राहुल गाँधी की संसद सदस्यता रद्द होने से मचा राजनीतिक बवाल

  • क्या कांग्रेस भाजपा के समक्ष इन्दिरा गाँधी जैसी चुनौती पेश कर पायेंगी या भाजपा कांग्रेस मुक्त भारत कीरचना करने में सफल हों जायेंगी ?

नीति गोपेंद्र भट्ट 

नई दिल्ली : लोकसभा सचिवालय द्वारा शुक्रवार को कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी की संसद सदस्यताको रद्द करने के साथ ही राष्ट्रीय राजनीति में ज़बर्दस्त उबाल आ गया है । सदस्यता रद्द होने के साथ हीकांग्रेस नेता राहुल गांधी का नाम लोकसभा की बेबसाइट से भी हटा दिया गया है।

कांग्रेस सहित सभी विरोधी दलों के नेताओं ने इस घटना क्रम पर एक ओर जहाँ गहरा असन्तोष और रोषव्यक्त किया है वहीं भाजपा ने इसे अदालत द्वारा की गई न्यायिक कार्यवाही बताते हुए कहा है कि क़ानून केअनुसार उन्हें अपनी सदस्यता खोनी पड़ी है ।

विडम्बना यह है कि इस क़ानून में जन प्रतिनिधियों की सदस्यता तत्काल समाप्त नही करने सम्बन्धी संशोधनविधेयक को मन मोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के समय संसद में जो बिल लाया गया था उसेस्वयं राहुल गाँधी ने फाड़ कर फेकने योग्य करार दिया था और आज यह प्रावधान नही होने के कारण ही उन्हेंअपनी संसद सदस्यता से हाथ धोना पड़ा है।

राष्ट्रीय राजधानी सहित पूरे देश में आग की तरह फैली इस खबर के तुरन्त बाद कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्षमल्लिकार्जुन खड़गे ने एआईसीसी के नई दिल्ली स्थित मुख्यालय में एक आपातकालीन बैठक आहूत कीऔर कांग्रेस शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों को भी दिल्ली तलब किया गया। खड़गे की अध्यक्षता में हुई इसबैठक में यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, कांग्रेस महामन्त्री प्रियंका गांधीसहित अन्य वरिष्ठ नेता अंबिका सोनी, केसी वेणुगोपाल, मीरा कुमार, पी चिदंबरम, पवन कुमार बंसल, आनंदशर्मा, राजीव शुक्ला, सलमान खुर्शीद, जयराम रमेश, तारीक अनवर आदि मौजूद रहे और उन्होंने वर्तमानउत्पन्न परिस्थितियों और इससे निपटने के लिए भावी रणनीति पर गहन चर्चा की। बैठक के बारे में संचारविभाग के मुखिया जय राम रमेश ने कहा कि पार्टी अपने नेता राहुल गाँधी के विरुद्ध सौची समझी साजिश केअनुरूप की जा रही इस कार्यवाही के ख़िलाफ़ इस लड़ाई को सड़कों पर जनता के मध्य लेकर जायेंगे।उन्होंनेकहा कि राहुल गाँधी की भारत जोड़ों यात्रा की सफलता से मोदी सरकार डर गई है।

उल्लेखनीय है कि गुजरात के सूरत की एक अदालत ने ‘‘मोदी उपनाम’’ संबंधी टिप्पणी को लेकर राहुल गांधीके खिलाफ 2019 में दर्ज एक आपराधिक मानहानि के मामले में उन्हें गुरुवार को दो साल कारावास की सजासुनाई थी हालांकि अदालत ने, बाद में उन्हें जमानत भी दे दी और उनकी सजा के अमल पर तीस दिनों तक केलिए रोक लगा दी, ताकि कांग्रेस नेता राहुल गांधी फैसले को चुनौती दे सकें।

इसके बाद लोकसभा सचिवालय ने नियमों के मुताबिक़ राहुल गांधी की केरल के वायनाड से संसद सदस्यताको रद्द कर दिया और वे पूर्व सांसद हो गए।

राजनीतिक जानकारों का कहना है कि राजनीतिक रैलियों में सभी नेता एक दूसरे के विरुद्ध आरोप प्रत्यारोपलगाते है फिर जिन मोदी के नाम का प्रायः उल्लेख राहुल गाँधी करते आ रहे है उनमें एक भी ओबीसी जाति मेंशामिल नही है इसलिए यह कहना सही नही है कि राहुल ने इन जातियों के विरुद्द कुछ कहा है और उनकीमानहानि की हैं।

इस मामले में राहुल गांधी की तत्काल प्रतिक्रिया आई और उन्होंने कहाकि, “मैं भारत की आवाज के लिए लड़रहा हूं,मैं हर कीमत चुकाने के लिए तैयार हूं।”

