नई दिल्ली में स्थित ऐतिहासिक जंतर-मंतर वेधशाला के राम यन्त्र का होगा जीर्णोद्धार

Ram Yantra of the historic Jantar Mantar Observatory in New Delhi will be renovated

गोपेंद्र नाथ भट्ट

यह एक अच्छी खबर है कि राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में स्थित ऐतिहासिक जंतर-मंतर वेधशाला में राम यंत्र का शीघ्र ही जीर्णोद्धार होगा। यह राम यंत्र जयपुर वेधशाला में स्थित अपने समकक्ष राम यंत्र से लगभग दोगुना बड़ा है । राम यंत्र को खगोलीय पिंडों की ऊँचाई और दिगंश को एक विशिष्ट तरीके से मापने के लिए डिज़ाइन किया गया था।

जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह (द्वितीय ) (1688–1743) ने 18वीं शताब्दी में भारत में पाँच प्रसिद्ध वेधशालाएँ क्रमशः जयपुर (राजस्थान),नई दिल्ली(दिल्ली), वाराणसी(उत्तरप्रदेश ), उज्जैन(मध्य प्रदेश) और मथुरा (उत्तरप्रदेश )में बनवाई थी ।इनमें से वर्तमान में जयपुर, उज्जैन और वाराणसी की वेधशालाएँ कार्यरत हैं। मथुरा वेधशाला अब अस्तित्व में नहीं है।वह अब केवल एक खंडहर हैं और माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर दिल्ली जंतर-मंतर का जीर्णोद्धार किया जाने वाला है। ये वेधशालाएँ वैज्ञानिक सौच के साथ खगोलीय घटनाओं का अवलोकन,समय मापन, ग्रहों की स्थिति और कैलेंडर की गणना आदि प्रयोजनों के लिए बनाई गई थीं। इनमें विशाल पत्थर के उपकरण (जैसे सम्राट यंत्र, जय प्रकाश यंत्र आदि) हैं।

राजस्थान की राजधानी गुलाबी नगर जयपुर के दिल में सिटी पैलेस के पास स्थित है वेधशाला देश की पाँचों वेधशालाओं में सबसे बड़ी और सबसे बेहतर संरक्षित वेधशाला है। इसे वर्ष 2010 में यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल भी घोषित किया गया है ।इस वेधशाला को सवाई जयसिंह द्वितीय ने 1724–1734 के मध्य सबसे पहले बनवाया था । इसे बनाने का मुख्य उद्देश्य खगोलीय पिंडों की गति और स्थिति को मापने के साथ ही समय की जानकारी और कैलेंडर तथा ज्योतिषीय गणनाएँ था ।इस वेधशाला का मुख्य यंत्रसम्राट यंत्र है । यहाँ दुनिया की सबसे बड़ी 27 मीटर ऊँची पत्थर की सूर्यघड़ी (संडायल) है जो 2 सेकंड तक की सटीकता से समय का माप सकती है।

इसी प्रकार उलटे गोले के आकार का जय प्रकाश यंत्र, जिसमें खगोलीय निर्देशांक पढ़ने की सुविधा है।इसके अलावा राम यंत्र सूर्य की ऊँचाई और कोण मापने वाला उपकरण है ।यहाँ बना हुआ नाड़ी वालय यंत्र स्थानीय समय बताने वाला उपकरण है । तथा एक और चक्र यंत्र खगोलीय निर्देशांक मापने वाला यंत्र।ये सभी यंत्र पत्थर और संगमरमर से बने हैं।जयपुर वेधशाला भारतीय खगोलशास्त्र और वास्तुकला का अद्भुत संगम है ।इसमें खगोलीय गणनाएँ नग्न-नेत्रीय अवलोकन से बेहद सटीक की जाती थीं।आज भी अनेक वैज्ञानिक और पर्यटक इसे देखने आते हैं।

नई दिल्ली में कनाट प्लेस के निकट स्थित जंतर-मंतर वेधशाला चारों ओर से नए भवनों और निर्माण कार्यों से घिरी हुई है। जंतर-मंतर वेधशाला से सटा प्राचीन बटुक भैरव मन्दिर राजस्थान के देवस्थान विभाग की सम्पति है। इससे लगा हुआ जनपथ हस्त शिल्प मार्केट राजधानी नई दिल्ली का मशहूर बाज़ार है जोकि देशी विदेशी पर्यटकों में काफी लोकप्रिय है। भैरव मन्दिर के पास राजस्थान सरकार की कुछ परिसंपत्तियां अतिक्रमण की भेंट चढ़ गई हैं ।

जंतर-मंतर संसद सत्र के दौरान तथा पहले और बाद में धरना प्रदर्शनों आदि का प्रमुख स्थान है।

राजस्थान के मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा ने पिछले दिनों बटुक भैरव मन्दिर और आसपास के स्थलों का अवलोकन कर अधिकारियों को आवश्यक दिशा निर्देश दिए थे।

