सुशील दीक्षित विचित्र
तवांग की घटना को लेकर विपक्ष की आक्रामकता निरर्थक है | यह न केवल सेना के मनोबल पर प्रहार है बल्कि दुश्मन देश को यह सन्देश देना है कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों में देश एक नहीं है जबकि सन्देश यह होना चाहिए था कि देश के अंदर भले ही हम राजनीतिक लड़ाई लड़ते हो लेकिन अपनी सेना को और अपनी सीमाओं के मुद्दे पर हमारे स्वर एक हैं | दुर्भाग्य से ऐसा नहीं है | इसलिए ऐसा नहीं है की चीन से चंदा लेने वाली कांग्रेस की राष्ट्रीय सुरक्षा या सीमा रक्षा में कभी कोई दिलचस्पी नहीं रही | चीन के प्रति उसका रवैया आजादी के बाद से अभी तक एक सा है | उसके मन में नेहरू जी के जमाने से जो सॉफ्ट कार्नर रहा है वह कभी बदला नहीं |
कांग्रेस अध्यक्ष मलिकार्जुन खड़गे इस मामले को जैसा राजनीतिक रंग दे रहे हैं उससे कांग्रेसियों को छोड़ कर देश का एक भी नागरिक सहमत नहीं होगा | रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह इस मुद्दे पर संसद में ब्यान दे चुके हैं | अन्य स्तर से भी बात को संसद में रखा गया लेकिन खड़गे इससे संतुष्ट नहीं है | वे प्रधानमंत्री की बात सुनना चाहते हैं | इसका कोई औचित्य नहीं है | ऐसे मसलों में पहले भी संसद अपनी एक जुटता प्रदर्शित करता रहा है | यह एक अलिखित लेकिन स्वीकृत परम्परा है कि विदेशी मसलों पर सब एक साथ होंगे लेकिन इस परम्परा को बार बार कांग्रेस ने तोडा और अपनी ईर्ष्या और दम्भ की राजनीति में सेना को भी घसीटा ही नहीं , उस पर इल्जाम भी लगाये | इतनी गैर जिम्मेदार राजनीति और इतने गैर जिम्मेदार विपक्षी नेता कभी नहीं दिखे जितने पिछले कुछ वर्षों से सहसा दिखने लगे हैं |
इस मुद्दे पर सेना की ओर से स्टेटमेंट आने के बाद तो किसी संदेह या अगर ; मगर की जरूरत ही नहीं रह जाती है लेकिन अपनी तमाम पराजयों से कुंठित , हासिये पर खड़ी कांग्रेस को सब कुछ भाजपाई ही नजर आता है | सेना भी | इसीलिये कांग्रेस ने सेना प्रमुख को गली का गुंडा तक बता डाला था | यह रवैया ठीक नहीं | इसलिए और भी ठीक नहीं कि चीन के साथ जो मामला उलझा है या पिछले कुछ सालों में चीन जिस बढे मनोबल से हमलावर हो रहा है उसके पीछे कहीं न कहीं कांग्रेस की नीतियां हैं | मनमोहन सिंह ने भारत के बाजार के लिए चीन को प्रवेश कराते समय संसद में कहा था कि हमें अर्थव्यवस्था के लिए सीमाओं की सुरक्षा का विचार छोड़ना होगा | कांग्रेस ने यह विचार छोड़ भी दिया | सीमा असुरक्षित हो गयी |
इसका तत्काल असर दिखाई देने लगा | यूपीए शासनकाल में 2013 को तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सुरक्षा सलाहकार बोर्ड द्वारा सौंपी गयी एक रिपोर्ट में कहा गया था कि लद्दाख के डेपसांग, चुमार, पैंगांग इलाके में चीनी पीएलए ने भारतीय सैनिकों को गश्त लगाने से रोका। चीन सीमा पर हालात का जायजा लेने के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ओर से बनाई गई एक समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि चीनी सेना ने भारतीय जवानों को गश्ती के लिए वास्तविक नियंत्रण रेखा तक जाने की इजाजत नहीं दी थी। इसी के चलते 640 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में भारतीय सेना निगरानी नहीं कर पा रही। यह रिपोर्ट अगस्त 2013 में पीएम को सौंपी गई थी। जानकारी के अनुसार, कैबिनेट की सुरक्षा समिति में भी इस पर चर्चा की गई थी लेकिन सरकार ने संसद को सूचित करना जरूरी भी नहीं समझा |
