- बाँसवाड़ा में रेल की व्यथा.. प्रधानमंत्री मोदी का विनोदी तंजऔर गहलोत का ट्विटर जवाब
रविवार दिल्ली नेटवर्क
नई दिल्ली : आजादी के 75 वर्षों के बाद भी मध्य प्रदेश औरगुजरात से सटे दक्षिणी राजस्थान के बाँसवाड़ा जिले की एक इंचभूमि पर रेलगाड़ी नही गुज़रने की व्यथा से पीड़ित इस आदिवासीबहुल अँचल के लोगों की मुराद आजादी के अमृत वर्ष में संभवतपूरी हों सकती है।
राजस्थान की पहली वन्दे भारत रेल के शुभारम्भ अवसर परप्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के भाषणोंमें एक बार फिर बहु प्रतीक्षित डूंगरपुर-बांसवाड़ा-रतलाम रेलपरियोजना की माँग ने जोर पकड़ा और इस पर रोचक चर्चा हुई ।
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बुधवार को जयपुररेल्वे स्टेशन पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा वर्चुअल ढंग से किएगए अजमेर-जयपुर – दिल्ली केंट वन्दे भारत रेल के शुभारम्भअवसर पर प्रधानमंत्री मोदी और केन्द्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णवके समक्ष प्रदेश के आदिवासी अंचलों बाँसवाड़ा,करौली औरटोंक को रेल से जोड़ने की ज़ोरदार ढंग से पैरवी की ।इसकेजवाब में प्रधानमंत्री मोदी ने भी मजाकिया अन्दाज़ में कहा किगहलोत जी आपके तों दोनों हाथों में लड्डू हैं। रेल मंत्री और रेल्वेबॉर्ड के अध्यक्ष दोनों ही आपके राजस्थान के ही हैं। साथ हीउन्होंने यह भी कह दिया कि वैसे तों यह काम आजादी के बाद हीहों जाने चाहिए थे,जो अब तक नहीं हों पायें लेकिन आपका मुझपर इतना भरौसा हैकि वो काम भी आपने मेरे सामने रखें है।आपका यह विश्वास मैरी मित्रता की अच्छी ताकत है और इसकेलिए मैं आपका आभारी हूँ।पीएम ने एक और गहलोत को अपनामित्र कहा वहीं दूसरी ओर यह तंज करने से भी नही चुके किगहलोत जी इन दिनों कई आपाधापी और संकट से गुजर रहें हैफिर भी इस कार्यक्रम में आए और रेल विकास में भागीदार बनेइसलिए मैं उनका अभिनंदन करता हूँ। मोदी और गहलोत केपरस्पर बयानों की विडियो क्लिपिंग रेल मंत्री सहित कई भाजपानेताओं ने अपने अपने ट्विटर पर लगाई और लिखा कि गहलोतजानते है कि काम तों मोदी ही करेंगे…
मुख्यमंत्री गहलोत भी कहाँ पीछे रहने वाले थे उन्होंने भी अपनेट्विटर पर पीएम के पूरे भाषण को राजनीति से प्रेरित बताया औरआने वाले चुनावों को देखते हुए दिया गया भाषण करार दिया ।साथ ही लिखा कि यह कहना ठीक नही कि भारत में 2014 केबाद ही रेल विकास हुआ है। उन्होंने रेल मंत्रियों की लम्बीफ़ेहरिस्त का उल्लेख करते हुए लिखा कि हकीकत में आज देश मेंयदि आधुनिक रेल चलाना सम्भव हुआ है तों वह कांग्रेस कीप्रगतिशील सौच और डॉ मनमोहन सिंह के आर्थिक सुधारों केकारण संभव हों पाया है।
इसके पहलें अपने सम्बोधन में गहलोत ने कहा कि राजस्थान मेंतीन जिला मुख्यालय बाँसवाड़ा और टोंक करौली में कोई रेलकनेक्टिविटी नही हैं।
उन्होंने डूंगरपुर-बांसवाड़ा-रतलाम परियोजना को उच्चप्राथमिकता देने की वकालत करते हुए कहा कि इस रेल सेवा केलिए राजस्थान सरकार और रेलवे बोर्ड के बीच एक एमओयू हुआथा। साथ ही इसका शिलान्यास भी किया गया था। पहली बारकिसी राज्य सरकार द्वारा एक रेल प्रोजेक्ट के लिए भूमि सहित1250 करोड़ रुपये दिए गए थे, लेकिन जनहित का यह कामआगे नहीं बढ़ा।
