लोकतांत्रिक मूल्यों को सुदृढ़ करने वाला ऐतिहासिक निर्णय
गोपेन्द्र नाथ भट्ट
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वर्ष 2014 में देश की बागडोर संभालने के बाद राजधानी नई दिल्ली में प्रधानमंत्री निवास 7, रेसकोर्स का नाम बदल कर लोक कल्याण मार्ग रख दिया था। इसी प्रकार सेंट्रल विस्टा के पुनर्निर्माण के अन्तर्गत जनपथ का नाम बदल कर्तव्य पथ किया गया है । प्रधानमंत्री मोदी के नक्शे कदम पर चलते हुए उन्हीं की तर्ज पर राजस्थान के गांधी टॉपी पहनने वाले राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े ने राजभवन,जयपुर का नाम बदल कर अब लोकभवन रखने का प्रशंसनीय निर्णय लिया है। इसके लिए उन्होंने विधिवत सरकारी अधिसूचना भी जारी करवाई है। राजस्थान के इतिहास में संभवतः पहली बार किसी राज्यपाल ने राजभवन जैसे पारंपरिक नाम में बदलाव कर उसे जनता की आत्मा से सीधे जोड़ने का साहसिक निर्णय लिया है। राजभवन शब्द भारतीय उपनिवेश काल से चली आ रही औपचारिकता, प्रशासनिक गरिमा और उच्च सत्ता का प्रतीक रहा है। हालांकि स्वतंत्रता के बाद भी इस शब्द के उपयोग में बदलाव नहीं हुआ। राजभवन के बजाय लोकभवन नाम अपनाने के पीछे राजस्थान के राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े की मंशा यह बताई जा रही है कि लोकतंत्र में सर्वोच्च शक्ति जनता है और संवैधानिक संस्थाएं जनता के लिए, जनता से और जनता की सेवा में ही संचालित होती हैं। इसलिए राजभवन का नाम लोकभावन किया जाना जन भावनाओं के अनुरूप लिया गया महत्वपूर्ण निर्णय है।
इस निर्णय से राजस्थान की संवैधानिक प्रणाली में एक ऐतिहासिक अध्याय जुड़ गया है।यह कदम न केवल प्रशासनिक ढांचे में एक बड़ा परिवर्तन माना जा रहा है,बल्कि लोकतांत्रिक मूल्यों, जनभागीदारी और संवैधानिक संस्थाओं के जनोन्मुख स्वरूप को और मजबूत करने वाला प्रयास भी है। राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े के अनुसार, लोकभवन नाम जनता के प्रति संवैधानिक संस्थानों की जवाबदेही एवं पारदर्शिता को मजबूत करेगा। इस बदलाव को उस विचारधारा का विस्तार माना जा रहा है, जो शासन को अधिक मानवीय, सुलभ और संवाद परक बनाना चाहती है।पिछले कुछ समय से राजस्थान के राज्यपाल हरिभाऊ ने अपने कार्यकाल में कई ऐसे कदम उठाए हैं जो राजभवन को पारंपरिक सीमाओं से बाहर निकालते हैं। उन्होंने राजभवन के द्वार आमजन, विद्यार्थियों और सामाजिक संगठनों के लिए खोल दिए है। राजभवन में नवाचार, कौशल विकास, कृषि सुधार और युवा नेतृत्व से जुड़े कई कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे है। राज्यपाल ने विभिन्न जिलों के विद्यार्थियों, किसानों, स्वयं सहायता समूहों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ संवाद कार्यक्रम भी शुरू किए है। राज्यपाल ने अपने कार्यभार संभालने के पहले दिन से ही राजभवन परिसर को सांस्कृतिक और शैक्षिक गतिविधियों का केंद्र बनाने पर जोर दिया है।
राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े की इन पहलों का स्वाभाविक विस्तार अब राजभवन का लोकभवन के रूप में नया नामकरण के रूप में दिखाई देता है। इससे संकेत मिलता है कि राज्यपाल संवैधानिक संस्थानों को जनता के निकट लाने के लिए एक व्यापक दृष्टि के साथ काम कर रहे हैं।
नाम परिवर्तन के साथ ही राजस्थान के लोकभवन में कई ऐसी योजनाएँ शुरू की जा सकती हैं, जो इसे जनता के लिए अधिक सुलभ और सुगम बनाएँगी।
