प्रगति मैदान के नए स्वरूप में खो गई भारत की असली पहचान

राज्य मंडपों का पुराना वैभव


नया स्वरूप

प्रगति मैदान के अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला का अब वो मजा कहाँ रहा ?

नीति गोपेंद्र भट्ट

नई दिल्ली : नई दिल्ली के प्रगति मैदान में इन दिनों 41वें अंतरराष्ट्रीय व्यापार का आयोजन हो रहा है। कोरोना महामारी की विभीषिका के कारण दो वर्ष बाद आयोजित हो रहें चौदह दिवसीय यह विशाल मेला आज 27 नवंबर रविवार को सम्पन्न हो जायेगा।इसमें करीब 2500 घरेलू और विदेशी प्रतिभागियों ने भाग ले रहें हैं।
मेला के आयोजक भारतीय व्यापार संवर्धन संगठन (आइटीपीओ) ने इस बार भी 14-27 नवम्बर तक चले इस भव्य मेले की थीम प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चहेते नारे ”वोकल फार लोकल, लोकल टू ग्लोबल” पर रखी है । इसके साथ ही इस बार मेला में “आजादी का अमृत महोत्सव” की झलक भी देखने को मिली । इस वर्ष मेले में लद्दाख ने पहली बार हिस्सा लिया। बिहार, झारखंड और महाराष्ट्र प्रदेश मेले में भागीदार राज्य है जबकि उत्तर प्रदेश और केरल राज्यों को फोकस राज्य का दर्जा दिया गया। मेले में 29 राज्य और केंद्र शासित प्रदेश शामिल हुए । मेले में अफगानिस्तान, बांग्लादेश, बहरीन, बेलारूस, ईरान, नेपाल, थाईलैंड, तुर्की, यूएई, वियतनाम, चीन, टुनिशिया, लेबनान और रिपब्लिक आफ तुर्की भी प्रतिभागी थे।पाकिस्तान और अन्य कई देश इस बार भी मेला में शामिल नहीं हुए।

अब वो मजा कहाँ रहा?

प्रगति मैदान में अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेला का अब वो मजा कहाँ रहा जो कि कुछ वर्षों पहले तक रहता था। प्रगति मैदान में प्रवेश करते ही दिल्ली,राजस्थान, असम, अरुणाचल प्रदेश, अण्डमान निकोबार,बिहार, झारखंड,चंडीगढ़,गुजरात, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश,जम्मू कश्मीर,केरल,लक्ष द्वीप, मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ , मेघालय,मणिपुर, नागालेंड,उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, पंजाब,पूँदूचेरी,सिक्किम,तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों के भव्य और बहु मंज़िला पेवेलियनों के दीदार करना और उन प्रदेशों के इतिहास,कला-संस्कृति और समृद्ध स्थापत्य कला का दिग्दर्शन करना एक अनूठा ही अनुभव होता था। लगता था कि समूचा भारत एक ही मैदान में सिमट गया है। यह आकर्षण हमारे देश के ही नही,विदेशी दर्शकों को भी बरबस ही अपनी ओर खींच कर ले आता था। हर प्रदेश का अपना लज़ीज़ खानपान,उनका हस्त शिल्प और वहाँ के लोक-कलाकारों द्वारा उत्साह और उमंग से भरपूर प्रस्तुतियाँ और सांस्कृतिक छटा सभी का मन मोह लेती थी। दर्शकों को भीड़ के मध्य भी अपने पसंदीदा प्रदेश के पेवेलियन को ढूँढना नही पड़ता था। उनके कदम अपने गन्तव्य की और स्वतः ही बढ़ जाते थे। मंडपों का आकर्षण इतना अधिक था कि लाखों की भीड़ के कारण इन भव्य पेवेलियनों के मुख्य द्वार कई बार बंद करने पड़ते थे।

देश के सबसे बड़े इस अंतर्राष्ट्रीय व्यापार मेले की शुरुआत 1979 में हुई थी और 1980 और 2020-21 को छोड़ हर वर्ष यह मेला लगता आया है। व्यापार मेला और प्रगति मैदान में वर्ष पर्यन्त लगने वाले अन्य मेलों और प्रदर्शनियों की बढ़ती लोकप्रियता और बढ़ती भीड़ के कारण इन्हें कई बार नई दिल्ली से दूर द्वारका या कहीं अन्यत्र शिफ़्ट करने की योजना भी बनी । उच्चतम न्यायालय के मार्ग में आना भी इस योजना को परवान पर चढ़ा रही थी लेकिन इस मध्य प्रगति मैदान के पुनर्विकास,आधुनिकरण और नवीनीकरण के प्रोजेक्ट ने यहाँ के प्रमुख आकर्षण भव्य और सुंदर राज्यों के पवेलियन्स की बलि ले ली और अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा और विदेशी व्यापार मेलों की तर्ज पर राज्यों के यें पवेलियन्स विभिन्न हॉल्स में शिफ़्ट हो गए हैं और उनका मौलिक स्वरूप आधुनिकता में कहीं खो गया। हालाँकि इसके लिए तर्क यह दिया गया कि दुबई सिंगापुर यूरोप और अन्य विदेशी देशों में लगने वाले अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार मेला की तर्ज पर प्रगति मैदान को विकसीत किया जा रहा है लेकिन इस सबके बीच कहीं न कहीं हमने अपने देश की शिल्पकला,कला-संस्कृति हुनर की खूबी और मौलिकता आदि को अवश्य खो दिया है।
अलबत्ता प्रगति मैदान में दो वर्षों के अन्तराल के बाद नए परिवेश में आयोजित हो रहें इस बार के व्यापार मेला में भी राजस्थान सहित अन्य प्रदेशों की धाक कम नही हुई है और प्रगति मैदान के लगभग हर नए हॉल में राजस्थान के साथ ही इन प्रदेशों की हस्तशिल्प कला संस्कृति और व्यंजनों की चमक अपनी अलग ही धमक दिखा रहीं हैं।

क्या है प्रगति मैदान के पुनर्विकास की महत्वाकांक्षी परियोजना?

