- 05 फरवरी माघ पूर्णिमा को मुख्य मेला पर विशेष
- आदिवासियों के प्रयागराज बेणेश्वर धाम जहाँ तीन सौ वर्षों से लग रहा हैं आस्था का महाकुंभ
- मावजी महाराज ने तीन सौ वर्ष पूर्व ही अंतरिक्ष में रॉकेट (अन्तरिक्ष यान) के उड़ान सहित अन्य कईभविष्यवाणी कर दी थी
गोपेंद्र नाथ भट्ट
नई दिल्ली : दक्षिणी राजस्थान के उदयपुर संभाग में वागड़ अंचल के डूंगरपुर जिले में साबला क़स्बें के निकटस्थित बाँसवाड़ा ज़िले की सीमा से सटे अति प्राचीन तीर्थ बेणेश्वर धाम पर तीन सौ वर्षों से माही, सोम औरजाखम नदियों के त्रिवेणी संगम पर एक अनूठा मेला लगता हैं जिसमें आदिवासियों की समृद्ध लोक संस्कृतिएवं बेजोड़ परम्पराओं के दर्शन होते हैं। इस भव्य मेला में राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश आदि राज्यों केलाखों आदिवासी और अन्य सभी समुदायों के लोग भाग लेते है । माघ पूर्णिमा पर मुख्य मेला के दिन यहाँमावजी महाराज के उत्तराधिकारी महन्त की पालकी और शाही स्नान के साथ लाखों श्रद्धालु त्रिवेणी संगम मेंस्नान करते हैं। इसलिए बेणेश्वर धाम को ‘वागड़ का प्रयागराज’ भी कहा जाता हैं।जनजाति समुदाय लिएइसका महत्व किसी महाकुंभ से भी बढ़ कर माना जाता है।
बेणेश्वर धाम आदिवासियों के साथ ही सर्व समाज के आध्यात्म एवं अटूट आस्था का केंद्र है। बेणेश्वर औरमाही सागर का वेद पुराणों और अन्य कई ग्रन्थों में भी उल्लेख हैं।किवंदती है कि बेणेश्वर में तप करने वाले एवंनिष्कलंक कृष्ण अवतारी संत मावजी महाराज ने 300 साल पहले जो आगमवाणियां की थी और जो चोपड़ा(ग्रन्थ) लिखा था उसकी सभी भविष्यवाणियां आज सही साबित हो रही है। मावजी महाराज ने तीन सौ वर्ष पूर्वही अन्तरिक्ष में रॉकेट (अन्तरिक्ष यान) छोड़े जाने एवं उड़ान भरने की भविष्यवाणी कर दी थी।साथ ही तीन दशकपूर्व ही मावजी महाराज द्वारा स्थानीय वागड़ी भाषा में की गई बहुचर्चित भविष्यवाणियों “परिए पानी वैसाये” यानि पानी भी मौल तौल से बिकेगा और “डोरिये दीवा लागशे” अर्थात तार (डोरी )पर दीये (बल्ब ) लगेंगे तथा“धेरे-धेरे घोड़ी बन्दाशे” यानि घर-घर वाहन होंगे आदि सच साबित हुई हैं और उन्हें आज भी वागड़ में मुहावरोंके रूप में सुनाया जाता हैं।
वेद पुराणों और ग्रन्थों में पाण्डवों के अज्ञात वास के दौरान बेणेश्वर आने का उल्लेख भी हैं। इसी प्रकारबेणेश्वर में राजा बलि, वाल्मीकी ऋषि और सन्त मावजी के साथ भीम के प्रपौत्र अति बलशाली बर्बरीक(घटोत्कच के पुत्र) की तप स्थली भी मानी जाती है । भगवान श्री कृष्ण की लीला से पूरा महाभारत युद्ध काआखों देखा हाल देखने वाले बर्बरीक को आज करोड़ों लोग खाँटू श्याम जी के रूप में पूजते हैं।
पौराणिक तथ्यों के अनुसार राजा बलि ने बेणेश्वर धाम में एक यज्ञ किया था और भगवान विष्णु ने वामनअवतार लेकर अपना तीसरा पग यही रखा था और बलि को पाताल लोक पहुँचा दिया था। मान्यता है कि इससेबेणेश्वर में एक गहरा खड्डा आबूदर्रा बन गया जिसका नाप अपार माना जाता हैं और लोग इसे पाताल लोक मेंजाने का मार्ग भी मानते है।पिछलें वर्षों में इस आबूदर्रा के अबूज रहस्यों का पता लगाने के लिए सर्वेक्षण केकुछ कार्य भी हुए जिसमें कई प्राचीन अवशेषों की जानकारी मिलना बताया जाता है।
शास्त्रों में उल्लेखित तथ्यों के अनुसार बेणेश्वर स्थित महि संगम भगवान ब्रह्मा और नारद जी का भी प्रिय स्थलहै।उन्होंने यहाँ ब्राह्मणों को बसाया और इस स्थान को गुप्त प्रदेश की संज्ञा दी।साथ ही कहा जाता है वागड़अंचल पुष्पप्रदेश है जहां देवता रमण करते हैं। साथ ही यह मान्यता है कि कलयुग के कलकी अवतार काअवतरण भी इसी देव भूमि में होगा।
