प्रो. नीलम महाजन सिंह
आजकल जबकि यूपीएससी की परीक्षाएँ चल रहीं हैं, ‘पूजा खेडकर कांड’ ने सभी को अचंभित कर दिया है। मेरे पति, श्री मोहन सिंह जी, वरिष्ठ आई.ए.एस. अधिकारी रहे हैं। इंग्लैंड की ‘केंट यूनिवर्सिटी से बैरिस्टर’ हैं तथा यूनियन टेरिटरी (U.T.) काॅडर की सेवाओं में रहे हैं। मेरे अधिकतर साथी आई.एफ.एस.; आई.ए.एस. या आई.पी.एस. व अन्य यूपीएससी सेवाओं में कार्यरत रहे हैं। पूजा खेडकर ने आईएएस परीक्षा में बैठने के लिए, नियमों की धज्जियाँ उड़ा दीं। कैसे यूपीएसी आयोग के प्रशासनिक विभाग की आँखों में धूल झौंकीं गई? राजिंदर नगर, मुखर्जी नगर, दिल्ली में तो हज़ारों प्रशिक्षण सेंटर हैं, जहां देश भर से प्रत्याशी अपने सपनों को पूरा करने में लगे हुए हैं। संदेह तो उत्पन्न हो ही रहा है कि शायद अन्य कई अधिकारियों ने भी इस प्रकार का काम किया होगा? प्रशासन की यह बहुत भारी गलती है। खैर, जो पकड़ा गया वो ही चोर! ‘पूजा खेडकर कांड’ ने अकल्पनीय प्रश्नों को उजागर किया है। अपनी गलत-सलत पहचान बताने के लिए, उस पर एफआईआर दर्ज हो गई है। यूपीएससी ने यह कदम, मसूरी में केंद्र की प्रशिक्षण अकादमी द्वारा उनके जिला प्रशिक्षण को रोक दिए जाने व उन्हें लाल बहादुर शास्त्री अकैडमी फॉर एडमिनिस्ट्रेशन (एल.बी.एस.एन.ए.ए.) में वापिस जाने के आदेश के कुछ दिनों बाद उठाया गया। संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) ने ‘पूजा मनोरमा दिलीप खेडकर’ के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की है और उनकी नियुक्ति रद्द करने के लिए उन्हें ‘कारण बताओ नोटिस’ भेज दिया है। जांच में पता चला है कि खेडकर ने परीक्षा में बैठने के लिए अपना नाम, फोटो व अन्य विवरण बदलकर अपनी पहचान ही गलत बताई थी। यूपीएससी के अनुसार उन्हने सिविल सेवा परीक्षा – 2022 की अन्तिम रुप से अनुशंसित उम्मीदवार, पूजा खेडकर के खिलाफ कार्यवाही आरंभ कर दी है! यूपीएससी के ब्यान में कहा गया है कि, “इस जांच से पता चला है कि उन्होंने अपना नाम, अपने पिता और माता का नाम, अपनी तस्वीर/हस्ताक्षर, अपनी ईमेल आईडी, मोबाइल नंबर और पता बदलकर अपनी पहचान गलत बताते हुए परीक्षा नियमों के तहत अनुमत सीमा से अधिक प्रयास किए।” आयोग ने कहा कि उसने एफआईआर दर्ज करके आपराधिक मुकदमा शुरू किया है। पूजा खेडकर को सिविल सेवा परीक्षा-2022 की उम्मीदवारी रद्द करने और परीक्षा नियमों के अनुसार भविष्य की परीक्षाओं से वंचित करने के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है है। यूपीएससी का यह कदम मसूरी में लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी (एलबीएसएनएए) द्वारा उसके जिला प्रशिक्षण कार्यक्रम को रोककर, उसे वापिस बुलाने के फैसले के कुछ दिनों बाद आया है। पूजा खेडकर को 23 जुलाई तक “किसी भी परिस्थिति में” अकादमी में लौटने का आदेश दिया गया था। पूजा ने अनेक नियमों को तोड़ा-मरोड़ा है। नियमों के अनुसार, सामान्य वर्ग के उम्मीदवार अधिकतम छह बार सिविल सेवा परीक्षा में शामिल हो सकते हैं, व अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) व ‘बेंचमार्क विकलांग’ व्यक्ति (पीडब्ल्यूबीडी) के उम्मीदवार नौ बार परीक्षा में शामिल हो सकते हैं। पूजा खेडकर की कहानी से क्या पता चलता है? 