चुनाव हरियाणा में थे लेकिन सांख दांव पर लगी थी राजस्थान के नेताओं की …
गोपेन्द्र नाथ भट्ट
हरियाणा विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को मिली अप्रत्याशित जीत का राजनीतिक पंडित अपने अपने ढंग से विश्लेषण कर रहे हैं । कोई इस जीत को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के जादू का करिश्मा बता रहा है तो कोई इसे भाजपा के चाणक्य अमित शाह और हरियाणा के प्रभारी केंद्रीय मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान तथा पूर्व मुख्य मंत्री मनोहर लाल खट्टर की नॉन जाट रणनीति को इसका श्रेय दे रहा हैं। तो कोई इसे मुख्यमंत्री नायब के नायक बनने की कहानी गढ़ रहा हैं। कोई इसे अरविंद केजरीवाल की इंडिया गठबंधन के साथ की गई बेववफाई को इसका कारण मान रहा है। चुनाव हरियाणा में हुए,लेकिन पड़ोसी राजस्थान के नेताओं पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस ने सीनियर ऑब्जर्वर अशोक गहलोत तथा राजस्थान भाजपा के पूर्व अध्यक्ष तथा भाजपा के हरियाणा प्रभारी डॉ सतीश पूनिया की साख यहां दांव पर लगी हुई थी लेकिन इस बार डॉ सतीश पूनिया अपनी सांख बचाने में सफल रहें जोकि पिछले लोकसभा चुनाव में अपना कोई विशेष करिश्मा नही दिखा पाएं थे। हरियाणा विधान सभा में भाजपा को मिली इस जीत के बाद लगता है सतीश पूनिया को पार्टी नेतृत्व कोई न कोई राजनीतिक पुरस्कार से नवाजेगी ।
इधर कांग्रेस हरियाणा में अपनी हार के सदमे से उबर नहीं पा रही हैं। हरियाणा में अपनी जीत को लेकर अति आत्म विश्वास से लबरेज कांग्रेस मतगणना के शुरू के दो घंटे तक जश्न मानने के मूड में थी लेकिन बाद में भारतीय जनता पार्टी ने जो बाजी और मतगणना की तस्वीर ऐसी बदली कि फिर से कांग्रेस की वापसी मतगणना के अंत तक संभव नहीं दिखी। बीजेपी और कांग्रेस को बराबर के ही वोट प्रतिशत मिले लेकिन, सीटों के मामले में दोनों में 10 से ऊपर का अंतर रहा। कांग्रेस ने हरियाणा चुनाव की इस हार को पचा नहीं पाई है और इसके लिए सुप्रीम कोर्ट जाने तक की तैयारी कर ली है। वहीं रेस से बाहर मानी जा रही भारतीय जनता पार्टी ने जो बाजी पलटी, उससे तमाम राजनीतिक पंडित भी हैरान हैं।
बुधवार को कांग्रेस के बड़े नेता केसी वेणुगोपाल, अशोक गहलोत, अजय माकन, जयराम रमेश, भूपिंदर सिंह हुड्डा और पार्टी के अन्य नेताओं ने चुनाव आयोग के अधिकारियों से मुलाकात की। कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि हमने आज चुनाव आयोग को अवगत कराया हैं। करीब 20 शिकायते जो हमारे पास आई थी उसमें से 7 लिखित शिकायतों में ऐसी मशीनें थीं जो वोटिंग के दिन 99 प्रतिशत दिखा रही थी और अन्य सामान्य मशीनें 60-70 प्रतिशत दिखा रही थी। इससे हमने चुनाव आयोग को अवगत कराया है। हमने मांग की कि जांच पूरी होने तक उन मशीनों को सील कर सुरक्षित रखा जाए। हमने चुनाव आयोग को यह भी कहा कि अगले 48 घंटों में हम बाकी शिकायतें भी उनके सामने रखेंगे। चुनाव आयोग ने हमें आश्वासन दिया है कि वह इस पर जवाब देंगे।
चुनावी सर्वेक्षणों के पूर्वानुमानों के उलट, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने हरियाणा में अपनी सत्ता बचा ली है। उसने अपनी सीटें 40 से बढ़ाकर 48 और वोट शेयर 36.