अरावली पर्वतमाला के संरक्षण के लिए राजस्थान सरकार ने शुरू किया अवैध खनन के विरुद्ध संयुक्त अभियान

Rajasthan government launches joint campaign against illegal mining to protect Aravalli mountain range

गोपेन्द्र नाथ भट्ट

अरावली पर्वतमाला के संरक्षण के सम्बन्ध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले की अनुपालना को लेकर राजस्थान सरकार बहुत अधिक गंभीर और सक्रिय हो गई है। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा भी सार्वजानिक रूप से कह चुके है कि राजस्थान में अरावली पर्वतमालाओ के साथ किसी प्रकार की छेड़खानी नहीं करने दी जायेगी तथा राज्य में किसी भी प्रकार के अवैध खनन को किसी भी परिस्थिति में बर्दास्त नहीं किया जाएगा।

मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के निर्देश पर प्रदेश में अरावली पर्वतमाला क्षेत्र के अधीन आने वाले 20 जिलों अलवर, खैरथल-तिजारा, झुन्झुनू, सीकर, जयपुर, दौसा, कोटपूतली-बहरोड़, अजमेर, भीलवाड़ा, ब्यावर, टोंक, कुचामन-डीडवाना, पाली, सिरोही, राजसमंद, उदयपुर, सलूंबर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ में अवैध खनन गतिविधियों के खिलाफ 29 दिसंबर से 15 जनवरी तक एक संयुक्त अभियान शुरू किया है। इस अभियान के दौरान अवैध खनन गतिविधियों पर कठोर निरोधात्मक कानूनी कार्रवाई की जाएगी। अभियान के लिए हर संबंधित जिले में एक संयुक्त टीम गठित की गई है। इस टीम में राज्य के खान, राजस्व, वन, पुलिस एवं परिवहन विभाग के अधिकारी शामिल किए गए है। अवैध खनन के खिलाफ कार्रवाई के दौरान कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए संबंधित जिलों में जिला पुलिस अधीक्षक आवश्यक पुलिस बल तैनात करेंगे। मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने शनिवार को जयपुर में हुई माइंस एवं वन पर्यावरण विभाग की बैठक में अधिकारियों को इस बाबत सख्त निर्देश दिए थे। उन्होंने कहा कि अरावली पर्वतमाला संरक्षण के लिए राजस्थान सरकार न केवल गंभीर है बल्कि पूरी तरह प्रतिबद्ध है तथा राज्य सरकार अवैध खनन गतिविधियों पर जीरो टॉलरेंस नीति पर काम कर रही है।

राजस्थान के प्रमुख सचिव माइंस टी.रविकांत ने संयुक्त अभियान वाले 20 जिलों के जिला कलेक्टरों एवं पुलिस अधीक्षकों को एक पत्र लिख कर इस अभियान के संचालन के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश जारी किए है। उन्होंने जिला कलेक्टरो को एसआईटी टास्क फोर्स की तत्काल मीटिंग करने, संभावित क्षेत्र चिन्हित कर अवैध खनन करने वालों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं। इस अभियान के अंतर्गत सभी जिला कलेक्टर प्रतिदिन अभियान की मॉनिटरिंग करेंगे और प्रमुख खान सचिव को अपनी रिपोर्ट भेजेंगे। टी.रविकांत ने बताया कि अरावली पर्वतमाला के राजस्थान के 20 जिलों में अरावली पर्वतमाला की पारिस्थितिकी, जैव विविधता, जल पुनर्भरण और रेगिस्तानीकरण के विस्तार को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए राज्य सरकार अरावली संरक्षण के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध होने के साथ ही बहुत गंभीर है। राज्य के प्रशासनिक सुधार विभाग के आदेश 2003 एवं नवीनतम आदेश 2025 के तहत इन जिलों में जिला कलक्टर की अध्यक्षता में एसआईटी का गठन किया गया है। संयुक्त अभियान के लिए गठित टीम में राज्य माइंस विभाग से खनि अभियंत,/खनि अभियंता (सतर्कता), सहायक खनि अभियंता,सहायक खनि अभियंता (सतर्कता), भू वैज्ञानिक एवं तकनीकी कर्मचारी, राजस्व विभाग से उपखण्ड स्तर और पुलिस विभाग से उप अधीक्षक स्तर के अधिकारीगण, परिवहन विभाग से निरीक्षक एवं उपनिरीक्षक, वन विभाग विभाग से रेंजर स्तर के अधिकारी शामिल किए गए है। इसके साथ ही खनिज एवं खनन रक्षक एवं बोर्डर होमगार्ड के कार्मिक भी सम्मिलित किए गए है। अभियान के दौरान कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए संबंधित जिला पुलिस अधीक्षक आवश्यक पुलिस बल तैनात करेंगे। यह अभियान अवैध खनन, निर्गमन और भण्डारण सहित अवैध खनन गतिविधियों के खिलाफ कारगर साबित होगा। अवैध खनन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई होने के बाद तीन दिन में कम्पाउण्ड राशि एवं एनजीटी द्वारा निर्धारित जुर्माना राशि शास्ति जमा नहीं कराने पर संबंधित खनि अभियंता द्वारा उनके विरुद्ध एफआईआर दर्ज करवाई जाएगी। इसी प्रकार 90 दिन में भी राशि जमा नहीं होने पर वाहन, उपकरण आदि राज्य सरकार के कब्जे में लाने की कार्रवाई होगी। जिला कलक्टर द्वारा अवैध खनन गतिविधियों के संदर्भ में पूर्व में दर्ज एफआईआर पर भी कार्रवाई सुनिश्चित कराने के साथ ही पूर्व में जब्त खनिजों की नीलामी की कार्रवाई भी की जाएगी। खातेदारी की भूमि पर अवैध खनन गतिविधियों पर संबंधित राजस्व अधिकारी द्वारा खातेदारी निरस्त करने की कार्रवाई की जाएगी। जिला कलक्टरों द्वारा प्रतिदिन की गई कार्रवाई समीक्षा के बाद प्रमुख सचिव माइंस को रिपोर्ट भेजी जाएगी। इस अभियान के दौरान माइंस विभाग के अतिरिक्त निदेशकों और अधीक्षण खनि अभियंताओं को समन्वय, मार्गदर्शन, निरन्तर फील्ड में भ्रमण और मोनेटरिंग की जिम्मेदारी दी गई है। अतिरिक्त निदेशक सतर्कता (मुख्यालय) द्वारा पर्यवेक्षण किया जाएगा। अधीक्षण खनि अभिंयंताओं द्वारा दैनिक रिपोर्ट मुख्यालय को भेजी जाएगी और पोर्टल पर भी दर्ज की जाएगी। मुख्यालय द्वारा प्रतिदिन दैनिक रिपोर्ट राज्य सरकार को प्रेषित की जाएगी। राज्य सरकार द्वारा अभियान के दौरान कठोर निरोधात्मक एवं कानूनी कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं ताकि समन्वित प्रयासों से अवैध खनन गतिविधियों पर प्रभावी अंकुश लगाया जा सके।