भारत सरकार ने कुछ वर्षों पूर्व 2,254 करोड़ रुपये की लागत से 150 एकड़ क्षेत्र में फैले प्रगति मैदान के पुनर्विकास की महत्वाकांक्षी परियोजना को मंजूरी दी थी और 2017 में इसके शिलान्यास के बाद 2018 में इसका कार्य शुरू हुआ था लेकिन कोरोना महामारी काल के कारण आई बाधाओं और अन्य कारणों से वर्तमान में इस परियोजना की लागत बढ़ कर 2600 -2700 करोड़ रुपये से अधिक हो गई है। तत्कालीन उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने 22 दिसंबर 2017 को प्रगति मैदान में विश्व स्तरीय एकीकृत प्रदर्शनी-सह-सम्मेलन केंद्र (आईईसीसी) परियोजना और एकीकृत ट्रांजिट कॉरिडोर विकास परियोजना की आधारशिला रखी थी।
इस महत्वाकांक्षी परियोजना के अन्तर्गत एक आधुनिक और विश्व स्तरीय एकीकृत प्रदर्शनी-सह-सम्मेलन केंद्र (आईईसीसी) की स्थापना के साथ ही अन्य कई महत्वपूर्ण आयामों को जोड़ा गया है।जिसमें यहाँ एक पाँच सितारा होटल बनाने की योजना भी शामिल है।

प्रगति मैदान के पुनर्विकास की परिकल्पना दो चरणों में की गई है। पहलें चरण का करीब 3.26 लाख वर्ग मीटर का पुनर्विकास कार्य लगभग अन्तिम चरण में है। पुनर्विकास के बाद प्रदर्शनी स्थल वर्तमान से दोगुना 1.19 लाख वर्ग मीटर हो गया है,जबकि अब तक यह 65,000 वर्ग मीटर ही था । पुनर्विकास में 7,000 लोगों के बैठने की क्षमता वाला एक विश्व स्तरीय कन्वेंशन सेंटर के निर्माण को भी शामिल किया गया है। इस मेगा परियोजना का कार्य के लिए राष्ट्रीय भवन निर्माण निगम लिमिटेड (एनबीसीसी) के माध्यम से शापुरजी पालनजी ग्रुप द्वारा निर्माण काम किया जा रहा है।

एकीकृत ट्रांजिट कॉरिडोर हुआ शुरू

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछलें दिनों प्रगति मैदान एकीकृत ट्रांजिट कॉरिडोर परियोजना की मुख्य सुरंग और पांच अंडरपास का उद्घाटन किया। यह प्रगति मैदान पुनर्विकास परियोजना का एक अहम हिस्सा है। यह कॉरिडोर 6 लेन का है।इससे दिल्ली-एनसीआर के लोगों को जाम से राहत मिल सकेगी। 920 करोड़ रुपये से अधिक की लागत से बने इस कॉरिडोर की मुख्य सुरंग प्रगति मैदान से गुजरते हुए पुराना किला रोड होते हुए रिंग रोड को इंडिया गेट से जोड़ती है। इसका खर्च पूरी तरह से केंद्र सरकार द्वारा किया गया है। इसका उद्देश्य प्रगति मैदान में विकसित किए जा रहे नए विश्व स्तरीय प्रदर्शनी और कन्वेंशन सेंटर तक सुगम पहुंच प्रदान करना है, ताकि प्रगति मैदान में होने वाले कार्यक्रमों में आगंतुकों और प्रदर्शकों की भागीदारी आसान बनाई जा सके।

उल्लेखनीय है कि प्रगति मैदान का संचालन भारत सरकार के वाणिज्य विभाग के तहत मिनी रत्न श्रेणी-1 की कंपनी भारत व्यापार संवर्धन संगठन (इंडिया ट्रेड प्रमोशन ऑर्गनाइजेशन -आईटीपीओ) द्वारा किया जाता है।

आईटीपीओ का मुख्यालय प्रगति मैदान में ही है। यह संस्थान 1 अप्रैल 1977 से यहाँ बड़ी-बड़ी प्रदर्शनियों और मेलों तथा अन्य विविध गतिविधियों के माध्यम से व्यापार और विपणन सेवाएं संचालित करता आ रहा हैं।
काश ! प्रगति मैदान के पुनर्विकास की महत्वाकांक्षी परियोजना में राज्यों के मंडपों के पुराने वैभव को भी शामिल कर भारत की समृद्ध विरासत की झलक प्रदर्शित की जाती तो यह सोना में सुहागा ही होता। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश के समृद्ध हेरिटेज के विकास के प्रबल समर्थक है।


हॉल में सिमटें मण्डप