आज तवांग , गलवान घाटी और लद्दाख में चीन घुसपैठ पर जब सरकार को घेरने की कोशिश कर रहे थे तब जाने अनजाने संसद में खड़गे और उनके सहयोगी मोदी सरकार पर उंगलियां उठा रहे थे तब उनकी ही शेष उंगलियां उनकी हो ओर उठी हुई थीं | इनफ्रास्ट्रक्चर को ले कर कोई भी सवाल करने से पहले खड़गे को केवल नौ वर्ष पहले अपनी पार्टी की सरकार के रक्षा मंत्री ए के एंटोनी के उस बयान लो याद कर लेना चाहिए जिसमें उन्होंने कहा था कि सीमा पर सड़के बनबाने की कोई जरूरत नहीं | इसके बाबजूद एंटोनी ने ऐसा कहा था जब कि श्याम सरन की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड की टीम ने सीमा पर आधारभूत संरचना विकास और वहां के हालात का जायजा लेने के लिए 2 अगस्त से 9 अगस्त 2013 के बीच लद्दाख का दौरा करने के बाद सरकार को लिखित बताया था कि भारत जिसे एलएसी मानता है उसके भीतर दौलत बेग ओल्डी और लद्दाख के अन्य सेक्टरों में चीनी सैनिकों ने मोटर के आने-जाने लायक सड़कें बना दी हैं।
2012 – 2013 वह साल था जब चीन की तरफ से भारतीय सीमा में लगातार घुसपैठ की खबरें आती रहीं | चीन धीरे-धीरे भारत की जमीन पर कब्जा जमाता रहा। अप्रैल में डेप्संग घाटी में चीनी सेना ने भारतीय जमीन पर 21 दिनों तक तंबू गाड़े रखा | इन सारी घटनाओं पर मनमोहन सिंह सरकार लीपापोती करती रही | बार बार यह साबित करने की कोशिश करती रही कि चीन के साथ संबंध सामान्य हैं और कोई सीमा विवाद नहीं हैं | यह गुमराह करने की कोशिशें थीं जो सफल न होनी थीं न हुईं | इसलिए नहीं हुईं क्यूंकि विगत में ऐसी कई घटनाएं घट चुकी थीं जिसमें यूपीए सरकार की लाचारी साफ़ झलकती थी | तीन अक्टूबर 2009 को मनमोहन सिंह ने अरुणाचल प्रदेश का दौरा किया | चीन ने उनके दौरे का विरोध करते हुए कहा था अरुणाचल प्रदेश उसका हिस्सा है | 2013 में राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने अरुणाचल प्रदेश का जब दौरा किया तब भी चीन से साफ़ साफ़ धमकी दी थी की ऐसे सीमा विवाद हल नहीं होगा |
इन सभी अवसरों पर यूपीए सरकार का रवैया उदासीनता भरा रहा | मई 2013 में तत्कालीन विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद चीन के दौरे पर गए थे | उन्होंने चीन के विदेश मंत्री वांग ई से तीन घंटे लम्बी बातचीत की लेकिन एक बार भी यह पूछने का साहस नहीं जुटा पाया कि भारतीय सीमा पर चीनी सेना ने घुसपैठ क्यों की थी और क्यों उसकी सेना 19 ,किमी अंदर घुस कर 21 दिन तक टैंट लगाये क्यों पड़ी रही ? पत्रकारों ने जब उनसे इस विषय में सवाल किया तो उन्होंने कहा था कि यह वक्त एक दूसरे पर दोषारोपण का नहीं है | इस समस्या को सुलझाना अधिक जरूरी था , जो हो चुका है | तो क्या यह समस्या यानी सीमा विवाद वाकई सुलझ गया था? क्या चीन और भारत के बीच 1950 से चली आ रही तनाव और संभावित युद्ध की आशंका जैसी समस्या समाप्त हो गयी थी ? इसी वर्ष 2013 के अक्टूबर में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी चीन की यात्रा के बाद बताया कि उनकी यात्रा का उद्देश्य पूरा हो गया है | दोनों देश सीमा विवाद सुलझाने के प्रति गंभीर हैं |