उनकी बहन प्रियंका गांधी ने सत्ता में बैठें नेताओं पर हमला करते हुए कहा, “हमारी रगों में जो खून दौड़ता हैउसकी एक खासियत है… आप जैसे कायर, सत्तालोभी और तानाशाह के सामने हमारा सिर कभी नहीं झुकाऔर कभी नहीं झुकेगा. आप कुछ भी कर लीजिए

राहुल गांधी को संसद सदस्यता से अयोग्य ठहराए जाने पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कांग्रेस पार्टी ने कहा किवह कानूनी और राजनीतिक लड़ाई लड़ेगी तथा बिना खामोश हुए ‘अडानी महाघोटाले’ पर संयुक्त संसदीयसमिति (जेपीसी) गठित करने की मांग भी जारी रखेंगी।

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि यह सब इसलिए किया गया ताकि राहुल गांधी संसद में सवालन कर सकें, लेकिन राहुल और कांग्रेस डर कर चुप नहीं रहेंगे.

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने दिल्ली में राहुल गांधी प्रकरण को लेकर कहा कि “देश में हालातबहुत गंभीर हैं अगर देशवासी नहीं समझे तो सबको भुगतना पड़ेगा।कांग्रेस पार्टी या राहुल गांधी घबराने वालेनहीं है।वे सत्य को ईश्वर मानते हैं। कोर्ट ने एक महीने का जब स्टे कर दिया गया था तो क्या ये इंतजार नहीं करसकते थे, इतनी क्या जल्दी थी.”

विरोधी दलों के नेताओं के बयान

इस बहु चर्चित मामले में विरोधी दलों के नेताओं में ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल आदि अन्य कईनेताओं ने अपनी प्रतिक्रियाओं में कहा, ”पीएम मोदी के न्यू इंडिया में बीजेपी के निशाने पर विपक्षी नेताहैं,जबकि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले बीजेपी नेताओं को मंत्रिमंडल में शामिल किया जाता है।विपक्षी नेताओंको उनके भाषणों के लिए अयोग्य ठहराया जाता हैजआज, हमने अपने संवैधानिक लोकतंत्र के लिए एक नयाऔर अब तक का सबसे निम्न स्तर देखा है.”

समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि जब से बीजेपी की सरकार यूपी में आई है, तब सेप्रशासन का साथ लेकर झूठे मुकदमे लगवाए हैं । कई ऐसे मौके आए हैं जब प्रशासन और शासन ने मिलकरसमाजवादी पार्टी के सदस्यों की सदस्यता ली है,आजम खान और उनके बेटे की भी सदस्यता गई।

अरविंद केजरीवाल कुछ ज़्यादा ही मुखर दिखे उन्होंने कहा कि, “क्या हाल बना दिया देश का? अभी राहुलगांधी की सदस्यता समाप्त कर दी इन लोगों ने. डरते हो तुम लोग. भारत के इतिहास में सबसे भ्रष्ट प्रधानमंत्रीकोई अगर हुआ है…जो 12वीं तक पढ़ा है. कोई सबसे कम पढ़ा लिखा प्रधानमंत्री हुआ है ”

उद्धव ठाकरे ने कहा, ‘राहुल गांधी की उम्मीदवारी रद्द कर दी गई है. चोर को चोर कहना हमारे देश में अपराध होगया है. चोर-लुटेरे अब भी आजाद हैं और राहुल गांधी को सजा मिल गई है. यह लोकतंत्र का सीधा मर्डर है. सभी सरकारी तंत्र दबाव में हैं. यह तानाशाही की शुरुआत है. अब लड़ाई को उचित दिशा देनी होगी.’

केन्द्रीय मन्त्रियों ने मोर्चा सम्भाला

वहीं, केन्द्रीय विधि एवं न्याय राज्य मंत्री एस पी सिंह बघेल ने राहुल गाँधी पर न्यायालय के फैसले कोन्यायसंगत करार देते हुए कहा कि कानून के समक्ष सभी बराबर हैं। हाल ही में उत्तर प्रदेश से बीजेपी के एकविधायक को भी आपराधिक मामले में दोषी करार दिए जाने पर अयोग्य ठहराया गया था।

राहुल गांधी की सदस्यता समाप्त होने संबंधी अधिसूचना के सार्वजनिक होने के कुछ देर बाद ही संसद भवनपरिसर में संवाददाताओं को संबोधित करते हुए केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा, ‘‘गाली देने में और आलोचनाकरने में अंतर होता है. राहुल गांधी गाली दे रहे थे. वह कोई लोकतांत्रिक बहस नहीं कर रहे थे. ओबीसी समाजको गाली देने का काम कर रहे थे… उन्हें इस कृत्य की सजा मिली है.’’

