गलत के खिलाफ़ आवाज़ ज़रूर उठाएं

पिंकी सिंघल

एक कहावत जो मैं अक्सर सुना करती हूं कि मुफ्त की सलाह कभी नहीं देनी चाहिए, इससे मैं सरोकार भी रखती हूं, किंतु प्रत्येक स्थिति में यह कहावत सही नहीं कही जा सकती,यह भी सही है।उदाहरणार्थ:बात जब केवल हम से ही न जुड़कर समाज के प्रत्येक व्यक्ति से जुड़ी हो तो हमें इस बात की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए कि मुश्किल समय में कोई हमसे हमारी मदद मांगेगा तभी हम उसकी मदद करने को अपना हाथ आगे बढ़ाएंगे ।

आज के मेरे इस आलेख का सबसे ख़ास सवाल यह है कि समाज में हो रही गलत गतिविधियों और घटनाओं के खिलाफ हमें अपनी आवाज बुलंद करनी चाहिए अथवा चुप्पी साध लेनी चाहिए? इसके जवाब में मैं सिर्फ इतना कहना चाहूंगी कि एक जिम्मेदार नागरिक और एक सच्चे लेखक होने के नाते व्यक्तिगत तौर पर मैं तो यही समझती हूं कि समाज को सही दिशा पर ले जाने का प्रमुख दायित्व सभी नागरिकों और उससे भी अधिक लेखकों एवं साहित्यकारों का होता है क्योंकि हमारे लेखन को प्रतिदिन न जाने कितनी ही आंखें पढ़ती हैं और किसको पता कि हमारे उस लेखन से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में कितनों को प्रेरणा मिलती होगी और कितने लोग तो हमें शायद यह समझ कर फॉलो करते होंगे ,यह सोचकर हमारा अनुसरण करते होंगे कि यदि एक लेखक किसी अमुक विषय पर इतना कुछ लिख रहा है तो आवश्यक रूप से यह समाज के लिए हितकारी ही होगा।

मेरे घर का मामला नहीं है, यह सोच हमारे भीतर कदापि विकसित नहीं होनी चाहिए, क्योंकि आज जो मामला किसी और के घर का है कौन जाने कल वह मामला हमारा व्यक्तिगत मामला बन जाए। क्या उस स्थिति में हम चुप्पी साधे रह सकते हैं मूक बने कह सकते हैं??? शायद नहीं।

एक जगह चुपचाप बैठ कर तमाशा देखने वाली श्रेणी में शायद हम लेखक नहीं आते ,क्योंकि हमारा तो प्रथम कर्त्तव्य ही समाज में घट रही घटनाओं का समाज को आइना दिखलाना होता है।निष्पक्ष होकर समाज में चल रही गतिविधियों और घटनाओं को अपने लेखन के माध्यम से ज्यों का त्यों लोगों तक पहुंचाना न केवल हमारी साहित्यिक अपितु हमारी नैतिक एवं सामाजिक जिम्मेदारी भी बनती है और अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करने में हमें कभी पीछे नहीं हटना चाहिए।

गलत दिशा में जा रही भीड़ का हिस्सा बनने से कई गुना बेहतर है कि हम अपने लिए सही राह खुद चुनें ,चाहे हमें उस राह पर अकेले ही क्यों ना चलना पड़े। निसंदेह उस राह पर हमें अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा, किंतु, चुनौतियों से घबराना और डर कर पीछे हट जाना हमारा धर्म नहीं होना चाहिए।