भारतीय संस्कृति की प्रतिमूर्ति थीं राजमाता सिंधिया

Rajmata Scindia was the epitome of Indian culture

जवाहर प्रजापति

कश्मीर से कन्याकुमारी और कटक से अटक तक हमारा भारत अखंड है l लेकिन तबकी कांग्रेस सरकार की गलत नीतियों के कारण कश्मीर घाटी में हम भारतीय तिरंगा झंडा फहरा भी नहीं पाते थे l हमारे देश की आन बान शान तिरंगा झंडा को फहराने के लिए भारतीय जनता पार्टी के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री मुरली मनोहर जोशी जी के आव्हान दिया l भाजपा के आव्हान पर कश्मीर में श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा झंडा फहराने के लिए दिसम्बर 1991 में कन्या कुमारी से शुरू हुई l इस एकता यात्रा में देश भर से राष्ट्र भक्तों का जनसैलाब कूच करने लगा l इस यात्रा का समूचा प्रबंधन श्री नरेन्द्र मोदी जी देख रहे थे l उस समय जब विषम परिस्थिति थी तब एक तरफ कांग्रेस की सरकार तिरंगा झंडा फहराने हेतु जाने वालों की सुरक्षा से अपने हाथ खड़ी कर चुकी थी और दूसरी तरफ आतंकी कुछ अनहोनी करने के मूड में थे l ऐसी विषम परिस्थिति में भी राजमाता विजयाराजे सिंधिया जी राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए प्राणों की परवाह किए बगैर इस अभियान में शामिल हुई l राजमाता साहब 25 जनवरी 1992 को जम्मू में सुबह ठीक 5:00 बजे रघुनाथ मंदिर पर दर्शन के लिए आ गई थी l अम्मा महाराज के साथ दर्शन करने का सौभाग्य मुझे भी प्राप्त हुआ था l राजमाता साहब ने राष्ट्रभक्ति को सर्वोच्च सर्वोच्च प्राथमिकता दी l

प्रखर राष्ट्रवादी एवं धर्मनिष्ठ ग्वालियर राजघराने की बहू और फिर देश की लोकनेत्रियों में शामिल विजयाराजे सिन्धिया यानि राजमाता जी का जन्म करवा चौथ ( तिथि के अनुसार) 1919 ईस्वी में, सागर, मध्यप्रदेश के राणा परिवार में हुआ था। राजमाता विजयाराजे सिन्धिया के पिता महेन्द्रसिंह ठाकुर जालौन जिला के डिप्टी कलेक्टर थे, उनका विवाह के पूर्व का नाम लेखा दिव्येश्वरी था। उनका विवाह 21 फरवरी 1941 ईस्वी में ग्वालियर के महाराजा जीवाजीराव सिन्धिया से हुआ था। राजमाता के पांच संताने हुई, जिसमें प्रथम पदमावती राजे सिन्धिया, द्वितीय उषाराजे सिन्धिया, माधवराव सिन्धिया, चतुर्थ वसुधराराजे सिन्धिया, पंचम यशोधाराजे सिन्धिया हैं। राजमाता जी का जीवन आदर्श, सिद्धांत और लोकसेवा का भाव लाखों लोगों को प्रेरित करता रहा।

विरले ही होते है वे जो जीते जी हर किसी के लिये आदर्श बन जाते है। राजनीति में आदर्श बनना भले ही एक कठिन कार्य हो लेकिन इस कार्य को आसान बनाया राजमाता विजयाराजे सिन्धिया ने। वे भारतीय राजनीति में शिखर की राजनीति करते हुए भी राजमाता से लोकमाता के रूप में स्थापित हो गई। उनके अंर्तमन से जिस स्नेह की धारा प्रस्फुटित होती थी। उसके कारण वे आम जनता के लिये आदरणीय बन गई। उन्होंने राजनीति को एक नई दिशा दिखाने का कार्य किया। एक राजपरिवार से रहते हुए भी वे अपनी ईमानदारी सादगी और प्रतिबद्धता के कारण पार्टी में सर्वप्रिय बन गई। बाद में वे शक्तिस्तंभ के रूप में सामने आयी।

1998, 1999 में लोकसभा के लिये चुनी गई। उनके मार्गदर्शन में अनेक कार्यकर्ताओं का निर्माण हुआ जो आज भी देश की सेवा में समर्पित है। उन्होंने प्रदेश और ग्वालियर के विकास के लिये अनेक कार्य किये, जिन्हें कभी नहीं भुलाया जा सकता। हम उनके बताये मार्ग पर चलकर उनके सपनों को साकार कर सकते थे। आज वे हमारे बीच में भौतिक रूप से भले ही उपस्थित न हो किन्तु वे हमारे हृदय पर आज राज करती है। ऐसी हमारी करूणामयी, ममतामयी, विनम्रभाव, निश्छल प्रेम की प्रतीक देश की सेवा में समर्पित सौम्यता की मूर्ति, सादगी व स्फूर्ति की प्रतिमूर्ति को शत शत नमन्।
(लेखक भारतीय जनता पार्टी मध्यप्रदेश के सह मीडिया प्रभारी हैं)