सुरेश हिन्दुस्थानी
वर्तमान में देश में दो प्रकार के स्वर वातावरण में गूंज रहे हैं। एक तरफ राष्ट्रीय प्रवाह को आत्मसात करने वाला वर्ग है तो दूसरी तरफ इस धारा के विरोध में विचार रखने वाला वर्ग भी है। इस वर्ग का हमेशा यही प्रयास रहता है कि राष्ट्रीय भाव को प्रदर्शित करने वाली किसी भी बात का क्या काट हो कसती है। अभी देश में ‘हर घर तिरंगाÓ चलाया गया। कई राजनीतिक दलों ने अपने स्वभाव के अनुसार इस अभियान पर सवाल खड़े किए। जबकि यह एक राष्ट्रीय अभियान था, जो भारत सरकार ने चलाया था, भारतीय जनता पार्टी ने नहीं। लेकिन विपक्ष के राजनीतिक दलों ने इस अभियान को ऐसे प्रचारित किया कि जैसे यह मात्र भाजपा का ही अभियान हो। यहां मुख्य बात यह है कि किसी बात का राजनीतिक विरोध हो सकता है, लेकिन राष्ट्रीयता का विरोध कतई नहीं होना चाहिए। सबसे अच्छी बात यह है राष्ट्रीय अभियान हर घर तिरंगा में भारत की जनता का अच्छा समर्थन मिला। यही समर्थन विपक्ष के सभी दलों की ओर से भी मिलता तो और भी अच्छा रहता, लेकिन आज के राजनीतिक वातावरण को देखकर ऐसा लगता है कि मतभेद की राजनीति मनभेद तक पहुंच चुकी है। वास्तव में राष्ट्रीयता के नाम पर मन में किसी भी प्रकार का भेद नहीं होना चाहिए। अगर सरकार की कोई बात अच्छी नहीं लगती तो उसका विरोध रचनात्मक तरीके से करना विपक्ष का अधिकार है, लेकिन उसके बाद भी राष्ट्रीय मामलों पर सभी की एक राय होना चाहिए, क्योंकि इससे विदेशों में भारत की एकता की मजबूत छवि सामने आती है।
अभी हाल ही में लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जो संबोधन दिया, उसे एक प्रकार से भारत की जनता की आवाज निरूपित किया जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। क्योंकि भारत की आम जनता भी यही चाहती है कि देश से भ्रष्टाचार का समाप्त होना बहुत ही आवश्यक है। हम जानते हैं कि भ्रष्टाचार एक ऐसी बुराई है, जिसने देश का बहुत बड़ा नुकसान किया है। प्रधानमंत्री ने किसी का नाम न लेते हुए यह संदेश दिया कि देश से भ्रष्टाचार, परिवारवाद और अपराध पूरी तरह से समाप्त होना चाहिए। इसको समाप्त करने के लिए प्रधानमंत्री ने देश के सम्पूर्ण समाज से आहवान किया कि आइए, हम सब मिलकर इस बुराई को समाप्त करने की पहल करें। देश भी स्वाभाविक रूप से यही चाहता है कि यह सब समाप्त होना चाहिए। क्योंकि भ्रष्टाचार और परिवारवाद की राजनीति ने देश के समाज का बहुत बड़ा नुकसान किया है। आज देश का हर नेता अपने परिवार को राजनीति में बढ़ाने में लगा है। इस मामले में कांगे्रस पर तो हमेशा ही सवाल उठते रहे हैं, लेकिन और भी कई राजनीतिक दल हैं, जो मात्र इसी प्रकार की राजनीति करते हुए लोकतांत्रिक मूल्यों पर आघात कर रहे हैं। बिहार की राजनीति का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव पर भ्रष्टाचार का आरोप सिद्ध हो चुका है, लेकिन वे स्वयं और उनके परिवार के किसी भी सदस्य के चेहरे पर इस अपराध का भाव दिखाई नहीं देता। कहा जाता है कि लालू प्रसाद यादव के पास प्रारंभ में कुछ भी नहीं था, उसके परिवार के हर सदस्य के पास आज करोड़ों की संपत्ति है। इतना ही नहीं उनका परिवार आज भी बिहार की सक्रिय राजनीति का हिस्सा है और अब तो बिहार की सरकार में भी शामिल हो चुका है।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की दृष्टि में जो परिवार बिहार में जगलराज लाने का दोषी था, आज राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते उसी परिवार के साथ राजनीति कर रहे हैं। यहां गौर करने वाली बात यह है कि भाजपा के साथ सरकार चलाकर जिस नीतीश कुमार ने सुशासन बाबू की छवि निर्मित की थी, आज वह नीतीश कुमार कुशासन के रास्ते पर क्यों चल रहे हैं। हालांकि बिहार के बारे में राजनीतिक रूप से बहुत कुछ लिखा जा सकता है, लेकिन यह मूल विषय से हटकर है।
अब हम फिर से प्रधानमंत्री द्वारा उठाए गए मुद्दों पर ही आते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भ्रष्टाचार समाप्त करने की बात विपक्ष खासकर कांगे्रस को बहुत बुरी लगी है। यहां प्रश्न इस बात का है कि जब प्रधानमंत्री यह बात सबके बारे में कह रहे हैं तो केवल कांगे्रस को अपने दिल पर नहीं लेना चाहिए। प्रधानमंत्री ने किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन कांगे्रस के नेताओं ने अपनी भड़ास निकालते समय भाजपा को आड़े हाथ लेने का प्रयास किया। समाचार चैनलों पर की गई बहस के दौरान किसी भी कांगे्रस नेता ने इस बात का समर्थन नहीं किया कि भ्रष्टाचार समाप्त होना चाहिए, बल्कि उन्होंने कुतर्क करके अपनी बात रखी। आज कांगे्रस की स्थिति ऐसी होती जा रही है कि उन्हें न तो अपने दल के नेताओं में किसी प्रकार की बुराई नजर आती है और न ही वह दूसरों से अपने बारे में बुराई सुनना पसंद करते हैं। अगर कोई बुराई करने का प्रयास करता है तो उसे ही बुरा बताने की राजनीति प्रारंभ हो जाती है। देश हित के लिए इस प्रकार की राजनीति करना बहुत ही खतरनाक है। दूसरी बात यह है कि अगर सरकार किसी बुराई को समाप्त करने का प्रण करती है तो इसमें सभी की भलाई है, क्योंकि देश का मतलब न तो भाजपा है और न ही कांगे्रस। देश का मतलब सब एक है। सबका साथ सबका विकास है। राष्ट्र को मजबूत बनाने के लिए 135 करोड़ जनता का समर्थन आवश्यक है। जिसमें देश के सारे राजनीतिक दल भी आते हैं। इसलिए राष्ट्रीयता को केवल भारत के दृष्टिकोण से देखने की आवश्यकता है। इसमें राजनीति की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए।