रमेश सर्राफ धमोरा
राजस्थान से राज्यसभा के लिए चार नए सदस्यों का चुनाव होना है। आगामी 10 जून को इसके लिए वोट डाले जाएंगे। राज्यसभा चुनाव के लिए कांग्रेस पार्टी ने तीन प्रत्याशी व भाजपा ने एक प्रत्याशी खड़ा किया है। वही हरियाणा से राज्यसभा सांसद सुभाष चंद्रा के निर्दलीय मैदान में उतर जाने के बाद राजस्थान में राज्यसभा का चुनाव रोचक हो गया है। चुनाव का नतीजे अब वोटो से ही तय होना निश्चित हो गया है। ऐसे में कांग्रेस पार्टी ने अपने समर्थक विधायकों को उदयपुर में एक रिसोर्ट में ले जाकर रखा हुआ है।
राजस्थान में 200 विधायक है तथा चार सदस्यों का चुनाव होना है। ऐसे में जीत के लिए हर सदस्य को 41 मतों की जरूरत पड़ेगी। कांग्रेस पार्टी ने वरीयता क्रम में मुकुल वासनिक, रणदीप सुरजेवाला व प्रमोद तिवारी को अधिकृत प्रत्याशी घोषित किया है। वहीं भाजपा ने अपने वरिष्ठ नेता घनश्याम तिवाड़ी को अधिकृत प्रत्याशी बनाया है। भाजपा के समर्थन से सुभाष चंद्रा निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में उतरे हैं। 4 सीटों पर 5 प्रत्याशी मैदान में आने के कारण चुनाव होना तय हो गया है।
कांग्रेस को अपने तीनों प्रत्याशी जिताने के लिए 123 वोट चाहिए। जबकि पार्टी के पास खुद के 108 वोट है। बाकी 15 वोट उन्हें निर्दलीय और अन्य दलों से प्राप्त करने होंगे। भाजपा के 71 सदस्य होने के कारण उनके प्रत्याशी की आसानी से जीत हो जाएगी। पार्टी अपने बचे हुए 30 वोट निर्दलीय सुभाष चंद्रा को देती है तो भी जीत के लिए सुभाष चंद्रा को 11 और वोटों की जरूरत पड़ेगी। जो उन्हें निर्दलीय व अन्य दलों के विधायको से लेने होंगे।
मीडिया मुगल सुभाष चंद्रा के चुनाव मैदान में आने से राजस्थान में राज्यसभा चुनाव में विधायकों की खरीद-फरोख्त की संभावना बढ़ गई है। इसी को देखते हुए कांग्रेस पार्टी अपने समर्थक विधायकों की उदयपुर में बाड़े बंदी कर दी है। निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में उतरे सुभाष चंद्रा ने दावा किया था कि उनकी कई छोटे दलों के व निर्दलीय विधायकों से बात हो चुकी है। उनके वोट उन्हें मिलेंगे इसीलिए वह मैदान में उतरे हैं। सुभाष चंद्रा पिछली बार भी हरियाणा में चुनावी उलटफेर करके ही चुनाव जीत गए थे। वैसी ही संभावनायें वह राजस्थान में भी देख रहे हैं। मगर हरियाणा व राजस्थान की परिस्थितियों में काफी फर्क है।
पिछले चुनाव में सुभाष चंद्रा की जीत का सबसे बड़ा कारण हरियाणा में भाजपा की सरकार का होना था। जबकि अभी राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है और राजनीति के जादूगर माने जाने वाले अशोक गहलोत मुख्यमंत्री है। ऐसे में सुभाष चंद्रा के लिए जीत की राह हरियाणा की तरह आसान नहीं होगी। राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरकार भारी बहुमत से शासन कर रही है। भाजपा व हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के विधायकों को छोड़कर बाकी सभी विधायकों का सरकार को समर्थन मिला हुआ है। ऐसे में राज्यसभा चुनाव में भी अशोक गहलोत तीनों ही प्रत्याशियों को जीता कर राजनीति में अपनी जादूगरी दिखाने का हर संभव प्रयास करेंगे।
राजस्थान में कांग्रेस के तीनों ही अधिकृत प्रत्याशी बाहर के होने के कारण कई विधायकों में असंतोष देखा गया था। कांग्रेस पार्टी द्वारा राजस्थान के एक भी व्यक्ति को अपना प्रत्याशी नहीं बनाए जाने के कारण कांग्रेस को क्रास वोटिंग का डर सता रहा है। राज्यसभा चुनाव की घोषणा से पहले अल्पसंख्यक, आदिवासी समाज की तरफ से उनके किसी नेता को प्रत्याशी बनाए जाने की मांग की जा रही थी। मगर कांग्रेस आलाकमान ने सभी की मांग ठुकराते हुए तीनों ही प्रत्याशी केंद्र की राजनीति करने वाले नेताओं को बना दिया। इससे स्थानीय लोगों में नाराजगी देखी जा रही है। जबकि भाजपा ने पार्टी के वरिष्ठ नेता घनश्याम तिवाड़ी को टिकट देकर एक तीर से कई शिकार किए हैं। एक तरफ जहां ब्राह्मण समाज के दिग्गज नेता को राज्यसभा में भेजा जा रहा है। वही वसुंधरा राजे के धुर विरोधी तिवाड़ी को टिकट देकर भाजपा आलाकमान ने वसुंधरा राजे को बता दिया कि आने वाले विधानसभा चुनाव में उनको चेहरा बनाकर चुनाव नहीं लड़ा जाएगा।
लोगों में चर्चा है कि अशोक गहलोत अपने तीनों ही प्रत्याशियों को जीता कर ले जाएंगे। मगर जिस तरह से कांग्रेस आलाकमान ने प्रदेश की तीनों सीटों पर बाहरी उम्मीदवारों को थोपा है उसका खामियाजा कांग्रेस पार्टी को आगे चलकर विधानसभा चुनाव में उठाना पड़ सकता है। राजस्थान में अभी कांग्रेस के 3 राज्य सभा सांसद है। जिनमें से दो पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह व कांग्रेस के संगठन महामंत्री वेणुगोपाल प्रदेश से बाहर के हैं। यदि इस चुनाव में तीनों ही प्रत्याशी जीत जाते हैं तो पार्टी के 6 में से 5 सांसद प्रदेश से बाहर के हो जायेंगे।
राज्यसभा चुनाव में अक्सर देखा जाता है कि प्रदेश में सत्तारूढ़ दल को फायदा मिलता है। पिछली बार वसुंधरा राजे की सरकार में 4 सीटों पर हुये चुनाव में कांग्रेस ने निर्दलीय कमल मोरारका को समर्थन देकर मैदान में उतार दिया था। चुनाव में उन्हें 35 मत ही मिले थे और भाजपा के चारों ही प्रत्याशी चुनाव जीत गए थे। उसी तरह इस बार कांग्रेस के तीनों ही प्रत्याशी जीतने की अधिक संभावना लग रही है।
बसपा से कांग्रेस में आए उदयपुरवाटी के विधायक व सैनिक कल्याण राज्यमंत्री राजेंद्र सिंह गुढ़ा ने भी तीनों ही प्रत्याशी प्रदेश से बाहर के होने पर नाराजगी जताई थी। उनका कहना था कि राजस्थान के किसी नेता को राज्यसभा प्रत्याशी बनाते तो प्रदेश की जनता को अधिक लाभ मिलता। ऐसे ही पूर्व मंत्री व वरिष्ठ विधायक भरत सिंह ने भी तीनों ही बाहरी प्रत्याशियों को लेकर खुलकर नाराजगी जताई है। कांग्रेस को समर्थन दे रहे निर्दलीय विधायक संयम लोढ़ा ने भी आलाकमान द्वारा घोषित तीनों नामों पर आपत्ति जताई है। मगर वह खुद पूर्व में प्रियंका गांधी, कुमार विश्वास, कन्हैया कुमार जैसे बाहरी लोगों को टिकट देने की वकालत कर चुके थे।
भाजपा की तरफ से कमान केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, पार्टी के प्रदेश प्रभारी महासचिव अरुण सिंह, प्रदेश अध्यक्ष डॉक्टर सतीश पूनिया, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने संभाल रखी है। वहीं कांग्रेस की कमान पूरी तरह मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के हाथ में है। गहलोत किसी भी तरह तीनों प्रत्याशियों को जिता कर अपनी ताकत दिखाना चाहते हैं। इससे वो आलाकमान की नजरों में नंबर वन बन जाएंगे। साथ ही सचिन पायलट को भी कमजोर करने में सफल होंगे।
राजस्थान से राज्यसभा चुनाव लड़ रहे तीनों ही नेता कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी व प्रियंका गांधी के नजदीकी लोगों में शुमार है। ऐसे में चुनाव जीतने पर यह नेता दिल्ली की राजनीती में मुख्यमंत्री गहलोत की बात का समर्थन करेगें। इससे गहलोत का पक्ष मजबूत होगा।
चुनावों में कौन जीतता है कौन हारता है इसका सही पता तो नतीजों के बाद ही लग पाएगा। मगर फिलहाल राजस्थान में राज्यसभा का चुनाव पूरे शबाब पर है। सभी प्रत्याशी अपनी-अपनी जीत को लेकर समीकरण बिठाने में लगे हुए हैं।