भाजपा व उनके कट्टर समर्थक कल तक दिल्ली सरकार आसीन आम आदमी पार्टी की मुखिया केजरीवाल व उनकी सरकार द्वारा चलाई जा रही जन कल्याण कारी योजना(मुप्त योजना) सरकारी कर दाताओं की गढाई कमाई खजानों को लुटाने व फ्री की रेवडी पानी पी पी कर कोसने वाले भाजपा ने अपनी चुनावी भाषण व घोषणा पत्र आप सरकार के द्वारा वर्तमान में चलाने जाने वाली योजना यथावत चालु रखने की वकालत ही नहीं कर रही बल्कि कई अन्य लोक लुबावन मुफ्त योजना को लागु करने की घोषणा करते थक नहीं रही है।
विनोद कुमार सिंह
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत की राजधानी दिल्ली नें एक बार फिर से राजनीतिक पंडितो को सोचने को मजबुर कर दिया है कि विश्व के सबसे व पुराने प्रजातंत्र के जन्म दाता भारत की राजनीति जिसका नाम बड़े ही अदब से लिया जाता है। उसी भारत की राजनीति का स्तर इतना गिर जायेगा कि सता के सिंघासन के लिए राजनेता व राजनीतिक दल सिद्धान्त विहीन हो कुछ भी कर सकता है। ऐसा ही घटना आयें दिनों को देखने मिलती रहती है।जैसा कि सर्व विदित है देश की राजधानी में दिल्ली विधान सभा चुनाव 25 की घोषणा चुनाव आयोग द्वारा हो गई है।एक ओर तो हाय रे दिल्नी की हाड़ कंपाने वाली सर्दी वही दूसरी ओर दिल्ली में भाजपा,आम आदमी पार्टी व कॉग्रेस जैसी राजनीतिक पार्टी द्वारा एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप के प्रहार से दिल्ली की भोली भाली जनता परेशानहै।खास कर जब से दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए तारीखों का एलान हुआ है। दिल्ली विधान सभा के चुनावी मैदान में भाजपा, आप और कांग्रेस ने कमर कस ली है।दिल्ली के सिंघासन पर आसीन होने के लिए तीनों राजनीतिक पार्टी में अपने मुद्दों से लेकर प्रत्याशियों तक पर मंथन चल रही है।70 सीट वाली इस विधान सभा की अहमियत कितनी है,इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है केन्द्र की सता में काबिज लगातार तीसरी बार भाजपा की सरकार भी तत्कालीन आम आदमी पार्टी की सरकार को हराने के लिए नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में लगातार चर्चा व चिन्तन का दौर चल रहा है।इस बैठक में दिल्ली विधान सभा चुनाव के पार्टी का घोषणा पत्र से लेकर उम्मीददारों का चयन व रणनीति बनाई जा रही है।ताकि दिल्ली में भाजपा अपनी सरकार बना सकें।केंद्र शासित प्रदेश होने के बावजूद राजधानी के कई बड़े मुद्दे यहाँ की स्थानीय सरकार के हिस्से में होते हैं।आप सभी के मन में प्रशन उठना स्वाभाविक है कि दिल्ली में जब केन्द्र सरकार की सता के सिंघासत पर स्वयं भाजपा व एन डी ए वाली गठबन्धन आसीन है तो दिल्ली के विधान सभा के विश्व के सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी भाजपा व कांग्रेश पार्टी इतनी क्यूँ परेशान है। सर्व विदित रहे कि दिल्ली विधान सभा की ऐतिहासिक यात्रा भाजपा से शुरू होकर कांग्रेस और फिर आप का गढ़ कैसे बनी।इसकी पीछे की पृष्टिभूमि को जानना आवश्यक है। आजादी के बाद सन1952 पार्ट-सी राज्य के रूप में दिल्ली को एक विधानसभा दी गई।लैकिन सन 1956 में उस विधानसभा को भंग कर दिया गया तथा सन् 1966 में दिल्ली को एक महानगर परिषद दी गई।दिल्ली राज्य विधानसभा 17 मार्च 1952 को पार्ट-सी राज्य सरकार अधिनियम,1951 के तहत अस्तित्व में आई।1952 की विधानसभा में 48 सदस्य थे।मुख्य आयुक्त को उनके कार्यों के निष्पादन में सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद का प्रावधान था, जिसके संबंध में राज्य विधानसभा को कानून बनाने की शक्ति दी गई थी।राज्य पुनर्गठन आयोग (1955) की सिफारिशों के बाद दिल्ली 1 नवंबर 1956 से भाग-सी राज्य नहीं रही।दिल्ली विधानसभा और मंत्रिपरिषद को समाप्त कर दिया गया और दिल्ली राष्ट्रपति के प्रत्यक्ष प्रशासन के तहत केंद्र शासित प्रदेश बन गया।दिल्ली में एक लोकतांत्रिक व्यवस्था और उत्तरदायी प्रशासन की मांग उठने लगी।इसके बाद दिल्ली प्रशासन अधिनियम,1966 के तहत महानगर परिषद बनाई गई।