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 39.9 प्रतिशत करके तीसरा कार्यकाल सुनिश्चित कर लिया है। कांग्रेस का वोट शेयर भी 11 प्रतिशत अंक बढ़कर 39.1 प्रतिशत हो गया, लेकिन उसकी सीटों की संख्या में मामूली वृद्धि हुई। उसे 37 सीटें मिलीं जोकि पिछली बार से छह ज्यादा हैं। प्रभावशाली जाट समुदाय की राजनीति करने वाली दो क्षेत्रीय पार्टियों, इंडियन नेशनल लोक दल (आईएनएलडी) और जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) ने इस बार खराब प्रदर्शन किया। दोनों का संयुक्त वोट शेयर 2019 में 21 फीसदी था, जो 2024 में गिरकर मात्र सात फीसदी रह गया। इसका फायदा कांग्रेस को मिला लेकिन अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी तथा भाजपा की चतुराई भरी सोशल इंजीनियरिंग जिसके तहत उसने गैर-जाट अन्य पिछड़ा वर्गों का समर्थन उनके बीच से नेताओं को मजबूत करके हासिल किया, के अलावा शहरी क्षेत्रों में उसकी मजबूती ने नैया पार लगाने में मदद की। यह भाजपा के लिए उल्लेखनीय उपलब्धि है, जो न सिर्फ सत्ता विरोधी रूझान (एंटी-इनकम्बेंसी) के बोझ तले दबी थी, बल्कि राज्य में फिर से उदयीमान हो रही कांग्रेस का सामना कर रही थी जिसे ज्यादा सीटें मिलने का अनुमान एग्जिट पोल्स में भी पेश किया गया था। किसानों और पहलवानों के आंदोलन ने कांग्रेस को ग्रामीण इलाकों में अच्छा प्रदर्शन करने में मदद की, लेकिन यह भाजपा के सामाजिक गठबंधन को तोड़ पाने या भाजपा के मजबूत शहरी गढ़ों में सेंध लगा पाने के लिए नाकाफी था। सबसे पुरानी पार्टी की पुरानी बीमारी, विभाजित पार्टी नेतृत्व, ने पार्टी का कोई भला ही नहीं किया। इस जीत ने भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व की चमक भी बढ़ायी है, जिसे 2024 के आम चुनाव में फीके प्रदर्शन के बाद से काफी आलोचना सहनी पड़ी थी। राजनीतिक पंडितों का कहना है कि कांग्रेस को हिंदी पट्टी में भाजपा को पटकनी देने की अपनी रणनीति दुरुस्त करने के लिए अब नये सिरे से काम करना होगा।
राजनीति में चुनाव जीतने या हारने से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण होता है उस चुनाव के माध्यम से जनता तक अपना संदेश पहुंचाना.यही वजह है कि चुनाव में वोटों के अंतर से जीत की तुलना में आपने अपनी रणनीति से क्या मैसेज दिया है, वो ज्यादा जरूरी हो जाता है. कई बार जब रणनीति सटीक बैठती है तो नतीजे आपके फेवर में होते हैं और कई बार इसके उलट होता है. हरियाणा चुनाव का जो परिणाम आया है वो भी कई मायनों में ये बताता है कि आखिर इस राज्य में अब भविष्य की राजनीति कैसी होगी और जनता अपने नेता से क्या कुछ चाहती है। चुनाव को जीतने के लिए पार्टी के रणनीतिकारों से लेकर ग्राउंड पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं की भूमिका सबसे अहम होती है. किसी पार्टी की जीत या हार के बीच का अंतर भी इन्हीं की मेहनत का नतीजा होता है। हरियाणा में बीजेपी ने पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में वापसी की है। उसकी इस जीत में पीएम मोदी से लेकर धर्मेंद्र प्रधान और सीएम सैनी से लेकर पूर्व सीएम मनोहर लाल खट्टर की अहम भूमिका रही है। वहीं, कांग्रेस के राहुल गांधी, भूपेंद्र सिंह हुड्डा और कुमारी सैलजा के लिए ये चुनाव एक बड़ी सबक की तरह रहा है। उधर, अगर बात अगर क्षेत्रीय दलों की करें तो दुष्यंत चौटाला और अभय चौटाला के लिए भी ये चुनाव काफी कुछ सीखाने वाला रहा है। आखिर हरियाणा चुनाव में प्रदेश की जनता ने किसे सबसे बड़ा ‘विनर’ और किसे सबसे बड़ा ‘लूजर’ साबित किया है। यह खुलासा इस विश्लेषण से साफ होता है।