उल्लेखनीय है कि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने अरावली को लेकर एक अहम निर्णय देते हुए इसकी कानूनी परिभाषा स्पष्ट की है। कोर्ट के अनुसार, किसी भू-भाग को तभी अरावली पहाड़ी माना जाएगा जब उसकी ऊँचाई आसपास की जमीन से कम से कम 100 मीटर या उससे अधिक हो। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि यदि 100 मीटर या उससे अधिक ऊँचाई वाली दो या अधिक पहाड़ियाँ 500 मीटर के दायरे में स्थित हों, तो उन्हें अरावली पर्वत श्रृंखला का हिस्सा माना जाएगा। यह परिभाषा राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली और गुजरात सभी राज्यों में समान रूप से लागू होगी, जिससे अब अरावली को लेकर अलग-अलग राज्यों में भिन्न मानकों की स्थिति समाप्त हो जाएगी। कोर्ट ने पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखते हुए नई खनन लीज़ और पुरानी लीज़ के नवीनीकरण पर तब तक रोक लगा दी है, जब तक कि केंद्र और राज्य सरकारें वैज्ञानिक सर्वे, डिजिटल मैपिंग और पर्यावरण प्रबंधन योजना तैयार नहीं कर लेतीं। साथ ही, नो-गो एरिया चिन्हित करने के निर्देश भी दिए गए हैं। यह आदेश विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है, हालांकि 100 मीटर की सीमा को लेकर खनिज कारोबारियों और पर्यावरणविदों तथा राजनीति से जुड़े नेताओं के बीच बहस भी जारी है।

अरावली पर्वतमाला भारत की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है, जिसकी आयु लगभग 1500–2500 मिलियन वर्ष मानी जाती है। यह पर्वतमाला गुजरात के पालनपुर से लेकर राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली होते हुए उत्तर-पूर्व तक फैली हुई है। अरावली केवल भूगोलिक संरचना नहीं, बल्कि उत्तर भारत के पर्यावरणीय संतुलन, जल सुरक्षा, जैव विविधता और जलवायु नियंत्रण की रीढ़ मानी जाती है। इसी कारण अरावली को लेकर दशकों से कानूनी, पर्यावरणीय और राजनीतिक बहस चलती रही है, जो अंततः सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची। अरावली पर्वतमाला राजस्थान और हरियाणा में वर्षा जल के संचयन, भूजल रिचार्ज और मरुस्थलीकरण को रोकने में अहम भूमिका निभाती है। यह थार मरुस्थल को पूर्व की ओर बढ़ने से रोकने वाली प्राकृतिक दीवार की तरह है। इसके अलावा, अरावली क्षेत्र जैव विविधता से समृद्ध है।यहां कई दुर्लभ वनस्पतियां, वन्य जीव और पक्षी प्रजातियां पाई जाती हैं लेकिन पिछले कुछ दशकों में अरावली पर अवैध खनन, अंधाधुंध निर्माण, फार्महाउस संस्कृति, रियल एस्टेट परियोजनाएं और सड़क निर्माण ने गंभीर खतरा पैदा कर दिया। हरियाणा के फरीदाबाद, गुरुग्राम और राजस्थान के अलवर, भरतपुर, उदयपुर जैसे क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर पत्थर खनन हुआ, जिससे पहाड़ों का स्वरूप बिगड़ता गया।