बेणेश्वर में ब्रह्मा,विष्णु और महेश तीनों देवताओं के साथ अन्य देवों और सन्तों के मन्दिर भी हैं। पुष्कर के बादबेणेश्वर और छींच (बाँसवाड़ा) में ही ब्रह्मा मन्दिरों में उनकी पूजा होती हैं।
आदिवासी समुदाय के साथ वागड़ अंचल के लोग बेणेश्वर को ही अपना प्रयागराज मानते है और माघ पूर्णिमापर लगने वाले विशाल मेला को वागड़ का कुम्भ माना जाता है।आदिवासी यहाँ अपने दिवंगत परिजनों के मोक्षकी कामना के साथ आबूदर्रा स्थित संगम तीर्थ स्थल पर पारंपरिक एवं धार्मिक अनुष्ठानों के साथ विधि-विधानके साथ त्रिपिण्डीय श्राद्व तर्पण और अन्य उत्तर क्रियाएँ कर उन्हें अपनी श्रद्धांजलि एवं जलांञ्जलि देते है।सूर्योदय के साथअल सवेरे भोर से शुरू होने वाले अस्थि विसर्जन का यह क्रम दोपहर बाद तक अपने चरमोत्कर्षपर पहुँच जाता है । यहाँ होने वाले धार्मिक अनुष्ठानों में एक विशेष बात यह देखी जाती हैकि पुरुषों के साथमहिलायें भी महिसंगम में कमर तक गहरे पानी में उतर कर इन धार्मिक रस्मों को पूरा करती हैं।
बेणेश्वर धाम दक्षिणी राजस्थान के तीन जिलों डूंगरपुर,बाँसवाड़ा और उदयपुर के साथ तीन प्रदेशों राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात का संगम स्थल भी है तथा यहाँ प्रतिवर्ष माघ पूर्णिमा को सर्द और बसन्त मौसम केमध्य लगने वाला भव्य मेला की शोहरत पुष्कर मेला और देश के अन्य पवित्र मेलों की तरह ही हैं। आरम्भ मेंयह मेला गुमनामी और अनजान सा रहा था लेकिन। कालान्तर में बेणेश्वर मेला ने पिछलें कुछ दशकों से विश्वपर्यटन मानचित्र पर अपनी एक अलग पहचान बनाई है।
बेणेश्वर धाम सोम-माही-जाखम (लुप्त) नदियों के मुहाने पर अवस्थित ‘बेणेका टापू’ लोक संत मावजीमहाराज की तपोस्थली है। श्रद्धा,भक्ति एवं संस्कृति के अनूठे संगम इस मेले में राजस्थान के साथ ही पूरे देशविशेष कर पडौसी प्रदेशों गुजरात, मध्यप्रदेश तथा महाराष्ट्र से लाखों श्रद्धालु पहुंचते है। वैसे तो यह मेलाध्वजा चढ़ने के साथ ही प्रारंभ हो जाता है परंतु ग्यारस से माघ पूर्णिमा तक लगने वाले मुख्य मेले में पहुंचने वालेश्रद्धालुओं की संख्या बहुत अधिक होती है। मेले में तीन दिन तक जिला प्रशासन, जनजाति क्षेत्रीय विकासविभाग एवं पर्यटन विभाग के द्वारा संयुक्त तत्वाधान में विभिन्न सांस्कृतिक एवं खेलकूद कार्यक्रमों, प्रदर्शनियोंआदि का आयोजन भी किया जाता है ।
अपनी आदिम संस्कृति की विशिष्टताओं के लिए सुविख्यात इस विश्व विख्यात वागड़ प्रयाग मेले मेंपारम्पारिक परिधानों में सजे और अलहड़ मस्ती में झूमते-गाते जनजाति वांशिदे लोक तरानों से फ़िजा कोउल्लास के रंगो से भर देते हैं। साथ ही कई वर्ग किलोमीटर तक फैले संगम तटों पर उमडने वाले जनसैलाब केसाथ बहुरंगी संस्कृति की झलक बहुत ही आकर्षक और दर्शनीय है।
इन दिनों बेणेश्वर धाम केन्द्र और प्रदेश के नेताओं का भी पसंदीदा तीर्थ बन गया है और प्रधानमंत्री से लेकरअन्य सभी राष्ट्रीय नेताओं की यहाँ विशाल सभाएँ हो चुकी हैं।
बेणेश्वर धाम के समग्र विकास के लिए यहाँ समय-समय पर सत्ता में आने वाली राज्य सरकारों ने विकास केकई कार्य करायें हैं और केंद्र सरकार को अन्य लोक आस्था केंद्रों की भाँति यहाँ भी एक दर्शनीय कोरिडोर बनानेकी परियोजना तैयार कर भेजी गई है।
हाल ही बेणेश्वर धाम पर स्थित राधा कृष्ण मंदिर के जीर्णोद्धार के पश्चात यहाँ मावजी महाराज केउत्तराधिकारी माने जाने वाले महंत अच्युतानंद महाराज के सानिध्य और लाखों श्रद्धालुओं की उपस्थिति में भव्यस्वर्ण शिखर प्रतिष्ठा महोत्सव एवं 1008 कुंडिय विष्णु महायज्ञ हुआ था जिसमें लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरलाऔर अन्य कई नेताओं ने भाग लिया।