भाजपा नेताओं ने पूर्व के कई उदाहरण देते हुए कहा कि राहुल गाँधी अकेले नही जिन्हें यह सजा मिली है इसकेपहले माननीय न्यायालयों द्वारा दी गई सजा के फलस्वरूप कई कई अन्य नेताओं की सदस्यता भी समाप्त हुईहै।

क्या भारतीय जनता पार्टी आगामी आम चुनाव, कांग्रेस के नेता ‘राहुल गाँधी के ख़िलाफ़ एक जनमत संग्रह’ या ‘रेफ़रेंडम” के तौर पर लड़ना चाहती है? इस सवाल पर भी राजनीतिक हलकों में बहस चल रही हैऔर कईविश्लेषक मानते हैं कि ये आगामी लोकसभा चुनावों को लेकर बीजेपी की बनाई रणनीति भी हो सकती है।सियासी हलकों में ये सवाल भी उठ रहे हैं कि ऐसे में दूसरे विपक्षी दलों का क्या होगा?

राजनीति पर नज़र रखने वाले कई जानकारों को लगता है कि भारतीय जनता पार्टी ‘विपक्ष में फूट’ डालने कीअपनी रणनीति में कामयाब होती नज़र आ रही है। इसके संकेत संसद के चल रहे बजट सत्र में भी देखने कोमिल रहे हैं।संसद में दोनों सदनों की कार्यवाही गतिरोध का शिकार हो रही है।

एक ओर जहाँ गौतम अदानी के कारोबार पर हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को लेकर विपक्ष एक सुर में बोलता नज़र आरहा है और इसकी जाँच जेपीसी यानि संयुक्त संसदीय समिति से कराने की मांग पर सरकार को लगातार घेररहा है, वहीं दूसरी तरफ़ राहुल गाँधी की लोकसभा में बोलने की मांग पर कांग्रेस सदन में अकेली पड़ती दिखीहै।

संकेत तब ही मिलने लगे थे, जब दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की गिरफ़्तारी के विरोध में लगभगसभी विपक्षी दल एकजुट थे लेकिन,इस विरोध प्रदर्शन में कांग्रेस कहीं नहीं दिखी। इसके अलावा कई विपक्षीदलों ने सिसोसिया की गिरफ़्तारी के ख़िलाफ़ प्रधानमंत्री को पत्र भी लिखे,लेकिन कांग्रेस ने ऐसा नहीं किया।अलबत्ता सिसोदिया की गिरफ़्तारी के बाद दिल्ली में कांग्रेस ने सिसोदिया और आम आदमी पार्टी के ख़िलाफ़जमकर पोस्टरबाज़ी भी की।

ये बात ज़रूर है कि उद्धव ठाकरे की शिवसेना हो, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल ओर मार्क्सवादीकम्युनिस्ट पार्टी या तमिलनाडु की डीएमके आदि ये सभी दल अपने-अपने राज्यों में कांग्रेस के सहयोगीहैं,लेकिन सिसोदिया की गिरफ़्तारी के ख़िलाफ़ इन सभी ने कांग्रेस से अलग अपना रुख़ अपनाया और विरोधजताया। बावजूद इसके अरविन्द केजरीवाल राहुल गाँधी के पक्ष में आगे आयें है।

राहुल गांधी को सूरत के कोर्ट द्वारा दी गई सजा के खिलाफ़ राहुल गाँधी द्वारा ऊपरी अदालत में अपील करनेपर यदि उच्च अदालत भी वर्तमान फ़ैसले को ही बरकरार रखती है तो राहुल आने वाले लोकसभा के आम चुनावसहित आठ वर्षों तक चुनाव लड़ने के अयोग्य हो जाएँगे। इसके अलावा उनके विरुद्द दर्ज कुछ और मामले भीक्या मोड़ लेंगे ? वे भविष्य के गर्भ में है । देखना होगा कि कांग्रेस अपने पर आए इस आसन्न संकट से कैसेनिपटेगी।

राजनीतिक जानकारों का मानना है कि प्रायः इतिहास दौहराया जाता है और यदि मौजूदा हालातों नेआपातकाल के बाद पहली बार सत्ता में आई जनता पार्टी की सरकार के ढाई वर्षों में हुए हश्र तथा अस्सी केदशक में राहुल की दादी इन्दिरा गांधी के पक्ष में बही सहानुभूति की हवा जैसा मोड़ ले लिया तो 2024 के आमचुनावों में मोदी सरकार को भी कठिन चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।

देखना होगा कि देश की राजनीति आगे किस मोड़ जायेंगी और क्या राहुल गाँधी की संसद सदस्यता रद्द होनेसे मचा राजनीतिक बवाल भाजपा के समक्ष इन्दिरा गाँधी जैसी चुनौती पेश कर पायेगा अथवा भाजपाकांग्रेस मुक्त या कहें विपक्ष रहित भारत की रचना करने में सफल हों जायेंगी ।