भारत की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के दिल में रचा बसा है राजस्थान

Rajasthan is situated in the heart of India's national capital Delhi

गोपेन्द्र नाथ भट्ट

दिल्ली और रंगबिरंगे राजस्थान का रिश्ता सदियों से बहुत ही अतरंग रहा है। मुगल काल से अंग्रेजी हुकुमत और भारत की आजादी से अब तक के अमृत काल में यह रिश्ता बदस्तूर कायम है। पुरानी और नई दिल्ली के निर्माण एवं इसके उत्तरोत्तर विकास में राजस्थान की महत्वपूर्ण भूमिका रही है और आज भी राजस्थान राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के दिल में रचा बसा हुआ है। दिल्ली के ऐतिहासिक भवनों और स्मारकों में राजस्थान के महत्वपूर्ण योगदान को देखा जा सकता है। दिल्ली का ऐतिहासिक लाल किला, पुराना किला, कुतुब मीनार, राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, इंडिया गेट, लोटस टैंपल और गिनिज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड में स्थान पाने वाला अक्षरधाम मंदिर राजस्थानी स्थापत्य एवं वास्तु कला के बेजोड़ नमूने है। इनके निर्माण में राजस्थान का चूना- पत्थर, सीमेंट और वास्तुकारों, मजदूरों एवं मिस्त्रियों का अथक परिश्रम और अतुलनीय योगदान शामिल है। नई दिल्ली की पहली सरकारी पांच सितारा अशोक होटल की स्थापत्य कला और इसमें लगा गुलाबी पत्थर भी राजस्थानी वास्तुकला का दिग्दर्शन कराता है। संसद मार्ग स्थित ऐतिहासिक जंतर-मंतर और प्राचीन भैरो मंदिर सहित अनेक स्थल राजस्थान की ही देन है।

बताया जाता है कि लुटियंस की नई दिल्ली का निर्माण राजस्थान की धरती पर हुआ है। नई दिल्ली के निर्माण के लिए जब ब्रिटिश हुकुमत ने रायसीना क्षेत्र को चुना था, उन दिनों यह क्षेत्र जयपुर राज्य की संपति थी और इसे जसवंतसिंह पुरा कहा जाता था । नई दिल्ली बनाने के लिए जयपुर महाराजा ने यह सारा क्षेत्र ब्रिटिश सरकार को भेंट कर दिया और इस भेंट को जीवंत बनाने के लिए वायसराय हाउस (वर्तमान राष्ट्रपति भवन) में नॉर्थ एवं साउथ ब्लॉक के मध्य जयपुर स्तंभ का निर्माण किया गया । यह जयपुर स्तंभ आज भी अपनी गगनचुम्बी ऊँचाई के साथ शान के साथ खड़ा हैं।

जयपुर के पूर्व महाराजा सवाई जयसिंह ने देश के विभिन्न स्थानों के साथ ही दिल्ली में भी कनाट प्लेस के निकट ऐतिहासिक जंतर-मंतर का निर्माण करवाया था। कनॉट प्लेस के गोल डाकखाने के पास गुरूद्वारा बंगला साहब भी अंबर (आमेर ) जयपुर के महाराजा मिर्जा राजा जय सिंह का ही जयसिंहपुरा पैलेस नामक बंगला था। उन्होंने यह बंगला सिख संत गुरु हर कृष्ण साहब की सेवा में समर्पित कर दिया। इसी प्रकार राष्ट्रपति भवन के पीछें स्थित तालकटोरा गॉर्डन जयपुर राजघराने की शिकारगाह थी। इसके पास राजा बाजार (गोल मार्किट) भी महाराजा ने ही बसाया था। रिवोली सिनेमा और हनुमान मंदिर के मध्य स्थित गणेश एवं शिव मंदिर जयपुर महाराजा के पूजा एवं आराधना स्थल थे। कनॉट प्लेस और इसके सर्किल का निर्माण भी राजस्थान की प्रस्तर कला का ही बेजोड़ नमूना है।

चांदनी चौक में ऐतिहासिक मारवाड़ी सार्वजनिक पुस्तकालय आजादी के दौरान स्वाधीनता सेनानियों के संपर्क का सबसे बड़ा केन्द्र रहा । नई सड़क, मारवाड़ी औषधालय, विद्यालय, कटरा सराय, दादी का मंदिर आदि अनेक स्थान हैं जो दिल्ली के निर्माण में राजस्थानियों के योगदान के गवाह हैं। नई दिल्ली में प्रधानमंत्री निवास के पास जयपुर पोलो ग्राउण्ड और तीस जनवरी मार्ग पर स्थित बिड़ला हाउस (जहाँ राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने अपनी अंतिम सांस ली) और दिल्ली का भव्य बिड़ला मंदिर भी राजस्थान से ही सम्बद्ध हैं। दिल्ली में राजस्थान की विभिन्न रिसायतों द्वारा बनवाए गए भव्य भवन दिल्ली की ऐतिहासिक धरोहर है। इनमें जयपुर हाऊस (वर्तमान में इन्दिरा गाँधी मार्डन आर्ट गैलेरी), जोधपुर हाऊस, भरतपुर हाऊस (वर्तमान में राजस्थान भवन ) जैसलमेर हाऊस (वर्तमान में केन्द्र सरकार के कार्यालय), धौलपुर हाऊस (वर्तमान में यूपीएससी), बीकानेर हाऊस (वर्तमान में राजस्थान सरकार के कार्यालय), कोटा हाउस (वर्तमान में नेवल हाउस) और पुरानी दिल्ली में राज निवास रोड पर स्थित उदयपुर हाऊस आदि कई भवन हैं । सूरजकुण्ड के निकट बनाया गया तुगलकाबाद शूटिंग रेंज, बीकानेर के पूर्व महाराजा ओलम्पियन कर्णीसिंह की स्मृति को समर्पित है। दिल्ली के सिविल लाईन्स स्थित संत परमानंद अस्पताल का शुभांरभ भी प्रवासी राजस्थानियों ने किया था। हाल ही निर्मित नया संसद भवन और कुछ वर्ष पहले अकबर रोड पर बना नया गुजरात भवन गर्वी गुजरात भी राजस्थान के गुलाबी पत्थर से ही बना है।

