रंगोली, दीए और मिठास-पर्यावरण संग मनाएं दिवाली खास !

Rangoli, diyas and sweetness - celebrate a special Diwali with the environment!

सुनील कुमार महला

सोमवार 20 अक्टूबर 2025 कार्तिक अमावस्या को दीपावली है। यह हमारे देश का सबसे बड़ा त्योहार है।खुशी, उमंग, उल्लास, आपसी मेलजोल का त्योहार है।पाठक जानते हैं कि यह त्योहार अंधकार पर प्रकाश, बुराई पर अच्छाई तथा अज्ञान पर ज्ञान की जीत का संदेश देता है। वास्तव में दीपावली का पर्व हमारे जीवन में सुख, समृद्धि और आंतरिक शांति लाने के लिए अपने भीतर के द्वेष, ईर्ष्या और नकारात्मकता को दूर करने का भी प्रतीक है।सरल शब्दों में कहें तो दीपावली का पर्व हमारी आंतरिक चेतना को भी रौशन करने की प्रेरणा देता है।’दीपावली’ शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है — ‘दीप’ अर्थात दीया (प्रकाश) और ‘आवली’ अर्थात पंक्ति (श्रृंखला)।इस प्रकार दीपावली का शाब्दिक अर्थ है — ‘दीपों की पंक्ति।’ दीपावली का असली अर्थ प्रकाश और खुशियों का त्योहार है, न कि धन और संसाधनों की बर्बादी का अवसर। हमारे देश में हर वर्ष अरबों रुपए पटाखों पर खर्च किए जाते हैं, जिससे न केवल धन का अपव्यय होता है, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को भी हानि पहुंचती है। पाठक जानते होंगे कि तमिलनाडु में शिवकाशी, जिसे लिटिल जापान के नाम से भी जाना जाता है, पटाखों/आतिशबाजी का हब कहलाता है।एक उपलब्ध जानकारी के अनुसार देश के 90% पटाखे तमिलनाडु के शिवकाशी में बनते हैं। एक प्रतिष्ठित हिंदी दैनिक में प्रकाशित एक खबर के अनुसार यहां करीब 1108 फैक्ट्रियां हैं, जो 8 लाख रोजगार देती हैं, तथा इनमें 60% महिलाएं हैं। यह ठीक है कि पटाखों के कारण देश में बहुत से लोगों को रोजगार के अवसर मिलते हैं, लेकिन यह भी एक कटु सत्य है कि हर वर्ष पटाखों के कारण आगजनी से जान-माल को भी बहुत नुक्सान पहुंचता है, पशु-पक्षी, मानव से लेकर हमारा पूरा पर्यावरण पटाखों से निकलने वाले धुएं, तेज़ आवाज़ से प्रभावित होता है। गौरतलब है कि इस बार तमिलनाडु के शिवकाशी और आसपास के इलाकों के पटाखा निर्माताओं ने लगभग 7,000 करोड़ रु. की बिक्री दर्ज की है, जो पिछले साल से करीब 17% ज्यादा है। बहरहाल, पाठकों को जानकारी देना चाहूंगा कि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने पटाखों के उपयोग को लेकर कई महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी किए हैं। न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि जिन पटाखों में बैरियम या अन्य हानिकारक रसायन होते हैं, उनका निर्माण, बिक्री और उपयोग पूरी तरह प्रतिबंधित रहेगा। गौरतलब है कि बैरियर या अन्य हानिकारक रसायनों से वायु गुणवत्ता और स्वास्थ्य पर असर पड़ता है और भारत में बने पटाखों में यह बहुत इस्तेमाल होता है। इतना ही नहीं कोर्ट द्वारा केवल ग्रीन पटाखों के निर्माण की अनुमति दी गई है। वास्तव में ग्रीन पटाखे पारंपरिक पटाखों की तुलना में पर्यावरण के लिए कहीं अधिक सुरक्षित और लाभदायक हैं। इन पटाखों में बैरियम, नाइट्रेट और हानिकारक धातुएं नहीं होतीं, जिससे वायु प्रदूषण लगभग 30 से 40 प्रतिशत तक कम होता है।इनसे निकलने वाला धुआं और गैसें सीमित होती हैं, जिससे हवा में हानिकारक कणों की मात्रा घटती है। इनका ध्वनि स्तर भी कम होता है, जिससे बुजुर्गों, बच्चों और पशु-पक्षियों को परेशानी नहीं होती। ऐसे पटाखों से आँखों और साँस की बीमारियों का खतरा भी घट जाता है। इसके अलावा, ग्रीन पटाखे स्थानीय स्तर पर बनाए जाते हैं, जिससे देशी उद्योग और रोजगार को भी प्रोत्साहन मिलता है। इनकी पैकेजिंग पर QR कोड होता है, जिससे उपभोक्ता असली ग्रीन पटाखे की पहचान कर सकते हैं। कुल मिलाकर, ग्रीन पटाखे दीपावली की खुशियों को बनाए रखते हुए पर्यावरण की रक्षा करने का संतुलित उपाय हैं। सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों के अनुसार पटाखों की बिक्री केवल लाइसेंस प्राप्त दुकानों से ही हो सकती है और ऑनलाइन बिक्री पर पूर्ण रोक है। न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया कि दीपावली जैसे अवसरों पर पटाखे केवल निर्धारित समय, आमतौर पर रात 8 से 10 बजे तक ही फोड़े जाएँ। सड़कों, अस्पतालों और सार्वजनिक स्थलों पर पटाखे फोड़ना निषिद्ध है। बच्चों को बिना निगरानी के पटाखे चलाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। कोर्ट ने सरकारों को यह सुनिश्चित करने को कहा है कि केवल मानक परीक्षण वाले ग्रीन पटाखे ही बाजार में उपलब्ध हों। साथ ही, किसी भी व्यक्ति या कंपनी का लाइसेंस बिना कोर्ट आदेश के रद्द नहीं किया जाएगा। न्यायालय ने यह भी कहा कि प्रदूषण नियंत्रण केवल दिल्ली तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि यह देशव्यापी नीति होनी चाहिए। माननीय कोर्ट ने नागरिकों से दीवाली को प्रदूषण मुक्त और सुरक्षित तरीके से मनाने की अपील की है, ताकि पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों की रक्षा हो सके। हाल फिलहाल कहना चाहूंगा कि यह दीपावली न केवल रोशनी और उत्सव का प्रतीक बने, बल्कि देशभक्ति, नवाचार और आत्मनिर्भर भारत की भावना का भी सुंदर उदाहरण साबित होना चाहिए। अंत में यही कहूंगा कि पटाखों से उत्पन्न धुआं और विषैली गैसें वातावरण को प्रदूषित करती हैं, जिससे वायु की गुणवत्ता घटती है और लोगों के स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ता है। कई बार आगजनी और दुर्घटनाओं से जान-माल का भी भारी नुकसान होता है। सच्ची दीपावली वह है जिसमें दूसरों के जीवन में भी प्रकाश फैले। यदि हम पटाखों की जगह गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र और मिठाइयां बांटें, तो यही सच्ची खुशी होगी। इससे हमारे समाज में प्रेम, सहयोग और मानवता का दीप जलेगा। दीपावली का सच्चा आनंद तभी है जब हर चेहरे पर मुस्कान हो और हर घर में उम्मीद का उजाला फैले।