वोट चोरी पर शोर मचा रहे राहुल अपने नेता की चोरी पर खामोश क्यों

Rahul is shouting about vote theft, why is he silent on the theft of his leader

अजय कुमार

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और प्रवक्ता पवन खेड़ा इन दिनों एक बार फिर सियासी हलचल के केंद्र में हैं। मामला बेहद गंभीर है, क्योंकि समाचार रिपोर्टों में दावा किया जा रहा है कि पवन खेड़ा और उनकी पत्नी, दोनों के पास अलग-अलग क्षेत्रों से दो-दो वोटर कार्ड मौजूद हैं। यह एक चुनावी व्यवस्था से जुड़ा ऐसा मुद्दा है, जो सीधे तौर पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया की पवित्रता और विश्वसनीयता पर सवाल खड़ा करता है। वोटर कार्ड नागरिकता और मताधिकार का मूल आधार है, और यदि किसी बड़े नेता के पास उसकी एक से अधिक प्रतियां हों तो न सिर्फ क़ानूनन यह आपराधिक कृत्य माना जाएगा, बल्कि राजनीतिक दृष्टि से भी भारी विवाद का कारण बनेगा। इस खुलासे के सामने आने के बाद भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस पर तीखे हमले शुरू कर दिए हैं। बीजेपी प्रवक्ताओं ने कहा है कि जब कांग्रेस के बड़े नेताओं के घर से ही इस तरह के मामले प्रकाश में आ रहे हैं तो आम कार्यकर्ताओं और समर्थकों के बीच किस तरह की मान्यताएं बन रही होंगी, इसकी कल्पना की जा सकती है। बीजेपी के मुताबिक, यह केवल कानूनी उल्लंघन नहीं बल्कि कांग्रेस पार्टी की उस सोच का उदाहरण है, जिसमें नैतिक मूल्यों की कोई जगह नहीं है। सत्ता के लिए किसी भी हद तक जाने का आरोप लंबे समय से कांग्रेस पर लगता रहा है और अब यह मामला उस धारणा को और मजबूत कर रहा है।

बीजेपी नेताओं का कहना है कि एक आम नागरिक अगर दो वोटर कार्ड के साथ पकड़ा जाता है तो उसके खिलाफ तुरंत कार्रवाई होती है। सवाल यह है कि पवन खेड़ा जैसे कद्दावर नेता और उनकी पत्नी पर अब तक कोई कठोर कदम क्यों नहीं उठाया गया। विरोधियों ने चुनाव आयोग से इस प्रकरण की उच्चस्तरीय जांच की मांग की है और दावा किया है कि यह लोकतंत्र के लिए खतरे का संकेत है। ऐसे वक्त में जब देश में हर राज्य में मतदाता सूची को शुद्ध करने की कवायद चल रही है, तब एक बड़े सार्वजनिक चेहरे से जुड़ा यह मामला प्रशासन और आयोग की निष्पक्षता पर भी सवाल खड़ा करता है दिलचस्प बात यह है कि कांग्रेस इस पूरे विवाद पर अब तक चुप है। पार्टी की तरफ से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है और न ही राहुल गांधी या शीर्ष नेतृत्व ने इस पर प्रतिक्रिया दी है। कांग्रेस प्रवक्ता आम तौर पर किसी भी मुद्दे पर तत्काल मीडिया के सामने आते हैं, लेकिन पवन खेड़ा का मामला उठने के बाद मानो एक सामूहिक चुप्पी साध ली गई है। राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि कांग्रेस नेतृत्व की यह खामोशी कई संदेश देती है। पहला, या तो पार्टी असहज है और सार्वजनिक रूप से अपने वरिष्ठ नेता को बचाव की स्थिति में नहीं डालना चाहती, या फिर कांग्रेस खुद अंदरूनी स्तर पर इस प्रकरण की तहकीकात कर रही है और उसके बाद ही कोई फैसला करेगी।

राहुल गांधी को लेकर विपक्ष ने अक्सर यह आरोप लगाया है कि वे गंभीर मुद्दों पर चुप रहते हैं और नेतृत्व का दायित्व निभाने में विफल रहते हैं। अब पवन खेड़ा प्रकरण उसी आरोप को और प्रबल करता दिखता है। बीजेपी बार-बार यह कह रही है कि जो पार्टी अपने नेताओं की कार्यशैली पर जवाबदेही तय नहीं कर सकती, वह देश और लोकतंत्र के लिए किस तरह की जिम्मेदारी निभा पाएगी। भाजपा ने इसे कांग्रेस के चरित्र और संस्कृतिष् का प्रतीक बताकर जनता के बीच इसे बड़ा मुद्दा बनाने की रणनीति बना ली है। कांग्रेस की चुप्पी इस मामले को और गंभीर बना रही है। आम मतदाता भी यह सोचने को मजबूर है कि यदि पार्टी नेतृत्व साफ़ शब्दों में अपना रुख नहीं रखता तो इसका मतलब कहीं न कहीं कमी को स्वीकार करने जैसा है। वहीं कांग्रेस समर्थक दबी जुबान में यह तर्क देते हैं कि कई बार तकनीकी कारणों से या स्थान परिवर्तन के चलते नागरिकों के पास गलती से एक से अधिक वोटर कार्ड बन जाते हैं, और यह जरूरी नहीं कि हर बार यह जानबूझकर धोखाधड़ी के मकसद से हुआ हो। लेकिन चूंकि पवन खेड़ा एक बड़े राष्ट्रीय नेता हैं, इसलिए उनका मामला साधारण मानवीय भूल की श्रेणी से ऊपर उठकर राजनीतिक हथियार बन गया है। बीजेपी ने यह मुद्दा केवल दिल्ली की राजनीति तक सीमित नहीं रखा, बल्कि विभिन्न राज्यों में अपने संगठनात्मक ढांचे से इसे भुनाने की कोशिश की है। बीजेपी नेताओं का कहना है कि कांग्रेस नेताओं का चरित्र उजागर हो चुका है और जनता को इस बात पर विचार करना चाहिए कि वोट की पवित्रता का सम्मान कौन कर रहा है और कौन उसे दागदार बना रहा है। वहीं कांग्रेस कार्यकर्ता असमंजस की स्थिति में हैं कि इस विवादित प्रकरण पर पार्टी किस तरफ झुकेगी दृ अपने प्रवक्ता को खुला समर्थन देगी या कानूनी कार्रवाई के लिए जगह बनाएगी।

