
रविवार दिल्ली नेटवर्क
नई दिल्ली : वर्तमान समय में विश्व के समक्ष सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि क्या वैश्विक मानव समाज हथियारों पर केंद्रित व्यवस्था पर ही विश्वास करता रहेगा या फिर विश्वास, न्याय एवं मानवता पर आधारित एक संतुलित नई वैश्विक व्यवस्था की ओर कदम बढ़ाएगा ? विश्व में रहने वाली 8.1 अरब जनसंख्या जिस दिन विश्वास, न्याय और मानवता पर केंद्रित व्यवस्था से जुड़ जाएगी, उसी समय हथियारों पर केंद्रित शक्तियां अप्रासंगिक हो जाएंगी I
विश्वास, न्याय और मानवता आधारित नई वैश्विक व्यवस्था की भूमिका पर जोर देते हुए श्री ऑल इंडिया श्वेतांबर स्थानकवासी जैन कॉन्फ्रेंस के राष्ट्रीय अध्यक्ष अतुल जैन ने कहा कि वैश्विक स्तर पर भारत की भूमिका और महत्व तेजी से बढ़ता जा रहा है I यह समय ऐसा है, जब केवल भारत के लिए नहीं, बल्कि पूरे विश्व में मानवता के भविष्य को नई दिशा प्रदान की जा सकती है I इसका आरंभ भारत से होना चाहिए और नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करना चाहिए I विश्वास, न्याय और मानवता पर केंद्रित व्यवस्था का नेतृत्व करने के लिए भारत पूर्ण रूप से सक्षम है I
श्री जैन ने कहा कि नई वैश्विक व्यवस्था की आवश्यकता इसलिए भी है क्योंकि विश्व ऐसे मोड़ पर पहुंच गया है, जहां प्रत्येक देश अपनी सुरक्षा के लिए हथियारों पर खरबों डॉलर खर्च कर रहा है I क्या हथियारों पर हो रहा भारी-भरकम खर्च वास्तव में मानवता को सुरक्षित बना रहा है या विनाश की ओर ले जा रहा है ? वास्तव में मानव समाज की असली सुरक्षा शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यांवरण संरक्षण, सकारात्मक दिशा में होने वाला विकास और आपसी विश्वास से ही संभव हो सकती है।
उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में अंतरराष्ट्रीय संगठन अपनी भूमिका निभाने में विफल सिद्ध हो रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र जैसा संगठन मात्र कुछ बड़ी शक्तियों के हितों का केंद्र बन गया है, जहां उनके वीटो पावर ने वैश्विक स्तर पर समानता और न्याय की भावना को कमजोर किया है I कई अंतर्राष्ट्रीय संगठन केवल कुछ देशों के सैन्य गठबंधन तक सीमित हैं, जो कहीं से भी सम्पूर्ण मानवता का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं I ऐसे भी कई संगठन हैं जो धार्मिक, आर्थिक या क्षेत्रीय हितों तक ही सीमित हैं I यही कारण है कि वैश्विक स्तर पर मानव समाज के मध्य असमानता एवं विभाजन बढ़ता जा रहा है I
उन्होंने कहा कि अब एक ऐसी नईं वैश्विक व्यवस्था को जन्म देने का समय आ गया है, जहां प्रत्येक देश की भागीदारी उसकी जनसंख्या, संसाधनों और योगदान के आधार पर निर्धारित होनी चाहिए I नई वैश्विक व्यवस्था में स्थाई वीटो, क्षेत्रवाद सहित अन्य सभी असमानताओं का स्थान नहीं होना चाहिए, बल्कि मानव विकास से जुड़ें सभी अधिकारों का वितरण समानुपात में होना चाहिए I साथ ही नई व्यवस्था का तंत्र पारदर्शी एवं न्यायपूर्ण होना चाहिए, ताकि किसी भी शक्ति का वर्चस्व स्थापित न हो सके। नई वैश्विक व्यवस्था में पारर्दशिता, जिम्मेदारी और सबकी सुनिश्चित भागीदारी होनी चाहिए, जिससे नई व्यवस्था का सम्पूर्ण तंत्र स्थाई और विश्वसनीय रूप से कार्य करने में समर्थ हो सके I इससे विश्व में मानव समाज की सुरक्षा और प्रगति का नया मार्ग प्रशस्त हो सकेगा I
नई वैश्विक व्यवस्था में भारत की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए श्री जैन ने कहा कि भारत ने हमेशा विश्व को शांति और सहयोग का मार्ग दिखाया है। आज भारत की विकास यात्रा की सराहना सभी देशों में हो रही है, जो खुलेपन और निष्पक्षता का प्रतीक है। भारत का दर्शन वसुधैव कुटुम्बकम पर केंद्रित है, जो एक सार्वभौमिक एकता एवं भाईचारे की भावना को दर्शाता है I यह बताता है कि संपूर्ण मानव एक ही परिवार का सदस्य है I भारत का यह दर्शन जीवन की वास्तविक दृष्टि है, जो सभी देशों को जोड़ने का कार्य कर सकता है I इसलिए नई वैश्विक व्यवस्था की पहल भारत की ओर से अतिशीघ्र होनी चाहिए I