नई दिल्ली के जंतर-मंतर वेधशाला में सम्राट यंत्र के दक्षिण में स्थित बेलनाकार संरचनाओं के एक जोड़े, राम यंत्र का जीर्णोद्धार कार्य जल्द ही शुरू होने वाला है। यह राम यन्त्र सूर्य की गति को ट्रैक करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अनुसार इस परियोजना का शुरू होने से पहले विवरणों का दस्तावेजीकरण किया जा रहा हैं। हाल ही में एक विशेषज्ञ समिति ने जीर्णोद्धार योजना पर चर्चा करने के लिए परियोजना वास्तुकार के साथ बैठक भी की है । एक सदस्य ने पुष्टि की है कि इसकी अंकन आदि योजनाएँ पूरी हो चुकी हैं,और तदनुसार कंप्यूटर-सहायता प्राप्त डिज़ाइन तैयार किए गए हैं।

राम यंत्र को खगोलीय पिंडों की ऊँचाई और दिगंश को एक विशिष्ट तरीके से मापने के लिए डिज़ाइन किया गया था। यह दिन के किसी भी समय सूर्य की ऊँचाई की गणना करने की क्षमता रखता है और इसका उपयोग स्थानीय समय निर्धारित करने के लिए भी किया जा सकता है। वर्तमान में, दक्षिणी (पूरक) उपकरण का ऊपरी 180 डिग्री खंड बंद है, हालाँकि इसे मूल रूप से अपने जुड़वां की तरह खुले खंडों के साथ बनाया गया था।केंद्रीय ऊर्ध्वाधर स्तंभ पर समान रूप से दूरी वाली धारियाँ पूरी तरह से मिट गई हैं, केवल धुंधले निशान ही बचे हैं। क्षैतिज स्लैब पर अंशांकन चिह्नों वाले वृत्ताकार चाप भी लगभग मिट चुके हैं, और 1 डिग्री के अंतराल पर स्थित रेडियल रेखाएँ अब दिखाई नहीं देती हैं।

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अमरकंटक में भौतिकी विभाग के प्रमुख दक्षिणी राजस्थान के बांसवाड़ा निवासी डॉ. आलोक पंड्या ने राम यन्त्र में सुधार और पुनर्स्थापना की आवश्यकता पर बल दिया है।
उन्होंने कहा कि प्रस्तावित कार्य के हिस्से के रूप में बंद खंडों को फिर से खोला जाना चाहिए। उन्होंने कहा, केंद्रीय ऊर्ध्वाधर स्तंभ पर समान दूरी वाली धारियों को पुनः बनाया जा सकता है क्योंकि वे अभिलेखीय तस्वीरों में स्पष्ट रूप से दिखाई देती हैं।राम यंत्र की दोनों संरचनाओं के क्षैतिज स्लैब पर अंशांकन चिह्नों वाले वृत्ताकार चाप लगभग पूरी तरह से मिट चुके हैं और उन्हें पुनः खींचने और उत्कीर्ण करने की आवश्यकता है। इसी प्रकार, केंद्र से 1 डिग्री के अंतराल पर निकलने वाली सीधी त्रिज्य रेखाएँ अब दिखाई नहीं देतीं और उन्हें पुनः खींचने और उत्कीर्ण करने की आवश्यकता है।

राम यंत्र में दो बड़ी गोलाकार संरचनाएँ हैं जिनकी दीवारों में समान दूरी वाले छिद्र हैं। ये सभी मिलकर एक पूर्ण खुला बेलनाकार आकार बनाते हैं। प्रत्येक संरचना के केंद्र में एक ऊर्ध्वाधर स्तंभ है और सपाट स्लैब इसे बाहरी दीवारों से जोड़ते हैं। इन उपकरणों का उपयोग सूर्य की गति का पता लगाने के लिए किया जाता था। उदाहरण के लिए, जब केंद्रीय स्तंभ की छाया दीवार के आधार के ठीक बीच में पड़ती है, तो यह दर्शाता है कि सूर्य आकाश में 45-डिग्री के कोण पर है क्षितिज और सीधे ऊपर के बीच में।

माननीय दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा जंतर-मंतर वैधशाला पर उपकरणों की कार्यक्षमता की स्थिति पर एक रिपोर्ट दाखिल करने के निर्देश के बाद, 2023 में एएसआई ने एक छह सदस्यीय समिति का गठन किया है । बताया जाता है कि यह कार्रवाई एक अवमानना ​​याचिका दायर होने के बाद की गई, जिसमें सितंबर 2010 में इस संबंध में अदालत के आदेश के बावजूद अनुपालना की गति शिथिल ही रही थी लेकिन अब माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर दिल्ली जंतर-मंतर वैधशाला के उपकरणों के जीर्द्धोधार की उम्मीद जगी है और यदि समयबद्ध ढंग से यह कार्य समय रहते हो जाता है तो देश की एक और ऐतिहासिक धरोहर का वैभव बहाल हो सकेगा तथा इससे खगोलीय घटनाओं का अवलोकन,समय मापन, ग्रहों की स्थिति और कैलेंडर की गणना आदि प्रयोजनों को फिर से साधा जा सकेगा।