राष्ट्रपति चुनाव परिणाम ने बताया कि रणनीति बदल राज्यों में विपक्ष मोदी मैजिक काे कर सकता है खत्म

संदीप ठाकुर

विपक्ष यदि अपनी रणनीति बदले ताे वह कम से कम राज्यों में मोदी मैजिक काे
खत्म कर सकता है। हाल में संपन्न राष्ट्रपति चुनाव में पड़े वोट के
विश्लेषण से यह साफ पता चलता है कि राज्यों में मोदी का करिश्मा उतना
पावरफुल नहीं है जितना कि केंद्र में है। राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे यह
भी बता रहे हैं कि राज्यों में बीजेपी अब भी कांग्रेस या दूसरे प्रादेशिक
क्षत्रपों से बहुत आगे नहीं है। वहां मुकाबला लगभग बराबरी का है।
राष्ट्रपति चुनाव परिणाम से एक बात और भी साफ होती है कि पिछले
राष्ट्रपति चुनाव यानी 2017 के मुकाबले 2022 में भाजपा कमजोर हुई है।
उम्मीदवार काे जिताने के लिए बीजेपी द्वारा तमाम तरह के हथकंडे
अपनाने,आदिवासी व महिला उम्मीदवार देने के बाद भी द्रौपदी मुर्मू को
रामनाथ कोविंद के मुकाबले डेढ़ फीसदी वोट कम मिला है और यशवंत सिन्हा को
मीरा कुमार के मुकाबले डेढ़ फीसदी वोट ज्यादा मिला है। बेशक डेढ़ फीसदी
वोट का ही फर्क है लेकिन यह फर्क आया है।

लोकसभा में तो बीजेपी उम्मीदवार को बहुत ज्यादा वोट मिले लेकिन
विधानसभाओं के वोट कम हो गए। इसका क्या मतलब निकाला जाए। साफ है कि
केंद्र के मुकाबले राज्यों में मोदी का जादू कम चल रहा है। इसका फायदा
विपक्ष काे उठाना चाहिए। लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है। विपक्ष बिखरा हुआ है।
इसका भरपूर लाभ बीजेपी काे मिल रहा है। समझने के लिए राष्ट्रपति चुनाव के
नतीजों पर गौर करते हैं। पिछले चुनाव में रामनाथ कोविंद को 65.65 फीसदी
वोट मिले थे और मीरा कुमार को 34.35 फीसदी वोट मिले थे। इतना ही नहीं
पिछले चुनाव के बाद लोकसभा में भाजपा की ताकत बढ़ी है। उसे और उसके
सहयोगियों काे 2014 के मुकाबले 2019 में ज्यादा सीटें मिलीं। इस बार
द्रौपदी मुर्मू को 64 फीसदी और यशवंत सिन्हा को 36 फीसदी वोट मिला है। यह
आलम तब है जब विरोध में होने के बाद भी शिवसेना ने बीजेपी काे वाेट किया।
जनता दल यू की भी इस बार लोकसभा में 16 सांसद थे। उन्होंने भी सपोर्ट
किया। जबकि पिछली बार परिस्थितियां अलग थीं।

वैसे देखा जाए ताे बीजेपी बहुत कम बड़े राज्यों में चुनाव जीत पाई है।
बड़े राज्यों में उत्तर भारत में वह सिर्फ उत्तर प्रदेश और बिहार जीत पाई
और दक्षिण भारत में उसके पास सिर्फ कर्नाटक है। पश्चिम में गुजरात और अभी
जैसे तैसे महाराष्ट्र में उसने सरकार बनाई। मध्य प्रदेश में भी उसने
कांग्रेस की सरकार गिरा कर अपनी सरकार बनाई है लेकिन पिछली बार की तुलना
में उसके विधायकों की संख्या में कमी आई है। उत्तर प्रदेश में भी उसके
विधायकों की संख्या में अच्छी खासी कमी आई। बड़े राज्यों में तमिलनाडु,
आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल, राजस्थान, पंजाब, छत्तीसगढ़, झारखंड,
पश्चिम बंगाल आदि राज्यों में कांग्रेस या प्रादेशिक पार्टियों की सरकार
है। यहीं कारण है कि राज्यों से द्रौपदी मुर्मू को जो वोट मिले उसके
मुकाबले यशवंत सिन्हा के वोट का अंतर बहुत मामूली रहा। विधायकों के कुल
2,284 वोट द्रौपदी मुर्मू को मिले, जबकि 1,669 वोट यशवंत सिन्हा को मिले।
इस हिसाब से वोट का अंतर 615 वोट का रहा। लेकिन मूल्य के लिहाज से यह
अंतर सिर्फ 64 हजार वोट का है। मूल्य के हिसाब से द्रौपदी मुर्मू को दो
लाख 98 हजार 803 वोट मिले, जबकि यशवंत सिन्हा को दो लाख 34 हजार 577 वोट
मिले। इसके मुकाबले सांसदों के वोट में द्रौपदी मुर्मू को यशवंत सिन्हा
से ढाई गुना से अधिक वोट मिला। दोनों सदनों के 748 सांसदों ने वोट डाले
थे, जिसमें से 540 वोट मुर्मू को मिले और 208 वोट सिन्हा को। मूल्य के
हिसाब से देखें तो मुर्मू को तीन लाख 78 हजार वोट मिले और यशवंत सिन्हा
को सिर्फ एक लाख 45 हजार छह सौ वोट मिले। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि लोकसभा
में बीजेपी के पास अकेले तीन सौ से ज्यादा सांसद हैं। कुल मिला कर देखा
जाए ताे बीजेपी का प्रदर्शन शानदार नहीं कहा जा सकता है। विपक्ष काे इस नजरिए से
सोचना चाहिए और मौके का फायदा उठाने की कोशिश करनी चाहिए।