नृपेन्द्र अभिषेक नृप
हिंदी साहित्य में कविताओं का अनन्य स्थान है। यह हमेशा ही हमारे दिलों से जुड़ी होती है और हमारे जीवन के काफ़ी करीब होती है। वर्तमान तकनीकी दुनिया में सोशल साइट्स साहित्य के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, जहाँ गोते लगाने पर अच्छे- अच्छे लेखक सामने आ रहे हैं और उन्हीं में से एक हैं अन्नू प्रिया। अन्नू प्रिया के प्रकाश्य काव्य संग्रह “पन्नों पर उभरे मेरे शब्द” में संकलित 75 कविताओं को संकलित किया गया है। यह पुस्तक अतुकांत कविताओं का संकलन है, जिसमें उन्होंने विभिन्न विषयों को अपने शब्दों में पिरोया है और उसे काव्य-रूप प्रदान किया है।
सोशल साइट्स और पत्र-पत्रिकाओं में अक्सर दिखने वाली हिंदी की उभरती युवा लेखिका ‘अन्नू प्रिया’ का हिंदी साहित्य में अनन्य योगदान है। प्रेम रस के साथ-साथ जीवन के विभिन्न पहलुओं के इर्द-गिर्द घूम रहा यह काव्य-संग्रह अपनी कविताओं के द्वारा पाठकों के दिलों में राज करने वाला संग्रह है। प्रिया के कविताओं में प्रेम का रस है तो विरह की बूंद भी है। वे अपने मन की बात कविताओं के माध्यम से कह रही हैं, जिसमें दिल के दरिया से निकले पंक्तियों में पाठक डूबा जा रहा है। प्रेम के हर पहलुओं पर अपनी कलम तोड़ती दिख रही है और यह टूटी हुई कलम से निकले शब्दों से पाठक का दिल गदगद हो रहा है।
शीर्षक का उद्देश्य होता है कि वह पूरी कविता का संक्षेप रूप हो और इन सभी भावों में खड़ी उतरती हुई अन्नू प्रिया ने अपने प्रथम काव्य-संग्रह का शीर्षक “पन्नों पर उभरे शब्द” चुना है। उन्होंने अपने पन्नों पर उकेरे गए शब्दों से बार-बार सवाल किया है। “शब्द ही दुनिया है” जो भी व्यक्ति शब्दों की महिमा और शब्दों की शक्ति को समझ लेता है, वह व्यक्ति इस जीवन को भी समझ लेता है। शब्दों के घाव हथियार के घाव से भी ज्यादा ख़तरनाक होते हैं। तलवार के घाव मिट सकते हैं, लेकिन शब्दों के घाव कभी मिट नहीं सकते। इतनी शक्ति होती हैं शब्दों में। कवियित्री कहती हैं –
“पन्नों पर उभरे शब्दों से मेरा सवाल था?
रह गया एक सफ़र मुझमें कहीं बाक़ी,
सिर्फ उनकी तस्वीरों को देखना ही
जब मेरे रोज का दीवानापन था…….।”
अन्नु प्रिया के काव्य-संग्रह में कविताओं का प्रारंभ
‘तेरे शहर से गुजरना’ से होता है, जिसमें उन्होंने
एक प्रेमी द्वारा प्रेमिका के शहर में बिताए गए यादों को लिखा है तो वहीं ‘आग आंखों में लिए चलते हैं’ कविता में अपने जीवन के सफ़र को फ़िल्माया है, जिसमें अपनी नज़र से अपनी मोहब्बत को वह बचाए रखने की बात करती है। अक़्सर देखा गया है कि हम दूसरों के साथ अपनत्व के धागों में बंधकर इतने मशरूफ़ हो जाते हैं कि खुद को प्यार करना ही भूल जाते हैं, इसी पर अन्नु ने ‘खुद से भी प्यार ज़रूर कीजिए’ को लिखा है। अन्नु में अपनी ज़िदगी के हर बारीकियों को पहचानने का हुनर है, इसलिए वह अपनी हुनर को आगे बढ़ाने के लिए स्वयं के लिए ‘सब्र का पहाड़ हूं मैं’ कविता में दिल की बात कहती है।
अन्नु देश में लगातार बढ़ रही महंगाई पर चोट कर सरकार को कान खोलने के लिए कह, कविता ‘मंहगाई’ लिखती है। इस देश में राम पर राजनीति होती रहती है तो उसपर कविता ‘मेरे राम’ में कहती है कि राम हमारे मन में , हमारे आचरण में होना चाहिए। अगर हम खुद में राम खोजें तो अयोध्या में राम खोजने की ज़रूरत महसूस नहीं होगी। समाज में स्त्री पर पुरूष का अधिपत्य समझा जाता है, जिसे चुनौती देते हुए “आखिर कब तक?” शीर्षक कविता लिखा गया है, जिसमें पुरुषार्थ को चुनौती दी गई है। माँ ममता की मूरत होती है। माँ की आंचल में रहकर हम चलना और बोलना सीखते हैं । इसी विषय को रेखांकित करती हुई “माँ” कविता की रचना की गई है। अन्नु प्रिया माँ के साथ मौसी के भी स्नेह को “मेरी प्यारी मौसी” में लिखतीं हैं। मौसी का स्नेह, उनकी यादें, उनका साथ, उनका आशीर्वाद भला कैसे भूला जा सकता है।
दोस्ती, दुनिया की खूबसूरत रिश्तों में से एक होती है। दोस्ती एक अमूल्य धन है। दोस्ती इंसान के जीवन का सबसे कीमती रिश्ता होता है। इस विषय पर भी उन्होंने एक कविता “दोस्त और दास्तान” लिखा है। कवियित्री ने दोस्ती के साथ-साथ बचपन पर भी एक सुंदर कविता “बचपन” लिखा है। बचपन, जीवन का बहुत ही महत्वपूर्ण समय होता है। बचपन में इतनी चंचलता और मिठास भरी होती है कि हर कोई फिर से बचपन को जीना चाहता है।
अन्नु प्रिया के कविताओं के इस गुलदस्ता में फूलों की कतारें खड़ी हैं, जिसमें ‘शाम और ख़्याल’ , ‘देखो चांद सितारे की बातें’ , ‘मेरी पंक्तियों और मेरे भावार्थ में’ , ‘तेरे बिन गुजर रही है ये ज़िदगी, ‘मोम हूं बस जरूरतमंदों के लिए’ और ‘हवाओं के साथ’ जैसी कविताओं को शामिल सम्मलित किया गया है। इन कविताओं की ख़ुशबू से पाठकों का दिल गदगद और मन खुशनुमा हो जाएगा। उनकी कविताओं में वेदना है, करुणा है और वैचारिकी की त्रिवेणी है।
पुस्तक : पन्नों पर उभरे मेरे शब्द
लेखक : अन्नु प्रिया
प्रकाशक: लायंस पब्लिकेशन, ग्वालियर
मूल्य : 160 रुपये