अरावली को लेकर मुख्य विवाद इस बात पर केंद्रित रहा कि इसे वन क्षेत्र माना जाए या नहीं। कई स्थानों पर अरावली क्षेत्र को राजस्व रिकॉर्ड में गैर-वन भूमि, गैर-मुमकिन पहाड़ या अन्य श्रेणियों में दर्ज किया गया था। इसका फायदा उठाकर निजी बिल्डरों और खनन माफिया ने वहां गतिविधियां तेज कर दीं। पर्यावरणविदों और सामाजिक संगठनों ने इसे सुप्रीम कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में चुनौती दी। तर्क दिया गया कि चाहे राजस्व रिकॉर्ड कुछ भी कहे, यदि कोई क्षेत्र पारिस्थितिक रूप से वन जैसा है, तो उसे संरक्षण मिलना ही चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने अरावली मामले में ऐतिहासिक निर्णय लिया। इससे पूर्व भी कोर्ट ने कई महत्वपूर्ण निर्णय दिए, जिनका मूल भाव पर्यावरण संरक्षण रहा। अदालत ने स्पष्ट कहा कि वन संरक्षण अधिनियम, 1980 केवल उन्हीं क्षेत्रों पर लागू नहीं होता जो सरकारी रिकॉर्ड में वन के रूप में दर्ज हों, बल्कि उन क्षेत्रों पर भी लागू होगा जो वन जैसे गुण रखते हों। यह सिद्धांत पहले भी टी.एन. गोदावर्मन थिरुमुलपाड़ बनाम भारत संघ मामले में स्थापित किया जा चुका था।अरावली मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अवैध खनन पर सख्त रुख अपनाया है तथा हरियाणा और राजस्थान में कई स्थानों पर खनन गतिविधियों पर रोक लगाई है। अदालत ने कहा कि पर्यावरणीय क्षति की भरपाई केवल आर्थिक दंड से संभव नहीं है, क्योंकि पहाड़ और पारिस्थितिकी तंत्र दोबारा आसानी से नहीं बनते। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और संबंधित राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि वे अरावली क्षेत्र की स्पष्ट पहचान करें, उसका सीमांकन करें और दीर्घकालिक संरक्षण योजना बनाएं। अदालत ने यह भी कहा कि विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन जरूरी है, लेकिन विकास के नाम पर प्रकृति का विनाश स्वीकार्य नहीं है। हालांकि कुछ मामलों में कोर्ट ने यह भी माना कि पहले से बनी कुछ संरचनाओं को पूरी तरह हटाना व्यावहारिक नहीं हो सकता, लेकिन भविष्य में किसी भी नए निर्माण या खनन के लिए सख्त पर्यावरणीय मंजूरी आवश्यक होगी।

सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों के बाद अरावली में खनन गतिविधियों पर काफी हद तक अंकुश लगा है। एनजीटी और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की निगरानी बढ़ी है। हालांकि, जमीनी स्तर पर अभी भी कई चुनौतियां बनी हुई हैं। विशेषज्ञों का मत है कि अवैध खनन के नए तरीके,कथित प्रशासनिक ढिलाई और विकास परियोजनाओं का दबाव लगातार चिंता का विषय हैं। पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि केवल न्यायिक आदेश पर्याप्त नहीं हैं। जब तक स्थानीय प्रशासन, राजनीतिक इच्छाशक्ति और जनभागीदारी नहीं होगी, तब तक अरावली का पूर्ण संरक्षण संभव नहीं है। जल आन्दोलन के प्रणेता राजेन्द्र सिंह का कहना है कि यदि अरावली को नहीं बचाया गया तो थार रेगिस्तान का विस्तार राष्ट्रीय राजधानी तक पहुंच सकता है।अरावली पर्वत श्रृंखलाएं राजस्थान को नैसर्गिक रूप से दो भौगोलिक भागों में विभाजित करता है। पश्चिमी राजस्थान और उससे सटा गुजरात का सौराष्ट्र थार रेगिस्तान का अभिन्न हिस्सा है जबकि दूसरा भाग चम्बल और अन्य नदियों के तटों से जुड़ा हुआ है।

अरावली पर्वतमाला का मामला केवल पहाड़ों या खनन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत के पर्यावरणीय भविष्य से जुड़ा प्रश्न है। सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों ने यह स्पष्ट संदेश दिया है कि प्रकृति को राजस्व रिकॉर्ड या तात्कालिक आर्थिक लाभ से ऊपर रखा जाना चाहिए। अरावली का संरक्षण आने वाली पीढ़ियों के लिए जल, हवा और जीवन की रक्षा है। अब जिम्मेदारी सरकार, समाज और नागरिकों की है कि वे इन फैसलों को कागजों तक सीमित न रखें, बल्कि धरातल पर भी उतारे ।