लोकभवन नामकरण पर राज्य में ही नहीं देश भर में चर्चाए तेज हो गई है। कई सामाजिक संगठनों और बुद्धिजीवियों ने इसे लोकतांत्रिक चेतना को मजबूत करने वाला कदम बताया है। सोशल मीडिया पर इस निर्णय को व्यापक समर्थन मिल रहा है। विशेषकर युवाओं और छात्रों ने इसे राजभवन का लोकतंत्रीकरण कहा है। वहीं राजनीतिक दलों की प्रतिक्रियाएँ भी सामने आई हैं। सत्ता पक्ष भाजपा ने इसे राज्य की बदलती प्रशासनिक संस्कृति का प्रतिबिंब बताया है । विपक्ष ने नामकरण के उद्देश्य को सही माना, परंतु भवन को जनता के लिए और अधिक खुला करने की ठोस रूपरेखा जारी करने की मांग भी कर दी है। कुछ नेताओं ने कहा कि लोकभवन का नामकरण तभी सार्थक होगा जब इसकी कार्यप्रणाली, पहुंच और कार्यक्रम जनता के हित में वास्तविक रूप से विस्तृत होंगे। संवैधानिक विशेषज्ञों का मानना है कि यह निर्णय भारतीय लोकतंत्र में प्रतीकात्मक सुधारों की बढ़ती प्रवृत्ति को दर्शाता है। भारत में कई सरकारी भवनों, योजनाओं और परियोजनाओं के नाम बदलकर उन्हें अधिक जन सुलभ बनाया गया है लेकिन किसी राज्यपाल निवास का नाम बदलना एक अत्यंत दुर्लभ और ऐतिहासिक कदम है, जो यह स्पष्ट संदेश देता है कि संवैधानिक पद भी बदलाव की नई धारा का हिस्सा बनने को तैयार हैं।
प्रशासनिक सूत्रों के अनुसार राजस्थान के लोक भवन में अब प्रति सप्ताह या माह में एक दिन लोक संवाद दिवस का आयोजन भी किया जा सकता है। साथ ही छात्र समूहों और नागरिक मंचों के लिए ओपन हाउस विजिट के आयोजनों के साथ ही कला, साहित्य, नवाचार और सामाजिक सुधार से जुड़े सार्वजनिक आयोजन भी किए जा सकते है। इसके अलावा समाज के विभिन्न वर्गों जैसे किसान, महिला समूह, स्टार्टअप और युवा संगठनों के लिए विशेष बैठकें भी हो सकती है। राज्यपाल बागड़े के इन प्रयासों से लोकभवन को जनता के लिए संवाद का केंद्र बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा सकता है।
लोकतंत्र का मूल आधार जनता की भागीदारी है। राजस्थान में राजभवन के स्थान पर लोकभवन नाम न केवल राज्य के प्रथम पुरुष राज्यपाल के सरकारी भवन की पहचान बदलेगा, बल्कि प्रशासनिक संस्कृति में भी एक नए परिवर्तन लाने की संभावनाओं को जन्म देगा। इससे नई पीढ़ी और नागरिक समाज को यह संदेश मिलेगा कि शासन और संवैधानिक संस्थाएँ जनता की आवाज़ सुनने और उनके बीच उपस्थित रहने की इच्छुक हैं।
इस प्रकार राजस्थान के राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े द्वारा राजभवन का नाम बदलकर लोकभवन किया जाना एक दूरदर्शी और ऐतिहासिक कदम कहा जा सकता है। यह निर्णय न केवल प्रतीकात्मक महत्व रखता है,बल्कि लोकतांत्रिक जनभागीदारी, पारदर्शिता और जनता से सीधे संवाद की दिशा में एक नई राह भी खोलता है। आम नागरिकों का मानना है कि राजस्थान सरकार एवं मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा को जयपुर के शासन सचिवालय का नाम भी बदल कर लोक सचिवालय कर देना चाहिए। इसी प्रकार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को नहीं देश की राजधानी नई दिल्ली में स्थित लोकतंत्र। के सबसे बड़े मन्दिर संसद भवन का नाम भी लोक संसद भवन रख देना चाहिए क्योंकि राजस्थान के राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े ने उनके विचारों से प्रेरित होकर ही राजभवन का नाम लोकभवन रखने का साहसिक कदम उठाया है।
उम्मीद है राजस्थान का लोकभवन आने वाले समय में राजस्थान की शासन-व्यवस्था का ऐसा केंद्र बन सकता है, जहाँ संवैधानिक मर्यादा और जनसंपर्क दोनों का एक सुंदर संगम देखने को मिलेगा।