क्या मनमोहन सिंह की बात का यह अर्थ नहीं कि सीमा विवाद अभी सुलझा नहीं है ? जबकि इन के विदेश मंत्री खुर्शीद पांच महीने पहले कह रहे थे कि सीमा विवाद सुलझ गया | अब प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि सुलझा नहीं बल्कि सुलझाने के प्रति गंभीर हैं | तो क्या सलमान खुर्शीद के समय चीन गंभीर नहीं था जो अब सहसा गंभीर हो गया ? मनमोहन सिंह ने भी यात्रा से उद्देश्य पूरा होना बताया जबकि उद्देश्य तो पता नहीं कितना पूरा हुआ था लेकिन उस समय ऐसे भी समाचार आये थे कि चीन के नेतृत्व ने चार वर्ष पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा अरुणाचल प्रदेश की यात्रा पर सामने अपना विरोध दर्ज कराया था |
यद्यपि भारत की ओर से चीन के अरुणाचल पर दावे को खारिज कर दिया गया लेकिन सीमा पर इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत करने की जरूरत तब भी नहीं समझी | आज राहुल गांधी चीन को ले कर बड़ी बड़ी बातें कर रहें है लेकिन अपनी ही सरकार के दौर में 640 किमी की जो घुसपैठ की गयी उस पर तब यूपीए सरकार ने कुछ कहने की जरूरत समझी थी और अब तक राहुल गांधी भी उस पर कुछ नहीं बोले | बोले तो विदेश मंत्री एस जय शंकर को ही विदेश नीति का पाठ पढ़ाने लगे | इस पर राज्यवर्धन सिंह राठौर ने यह कह कर पलटवार किया कि चीन पर ज्ञान देने से पहले राहुल गांधी को चीन सरकार से राजीव गाँधी फाउंडेशन के लिए 135 करोड़ रूपये चंदा लेने के बारे में भी बताना चाहिए | सम्प्रति , लोकसभा में केंद्र सरकार ने बताया कि राजीव गांधी फाउंडेशन और राजीव गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट का लाइसेंस विदेशी अभिदाय विनियमन अधिनियम के तहत रद्द कर दिया गया है |
यूपीए शासन के दौरान 2013 में हुयी चीन की घुसपैठ को रोकने में कोई ख़ास दिलचस्पी तक न दिखाने के बाद भी कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे द्वारा मोदी की आँखों पर चीन का चश्मा चढ़ा होना और राहुल गांधी का सरकार पर सोते रहने का आरोप लगाना यही दर्शाता है कि एक बार फिर कांग्रेस राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दे को अपनी राजनीति चमकाने के अवसर के रूप में देख रही है | ऐसा ही अवसर उसने सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल उठाते समय तलाशने की कोशिश की थे | विसंगति देखिये कि अप्रेल 2013 में चीनी घुसपैठ पर कांग्रेस के मंत्री कह रहे थे कि यह आपसी तकरार या राजनीति का समय नहीं है बल्कि सरकार से सहयोग का मौका है | वही कांग्रेस आज सहयोग के स्थान पर राष्ट्र को गुमराह करने का प्रयास कर रही है | सीमा पर जो भी करनीय होता है सरकार और सेना उसे कर रही है |
तवांग पर हुयी झड़प पर जो हुआ वह भी सेना ने बताया | ऐसे वीडियो भी सामने आये जिसमें भारतीय सैनिक चीनी सैनिको को गालियां देते पीट रह हैं | हर स्तर से यह बात सामने आयी कि हमारे सैनिक चीन सौनिकों पर भारी पड़े | पूरे देश को अपनी सेना पर पूरा भरोसा है लेकिन कांग्रेस को किसी पर भी भरोसा नहीं | गलवान की घटना को लेकर दिए गए सेना के ब्यान पर भी भरोसा नहीं किया था और न सर्जिकल स्ट्राइक पर विश्वास जताया था | सर्जिकल स्ट्राइक के सबूत मांगने वाले राहुल गांधी और दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल उसी टोन में बोले थे जो पाकिस्तान बोल रहा था | दोनों पाकिस्तान के पोस्टर ब्याय तक बन गये | उनके इन बयानों का पकिस्तान ने तब अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर खुल कर अपने हक़ में इस्तेमाल किया था |
