
नरेंद्र तिवारी
दुनियाँ के ज्ञानियों ने एक स्वर मे कहा है, पवित्र लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये साधनों की पवित्रता का होना भी जरुरी है, जब एक राष्ट्र के किसी ह्रदय प्रदेश मे जनता के कल्याण की बात हो तो साधनों की पवित्रता का होना अत्यंत जरुरी हो जाता है। यहां हम मध्यप्रदेश की बात कर रहे है। जहां प्रदेश के मुखिया ने वर्ष 2025-26 की आबकारी नीति मे बदलाव करते हुए प्रदेश के 19 धार्मिक क्षेत्रों मे शराबबंदी का जनकल्याण कारी निर्णय लिया है। उनका यह कदम स्वागत योग्य है। हालांकि इस निर्णय से उज्जैन स्थित कालभैरव मंदिर भी प्रभावित हुआ जहां के बारे मे यह मान्यता है की कालभैरव को शराब प्रसाद के रूप मे चढ़ाई जाती है, शराब चढ़ाने की यह परम्परा अति प्राचीन है,जो उज्जैन के कालभैरव मंदिर मे बरसों से प्रचलित थी, इस हेतु प्रशासन द्वारा मंदिर प्रांगण मे शराब काउंटर स्थापित कर रखे थै,जो एमपी की नविन शराब नीति के तहत हटा लिये गए है।
मध्यप्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने 19 धार्मिक स्थलों पर शराबबंदी के निर्णय के दौरान कहा था की ‘जनभावनाओं का ध्यान रखते हुए, धार्मिक स्थानों की पवित्र गरिमा को बनाए रखने के लिये, शराबबंदी का निर्णय लिया गया है।’
सवाल यह उठता है की जनभावना का ख्याल महज 19 धार्मिक क्षेत्रों के लिये ही क्यों रखा गया.. ? यह नेक और जनहितकारी निर्णय सम्पूर्ण मध्यप्रदेश के लिये क्यों नहीं लिया गया..? जबकि एमपी मे भाजपा सरकार के राज मे धर्म, कर्म और आस्था की ध्वजा चारो दिशाओं मे फहरा रही है। हर शहर, हर गाँव के नागरिक चाहते है की प्रदेश मे अधूरी नहीं पूर्ण शराबबंदी हो। इस सच्चाई से मुंह नहीं मोडा जा सकता है की शराब के अत्यधिक सेवन से नागरिक स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है, शराब पीना स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है। अनेक विवादों मे शराब ने नकारात्मक भूमिका निभाई है, शराब समाज मे अशांति और विवादों का कारण मानी जाती रही है। अधिकांश सडक दुर्घटनाओं मे शराब पीना एक महत्वपूर्ण कारण माना गया है। यह तथ्य प्रमाणित और सच है की शराब से समाज को नुकसान पहुँचता है, नागरिक समाज मे अशांति फैलती है, शराब समाज के विकास मे बहुत बड़ी रूकावट है। किंतु मध्यप्रदेश सरकार गुजरात और बिहार की तर्ज पर पूर्ण शराबबंदी लागू कर पाने का साहस नहीं दिखा पा रही है, जिसका महत्वपूर्ण कारण शराब के ठेकों से प्रदेश को प्राप्त होने वाला राजस्व है। जो सरकार की महत्वपूर्ण जरूरत बन गया है, जिसके मोह मे फंसकर सरकार शराब के ठेकों से प्राप्त राजस्व से जनकल्याण कर विकास और जनहित का ढिढोरा पिट रही है।
जानकारी के मुताबिक मध्यप्रदेश के राजस्व मे शराब ठेकों से प्राप्त राजस्व का बड़ा योगदान है। शराब बिक्री राज्य के खजाने मे 15% का योगदान देती है, जो इसे गैर कर आय के सबसे बड़े स्त्रोत मे से एक बनाती है। सरकार को वर्ष 2023 मे शराब ठेकों से 13590 करोड़, वर्ष 2024-25 मे 16000 करोड़ रूपये का राजस्व प्राप्त हुआ था, वर्ष 2025-26 मे आबकारी विभाग का लक्ष्य 16500 करोड़ रु है, याने शराब के ठेकों से प्राप्त राजस्व राज्य सरकार की विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के वित्त पोषण मे महत्व पूर्व भूमिका निभाता है। 19 धार्मिक महत्व के स्थानों मे शराबबंदी से राजस्व मे हुए घाटे को रोकने के लिये सरकार ने शराब की कीमतों मे वृद्धि का निर्णय लिया है।
1अप्रेल 2025 से एमपी मे लागू नवीन शराब नीति से महंगे हुए शराब ठेकों के बाद प्रदेशभर मे अवैध शराब के पकड़ाने, कीमतों मे हुई वृद्धि के परिणाम स्वरूप ग्राहक और दूकानदार के मध्य विवादों की खबरों से अख़बार भरे पड़े है। प्रदेश मे अवैध शराब के पकड़ाने शराब दुकानों पर क़ीमत बढ़ने से हो रहे विवाद प्रतिदिन कहीं न कहीं सुनाई पड़ रहे है।
आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र अलीराजपुर मे कांग्रेस नेता महेश पटेल ने प्रदेश मे पूर्ण शराब बंदी की वकालत करते हुए सरकार पर आरोप लगाया की आबकारी विभाग और ठेकेदार की मिली भगत से ग्रामीण रास्तों से शराब गुजरात पहुंचाई जा रही है। उन्होंने कहा की एक ओर सरकार शराबबंदी के प्रयास कर रही है, दूसरी ओर ठेकेदार ओर विभाग की मिली भगत से अवैध शराब का कारोबार चल रहा है। इसी प्रकार का आरोप आदिवासी कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष, विधायक विक्रांत भूरिया ने मध्यप्रदेश के भोपाल स्थित प्रदेश कांग्रेस कार्यालय मे आयोजित पत्रकार वार्ता मे प्रदेश सरकार पर यह आरोप लगाया की आदिवासी क्षेत्रों को शराब का गढ़ बना दिया है, पुरे प्रदेश को शराब के नशे मे डूबाकर हमारी पीड़ियों को बर्बाद किया जा रहा है। उन्होंने धार कलेक्टर के उस पत्र का भी जिक्र किया जिसमे नकली होलोग्राम से शराब का कारोबार होने, पकड़ाए जाने पर वाहन के चालक पर कार्यवाही किये जाने और शराब के मालिक पर कोई एक्शन नहीं लिये जाने की बात कही। यह तथ्य भी जगजाहिर है, एमपी मे जिन 19 स्थानों पर शराब प्रतिबंधित की गयी है वहां शराब का अवैध कारोबार फलने-फूलने लगा है। खासकर आदिवासी और सीमावर्ती क्षेत्रों मे देखा गया है की दुकानों का मूल्य करोडो रुपया है, किंतु काउंटर पर शराब की उतनी बिक्री नहीं है। यह स्थिति शराब की अवैध तस्करी का उदाहरण है। यह भी देखने मे आता है की शराब ठेकों की शराब अधिकृत काउंटर से कम सड़क किनारे स्थित ढाबो, गाँव की दुकानों मे खुलेआम बिकती नजर आ रही है। शराब के ठेकों मे नेताओं, माफियाओं और धन्ना सेठों की संलिप्तता से इंकार नहीं किया जा सकता है, पुलिस और आबकारी विभाग भी इस गठजोड़ मे शामिल दिखाई देता है। इस गठजोड़ के परिणामस्वरूप एमपी के बड़े शहरों, नगरों एवं गाँवो मे अवैध शराब का गौरख धंधा फल फूल रहा है। अभी एक माह भी नहीं हुआ शराबबंदी वाले धार्मिक स्थलों पर अवैध रूप से शराब की उपलब्धता आसान हो गयी है। शराब धंधे से जुड़े लोगो का मानना है की शराबबंदी से अवैध शराब का कारोबार फलने-फूलने लगा है। अप्रेल 2025 से नई शराब नीति के लागू होने के बाद से प्रदेश भर मे विवादों की खबरों का आना मध्य प्रदेश सरकार की नवीन शराब नीति को सन्देश के कठघरे मे खड़ा करता है। दिल्ली की पूर्व सरकार की शराब नीति से उपजा विवाद अभी न्यायालय मे चल ही रहा है। ऐसे मे एमपी की नवीन शराब नीति मे भी शराब के अवैध कारोबारियों को लाभ पहुंचाने की मंशा साफ दिखाई देती है।
मध्यप्रदेश सरकार द्वारा जिन स्थानों पर शराबबंदी की है, वहां अवैध शराब कारोबारियों पर सख़्ती की जाना चाहिए, सरकार द्वारा एमपी मे की गयी आंशिक शराबबंदी का निर्णय तारीफेकाबिल है, किंतु मध्यप्रदेश मे पूर्ण शराबबंदी मोहन सरकार को करना चाहिए। शराबबंदी के साथ ही शराब के अवैध कारोबार की कमर भी तोडना होंगी। शराब नागरिक समाज के सेहत के लिये नुकसानदायी है, शराब विवादों की जड़ है, इस पर पूर्ण सख़्ती की आवश्यकता है। अपने सख्त एवं दृढ फैसलों के लिये पहिचान रखने वाली मोहन सरकार जिसका परिवहन चैक पोस्ट बंद करने का निर्णय भष्ट्राचार को खत्म करने का जनहितैषी फैसला मना जा रहा है। एमपी मे पूर्ण शराबबंदी का निर्णय जिस दिन सरकार लेगी, मुख्यमंत्री सहित सम्पूर्ण सरकार की तारीफ प्रदेश की जनता मुक्तकंठ से प्रदेश की जनता करेंगी। फिलहाल तो एमपी की सरकार शराब से प्राप्त राजस्व के भरोसे जानकल्याण की उम्मीद लिये बैठी है। संत, महात्माओं और विद्वानों का साफ कहना है, अच्छे लक्ष्य के लिये साधनों की पवित्रता का होना बेहद जरुरी है।