नृपेन्द्र अभिषेक नृप
कविता व्यक्ति और व्यक्ति के रचनात्मक पक्ष को पकड़ती है और उसे अपने व्यक्तिगत अनुभवों को व्यक्त करने और दूसरों को लयबद्ध तरीके से प्रेरित करने में मदद करती है।कविता पर बात करना एक बृहद विषय पर बात करना है। मुझे डॉक्टर प्रिया पचौरी शर्मा के प्रकाश्य काव्य संग्रह ” क्या यही प्रेम है?” में संकलित 48 कविताओं को पढ़ने का अवसर मिला। इनकी कविताओं से जुड़ना यानी कवि के जीवन-जगत से जुड़ना है, जिसमें मानव-सुलभ प्रेम है, वेदना है, चिंता है, अवसाद है, नॉस्टेलजिया है, संघर्ष है , अज़नबीयत है, राजनीतिक चिंतन है और कवि का अच्छाई की स्थापना के लिए हरेक प्रकार के विद्रूपताओं के प्रति बगावत है।
वर्तमान तकनीकी दुनियां में शोशल साइट्स साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। जहाँ गोते लगाने पर अच्छे- अच्छे लेखक सामने आ रहे हैं और उन्हीं में से एक हैं डॉक्टर प्रिया पचौरी शर्मा । शोशल साइट्स और पत्र- पत्रिकाओं में अक्सर दिखने वाली हिंदी की उभरती युवा लेखिका प्रिया का हिंदी साहित्य में अनन्य योगदान है। मोहब्बत के इर्द – गिर्द घूम रही यह काव्य संग्रह अपने कविताओं के द्वारा पाठकों के दिलों में राज करने वाला संग्रह है। प्रिया के कविताओं में प्रेम का रस है तो विरह की बूंद भी है। वे अपने मन की बात कविताओं के माध्यम से कह रही है, जिसमें दिल के दरिया से निकले पंक्तियों में पाठक डूब जा रहा है। प्रेम के हर पहलुओं पर अपनी कलम तोड़ती दिख रही हैं और यह टूटी हुई कलम से निकले शब्दों से पाठक का दिल गदगद हो रहा है।
प्रिया की कविताएं गागर में सागर भरने का काम करती हैं। दिल में घर कर जाने वाले इस काव्य संग्रह में 48 कविताएँ है जो प्रेम को एक धागे में बांध कर समाज को प्रेम में सम्माहित होने का संदेश दे रही हैं। अपनी कविता ‘प्यार और प्रेम में अंतर’ में उन्होंने प्रेम के सफर के माध्यम से दोनों के अंतर को बखूबी लिखा है। कहती है कि प्यार में सज – धज कर रिझाना होता है जबकि प्रेम में एक दूसरे के सुख दुःख में एक – दूसरे को समर्पित कर दिया जाता है।इनकी कविताओं में प्रेम नदी की धारा की तरह बहता जा रहा है। तभी तो कहती है-
“तुझे इश्क़ कहूँ, या मैं तेरी मोहब्बत में दीवानी
जब भी नज़रें तुझपे जाती है, मैं ठहर जाती हूँ।”
कविता ‘प्रिये’ में प्रेमी और प्रेमिका के एक दूसरे में विलीन हो जाने की बात करती है। मिट्टी का कुल्हड़ और उसकी सोंधी चाय से तुलना करती है तो वहीं उगता सूरज और आसमान को भी निखारती है। कविता “दोष” में बिछुड़ने के दर्द को लिखती है। एक दूसरे से दूरी बना लेना और वह दूरी इतनी बढ़ जाना कि कोई वपास लौट ही नहीं पा रहा हो। अपनी शायरी में कहती है-
“ख़ामोशी बेहतर लगने लगी है, मुझे।
हर बात लफ्ज़ो में बयां करना, जरूरी तो नही॥”
वास्तव में इनकी कविताएं प्रेम को बखूबी धारा दे रही है जो कि क्रमागत बहती जा रही है। तभी तो उन्होंने प्रेम के हर चरण को अपनी कविताओं में जगह दी है। प्रेम का अर्थ शब्दों से परे है। प्रेम एक सुमधुर सुखद अहसास मात्र है। प्रेम की मादकता भरी खुशबू को केवल महसूस किया जा सकता है। प्रेम का अहसास अवर्णनीय है। इसलिए इस मधुर अहसास के विश्लेषण की भाषा को मौन कहा गया है। प्रेम को शब्द रूपी मोतियों की सहायता से भावना की डोर में पिरोया तो जा सकता है किंतु उसकी व्याख्या नहीं की जा सकती है क्योंकि जिसे परिभाषित किया जा सकता है, जिसकी व्याख्या की जा सकती है, वह चीज तो एक निश्चित दायरे में सिमटकर रह जाती है जबकि प्रेम तो सर्वत्र है। प्रेम के अभाव में जीवन कोरी कल्पना से ज्यादा कुछ नहीं।
पुस्तक : क्या यही प्रेम है?
लेखक: डॉ. प्रिया पचौरी शर्मा
प्रकाशन: लायंस पब्लिकेशन,ग्वालियर
मूल्य: 150 रूपये