2020-21 तक, पूजा खेडकर ने ‘ओबीसी’ कोटे के तहत ‘पूजा दिलीपराव खेडकर’ नाम से परीक्षा दी। 2021-22 में, सभी प्रयासों को समाप्त करने के बाद, वह कथित तौर पर ‘पूजा मनोरमा दिलीप खेडकर’ नाम का उपयोग करके ओबीसी व PwBD (people with biological disabilities) कोटे के तहत परीक्षा में शामिल हुई। उसने 821 रैंक के साथ परीक्षा पास की व उसे IAS आवंटित किया गया; क्योंकि उसने ‘विकलांग उम्मीदवारों के लिए कोटे’ के तहत परीक्षा पास की थी। पूजा खेडकर व उसके परिवार की मुश्किलें तब शुरू हुईं जब उसे जिला प्रशिक्षण के लिए पुणे कलेक्ट्रेट भेजा गया, जहाँ उसने विशेष सुविधाओं के लिए कई अनुरोध किया। उस पर सत्ता के दुरुपयोग का आरोप लगाया गया। वीआईपी पंजीकरण संख्या वाली अपनी निजी ‘ऑडी सेडान’ (यह गाड़ी भी किसी ठेकेदार की है), पर लाल-नीली बत्ती का इस्तेमाल किया और एक सहकर्मी के कमरे सहित विशेषाधिकार प्राप्त कार्यालय माँगा। अनुमेय सीमा से परे कई बार प्रयास करने के अलावा, पूजा पर यह भी आरोप है कि उसने ‘अन्य पिछड़ा वर्ग’ व ‘बेंचमार्क विकलांग’ व्यक्तियों (PwBD) के लिए निर्धारित कोटे के लिए अर्हता प्राप्त करने का दावा करके अपना स्थान हासिल किया, जबकि वास्तव में वे इसके लिए हक़दार नहीं थीं। महाराष्ट्र सरकार ने यह पता लगाने के लिए भी जाँच-पड़ताल शुरू की है कि वह ‘ओबीसी कोटे’ के लिए कैसे योग्य है, जबकि उसके परिवार की संपत्ति करोड़ों रुपये में है और उसने 28 जनवरी, 2023 को सेवा में शामिल होने से पहले सरकार को सौंपे गए वित्तीय खुलासे में ₹42 लाख रुपये की वार्षिक आय घोषित की है। 16 जुलाई को, अहमदनगर जिला प्रशासन ने कहा कि पूजा ने ‘गैर-क्रीमी लेयर प्रमाणपत्र’ के लिए अपने आवेदन के साथ दस्तावेज जमा करते समय, अपनी माँ की वार्षिक आय 6.5 लाख रुपये घोषित की थी। केंद्र सरकार द्वारा की गई जांच में उसके स्वास्थ्य की स्थिति के बारे में किए गए दावों को भी शामिल किया गया है, ख़ासकर तब, जब वह अपने दावों की पुष्टि करने के लिए, छह सम्मन के बावजूद अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में रिपोर्ट करने में विफल रही, लेकिन कोई सवाल नहीं पूछा गया! इस कांड ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि, कैसे खेडकर ने यूपीएससी की भर्ती प्रक्रिया को प्रभावित करने में सफलता प्राप्त की? लोक सेवा भर्ती निकाय ने कहा है; कि “अपने संवैधानिक दायित्वों को पूरा करने में, यूपीएससी अपने संवैधानिक जनादेश का सख़्ती से पालन करता है, और बिना किसी समझौते के सभी परीक्षाओं सहित अपनी सभी प्रक्रियाओं का संचालन करता है। यूपीएससी ने नियमों के अत्यंत निष्पक्षता और सख्त पालन के साथ अपनी सभी परीक्षा प्रक्रियाओं की पवित्रता व अखंडता सुनिश्चित की है। यूपीएससी ने जनता, खासकर उम्मीदवारों से बहुत उच्च स्तर की विश्श्वसयता अर्जित की है। आयोग यह सुनिश्चित करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है कि विश्वास और विश्वसनीयता का ऐसा उच्च स्तर बरकरार रहे और इसमें कोई समझौता न हो”। सारांंशार्थ, हाल ही तक, मुझे यूपीएससी परीक्षा की निष्पक्षता पर कभी संदेह नहीं