मालदीव-भारत के बेहतर होते रिश्तों के सबब

Reasons for the improving relations between Maldives and India

ललित गर्ग

चीन की कटपुतली बने मालदीव को आखिर भारत की कीमत समझ में आ गयी। चीन एवं पाकिस्तान की कुचालों एवं षडयंत्रों से भारत के पडोसी देशों की हालात जर्जर होती जा रही है, जिसका ताजा उदाहरण बांग्लादेश है। लेकिन एक पडोसी देश के रूप में पिछले करीब एक साल की अवधि में मालदीव ने भी गहरे हिचकोले खाने एवं कई कड़वे अनुभवों से गुजरने के बाद अब पटरी पर आ गया है। विदेश मंत्री एस जयशंकर की पिछले सप्ताह हुई मालदीव यात्रा के दौरान वहां के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू का जैसा दोस्ताना रवैया देखने को मिला, जिस तरह से उन्होंने भारत के साथ आगे बढ़ने की मंशा जाहिर की, यह उन्हें अपनी गलती का अहसास कराने का ही द्योतक कहा जा सकता है। देर आये दुरस्त आये वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए भारत-मालदीव के रिश्तों को भावनात्मक राजनीति के तकाजों पर कूटनीति की ठोस हकीकतों की जीत के रूप में देखा जा सकता है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने पूर्व कार्यकाल में पडोसी देशों की यात्रा करते हुए उनसे भारत के संबंधों को सौहार्दपूर्ण एवं विकासमूलक बनाने के प्रयास किये। इसी के तहत मोदी की तत्कालीन मालदीव दौरे का मुख्य उद्देश्य नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी के तहत सुरक्षा, विकास की दृष्टि के भारत के संबंधों को और मजबूत करना था। दौरे के दौरान मोदी को मालदीव के सर्वोच्च सम्मान ‘निशान इजुद्दीन’ से भी सम्मानित किया गया। दरअसल मालदीव की दक्षिण एशिया और हिन्द महासागर में जो स्ट्रेटजिक (सामरिक) लोकेशन है, वह भारत के लिए बेहद अहम है। मालदीव में पिछले कुछ सालों में चीन ने अपना प्रभुत्व बढ़ाया है, उसे हिंद महासागर क्षेत्र में सामरिक और रणनीतिक सहयोग बढ़ाने पर उल्लेखनीय सफलता भी मिली। लेकिन यह सब करने के पीछे चीन का मुख्य लक्ष्य मालदीव की भारत से दूरी बढ़ाना भी रहा, जिसमें उसे बड़ी सफलता मिली। इस प्रकरण की शुरुआत पिछले साल हुए राष्ट्रपति चुनाव में एक प्रत्याशी के तौर पर मुइज्जू ने भारत विरोधी भावनाओं पर दांव लगाया था।

वह बार-बार सार्वजनिक तौर पर यह संकल्प करते देखे गए कि सत्ता में पहुंचते ही भारतीय सैनिकों को मालदीव से विदा कर देंगे। हालांकि सबको पता था कि भारतीय सैनिकों की वहां मौजूदगी सांकेतिक ही थी। भारत और मालदीव के बीच सदियों पुराने प्रेम एवं सौहार्द के रिश्ते एकाएक तल्ख होते दिखाई देने लगा। मालदीव की तरफ से लगातार तनाव बढ़ाने वाले बयान आते रहे, लेकिन भारत की तरफ से फिर भी संतुलित नीति अपनाई जाती रही है। इसी दौरान मोदी की लक्षद्वीप यात्रा की, जिसका उद्देश्य कत्तई किसी भी देश के पर्यटन को नुकसान पहुंचाना नहीं था, बल्कि अपने देश में पर्यटन की नई संभावनाओं को तलाशना है।

प्रधानमंत्री मोदी पर आपत्तिजनक टिप्पणियों के बाद सोशल मीडिया पर बॉयकाट मालदीव ट्रेंड होने लगा। इस हैशटैग के साथ लोगों के ऐसे पोस्ट की बाढ़ आ गई, जिसमें वे मालदीप और लक्षद्वीप की तुलना करते हुए लक्षद्वीप को बेहतर बता रहे है। मुइज्जू के भारत विरोध उनके अनेक मंत्रियों की तल्ख टिप्पणियों एवं रवैये के कारण वहां की अर्थ-व्यवस्था गिरने लगी, विशेषतः पर्यटन उद्योग को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा। मालदीव की नई सरकार के रुख को देखते हुए भारत ने भी वेट एंड वॉच की पॉलिसी अख्तियार कर ली। नतीजा यह हुआ कि भारत से छुट्टियां बिताने मालदीव जाने वाले टूरिस्टों की संख्या कम होने लगी।

इस साल के शुरुआती चार महीनों की अवधि में वहां भारतीय टूरिस्टों की संख्या में 42 प्रतिशत घट गयी। ध्यान रहे, मालदीव की जीडीपी में टूरिज्म का योगदान 30 प्रतिशत है। इतना ही नहीं, भारत के सहयोग से चलने वाले इन्फ्रा प्रॉजेक्ट्स और हेल्थ, एजुकेशन और कृषि क्षेत्रों से जुड़े कई प्रॉजेक्ट्स का भविष्य भी अधर में लटका दिखाई देने लगा। मुइज्जू सरकार इनकी अनदेखी नहीं कर सकती थी। किसी अन्य देश का सहयोग भी इसकी भरपाई नहीं कर सकता था। ऐसे में मुइज्जू सरकार ने पिछले कुछ समय से अपने रुख में बदलाव का संकेत देना शुरू कर दिया था। भारत ने भी इन संकेतों का सम्मान किया। नतीजा यह कि विदेश मंत्री एस जयशंकर ने मालदीव की यात्रा की, जिसके कारण दो पड़ोसी देशों के पुराने रिश्ते फिर पटरी पर लौटते दिख रहे हैं।

