
अशोक भाटिया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पांच देशों की अपनी आठ दिवसीय यात्रा पर गए हुए हैं। इस यात्रा के दौरान – जो पिछले दस वर्षों में उनकी सबसे लंबी विदेश यात्रा है – प्रधानमंत्री ब्राजील में महत्वपूर्ण ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे और वैश्विक दक्षिण के कई प्रमुख देशों के साथ भारत के संबंधों को विस्तार देंगे।प्रधानमंत्री की यात्रा दो महाद्वीपों को कवर करेगी और इसमें घाना, त्रिनिदाद और टोबैगो, अर्जेंटीना, ब्राजील और नामीबिया की यात्राएं शामिल होंगी।प्रधानमंत्री मोदी की पिछली आठ दिवसीय यात्रा जुलाई 2015 में छह देशों की थी, जब उन्होंने रूस और पांच मध्य एशियाई देशों का दौरा किया था । अधिकारियों ने कहा कि यह दौरा अन्य मुद्दों के अलावा रक्षा, दुर्लभ पृथ्वी खनिजों और आतंकवाद विरोधी उपायों पर सहयोग पर केंद्रित होगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी यात्रा की शुरुआत घाना से की हैं। यह उनकी घाना की पहली द्विपक्षीय यात्रा है। इस दौरान प्रधानमंत्री घाना के राष्ट्रपति के साथ द्विपक्षीय बातचीत कर । दोनों नेता मजबूत द्विपक्षीय साझेदारी की समीक्षा भी इस यात्रा में शामिल हैं । वे आर्थिक, ऊर्जा, रक्षा सहयोग और विकास सहयोग को बढ़ाने के तरीकों पर भी बात करेंगे। घाना पश्चिमी अफ्रीका की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। भारत और घाना के बीच व्यापार और निवेश लगातार बढ़ रहा है। घाना से भारत में होने वाले आयात में 70% से ज्यादा सोना होता है। घाना के लिए भारत सबसे बड़ा निर्यातक देश है।
घाना के बाद प्रधानमंत्री मोदी त्रिनिदाद और टोबैगो जाएंगे। वे तीन और चार जुलाई को यहां रहेंगे, जहां प्रधानमंत्री मोदी राष्ट्रपति क्रिस्टीन कार्ला कंगालू और प्रधानमंत्री कमला प्रसाद बिसेसर से मुलाकात करेंगे। प्रधानमंत्री वहां की संसद के संयुक्त सत्र को भी संबोधित करेंगे।
त्रिनिदाद एंड टोबैगो की संसद में स्पीकर की जिस कुर्सी पर कार्यवाही चलाई जाती है, वह भारत ने 9 फरवरी 1968 को इस देश को तोहफे में दी थी। लकड़ी की बनी ये कुर्सी केवल एक फर्नीचर का टुकड़ा नहीं, बल्कि भारत-त्रिनिदाद की दोस्ती और लोकतांत्रिक आदर्शों की साझी विरासत का प्रतीक है। आज, करीब 57 साल बाद, जब पीएम मोदी उस संसद में कदम रखेंगे, तो उसी ऐतिहासिक कुर्सी के सामने खड़े होकर वह अपना संबोधन देंगे। यह दौरा इसलिए भी अहम है क्योंकि 25 साल बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री की त्रिनिदाद एंड टोबैगो की यह पहली द्विपक्षीय यात्रा होगी। इससे पहले 1999 में किसी पीएम ने इस देश का दौरा किया था। पीएम मोदी को इस यात्रा का न्योता त्रिनिदाद एंड टोबैगो की प्रधानमंत्री कमला प्रसाद बिसेसर ने दिया है। गौरतलब है कि इस देश की राजनीति में भारतीय मूल के लोग काफी प्रभावशाली हैं और कुल आबादी का लगभग 42% हिस्सा भारतीय मूल के लोगों का है।
कुर्सी को भारत में विशिष्ट भारतीय शैली और नक्काशी के साथ बनाया गया था। इसे तैयार करने में करीब छह साल का वक्त लग गया था क्योंकि इसे तैयार कर रहे दो कारीगरों में से एक बीमार हो गया था। इसका असर निर्माण प्रक्रिया पर पड़ा और आखिरकार यह 1968 में त्रिनिदाद को सौंप दी गई। इस कार्यक्रम का आयोजन संसद में दोपहर 1:37 बजे हुआ, और जब इसे सौंपा गया तो संसद में जोरदार तालियों के साथ इसका स्वागत हुआ। उस समय संसद के स्पीकर थे अर्नोल्ड थॉमसोस और भारत की ओर से इसे सौंपा था तत्कालीन भारतीय उच्चायुक्त मुनि लाल ने।