हुआ। थोड़ा बहुत इंटरव्यू में पॉइंट्स दिए जा सकते हैं, लेकिन प्रोबेशनर पूजा खेडकर के हालिया मामले ने सिविल सेवा समुदाय को समान रूप से सदमे में डाल दिया है। पूजा खेडकर के आचरण को अनौपचारिक रूप से देखा जाए तो, यह एक अधिकारी के लिए बिल्कुल अनुचित है। यदि साबित हो जाता है, तो ये आरोप सिविल सेवा (आचरण) नियम, 1964 के विभिन्न मानदंडों का उल्लंघन करते हैं। जांच रिपोर्ट के नतीजे के आधार पर अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करना, कैडर-नियंत्रण प्राधिकरण पर निर्भर करेगा, जो आईएएस के मामले में कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी DOPT) है। सिविल सेवा वास्तव में राष्ट्रीय है, जिसने अपने ‘औपनिवेशिक बोझ’ को त्याग दिया है। बड़ा मुद्दा ‘फर्जी विकलांगता और ‘ओबीसी (गैर-क्रीमी लेयर) प्रमाण पत्र’ प्राप्त करने के आरोपों के बारे में है। यह कैसे यूपीएससी के फिल्टर को बायपास कर गया? पूजा खेडकर मामले का बड़ा प्रभाव यही है।इसमें देश के सबसे प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक में, हमारे भरोसे को खत्म करने की शक्ति है। यूपीएससी को कई लोग योग्यता के एक ऐसे प्रतीक के रूप में देखते हैं, जहाँ भाई – भतीजावाद काम नहीं करता। उत्कृष्टता का एक द्वीप और एक ऐसा अडिग फिल्टर, जो बाकी लोगों को छांटता है, देश पर शासन करने के लिए केवल सर्वश्रेष्ठ लोगों को ही चुना जाता है। पर अब जनता के मन में संदेह है – सत्ता का व्यापक दुरुपयोग, भ्रष्टाचार, अमीर और शक्तिशाली लोगों द्वारा ‘सिस्टम को हैक’ करने की क्षमता? मनोवैज्ञानिक रूप से कहें तो कई लोगों के लिए यह सबसे बुरे डर की पुष्टि है; भारत में, अगर आपके पास सही संपर्क हैं तो आप कुछ भी कर सकते हैं? 2021 के एक अध्ययन के अनुसार, यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा पास करने वाले लगभग 50 प्रतिशत उम्मीदवार, आरक्षित श्रेणियों से आते हैं। समाज के ‘गैर-क्रीमी’ (non-creamy) वर्ग के कई लोगों के लिए, यूपीएससी परीक्षा को ‘क्रीमी लेयर’ तक पहुँचने का एकमात्र तरीका, कड़ी मेहनत व समग्र ज्ञान माना जाता है। अगर यह उम्मीद टूट जाती है तो हमारे देश के युवाओं का मनोबल गिर जाएगा, जो कभी नहीं होना चाहिए। ‘बड़ी शक्ति के साथ बड़ी ज़िम्मेदारी भी आती है’। यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि ये मामले आदर्शवाद के अपवाद हैं। यूपीएससी द्वारा भर्ती किए गए अधिकांश सिविल सेवक असाधारण क्षमता वाले योग्य लोग हैं। यह सोचना कि पूजा खेडकर का मामला हमारे देश की समग्र मशीनरी का प्रतिनिधि है, अति-सामान्यीकरण की गलती होगी। किसी सिस्टम की ताकत का सही आंकलन इस बात से नहीं होता कि उसे ‘हैक’ किया जा सकता है या नहीं, बल्कि इस बात से होता है कि ऐसी स्थिति में वह कितनी जल्दी प्रतिक्रिया कर उसे सुधारने का प्रयास करता है। उम्मीद की जाती है कि यूपीएससी व भारत सरकार इस गहन अपराध तथा लूपहोल को सही दिशा देने का प्रयास करेंगें। इस प्रकरण को अपवाद लेकर हमारी युवा पीढ़ी को सत्य के मार्ग पर अग्रसर रहना चाहिए।
(वरिष्ठ पत्रकार, विचारक, राजनैतिक विश्लेषक, शिक्षाविद, दूरदर्शन व्यक्तित्व, सॉलिसिटर, परोपकारक)