पिंकी सिंघल
त्योहारों का हमारे जीवन में विशेष महत्व होता है क्योंकि यह हमारे जीवन में खुशनुमा उमंगे एवं तरंगें पैदा करते हैं,हमें जीने का नया ढंग सिखाते हैं और हमारी संस्कृति को जीवंत बनाते हैं। हमारे जीवन में रस लाने का जो विशेष कार्य हमारे लिए हमारे ये उत्सव करते हैं वह बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि बिना त्योहारों के जीवन एकदम नीरस हो जाता है, जीवन में एक खालीपन सा महसूस होता है और एक बोरियत सी महसूस होने लगती है।
भारत को त्योहारों का देश कहा जाता है।साल के प्रत्येक महीने में कोई ना कोई तो त्योहार अवश्य आता है जिसे हम सभी भारतवासी पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं और अपनी संस्कृति को आगे नई पीढ़ियों तक पहुंचाते हैं। अपनी परंपराओं, रीति-रिवाजों और धार्मिक मान्यताओं को महत्व देते हुए त्योहारों को मनाना कोई हम भारतवासियों से सीखे,जो हर त्यौहार को पूरे दिल से और ईमानदारी से मना एक दूसरे के प्रति अपना प्रेम जताकर मानवता की असली मिसाल भी कायम करते हैं। यही भारतीयता है ,यही भारतीय संस्कृति की असली पहचान जहां हम सभी देशवासी धर्म, जाति, वर्ग ,रंग का भेदभाव भुलाकर मिलजुल कर एक दूसरे के त्यौहारों में शरीक होते हैं ,बधाइयां देते हैं ,गले मिलते हैं और सभी अवसरों को पूरी धूमधाम से मनाते हैं।
आज अपने इस लेख में मैं भारत में मनाए जाने वाले पावन पर्व रक्षाबंधन के बारे में कुछ जानकारियां आप सभी के साथ साझा करना चाहूंगी ।हम सभी जानते हैं कि रक्षाबंधन का पावन पर्व प्रतिवर्ष सावन मास की पूर्णिमा तिथि को पूरे भारतवर्ष में बड़े ही धूमधाम और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है ।इस वर्ष भी यह पावन पर्व अगस्त महीने की 22 तारीख को पूरे भारतवर्ष में मनाया जाएगा ।भाई-बहन के पवित्र प्रेम पर आधारित यह त्योहार संबंधों में रस और मधुरता घोल देता है।
रक्षाबंधन के दिन सभी बहनें अपने सगे भाई अथवा मुंह बोले भाई अथवा उस इंसान के हाथों में रक्षा सूत्र बांधती है जिसे वह दिल से अपना भाई मानती है,फिर चाहे उससे उसका रक्त संबंध हो अथवा ना हो ।भाई भी बहन को अपनी सामर्थ्य के अनुसार उपहार देता है और जीवन भर अपनी बहन की रक्षा करने का वचन भी देता है।
हिंदू धर्म में देवताओं को भी राखी बांधने की पुरानी परंपरा रही है।कहा जाता है कि देवताओं को राखी बांधने से देवतागण सारी मनोकामनाएं पूरी करते हैं ।इन देवताओं में गणेश जी, शिव जी ,विष्णु जी ,भगवान श्री कृष्ण जी और हनुमान जी आदि को राखी बांधने का खासा प्रचलन रहा है। कहा जाता है कि भद्रा काल में राखी नहीं बांधी चाहिए क्योंकि भद्रा सूर्य देव की पुत्री कहलाती है जो किसी भी कार्य के लिए शुभ नहीं मानी जाती। मान्यता है कि रावण की बहन ने रावण को भद्रकाली में ही राखी बांधी थी इसलिए ही उसका सर्वनाश हो गया था।
रक्षाबंधन के त्यौहार के साथ साथ ही सावन महीने का भी अंत हो जाता है। कहीं-कहीं पर बहनें अपने भाइयों के साथ साथ अपने पिता को भी राखी बांधती हैं। उसी प्रकार कुछ महिलाएं अपने भाई भतीजों दोनों को ही राखी बांधती हैं। रक्षाबंधन मनाए जाने के पीछे कई कहानियां प्रसिद्ध हैं।राजा बलि और माता लक्ष्मी की कहानी भी रक्षाबंधन के शुरू होने का कारण बताई जाती है।
सैंकड़ों या यूं कहें कि भारतवर्ष में रक्षाबंधन का यह पर्व हजारों वर्षों से मनाया जा रहा है तो कोई अतिशयोक्ति न होगी क्योंकि महाभारत में द्रोपदी ने भी भगवान श्री कृष्ण को राखी बांधी थी ।ठीक उसी प्रकार एक प्रसंग के मुताबिक मेवाड़ की रानी कर्मवती ने भी बहादुरशाह द्वारा उनके राज्य पर हमला किए जाने की खबर जानने के पश्चात हुमायूं के पास राखी भेजी थी और रानी कर्मवती की राखी का सम्मान करते हुए हुमायूं ने उसकी रक्षा भी की थी।
कहने का तात्पर्य यह है कि रक्षाबंधन का त्यौहार मनाए जाने के पीछे बहुत सी ऐतिहासिक कहानियां प्रचलित हैं ।वजह चाहे जो भी रही हो परंतु यह निर्विवाद रूप से सत्य है कि रक्षाबंधन का त्योहार पूरे भारतवर्ष में हजारों वर्षों से पूरी श्रद्धा ,पवित्रता और मान सम्मान के साथ मनाया जाता रहा है और आगे भी इसी प्रकार मनाया जाता रहेगा।
मेरे इस लेख में शामिल की गई सभी जानकारियों से हम सभी जन पहले से ही बहुत अच्छी तरह परिचित हैं ।इस आलेख में ऐसा कुछ नया नहीं लिखा गया है ।यहां मैं केवल यह अभिव्यक्त करने का छोटा सा प्रयास कर रही हूं कि वर्तमान में जब हम सभी एक भागदौड़ भरी जिंदगी व्यतीत कर रहे हैं, ऐसे में हम सभी को अपने त्योहारों को पूरा मान सम्मान देना चाहिए एवं अपनी आगे आने वाली पीढ़ियों को भी यह धरोहर संभलवानी चाहिए ताकि वह भी इन त्योहारों को उतने ही मान सम्मान ,स्नेह और श्रद्धा के साथ मनाएं जितना कि हमारे पूर्वज मनाते थे और उनके बाद हम भी आज उन त्योहारों को उसी श्रद्धाभाव से मनाते हैं ।
त्योहारों का असली मतलब बच्चों को समझाना हमारा ही तो परम कर्तव्य है। हमें अगली पीढ़ी को यह समझाना होगा कि त्योहारों का वास्तविक अर्थ एक दूसरे के सुख दुख में भागीदार बनना एवं उनके मुसीबत के समय में उनकी सहायता करना एवं एक दूसरे के साथ मेलजोल बनाए रखना है। औपचारिकता के तौर पर त्यौहार मनाने का कोई औचित्य नहीं है। त्योहारों को पूरी श्रद्धा भाव से मनाया जाए,वस्तुत:तभी उनके असली मायने हैं।