गहलोत ने राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्, केन्द्रीय रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव,भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सी पीजोशी,विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता राजेन्द्र राठौड़,उप नेता डॉसतीश पूनिया, सांसदों और अन्य नेताओं की उपस्थिति मेंप्रधानमंत्री से यह आग्रह भी किया कि सीमावर्ती जैसलमेर-बाड़मेर को गुजरात के मुंद्रा एवं कांडला बंदरगाह से जोड़ा जाए।अंतरराष्ट्रीय सीमा और राष्ट्रीय सुरक्षा के को देखते हुए इस रेललाइन निर्माण की नितांत जरुरत है। इससे बाड़मेर में बन रही तेलरिफाइनरी के कार्य तथा पश्चिमी क्षेत्र के विकास की दृष्टि से भीकाफी लाभकारी सिद्ध होगी।
इसके अलावा गहलोत ने भीलवाड़ा जिले के गुलाबपुरा में मेमूकोच फैक्ट्री स्थापना के लिए भी सकारात्मक निर्णय लेने काअनुरोध किया।गहलोत ने बताया कि सी पी जोशी के रेल मन्त्रीकाल में इसकी स्वीकृति मिली थी।मुख्यमंत्री ने कहा कि जयपुरसे चित्तौड़गढ़ वाया अजमेर ब्रॉडगेज रेलवे मार्ग पर स्थितगुलाबपुरा (भीलवाड़ा) में मेमू कोच फैक्ट्री की स्थापना के लिएराजस्थान सरकार द्वारा 323 हेक्टेयर भूमि निःशुल्क आवंटितकी जा चुकी है। इसी प्रकार उन्होंने अजमेर पुष्कर मेंड़ता आदिधार्मिक महत्व की रेल लाइनों का ज़िक्र भी किया।
उल्लेखनीय है कि कुछ दिनों पूर्व केन्द्रीय रेल मन्त्री अश्विनीवैष्णव में बाँसवाड़ा-डूंगरपुर के सांसद कनक मल कटारा कोभरोसा दिया था कि वे एक विशेष ट्राइबल कोरिडोर बना कर कोडूंगरपुर-बांसवाड़ा-रतलाम रेल परियोजना का काम शुरू करवाइस बहु प्रतीक्षित माँग को पूरा करायेंगे। उन्होंने यह भी कहा थाकि उक्त परियोजना के साथ ही टोंक- चौथ का बरवाड़ा-सवाईमाधोपुर रेल परियोजना का काम राज्य सरकार द्वारा अपनी पूरी हिस्सेदारी नही देने के कारण रुकें पड़े हैं ।
बाँसवाड़ा का रेल प्रोजेक्ट जो कि केन्द्र और राज्य सरकार की 50:50 प्रतिशत भागीदारी से पूरा होना था। यूपीए अध्यक्षसोनिया गाँधी द्वारा इस परियोजना का शिलान्यास के समयइसकी लागत क़रीब 2100 करोड़ रू. थी जोकि आज बढ़ कर अनुमानित 6000 करोड़ से भी अधिक हो गई है। अनुबन्ध केअनुसार राजस्थान सरकार को रेल्वे को निःशुल्क ज़मीन खरीदकर भी देनी थी और राज्य सरकार ज़मीनों का 50.60 प्रतिशतमुआवज़ा भी दे चुकी है लेकिन धन की कमी के चलते पचासप्रतिशत भागीदारी का वायदा पूरा नही हो सका।बाद में वसुन्धराराजे का शासन आने पर उन्होंने केन्द्र से अनुरोध किया कि रेलकेन्द्र का विषय है और तीन प्रदेशों के आदिवासी अंचलों को रेलनेट वर्क से जोड़ने के लिए राजस्थान के सीमित संसाधनों केकारण प्रदेश पर वित्तीय भार नही डाल केन्द्र को पूरी राशि खर्चकरनी चाहिए।वैसे भी संविधान में आदिवासी अंचलों के समग्रविकास की जिम्मेदारी भारत सरकार की है और राष्ट्रपतिराज्यपालों के माध्यम से इसकी समीक्षा करते है।इस बारअशोक गहलोत सरकार ने भी अपनी वित्तीय सीमाओं का हवालादेते हुए केन्द्र सरकार से प्रोजेक्ट का पूरा खर्च वहन करने काआग्रह किया है।संसद में भी अनेको बार इस चिर प्रतीक्षित रेलपरियोजना को पूर्ण करने की माँग होती रही है।
अब मुख्यमंत्री गहलोत द्वारा प्रधानमंत्री मोदी से की गई पूरज़ोरमाँग और राजस्थान में जन्मे पले पाली जोधपुर के बाशिंदे रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव से यह संकल्प ले कर जाने की अपील केबाद उम्मीद है कि राजस्थान के वंचित इलाक़ों को भी यथाशीघ्ररेल सुविधा मिलेंगी। यदि ऐसा होता है तों प्रदेश के सुदूरबाँसवाड़ा वासियों का रेल की सिटी सुनने का सपना भी साकारहो सकेगा।