भूपेन्द्र गुप्ता
देश की दूसरी महिला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का चुनाव कई तरह से चर्चा में बना हुआ है। पहले तो एन.डी.ए. ने उन्हें एक आदिवासी उम्मीदवार के रूप में बहु प्रचारित करने की रणनीति बनाई जबकि पूर्व में भी पी.ए. संगमा और अल्फ्रेड स्वेल आदिवासी समाज से राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ चुके थे।
सामान्यता राष्ट्रपति का पद उनके व्यक्तित्व, समाज में उनके योगदान और उनकी निर्विवाद सेवाओं को लेकर जाने जाते हैं। जाति के आधार पर कभी भी न तो राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों को प्रचारित किया गया ना ही इस आधार पर उन्हें महिमामंडित करने की कोशिश की गई। वे देश के संविधान के सबसे बड़े रक्षक के रूप में ही चुने जाते हैं। देश तो हर जाति, हर धर्म और हर समाज का है, इसलिये वे भारत के हर नागरिक के पालक के रूप में ही जाने जाते हैं। अगर कोई राजनीतिक दल ऐसे पदों को एक जाति की सीमाओं में बांधने की चेष्टा करते हैं तो क्या इसे राष्ट्रपति पद की गरिमा को क्षति पहुंचाना नहीं माना जाना चाहिए? क्या हमने बाबू राजेंद्र प्रसाद को इसलिए राष्ट्रपति चुना कि वे कायस्थ थे या के. आर. नारायणन दलित, ए.पी.जे. अब्दुल कलाम अल्पसंख्यक या प्रणव मुखर्जी ब्राह्मण थे, शायद नहीं। यह सब अपने अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ व्यक्ति थे। देश के प्रति इनकी सेवाएं उत्कृष्ट थी। इन्हीं उत्कृष्ट सेवाओं के लिए हमें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को भी याद करना चाहिए ना कि उनके जाति वर्ग के कारण। वे अब एक वर्ग की नहीं बल्कि पूरे भारत का गौरव हैं ।
देश में विभिन्न अवसरों पर हुए राष्ट्रपति पद के हर चुनाव किसी न किसी कारण से चर्चित रहे है। 1969 का चुनाव त्रिकोणी होने के कारण सबसे कम मतों से जीतने वाला चुनाव बना इसमें इंदिरा गांधी द्वारा समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में वी.वी. गिरी को 48 प्रतिशत वोट मिले थे और वह अपने निकटतम प्रतिद्वंदी नीलम संजीव रेड्डी से लगभग 90 हजार मतों से ही चुनाव जीत सके थे। यह पहला चुनाव था जब अंतरात्मा की आवाज पर वोट डालने का आव्हान किया गया था और एक श्रमिक नेता वी वी गिरी राष्ट्रपति चुने गये।
देश में सर्वाधिक मतों से चुनाव जीतने वाले राष्ट्रपति के रूप में के.आर. नारायणन का चुनाव सबसे चर्चित रहा है। इसमें नारायणन ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी टी.एन. शेषन को लगभग 9 लाख 5 हजार मतों से परास्त किया था। मत प्रतिशत के हिसाब से बाबू राजेंद्र प्रसाद एक मात्र राष्ट्रपति रहे जिन्हें कुल मतों का 99 प्रतिशत मत प्राप्त हुए, दूसरे नंबर पर एस. राधाकृष्णन जिन्हें 98 प्रतिशत, के.आर. नारायणन जिन्हें 95 प्रतिशत और ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जिन्हें 90 प्रतिशत मत प्राप्त हुए थे। अगर भारतीय जनता पार्टी के द्वारा बनाये गये एन.डी.ए. उम्मीदवारों के मतों की तुलना करें तो श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को अपने ही पार्टी के पूर्व राष्ट्रपति कोविंद के मुकाबले 2 प्रतिशत कम वोट प्राप्त हुए हैं। श्री कोविंद को कुल मतों का 66 प्रतिशत जबकि श्रीमती द्रौपदी मुर्मू को 64 प्रतिशत मत प्राप्त हुए हैं। भारतीय जनता पार्टी ने इस चुनाव को एक और दृष्टि से चर्चित बनाने की चेष्टा की है वह है प्रतिपक्ष की क्रॉस वोटिंग को लेकर । जबकि राष्ट्रपति पद के कई चुनाव में क्रॉस वोटिंग होती रही है। स्वयं भारतीय जनता पार्टी शिवसेना और अन्य दल भी समय-समय पर क्रॉस वोटिंग कर चुके हैं।
श्रीमती पाटिल के चुनाव में शिवसेना ने गठबंधन की सीमाओं से बाहर आकर पाटिल के पक्ष में मतदान किया था। हालांकि इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख नेता भैरोंसिंह शेखावत चुनाव लड़ रहे थे लेकिन इसके बावजूद गुजरात में 5 विधायकों ने प्रतिभा पाटिल के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की थी। इसी तरह 2012 में जब प्रणव मुखर्जी के विरुद्ध पी.ए. संगमा एनडीए के उम्मीदवार थे तब कर्नाटक में 14 विधायकों ने मुखर्जी के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की थी। इसी तरह 2017 में मीरा कुमार ने श्री कोविद के विरुद्ध प्रतिपक्ष यू.पी.ए. के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में भी एन.डी.ए. के उम्मीदवार कोविंद के विरुद्ध गुजरात के एक, गोवा के 3 और राजस्थान के 6 विधायकों ने मीरा कुमार के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की थी। इसी तरह 2002 में ए.पी.जे. अब्दुल कलाम सर्व सम्मत उम्मीदवार के रूप में सामने आये थे किंतु वामपंथी पार्टियों ने क्रांतिकारी और आजाद हिंद फौज की महिला कमांडर लक्ष्मी सहगल को उनके विरुद्ध उतार दिया था। इस चुनाव में मध्यप्रदेश के 11 मत रद्द हुये थे और 2 मत क्रॉस वोट हुये थे। चूंकि राष्ट्रपति पद का चुनाव गुप्त मतदान के माध्यम से किया जाता है एवं इस चुनाव में कोई भी दल व्हिप जारी नहीं करता है इसलिए क्रॉस वोटिंग का मामला पार्टी अनुशासन के दायरे में नहीं आता है। ऐसा इसलिए भी सोचा गया होगा ताकि राष्ट्रपति पद का चुनाव निर्विवाद रहे और उसे पार्टी की सीमाओं में ना बांधा जाए।
1977 का राष्ट्रपति पद का चुनाव भी कम चर्चित नहीं रहा यह चुनाव तत्कालीन राष्ट्रपति जाकिर हुसैन की मृत्यू के कारण बचे हुए कार्यकाल के लिये हुआ था। हालांकि यह पूर्णकालिक चुनाव तो नहीं था किंतु इस चुनाव में 37 उम्मीदवारों ने अपने पर्चे दाखिल किए थे और 36 उम्मीदवारों के नामांकन रद्द हो जाने के कारण नीलम संजीव रेड्डी निर्विरोध राष्ट्रपति के रूप में चुने गए। वे देश के ऐसे एकमात्र राष्ट्रपति थे। इसी तरह बाबू राजेंद्र प्रसाद दो बार राष्ट्रपति पद को सुशोभित करने करने वाले एकमात्र राष्ट्रपति रहे।
महामहिम द्रोपदी मुरमू अब देश की शोभा हैं,उनके संघर्ष और जिजीविशा को याद रखने का यह समय है न कि उनकी जाति को।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)