“राणा की रगों में चिंगारी थी”

Rana had a spark in his veins

डॉo सत्यवान सौरभ

पग-पग पर जंजीरें थीं, पर आँखों में अंगारे थे,
अकेला था रणभूमि में, पर लाखों पर वो भारी थे।
स्वाभिमान की चट्टानों पर, जहाँ सिर कभी न झुके,
महाराणा प्रताप थे वो, जिनसे दुश्मन भी थर्राए थे।

हल्दीघाटी की उस धरा पर, लहू में आग थी जलती,
छोटा-सा एक चेतक भी, विजयों की कथा थी पलती।
न धन का लोभ, न ताज का मोह, बस मातृभूमि प्यारी थी,
राणा की रगों में जो बहती, वो सिर्फ़ लहु नहीं चिंगारी थी।

अकबर ने भेजे प्रस्ताव कई, राणा ने सब ठुकरा डाले,
“झुकना मरना से बदतर है”, ये बोल अमर थे, निराले।
झोपड़ी में चूल्हा बुझा था, पर आत्मा भूखी न थी,
जिसने जंगल खा लिए पत्थर, वो प्रताप महाराणा थे।

ना झुके, ना बिके, ना रुके, इतिहास को राह दिखा दी,
राजा थे पर राज नहीं चाहा, बलिदानों की मिसाल बना दी।
माटी से जो रिश्ता जोड़ा, तलवारों से निभाया,
राणा ने खुद को नहीं, पर भारत को अमर बनाया।

जय महाराणा प्रताप!