प्रो. स्वामीनाथन को कभी नहीं भूलेंगा भारत

अरविंद कुमार सिंह

भारत में हरित क्रांति के माध्यम से खाद्य आत्मनिर्भरता मे अपना महान योगदान देने वाले कृषि वैज्ञानिक प्रो. एमएस स्वामीनाथन का निधन 28 सितंबर को 98 साल की उम्र में चेन्नई में हो गया। पर जाते जाते उन्होंने कृषि क्षेत्र की कुछ गंभीर चुनौतियों को फिर से चर्चा में ला दिया है। उसमें प्रमुख विषय है किसानों के हक में न्यूनतम समर्थन मूल्य को राष्ट्रीय कृषि आयोग की सिफारिशों के अनुरूप लागू करना।

तमिलनाडु के कुंभकोणम में 7 अगस्त 1925 को एक स्वाधीनता सेनानी परिवार में उनका जन्में स्वामीनाथनजी राजनीतिक तौर पर गांधीजी के विचारों से प्रभावित थे। 1943 के बंगाल के भयावह अकाल में हुई 20 लाख मौतों ने उनके जीवन की राह बदली और उन्होंने अपनी सारी ऊर्जा कृषि क्षेत्र में लगाने का फैसला कर लिया। 1947 में दिल्ली में पूसा इंस्टीट्यूट में उच्चतम शिक्षा के लिए पहुंचे। इसी दौरान उनका आईपीएस में चयन हो गया, लेकिन उन्होंने गांव-किसानों के लिए काम करने का फैसला किया। बाद में कई साल विदेश रहे, बहुत सी डिग्रियां लीं, अच्छी नौकरी मिली पर अचानक 1954 में सदा के लिए अपने देश वापस आ गए और आखिरी सांस तक इसी मिट्टी के लिए काम किया। वे उन लोगों में खास थे जिसके कारण आज हम अन्न मामलों में न केवल आत्मनिर्भर बने बल्कि दाता की भूमिका में हैं।

वे भारत में हरित क्रांति के नायकों में प्रमुख थे। देश में गेहूं क्रांति को जमीन पर उतारने में उनका अहम योगदान रहा, जिस कारण गेहूं उत्पादन चार गुणा बढा। स्वामीनाथन ने ही उस दौरान महान वैज्ञानिक डॉ. नॉर्मन बोरलॉग को भारत आमंत्रित किया और गेहूं की अधिक उपज देने वाली किस्मों को विकसित करने में उनके साथ काम किया। बाद में चावल उत्पादन में भी उनका अहम योगदान रहा। इसने उनको दुनिया भर में ख्याति दिलायी। 1971 में ही उनको मेगसेसे पुरस्कार और बाद में कई अंतराष्ट्रीय पुरस्कार मिले। पद्मश्री, पद्मभूषण और पद्मविभूषण तीनों हासिल करने वाले वे चंद लोगों में है। दुनिया भर के विश्वविद्यालयों से उऩको डॉक्टरेट की 80 मानद उपाधियां मिली।

उन्होंने जो अहम सिफारिशें कीं, उनको तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, कृषि मंत्री सी सुब्रमण्यम और बाबू जगजीवन राम जैसे नायकों ने स्वीकार किया।

कृषि क्षेत्र में कामकाज करने के नाते मैं 90 के दशक में उनके संपर्क में आया और बहुत सी मुलाकातें रहीं। पर 2007 से 2013 के दौरान जब वे राज्य सभा में मनोनीत सदस्य बने तो काफी मिलना होता था। उन्होने हमेशा कृषि विषयों पर राज्य सभा में बेहतरीन बातें रखीं और जलवायु परिवर्तन तथा अन्य चुनौतियों से आगाह करते रहे।

2004 में भारत सरकार ने उनकी अध्यक्षता में राष्ट्रीय कृषक आयोग गठित किया, जिसकी 5 रिपोर्टें उनकी श्रम साधना और ज्ञान को दर्शाती हैं। इस आयोग ने कहा था कि एमएसपी को बढ़ते निवेश लागतों के साथ बनाए रखें और अनाज खरीद पूरे देश से हो, पीडीएस के लिए दालें तथा मोटे अनाज भी खरीदें जाए। साथ ही एमएसपी उत्पादन लागत से 50 फीसदी अधिक हो उनकी यह सिफारिश आधी अधूरी ही स्वीकारी गयी है। कई दूसरी सिफारिशों को भी जमीन पर उतरने का इंतजार है।

19 नवंबर 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब किसान आंदोलन के कारण तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की तो एमएसपी पर कमेटी बनाने के साथ उसे अमलीजामा पहनाने का आश्वासन दिया था। कमेटी तो बन गयी पर अभी रिपोर्ट का इंतजार है।