यह एक सदनीय लोकतांत्रिक निकाय था जिसमें 56 निर्वाचित सदस्य और 5 राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत सदस्य होते थे।इसके बाद भी विधानसभा की मांग उठती रही।परिणाम स्वरूप 24 दिसंबर1987 को भारत सरकार ने सरकारिया समिति(जिसे बाद में बालकृष्णन समिति कहा गया) नियुक्त की।इस समिति ने 14 दिसंबर 1989 को अपनी रिपोर्ट पेश करते हुए सिफारिश की कि दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश बना रहना चाहिए,लेकिन आम आदमी से जुड़े मामलों से निपटने के लिए अच्छी शक्तियों के साथ एक विधानसभा दी जानी चाहिए। बालाकृष्णन समिति की सिफारिश के अनुसार,संसद ने संविधान (69वां संशोधन) अधिनियम,1991पारित किया,जिसने संविधान में नए अनुच्छेद 239AA और 239AB डाले,जो अन्य बातों के साथ-साथ दिल्ली के लिए एक विधानसभा की व्यवस्था करते हैं।लोक व्यवस्था, पुलिस और भूमि के मुद्दों पर विधानसभा को कानून बनाने का अधिकार नहीं था।1992 में परिसीमन के बाद1993 में दिल्ली में विधानसभा के चुनाव बाद दिल्ली को एक निर्वाचित विधानसभा व मुख्यमंत्री मिला।लैकिन इसके पूर्व 27 मार्च 1952 को पहली बार दिल्ली विधानसभा के चुनाव हुए। इस चुनाव में 5,21,766 मतदाता थे,जिनमें से 58.52% ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। कांग्रेस को 48 में से 39 सीटों पर जीत मिली। .वही जनसंघ को पांच, सोशलिस्ट पार्टी को दो और एक-एक सीट पर हिंदू महासभा और निर्दलीय उम्मीदवार को जीत मिली।हालांकि,सन 1956 में विधानसभा को भंग कर दिया गया तथा सन 1992 में परिसीमन के बाद 1993 में दिल्ली विधानसभा फिर कराए गए।
आप को बता दे कि दिल्ली में अब तक सात बार चुनाव हुए हैं।सबसे ज्यादा कांग्रेस ने चार बार,आप ने दो बार(एक बार कांग्रेस के साथ मिलकर)भाजपा ने एक बार सरकार बनाई थी।शीला दीक्षित तीन बार और अरविंद केजरीवाल तीन बार मुख्यमंत्री बने।1993 के पहले चुनाव के बाद दिल्ली विधान सभा में भाजपा कभी भी अपनी वापसी नहीं कर सकी।इस बार दिल्ली विधान सभा के चुनाव में आम आदमी पार्टी के मुखिया व पूर्व मुख्य मंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आप शराब घोटाले से लेकर सीएम आवास पर घिरी है।वहीं भाजपा पर वोटर लिस्ट में गड़बड़ी कराने के आरोप लगे हैं। 1991 के दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी अधिनियम के तहत विधानसभा बनी थी सन् 1993 में दिल्ली विधान सभा का पहला चुनाव हुआ।भाजपा ने जीत हासिल किये तथा मदनलाल खुराना दिल्ली के मुख्यमंत्री बने थे।उन्होंने दिल्ली को पूर्ण राज्य के दर्जे पर चुनाव लड़ा और जीत हासिल की थी।वह मोतीनगर से चुनाव लड़कर विधानसभा पहुंचे थे।इस चुनाव में भाजपा ने 70 में से 49 सीटें जीती थीं और उसे 42.80 फीसदी वोट मिले थे। वही कांग्रेस को 34.50 फीसदी और जनता दल को 12.60 फीसदी वोट मिले थे। खुराना 26 फरवरी 1996 तक ही मुख्यमंत्री रह सके।उनकी जगह साहिब सिंह वर्मा सीएम बने।लेकिन चुनाव से पहले उनकी भी विदाई हो गई। 12 अक्तूबर 1998 को सुषमा स्वराज को सीएम बनाया गया। लेकिन प्याज के दामों ने दिल्ली की जनता ने भाजपा को सत्ता से बाहर कर दिया। सन 1998 में शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस ने जीत हासिल की।कांग्रेस को 52,भाजपा को 15, जनता दल को एक और निर्दलीयों को दो सीटें मिलीं।इसके बाद 2003 और 2008 में भी शीला दीक्षित ने कांग्रेस को जीत दिलाई। 2003 में कांग्रेस को 47 और भाजपा को 20 सीटें मिलीं। 2008 में भी भाजपा सत्ता से दूर रही।इस चुनाव में कांग्रेस को 43, भाजपा को 23 और बसपा को दो सीटें मिलीं।कांग्रेस ने इन दोनों चुनावों में अपने विकास कार्यों, मेट्रो प्रोजेक्ट और औद्योगिक क्षेत्र में मजदूर वर्ग को बढ़ावा देने के चलते जबरदस्त जीत हासिल हुई।