मालदीव एक समय भारत का सहयोगी हुआ करता था। वहां की अर्थव्यवस्था चीन और भारत पर निर्भर है। हालांकि, मालदीव की भारत से नजदीकी हमेशा चीन को खटकती थी, जिस कारण उसने इस देश को अपने कर्ज के जाल में फंसाया। धीरे-धीरे इस देश की माली हालत बुरी होने लगी, जिसके बाद यहां चीन समर्थक और इंडिया आउट का नारा देने वाले मोहम्मद मुइज्जू की सरकार बनी। पाकिस्तान एवं चीन के दबाव में उनके नए राष्ट्रपति के सुर बदले। वहां भारत-विरोधी स्वर उग्रतम बने।

मुइज्जू ने राष्ट्रपति बनने के बाद सबसे पहले चीन का ही दौरा किया था और इसके बाद उन्होंने कई भारत विरोधी फैसले किए, लेकिन इन स्थितियों के कारण हुए भारी नुकसान का झेलते हुए मालदीव चीन के मनसूबों का भाप गया। भारत का पड़ोसी देश मालदीव हिंद महासागर पर बसा है और इस कारण यह सुरक्षा की दृष्टि से भी अहम है। यहां की नई सरकार चीन के करीब दिख रही है और चीन अपने मनसूंबो को पूरा करने के लिये गलत रास्तों पर ढकेल रहा है। मालदीव के नए राष्ट्रपति ने तो अपने चुनाव प्रचार में ही ‘इंडिया आउट’ का नारा दिया था। भारत एवं मालदीव के बीच तल्खी अगर बढ़ती तो हिंद महासागर रीजन की सिक्योरिटी भारत के लिए परेशानी का सबब बन सकती है।

चीन हमारे रिश्तों की तल्खी का फायदा उठाने की लगातार कोशिश कर रहा है। जिसका भारत ने खयाल रखा। इसलिए भारत सरकार की तरफ से संतुलित नीति पर बल दिया जाता रहा है, जबकि मालदीव की तरफ से तो लगातार काफी कुछ गलत कहा जाता रहा है। लेकिन मालदीव को भी यह समझ आ गया कि भारत से दूरी उसके लिये नुकसानदायी है। चीन की तुलना में भारत से मालदीव के हित ज्यादा गहराई से जुड़े हैं। फिर भी मुइज्जू भारत के साथ रिश्तों में आ रही संभावित दूरी की भरपाई चीन से करीबी रिश्तों के रूप में करना चाहते हैं। हालांकि एक्सपर्ट्स तब भी इस बात की ओर ध्यान खींच रहे थे कि भू-राजनीति की वास्तविकताओं के मद्देनजर यह संभव नहीं है कि मालदीव में जो भूमिका भारत निभा सकता है, वह चीन निभाने लगे। फिर भी चीन की शह पर भारत को आंख दिखाने की कोशिश होती रही है। राष्ट्रपति पद ग्रहण करने के बाद मुइज्जू के बयानों में हलकी सी नरमी जरूर दिखी, लेकिन नीतियों की दिशा बदलने का प्रयास फिर भी जारी रहा। लेकिन इससे हो रहे नुकसान को लेकर मुइज्जू सरकार सतर्क हो गयी। पर्यटन ही मालदीव की आय का सबसे बड़ा स्रोत है। भारत से करीब दो लाख से ज्यादा लोग हर साल मालदीव की यात्रा करते हैं। मालदीव में मौजूद भारतीय हाई कमिशन के आंकड़ों को मानें तो साल 2022 में 2 लाख 41 हजार और 2023 में करीब 2 लाख लोगों ने मालदीव की यात्रा की है। ऐसे में भारत-मालदीव के बीच बढ़ रही दूरी का असर मालदीव के टूरिज्म एवं आर्थिक व्यवस्था पर पड़ना स्वाभाविक था।

भारत हमेशा अपने पड़ोसियों के प्रति अच्छा रहा हैं लेकिन चीन पोषित भारत विरोध की ऐसी अकारण नफरत भारत क्यों बर्दाश्त करें? निश्चित ही मालदीव के रवैये का दोनों देशों के बीच की सदियों पुरानी दोस्ती पर नकारात्मक प्रभाव पडा। भारतीय यदि मालदीव का बहिष्कार करने लगा तो वहां अर्थव्यवस्था चरमरा जायेगी, यह बात समझने में मालदीव को देर नहीं लगी। अपनी भूल को सुधारते हुए उसने भारत की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया है जो दोनों देशों के हित में है। भारतीय उपमहाद्वीप के देशों के केनवास पर शांति, प्रेम, विकास और सह-अस्तित्व के रंग भरने में भारत सक्षम है, पडोसी देशों में भारत ही मजबूत स्थिति में है, आर्थिक एवं सामरिक दोनों ही दृष्टि से भारत अपने पडोसी देशों में सशक्त एवं ताकतवर है, उसे मनोबल के साथ पडोसी देशों में स्थिरता, शांति, लोकतंत्र एवं आपसी समझ की ज्योत जलाने के लिये तत्पर रहना चाहिए, जो उन देशों के साथ भारत के लिये भी जरूरी है।