भारत और त्रिनिदाद एंड टोबैगो के बीच संबंध सिर्फ कूटनीतिक नहीं हैं, बल्कि इतिहास, संस्कृति और खून-पसीने की साझी विरासत से भी जुड़े हैं। 30 मई 1845 को पहली बार 225 भारतीय गिरमिटिया मजदूरों को लेकर एक जहाज त्रिनिदाद के तट पर पहुंचा था। इसके बाद भी यह सिलसिला जारी रहा और आज भारतीय मूल के लोग इस देश की राजनीति, समाज और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बन चुके हैं।दिलचस्प बात यह है कि भारत ने सिर्फ त्रिनिदाद को ही नहीं, बल्कि सूरीनाम की संसद को भी ऐसी ही एक स्पीकर कुर्सी तोहफे में दी थी। यह परंपरा दर्शाती है कि भारत सिर्फ सहयोग ही नहीं करता, बल्कि संविधान और लोकतंत्र जैसे मूल्यों को साझा कर उन्हें मजबूती भी देता है।
ज्ञात हो कि घाना के राष्ट्रपति क्रिस्टीन कार्ला कंगालू और प्रधानमंत्री कमला प्रसाद बिसेसर ये दोनों ही नेता भारतीय मूल की हैं। 1999 के बाद यह किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली द्विपक्षीय यात्रा भी है। प्रधानमंत्री ने नवंबर 2024 में गुयाना का दौरा किया था। आठ महीनों में कैरेबियाई क्षेत्र में उनकी यह दूसरी यात्रा है। इससे पता चलता है कि भारत इस क्षेत्र को कितना महत्व देता है। इस यात्रा में त्रिनिदाद और टोबैगो में भारतीय आप्रवासियों के आगमन के 180 साल पूरे होने का जश्न मनाया जाएगा। भारत और त्रिनिदाद और टोबैगो के बीच आर्थिक संबंध बहुत ही ज्यादा मजबूत हुए हैं। वित्त वर्ष 2024-25 में दोनों देशों के बीच कुल व्यापार 341।61 मिलियन डॉलर तक पहुंच चुका है।
अपनी यात्रा के तीसरे चरण में 4-5 जुलाई को प्रधानमंत्री अर्जेंटीना की यात्रा पर रहेंगे। वे राष्ट्रपति जेवियर मिलेई के साथ द्विपक्षीय वार्ता करेंगे। दोनों नेता रक्षा, कृषि, खनन, तेल और गैस, नवीकरणीय ऊर्जा, व्यापार और निवेश जैसे क्षेत्रों में भारत-अर्जेंटीना की साझेदारी को और मजबूत करने के तरीकों पर चर्चा करेंगे। अर्जेंटीना के राष्ट्रपति मिलेई को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का ‘पसंदीदा राष्ट्रपति’ माना जाता है। 57 वर्षों में यह किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली अर्जेंटीना यात्रा होगी। दोनों नेता पहले नवंबर 2024 में रियो डी जनेरियो में जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान मिले थे। भारत और अर्जेंटीना ने खनिज संसाधन क्षेत्र में द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाया है। खासकर लिथियम के क्षेत्र में। लिथियम भारत की हरित ऊर्जा के लिए बहुत जरूरी है। अर्जेंटीना, भारत को सोयाबीन और सूरजमुखी तेल का एक बड़ा आपूर्तिकर्ता भी है। 2024 में, भारत अर्जेंटीना का पांचवां सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार और निर्यात सहयोगी था।
