीवन है
जिसके साथ जीना जरुरी है
बाकी सब अंधकार है, मजबूरी है !