
निर्मल रानी
हमारा भारत वर्ष कृषि प्रधान होने के साथ साथ ‘धर्म प्रधान’ देश भी माना जाता है। यहाँ सुबह चार बजे से ही विभिन्न धर्मों के लोग अपने अपने आराध्य को ख़ुश करने के ‘मिशन ‘ में अपने अपने तरीक़े से जुट जाते हैं। धर्मस्थलों में लगे लाउडस्पीकर ब्रह्म मुहूर्त में ही देशवासियों को अपने अपने आराध्य व अपने देवालयों की ओर आकर्षित करने लगते हैं। इसके अलावा भी देश भर में निकलने वाले विभिन्न धर्मों के धार्मिक जुलूस,शोभा यात्रायें,सत्संग में होने वाले संतों के प्रवचन,धर्म जागरण के नाम पर चलने वाले अनेक अतिवादी मिशन, कांवड़ जैसी यात्रायें महाकुंभ जैसे विश्वस्तरीय आयोजन,तीर्थ स्थलों में इकट्ठी होने वाली भक्तों की अनियंत्रित भीड़ आदि को देख कर तो एक बार यही लगेगा कि हर समय श्रद्धा व भक्ति भाव में डूबे रहने वाले हमारे धर्म प्रधान देश के लोग बेहद धार्मिक,संवेदनशील और मानवता की क़द्र करने वाले लोग होंगे। रोज़ाना जगह जगह लगने वाले लंगर,देश भर में संचालित हो रही अनेकानेक जनसेवी संस्थायें भी इसी बात का एहसास दिलाती हैं।
परन्तु इसी ‘धर्म प्रधान देश’ से जहां मानवता की मिसाल पेश करने वाले अनेकानेक क़िस्से सुनाई देते हैं वहीँ कुछ घटनायें ऐसी भी सामने आती हैं जिन्हें सुनकर ऐसा लगता है गोया इसी भारतीय समाज के ही कुछ लोगों की संवेदनायें बिल्कुल ही मुर्दा हो चुकी हैं। ऐसे लोगों में इंसानियत नाम की चीज़ ही नहीं बची है। दिल दहला देने वाली ऐसी ही एक घटना पिछले दिनों उत्तर प्रदेश राज्य के महराजगंज ज़िले में स्थित नौतनवा क़स्बे में पेश आई। भारत-नेपाल सीमा पर स्थित नौतनवा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के शहर गोरखपुर से लगभग 87 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इस पूरे पूर्वांचल क्षेत्र में धर्म ध्वजा पूरे वेग से लहराती है। इसी नौतनवा नगर पालिका के अंतर्गत राजेंद्र नगर वॉर्ड से एक बड़ा ही हृदयविदारक दृश्य सामने आया। इस ताज़ातरीन घटना ने तो इंसानियत को झकझोर कर रख दिया।
समाचारों के अनुसार रेहड़ी ठेले पर गली गली चूड़ियां बेचकर अपने परिवार का पालन पोषण करने वाले 50 वर्षीय लव कुमार पटवा नामक एक व्यक्ति का लंबी बीमारी के बाद देहांत हो गया। लव कुमार की पत्नी का निधन भी अभी मात्र छह माह पहले ही हुआ था। अब उसके परिवार में उसके दो बेटे 14 वर्षीय राजवीर व 10 वर्षीय देवराज तथा एक छोटी बेटी बचे थे। अब इन्हीं बच्चों पर अपने मृत पिता के अंतिम संस्कार की ज़िम्मेदारी थी। उसका कोई भी रिश्तेदार या पड़ोसी अंतिम संस्कार करने के लिये सामने नहीं आया। बच्चों की दादी आई भी तो रो पीट कर वापस चली गयी। बच्चे अंतिम संस्कार करने या उसके लिये सहायता करने की भीख समाज से मांगते रहे। यहाँ तक कि तीन दिन तक लाश घर में सड़ती रही। ज़रा सोचिये कि क्या गुज़र रही होगी उन