हरियाणा चुनाव में प्रचार की कमान पीएम मोदी ने संभाली थी। उन्होंने इस चुनाव प्रचार की ना सिर्फ अगुवाई की बल्कि जनता को विश्वास भी दिलाया कि उनके नेतृत्व में भाजपा आने वाले समय में भी जनता के लिए वैसे ही काम करेगी जैसे वो बीते दस साल से करती आ रही है। अपने चुनाव प्रचार के दौरान पीएम मोदी ने सबसे ज्यादा हमला कांग्रेस पर बोला। उन्होंने कहा कि कांग्रेस भ्रष्टाचार के लिए, परिवारवाद के लिए और झूठे वादों के लिए जानी जाती है।ऐसे में हरियाणा के भविष्य के लिए बीजेपी ही सबसे ज्यादा जरूरी है। पीएम मोदी के दावों पर जनता ने भरोसा किया और कई दशकों बाद बीजेपी ने सूबे में जीत की हैट्रिक लगाई।
हरियाणा में पार्टी की ऐतिहासिक जीत का काफी हद तक श्रेय बीजेपी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को भी जाता है। हालांकि राजनीतिक जीवन में ये उनकी पहली उपलब्धि नहीं है। कई अन्य मौकों पर भी उन्होंने इसको साबित किया है। धर्मेंद्र प्रधान की अगुवाई में ही विधानसभा चुनावों के लिए पार्टी के घोषणापत्र का मसौदा तैयार हुआ। हरियाणा चुनाव में भी उनकी रणनीति पार्टी के लिए रिकॉर्ड जीत लेकर आई है। पूरे चुनाव प्रचार पर धर्मेंद्र प्रधान की पैनी नजर बनी हुई थी। वो किसी भी तरह से विपक्ष को कोई मौका नहीं देना चाह रहे थे। राज्य में भाजपा के खिलाफ किसी तरह की सत्ता विरोधी लहर काम ना करे इसके लिए उन्होंने अपनी टीम के साथ काम करते हुए ऐसे नेताओं की लिस्ट बनवाई जिन्हें लेकर जनता में गुस्सा था और जब उम्मीदवारों की सूची जारी करने की बारी आई तो धर्मेंद्र प्रधान ने उन नेताओं को टिकट नहीं मिलने दिया। इन नेताओं में पार्टी के कई वरिष्ठ नेता भी शामिल थे। चुनाव के बीच में जब अनिल विज ने खुद को मुख्यमंत्री बनाए जाने की संभावनाओं पर बात की उन्होंने उन्हें फटकार लगाई। धर्मेंद्र प्रधान हरियाणा में चुनाव के दौरान ये जानते थे कि आखिर विपक्ष को सत्ता से दूर रखने के लिए उन्हें क्या कुछ करना होगा. और उन्होंने वैसा ही किया।
उधर जम्मू एवं कश्मीर के नतीजे दोरंगी रहें हैं। भाजपा ने हिंदू-बहुल जम्मू में पांच प्रतिशत अंकों की वृद्धि के साथ अपना वोट शेयर 45 फीसदी कर लिया। इससे उसे इस क्षेत्र में 29 सीटें जीतने और क्षेत्र में अपना सीट शेयर बरकरार रखने में मदद मिली। नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन (इंडिया ब्लॉक) ने अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित चार सीटें जीतीं। कश्मीर घाटी में, इंडिया ब्लॉक ने 47 में से 41 सीटें जीतकर और पीडीपी को तीन सीटों पर समेट कर एक दशक पहले की कहानी पलट दी। इंडिया ब्लॉक की जम्मू में टक्कर देने की क्षमता और कश्मीर में दबदबा 49 सीटों का निर्णायक बहुमत हासिल करने के लिए काफी था। अगर कुछ सीटों पर बागी उम्मीदवार नहीं जीतते तो यह संख्या शायद और बड़ी होती।
कश्मीर में मुख्यधारा की पूरी राजनीति को अलगाव में डालने और बहुमत के जुगाड़ के लिए परिसीमन का इस्तेमाल करने की भाजपा की रणनीति सफल नहीं हुई, क्योंकि मतदाता इसके सबसे मजबूत विरोध के पक्ष में खड़े हुए, खासकर घाटी में। भावी मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के सामने कठिन चुनौती होगी और सबसे पहले वह जम्मू एवं कश्मीर के लिए राज्य का दर्जा पाने की कोशिश करेंगे। चुनाव में अच्छी संख्या में भागीदारी करने वाले लोगों की नई सरकार से कई अपेक्षाएं है।
हरियाणा में भाजपा अपने मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी को पुनः मुख्यमंत्री बनाने और अपने अन्य शासित प्रदेशों की तरह दो उप मुख्यमंत्रियों के फार्मूले पर चलने की नीति पर आगे बड़ने वाली है। देखना है गुरुवार को होने बार विधायक दल की बैठक में मुख्यमंत्री बनने की आकांक्षा पाले अन्य नेताओं का भविष्य क्या होने वाला है?