अपनी यात्रा के चौथे चरण में प्रधानमंत्री 5 से 8 जुलाई तक ब्राजील जाएंगे। यहां वे 17वें BRICS शिखर सम्मेलन 2025 में भाग लेंगे। इसके बाद वे ब्राजील की राजकीय यात्रा पर रहेंगे। प्रधानमंत्री की यह चौथी ब्राजील की यात्रा होगी। प्रधानमंत्री मोदी पांच से 8 जुलाई के बीच ब्रिक्स के शिखर सम्मेलन के लिए ब्राजील में रहेंगे। यात्रा के आखिरी चरण में वो नामीबिया जाएंगे। जब भारत 22 साल बाद दुनिया के सबसे ताकतवर देश के रूप में खुद को देख रहा हो, उस वक्त ये यात्रा काफी अहम हो जाती है। ब्राजील के सबसे बड़े शहर रियो डी जेनेरियो में 17वां ब्रिक्स शिखर सम्मेलन पांच जुलाई को शुरु होने जा रहा है। ये सम्मेलन इसलिए काफी अहम है कि दुनिया की कुल आबादी के 49।5 फीसदी हिस्से का ब्रिक्स प्रतिनिधित्व करता है। ग्लोबल जीडीपी का करीब 40 फीसदी हिस्सा ब्रिक्स से आता है। विश्व व्यापार का 26 फीसदी प्रतिनिधित्व ब्रिक्स करता है।
भारत के लिए इसलिए अहम है कि अमेरिका से टैरिफ वॉर के बीच भारत की बढ़ती ताकत को दिखाएगा। उसी तरह आतंकवाद के खिलाफ एक मजबूत प्रस्ताव पास हो सकता है। साथ भी भारत के लिए ब्रिक्स का ये सम्मेलन इसलिए अहम है कि अगले साल ब्रिक्स की मेजबानी भारत करेगा। दक्षिण अफ्रीका के ब्रिक्स सम्मेलन में पिछले साल प्रधानमंत्री मोदी ने साफ बताया था कि कैसे अत्याधुनिक तकनीक से ब्रिक्स के देश अपने लोगों की जिंदगी को बेहतर बना सकते हैं।
अब ब्रिक्स सम्मेलन के जरिए जहां भारत वैश्विक कूटनीति और अर्थनीति में एक अहम भूमिका निभा रहा है, वही चार अन्य देशों में जाकर प्रधानमंत्री मोदी उन देशों से बेहतर संबंधों को खास बना रहे हैं। घाना के साथ भारत का दोतरफा कारोबार 24 हजार करोड़ रुपये का है जिनमें भारत ने घाना में 16 हजार करोड़ रुपयों का निवेश कर रखा है। अर्जेंटीना में भारत के साथ ऊर्जा-रक्षा, तेल और गैस समेत तमाम क्षेत्रों में समझौतों की उम्मीद है। वही त्रिनिनाद और टोबैगो से भारत के पुराने रिश्तों का रिन्यूअल होने जा रहा है। आखिर में नामीबिया में पीएम मोदी भारत के यूपीआई को लागू करने के समझौते को आगे बढ़ा सकते हैं। वहां पीएम मोदी संसद को संबोधित करेंगे और दोनों देश खनिज संपदा और यूनियम के व्यापार और निवेश पर भी चर्चा करेंगे। नामिबिया के साथ रेयर अर्थ मेटल्स पर डील हो गई तो भारत के लिए चीन पर निर्भरता खत्म हो सकती है।
अपनी यात्रा के अंतिम चरण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 9 जुलाई को नामीबिया जाएंगे। यह प्रधानमंत्री मोदी की पहली नामीबिया यात्रा होगी। भारत से नामीबिया की यह तीसरी प्रधानमंत्री स्तरीय यात्रा है। अपनी यात्रा के दौरान, प्रधानमंत्री राष्ट्रपति न्देमुपेलिला नेटुम्बो नंदी-नदैतवाह के साथ द्विपक्षीय वार्ता करेंगे। वे नामीबिया की संसद को भी संबोधित करेंगे। हाल के वर्षों में भारत और नामीबिया के बीच व्यापार बढ़ा है। 2000 में यह 3 मिलियन डॉलर से भी कम था जो अब लगभग 600 मिलियन डॉलर हो गया है। भारतीय कंपनियों ने नामीबिया में खनन, विनिर्माण, हीरा प्रसंस्करण और सेवा क्षेत्रों में निवेश किया है। सितंबर 2022 में नामीबिया से भारत आए आठ चीतों को प्रधानमंत्री मोदी ने मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में छोड़ा था। यह दुनिया में किसी बड़े मांसाहारी प्रजाति का पहला अंतरमहाद्वीपीय स्थानांतरण था। इन दिनों रेयर अर्थ मेटल पर चीन की पाबंदियों के चलते पूरी दुनिया परेशान है। ऐसे में प्रधानमंत्री की यह नामीबिया यात्रा भारत के इस संकट को दूर करने में मील का पत्थर साबित हो सकता है।
अशोक भाटिया, वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार ,लेखक, समीक्षक एवं टिप्पणीकार