मासूम बच्चों पर जब वे अपने बाप की रेहड़ी पर ही अपने बाप की सड़ी हुई लाश रखकर लोगों से अंतिम संस्कार हेतु पैसे मांगते फिर रहे होंगे ? जब यह बच्चे ठेले पर लाश लेकर श्मशान घाट पहुंचे तो बताया गया कि वहां जलाने हेतु लकड़ी नहीं है। और फिर जब यह बेगुनाह मासूम अपने बाप के शव को लेकर क़ब्रिस्तान पहुंचे तो क़ब्रिस्तान वालों ने यह कहकर लाश को दफ़्न करने से मना कर दिया कि यह शव हिन्दू का है ।
आख़िरकार बच्चे लाश को ठेले पर रखकर सड़क पर खड़े होकर रोने बिलखने लगे। कोई दुर्गन्ध से अपनी नाक बंद कर गुज़र जाता तो कोई उन बदनसीब बच्चों की फ़ोटो खींचता या वीडिओ बनाता परन्तु मदद करने के लिये ‘धर्म जागृत समाज ‘ का कोई भी व्यक्ति सामने न आता। हद तो यह है कि ठेले पर शव रखा देखने व मृतक लव कुमार के स्थानीय व्यक्ति होने के बावजूद कुछ लोग यह कहकर आगे बढ़ जाते कि ‘यह भीख मांगने का नया ट्रेंड है’ । इसी दौरान यह मायूस बच्चे जब अपने बाप की लाश को ठेले पर ढकेलते हुये नदी की ओर रोते बिलखते जा रहे थे तभी राहुल नगर वार्ड के निवासी रशीद क़ुरैशी की नज़र उन बच्चों व उनके साथ दुर्गन्ध मारती लाश पर पड़ी। बच्चों ने रोते बिलखते अपनी सारी पीड़ा रशीद से सांझी की। रशीद ने तुरंत अपने भाई व उसी राहुल नगर (वार्ड 17) के पार्षद वारिस क़ुरैशी को फ़ोन पर पूरी घटने की जानकारी दी। उसके बाद दोनों क़ुरैशी बंधुओं ने सर्वप्रथम उन रोते बच्चों को ढारस बंधाई और उन्हें संभाला। उसके बाद अंतिम संस्कार हेतु लकड़ी व आवश्यक सामग्री का प्रबंध किया। फिर समाज के कुछ लोगों को साथ लेकर शमशान घाट जाकर हिन्दू रीति रिवाज के साथ मृतक का अंतिम संस्कार कराया। आज उस इलाक़े के लोग मानवता की रक्षा करने वाले क़ुरैशी भाइयों की इंसानियत को जहाँ सलाम कर रहे हैं, वहीं उनके रिश्तेदारों और पड़ोसियों की बेरुख़ी तथा नगर पालिका की लापरवाही पर भी घोर ग़ुस्सा जता रहे हैं। साथ ही उस इलाक़े के ‘हिन्दू जागरण अभियान’ में जुटे लोगों को भी कटघरे में खड़ा कर रहे हैं।
पिछले दिनों ऐसा ही एक चित्र जिसे पंजाब की बाढ़ से संबंधित बताया जा रहा है,सोशल मीडिया पर वायरल हुआ। इस चित्र में एक मासूम बच्चा बाढ़ के पानी में अपनी मां की तैरती लाश को खींच रहा है। शायद इस उम्मीद से कि उसकी मां मरी नहीं है। इस मार्मिक दृश्य को देखने वाले लोग आगे बढ़कर बच्चे को गोद उठाने व उसकी मां की लाश को पानी से बाहर निकालने में मदद करने के बजाय मोबाईल से इस दृश्य का वीडीओ बनाना ज़्यादा ज़रूरी समझ रहे हैं। क्या इस तरह की घटनाएं इस बात का सुबूत नहीं कि हमारे धर्म प्रधान देश में होने वाले इस तरह के हादसों के बाद केवल किसी इंसान की ही मौत नहीं होती बल्कि यह मानवता की मौत भी है। इससे यह भी पता चलता है कि धार्मिकता का ढोंग करने वाले ऐसे लोगों की संवेदनायें पूरे तरह मृत हो चुकी हैं।