कुल मिलाकर, पवन खेड़ा और उनकी पत्नी के पास दो-दो वोटर कार्ड होने का मामला सिर्फ एक व्यक्तिगत चूक नहीं रहा, बल्कि यह कांग्रेस की राजनीति और उसके नेतृत्व की जिम्मेदारी पर बड़े प्रश्नचिह्न खड़ा कर रहा है। बीजेपी ने इसे हमला बोलने का सशक्त हथियार बना लिया है, जबकि कांग्रेस नेतृत्व की ओर से जारी चुप्पी ने संदेह और गहरा कर दिया है। आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि चुनाव आयोग इस पर क्या निर्णय लेता है और क्या कांग्रेस अंततः कोई आधिकारिक रुख स्पष्ट करने के लिए आगे आती है, या फिर यह प्रकरण धीरे-धीरे राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के बीच धुंधला हो जाएगा। इस मामले में चुनाव आयोग, कानूनी विशेषज्ञों और राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि भारत में चुनाव संबंधी कानून बेहद स्पष्ट हैं। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 17 और 18 के मुताबिक, किसी भी व्यक्ति का नाम एक ही समय में दो स्थानों की वोटर लिस्ट में नहीं हो सकता है। यदि किसी व्यक्ति के पास दो मतदाता पहचान पत्र (ईपीआईसी नंबर) पाए जाते हैं, तो वह गंभीर अपराध की श्रेणी में आता है, जिसमें जुर्माने और जेल दोनो का प्रावधान हो सकता है। चुनाव आयोग बार-बार यह अपील करता रहा है कि नागरिक अपने नाम एक जगह से हटवाकर सही विधानसभा क्षेत्र में दर्ज कराएं। एक से अधिक वोटर कार्ड न रखें। आम नागरिकों से लेकर जनप्रतिनिधियों तक, सबके लिए यह नियम समान है और आयोग अपनी तरफ से डुप्लीकेट एंट्री हटाने के लिए लगातार रिवीजन करता रहता है।

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर कोई आम व्यक्ति दो वोटर कार्ड रखता है और उसके खिलाफ शिकायत मिलती है, तो चुनाव आयोग पहले नोटिस भेजता है। अगर सही जवाब या संतोषजनक सफाई नहीं दी गई, तो कानूनी कार्रवाई, जेल और मतदान अधिकार निलंबित करने तक के कदम उठाए जा सकते हैं। कानूनी विशेषज्ञों की मानें तो अगर पवन खेड़ा और उनकी पत्नी के मामले में यह साबित हो जाए कि दोनों जगह जानबूझकर नाम लिखवाया गया, या फर्जी दस्तावेज का सहारा लिया गया, तो यह सिर्फ नैतिक ही नहीं, कानूनी दृष्टि से भी गंभीर मामला हो जाएगा, और इनकी चुनावी पात्रता भी प्रभावित हो सकती है।राजनीतिक विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि जिस स्तर का यह मामला है उसमें राष्ट्रीय पार्टी के प्रवक्ता और उनकी पत्नी के इस कृत्य के खिलाफ चुनाव आयोग की त्वरित और निष्पक्ष कार्रवाई की कसौटी भी एक परीक्षा है। यदि आयोग सिर्फ औपचारिक नोटिस भेजकर रह जाता है और निर्णायक कदम नहीं उठाता, तो इससे लोकतंत्र की साख पर असर पड़ता है। वहीं, यह भी तर्क रखा गया है कि कई बार जनता के पास दो वोटर कार्ड गलती से बन जाते हैं, ऐसे में व्यक्ति सामने आकर एक कार्ड सरेंडर कर सकता है, जिससे कानूनी उलझन से बचा जा सकता है। लेकिन जब ऐसे आरोप राजनीति के शीर्ष चेहरों पर लगें, और छुपाव या सफाई में कमजोर प्रतिक्रिया मिले, तो इससे सभी नेताओं की साख पर सवाल उठना स्वाभाविक है।