लेकिन 2008 की जीत के बाद कांग्रेस की दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार दोनों ही विवादों में घिर गईं। कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले और भ्रष्टाचार के आरोपों पर घिरने के बाद शीला दीक्षित की लोकप्रियता में खासी गिरावट देखी गई।इसमें एक बड़ी भूमिका अन्ना हजारे के जनलोकपाल कानून के लिए किए गए आंदोलन की भी रही।अरविंद केजरीवाल समेत उनकी आम आदमी पार्टी का उदय भी इसी आंदोलन के बाद हुआ था।2013 में कांग्रेस के हाथ से छिनी सत्ता, आप को मिला मौका।नतीजतन नई नवेली आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस से कई सीटें छीन लीं।नव नवेली आम आदमी पार्टी ने शानदार प्रदर्शन किया लेकिन बहुमत से काफी दूर रही।31 सीटों के साथ भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी।आप को 28 और कांग्रेस को महज 8 सीटें ही मिलीं।आप ने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई।लेकिन गठबन्धन की ये सरकार सिर्फ 49 दिन तक ही चल सकी। सन 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल की अगुवाई में आप ने प्रचंड बहुमत हासिल कर नया इतिहास रचा।उसने 70 में से 67 सीटें जीतकर भाजपा-कांग्रेस का सूपड़ा पूरी तरह साफ कर दिया। 2013 में आप को 30 फीसदी वोट मिले थे जो 2015 में बढ़कर 54 फीसदी हो गया।अरविंद केजरीवाल दोबारा सीएम बने।पुन : 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने एक बार फिर 70 में से 62 सीटों पर जीत दर्ज की। पार्टी के वोट शेयर में 0.73 फीसदी की मामूली गिरावट दर्ज की गई।वहीं, भाजपा के वोट प्रतिशत 6.21 फीसदी का उछाल आया। हालांकि, इसके बावजूद भाजपा को सिर्फ 8 सीटें ही मिलीं। दूसरी तरफ कांग्रेस का वोट प्रतिशत 4.26 फीसदी तक ही रहा। पार्टी ने 2013 और 2015 के बाद एक बार फिर वोट प्रतिशत में गिरावट दर्ज की।2020 में कांग्रेस का वोट प्रतिशत 5.44 फीसदी और गिर गया। काँग्रेस पार्टी को 2015 की तरह ही 2020 के विधानसभा चुनाव में भी कोई सीट नहीं मिली। दिल्ली विधान सभा चुनाव 25 का यह चुनाव भाजपा,काँग्रेस व आम आदमी पार्टी नें दिल्ली की भोली भाली जनता को अपने पक्ष कर मतदान करने की अपील करते हुए दिख रहें।भाजपा व उनके कट्टर समर्थक कल तक दिल्ली सरकार आसीन आम आदमी पार्टी की मुखिया केजरीवाल व उनकी सरकार द्वारा चलाई जा रही जन कल्याण कारी योजना(मुप्त योजना) सरकारी कर दाताओं की गढाई कमाई खजानों को लुटाने व फ्री की रेवडी पानी पी पी कर कोसने वाले भाजपा ने अपनी चुनावी भाषण व घोषणा पत्र आप सरकार के द्वारा वर्तमान में चलाने जाने वाली योजना यथावत चालु रखने की वकालत ही नहीं कर रही बल्कि कई अन्य लोक लुबावन मुफ्त योजना को लागु करने की घोषणा करते थक नहीं रही है।ऐसे में कई प्रशन उठना स्वाभाविक है कि -क्या आम आदमी पार्टी की सरकार की मुप्त योजना का भाजपा व कांग्रेस पार्टी समर्थन करती है।जिसका प्रभाव आने वाले चुनाव में असर अभी से दिखने लगा है।वही दूसरी ओर भाजपा की केन्द्रीय नेतृत्व द्वारा दिल्ली विधान सभा चुनाव में टिकट बॅटवारे को लेकर आ रही है।अन्दर से दबे स्वर में उठने विद्रोह का ताजा उदाहरण तीन बार से रहे विधायक का टिकट काट कर आप के नेता कपिल मिश्रा की टिकट घोषणा होते ही विद्रोही विधायक ने जब स्वतंत्र उम्मीदबार के रूप चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी परिणाम स्वरूप पार्टी को तीसरी लिस्ट में सिर्फ एक उम्मीदवार घोषित करना पड़ा । खैर दिल्ली विधान सभा चुनाव के लिए कुछ हप्ते ही शेष रह गए हैं ,वही तीनों पार्टी के शीर्ष नेतृत्व द्वारा इस बार दिल्ली विधान सभा चुनाव में अपने पार्टी व उम्मीदवारों कोजीत दिलाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है।दिल्ली विधान सभा 25 के चुनावी समर क्षेत्र में राजनीतिक दल आमने – सामने है,लैकिन अन्तिम फैसला तो आगामी 5 फरवरी को मतदान व 8 फरवरी को मतगणना होगी।जिसका फैसला दिल्ली की जनता जनार्दन को करना है।उनका असली हितेषी व शुभ चिन्तक कौन है।इसके लिए हम व आप को 8 फरवरी तक इंतजार करना होगा।