दिल्ली में कश्मीरी गेट, महाराणा प्रताप अर्तराज्यीय बस अड्डे और संसद परिसर में वीर शिरोमणी महाराणा प्रताप की चेतक पर सवार प्रतिमा के साथ झाला राणा, भामाशाह, शूरशेर सूरी खान एवं भील सैनिक राणा पूंजा की मूर्तियां राजस्थान के शौर्य,बलिदान और राष्ट्र भक्ति की याद दिलाते हैं। कश्मीरी गेट के कुदसिया पार्क में भी महाराणा प्रताप की अश्वारूढ प्रतिमा लगाई गई है। दिल्ली का अणुव्रत भवन एवं छतरपुर स्थिति साधना केन्द्र तेरापंथ आचार्य तुलसी के अणुव्रत आंदोलन के प्रमुख केन्द्र है। प्रवासी राजस्थानियों ने आजादी से पहले और बाद में दिल्ली में स्थापित देश के सबसे बड़े कई समाचार पत्र और मीडिया समूह भी राजस्थान से ही सम्बद्ध हैं और इस प्रकार पत्रकारिता के क्षेत्र में भी राजस्थान का अहम योगदान हैं।

राजस्थान के सपूतों ने अपने भगीरथी प्रयत्नों से अपनी जन्म भूमि राजस्थान के गौरव और कर्मभूमि (जहां -जहां भी प्रवासी राजस्थानी रहते हैं) के विकास और देश की जीडीपी को बढ़ाने में अपना ऐतिहासिक योगदान प्रदान किया है।राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में वर्तमान में लगभग 20 लाख से अधिक प्रवासी राजस्थानी हैं। जिसमें बड़े-बड़े उद्योगपतियों, बिज़नेस आइकॉन, व्यवसायियों से लेकर सरकारी कर्मी, राज-मजदूर और कठपुतली एवं लोक कलाकार तक शामिल है।

राष्ट्रपति भवन के मध्य खड़ा जयपुर स्तम्भ जहां एक ओर राजस्थान के स्वाभिमान का प्रतीक है तो दूसरी ओर इस महानगर की सड़कों पर लोहा कूटते महाराणा प्रताप की सेना का हिस्सा रहे गाड़िया लुहार आज भी देश प्रेम एवं कड़ी मेहनत के प्रतीक हैं। इसी प्रकार पूरी दुनिया में अपने परिश्रम, व्यापारिक कौशल और बुद्धिमता के लिए मशहूर मारवाड़ी उद्यमी, दिल्ली के औद्यौगिक एवं व्यवसायिक विकास में अपना विशेष योगदान प्रदान कर रहें है। दिल्ली के बाजारों खासकर चाँदनी चौक,खारी बाबली,चावड़ी बाज़ार, करोल बाग, पहाड़ गंज,दरिया गंज, सदर बाज़ार, कनाटप्लेस, कमला मार्केट,लाजपत नगर आदि बाजारों में प्रवासी राजस्थानी प्रतिदिन करोड़ों रूपयों का कारोबार करते है और यें देश की राजधानी के व्यवसाय का मुख्य और सशक्त स्तम्भ भी हैं। यें सभी व्यापारी पूरी तरह से राजस्थान के ईमानदार मजदूरों एवं पल्लेदारों पर ही निर्भर रहतें है और प्रतिदिन करोड़ों रूपये की लेन देन इनके विश्वास पर ही होती है।

दिल्ली में रहने वाले प्रवासी राजस्थानियों की विभिन्न संस्थाओं द्वारा संचालित विभिन्न सामाजिक कार्यों एवं समाज सेवा की विविध गतिविधियों से भारत की राजधानी नई दिल्ली का संबंध अन्य प्रान्तों की तुलना में राजस्थान से अधिक प्रगाढ़ हुआ है। अपनी स्थापना का स्वर्णिम वर्ष मना रही संस्था राजस्थान रत्नाकर इसमें अग्रणी हैं।इस तरह यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं है कि हकीकत में प्रवासी राजस्थानी राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की आर्थिक, व्यावसायिक,सामाजिक और सांस्कृतिक चक्र की बेजोड़ धुरी हैं।

(लेखक गोपेन्द्र नाथ भट्ट, राजस्थान के मुख्यमंत्रियों के प्रेस अटेची और राजस्थान सूचना केंद्र, नई दिल्ली के अतिरिक्त निदेशक रहें है)