कांग्रेस के तमाम दावों पर एक सबसे बड़ा सवालिया निशान यह है कि वह देश का उतना विकास क्यों नहीं कर सकी जितना चीन ने किया जब कि चीन भारत से एक साल बाद आजाद हुआ | क्यों तेरह वर्ष का आजाद चीन चौदह साल के आजाद भारत पर इतना भारी पड़ा कि उसकी जमीन हड़प ली और कांग्रेस सरकार कुछ नहीं कर सकी ? सत्तर वर्ष तक कांग्रेस सरकार की सरकारें कहाँ सोई पड़ी थीं कि कभी हड़पी हुई जमीन को वापस लेने की चर्चा तक नहीं की | चीन जब विश्व की महाशक्ति बन रहा था तब भारत की कांग्रेसी सरकारों ने भी ऐसे ही विकास के प्रयास क्यों नहीं किये जिससे भारत भी विकसित देशों की श्रेणी में खड़ा होता |
हालात यह थे कि 2013 तक रक्षा सामग्री के हम सबसे बड़े खरीदारों में दूसरे नंबर पर थे | हमारी रक्षा निर्भरता दूसरे देशों पर आश्रित थी | इसलिए नहीं कि हमारे यहां प्रतिभाओं की कमी थी , बल्कि इसलिए कि हथियार खरीदने पर लाभांश का एक हिस्सा पार्टी चंदे में पहुंचता था | 2014 के बाद क्रमबद्ध ढंग से मोदी सरकार स्वदेशी हथियार बनाने की ओर अग्रसर हुई | आज स्थिति यह है कि हम विश्व में पांचवें नंबर के रक्षा सामग्री के विक्रेता हैं | आज हम धनुष तोप उस कम्पनी को बेंच रहे हैं जिस बोफोर्स कम्पनी से कभी तोपें खरीदी जाती थीं और दलाली के पैसे का बंदरबांट किया जाता था |
हालात बहुत तेजी से बदल रहे हैं | घुसपैठ की हर नाकाम कोशिश के बाद चीनी सैनिक अपना साजो सामान छोड़ कर बेंत से पिटे कुत्ते की तरह भागते हैं और जैसे चीनी शासन बैकफुट पर आ जाता है ऐसा पहले कभी नहीं हुआ | देश को यह भी याद रखना होगा कि संयुक्त राष्ट्र में आज चीन वीटो की अधिकारी पांच महाशक्तियों में शामिल है तो कांग्रेस के कारण | यह मौका भारत को मिला था जिसे तत्कालीन नेतृत्व ने चीन को चांदी की तश्तरी में सजा कर दे दिया |
इसमें कोई संदेह नहीं कि प्रधानमंत्री मोदी की नीतियां भी चीन के साथ सीमा विवाद को सुलझाने में सहायक नहीं हो पा रही हैं | चीन बराबर उकसावे वाली हरकतें कर रहा है | सुकून की बात यह है कि इस तरफ से मोदी सरकार उतनी लापरवाह नहीं है जितनी पिछली सरकारें सीमा के प्रति रहा करती थीं | अब सरकार का जोर इंफ्रास्ट्रक्चर को अधिक से अधिक मजबूती देने और सेना का आधुनिकीकरण पर है |
एक बात भारत के नेतृत्व को भली भांति समझ लेनी चाहिए कि चीन से विवाद निपटना असंभव की हद तक मुश्किल है | यह कहना और भी ठीक होगा कि साम्राज्यवादी चीन की सीमा विवाद सुलझाने की कभी कोई मंशा नहीं रही | कांग्रेस को भी समझना होगा कि उसकी भूलों की सजा देश के जवानों को पहले भी भुगतनी पड़ी थी और अब भी भुगतनी पड़ रही हैं | इसलिए अपनी राजनीति चमकाने का प्रयास छोड़ कर सरकार के साथ वैसा ही सहयोग करना चाहिए जैसा इससे पहले उनकी सरकारों के साथ विपक्ष ने किया | हर मुद्दे पर नकारात्मक रजनीति पहले से ही नाराज जनमानस को और नाराज कर देती है | इसलिए उसे राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलं में चीन या पाकिस्तान के साथ नहीं भारत के साथ खड़े दिखना चाहिए क्यूंकि देश से बड़ा न व्यक्ति होता है और न दल |