गोपेंद्र नाथ भट्ट
राजस्थान सहित पाँच प्रदेशों के विधान सभा चुनाव परिणामों के गुरुवार की शाम आने वाले एग्जीट पोल और तीन दिसंबर को आने वाले चुनाव नतीजों से पहले हर कोई इस बात का अनुमान लगा रहा है कि इन प्रदेशों में इस बार कांग्रेस और भाजपा में से कौन सी पार्टी स्पष्ट बहुमत से जीतेंगी ?
जहाँ तक देश में भौगोलिक लिहाज से सबसे बड़े सूबे राजस्थान का सवाल है वहाँ भी कमोबेश कांग्रेस और भाजपा में से कौन सी पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिलेगा अथवा प्रदेश में त्रिशंकु विधानसभा का परिदृश्य सामने आयेगा? इसे लेकर राजनीतिक पर्यवेक्षक पिछलें कुछ दिनों से माथा पच्ची करने में जुटे हुए हैं।
राजनीतिक पण्डितों की सुई राजस्थान में हर पांच साल में सत्ता बदलने के रिवाज के कायम रहने अथवा टूटने पर अटकी हुई है और सभी यह अनुमान लगाने में जुट गए है कि इस बार भी यह रिवाज क़ायम रहेगा अथवा उसमें कोई चौंकाने वाला बदलाव आयेगा?
राजस्थान में जब-जब मतदान के प्रतिशत में वृद्धि होती है तो भाजपा चुनाव जीतती है और जब मतदान का प्रतिशत कम होता है या स्थिर रहता है तो कांग्रेस जीतती है। इस बार मतदान में पिछलें विधानसभा चुनाव के मतदान के मुक़ाबले 0.74 प्रतिशत की मामूली वृद्धि हुई हैं।
राजस्थान के पिछलें रिकार्ड्स खंगालने पर ज्ञात होता है कि प्रदेश में यह कमाल की बात रही है कि थोड़ा सा भी मत प्रतिशत,जीतने वाली पार्टी और हारने वाली पार्टी की सीटों में एक बड़ा अन्तर ले आता है।इस गणित को समझने वाले विशेषज्ञ भी इस बार प्रदेश के चुनाव परिणाम को लेकर कोई सटीक अनुमान नही लगा पा रहें हैं। वर्ष 1993 में जब भैरों सिंह शेखावत प्रदेश में निर्दलियों के समर्थन से भाजपा की सरकार बनाने में सफल हुए थे तब से अब तक यानी पिछलें 30 वर्षों से प्रदेश में हर पाँच वर्ष बाद एक बार कांग्रेस और एक बार भाजपा की सरकार बनने का ट्रेंड या रिवाज चला आ रहा हैं। इस हिसाब से इस बार भाजपा की सत्ता में आने की बारी है लेकिन कांग्रेस विशेष कर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का दावा है कि इस बार राज नही रिवाज बदलेगा।
पिछले वर्ष हिमाचल प्रदेश में भी इसी तरह के ट्रेंड को बदलने के लिए भाजपा ने बहुत जोर लगाया था कि लेकिन रिवाज नहीं बदला। लोगों ने भाजपा की सरकार बदल कर प्रदेश ने हर पाँच वर्ष बाद सरकार बदलने के रिवाज को कायम रखा। इस बार राजस्थान में उसी तरह कांग्रेस ने भी जोर लगाया है कि यह रिवाज बदले लेकिन क्या सचमुच ऐसा होगा? इसका सही अंदाजा किसी को नहीं है।
राजस्थान में जिस तरह से हर पांच साल में राज बदलने का रिवाज है वैसे ही नतीजों में मतदान प्रतिशत की भी एक अहम भूमिका रहती आई है।आमतौर पर प्रदेश में मतदान का प्रतिशत बढ़ना सत्ता बदलने का संकेत माना जाता है । प्रदेश में जब-जब कांग्रेस सत्ता में होती है तब उसे सत्ता से हटाने के लिए मतदाताओं द्वारा अधिक मतदान करने की प्रवृति देखी गई है। इसी प्रकार जब भाजपा सत्ता में रहती है तो उसको हराने के लिए कम मतदान होने से ही कांग्रेस की विजय हो जाती है लेकिन राजस्थान में इस बार चुनाव के बाद सामने आए मतदान प्रतिशत को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं।
प्रदेश में पिछले 20 वर्षों के मतदान आँकड़े देखें तो पायेंगे कि जब भाजपा 2003 में चुनाव जीती थी तब विधानसभा चुनाव में 1998 के मुकाबले 3.79 फीसदी अधिक मतदान हुआ था लेकिन 2008 में 2003 के मुकाबले करीब एक प्रतिशत मतदान कम हुआ और कांग्रेस जीत गई। इसी तरह 2013 में 2008 के मुकाबले 8.79 प्रतिशत मतदान अधिक हुआ और भाजपा चुनाव जीत गई लेकिन 2018 में 2013 के मुकाबले फिर एक फीसदी मतदान कम हुआ और कांग्रेस जीत गई। पिछली बार 74 फीसदी से कुछ ज्यादा मतदान हुआ था और इस बार भी निर्वाचन आयोग द्वारा जारी अन्तिम आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में पिछलीं बार से 0.74 प्रतिशत अधिक मतदान हुआ है। इस प्रकार विधानसभा चुनाव 2023 के मतदान प्रतिशत में बहुत अधिक बढ़ोतरी नही हुई है तभी परिणाम को लेकर राजस्थान में सस्पेंस बढ़ गया है। हालाँकि भाजपा अपनी स्पष्ट जीत के लिए बहुत ज़्यादा आशान्वित है और कांग्रेस भी ऐसा ही दावा कर रही है।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि तीन दिसंबर को राजस्थान में कांग्रेस के हाथ का राज क़ायम रह कर रिवाज बदलेगा अथवा राज बदल कर मरुधरा में कमल खिलेगा?